|
लोकसभा चुनाव के दौरान महाराष्ट्र में कांग्रेस एवं राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) में से कौन सा दल कितनी सीटों पर चुनाव लड़ेगा, इसे लेकर घमासान मचा हुआ है। दोनों ही पार्टियों के नेता एक-दूसरे की किरकिरी करने में जुटे हुए हैं।
इस विवाद को सार्वजनिक तौर पर राकांपा के अध्यक्ष शरद पवार के बयान से तूल मिल गया। उन्होंने 6 माह पूर्व दावा कर दिया था कि महाराष्ट्र में पिछले लोकसभा चुनाव की तर्ज पर राज्य में लोकसभा की 48 सीटों पर 22 पर राकांपा और 26 पर कांग्रेस चुनाव लड़ेगी। साथ ही कहा था कि कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में परिर्वतन भी किया जाएगा। इस पर महाराष्ट्र में कांग्रेस अध्यक्ष माणिकराव ठाकरे और मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने अपने आपसी मतभेद भुलाकर कहा कि दोनों पार्टी गठबंधन से चुनाव तो लड़ेंगी, लेकिन राकांपा की सीटों में इस बार कटौती की जा सकती है। राकांपा को इस बार 22 की जगह 19 सीटों पर ही चुनाव लड़ने की सहमति दी जाएगी। इसके बाद विवाद और बढ़ गया। राकांपा के खिलाफ बन रहे माहौल को देखते हुए ही कांग्रेस ने इस बार सीटें बढ़ाने पर जोर दिया है।
पुणे यात्रा में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा था कि अब गंभीरता से सोचन-समझने का समय आ गया है कि महाराष्ट्र मंे राकांपा के साथ चुनाव लड़ना जरूरी है या राजनीतिक मजबूरी? यही नहीं तीन वर्षों से महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण शरद पवार के विरोधी रहे हैं। एक ओर जहां राज्य में सत्ताधारी गठबंधन में लोकसभा सीटों के बंटवारे को लेकर तनाव चल रहा है, वहीं शरद पवार कहते हैं कि वे लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ेंगे। उन्होंने राज्यसभा में जाने का मन बना लिया है। वहीं पृथ्वीराज चव्हाण ने उनसे दो टूक सवाल कर दिया कि राकांपा के कारण भला कांग्रेस को कहीं कुछ लाभ हुआ है? दोनों पार्टियों के बीच चल रही बयानबाजी जहां एक तरफ दरार बढ़ा रही है, वहीं राजनीतिक समीक्षक कहते हैं कि शरद पवार जो कहते हैं उससे विपरीत ही करते हैं। द. वा. आंबुलकर
टिप्पणियाँ