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० संत गोपाल दास व दंड़ी स्वामी ने कहा विदेशी संस्कृति और संस्कार फैला रहे हैं प्रदूषण ० हिंदू संस्कृति व संस्कार के कारण ही देश रहा विश्व का सिरमोर
हिन्दू संस्कृति देश की पहचान है और गाय हिन्दू संस्कृति का मूल है। इसलिए जब तक हिन्दू संस्कृति का संरक्षण नहीं होगा और देश के कोटि-कोटि जनमानस के मन में हिन्दू जीवन पद्घति का संचार नहीं रहेगा तो न गाय बचेगी न गंगा का प्रवाह प्रखर रहेगा। ये उद्गार गोचारान भूमि खाली कराने को लेकर आंदोलन कर रहे संत गोपालदास और दंडी स्वामी ने गीता की पावन स्थली ज्योतिसर (कुरुक्षेत्र) में किया।
उन्होंने कहा कि देश के हर मानव के मन में राम बसता है, बिना किसी भेदभाव के लोग राम को भज रहे हैं। देश की संैकड़ों वर्षों की परतन्त्रता के बावजूद भी लोग राम को नहीं भूले। स्वतंत्रता संग्राम में भी अनेक देशभक्तों ने राम के जीवन का अनुकरण करते हुए अपने कर्तव्य का अनुपालन किया। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने गीता और राम को अपनी जीवन पद्धति का मूल बताया है।
उन्होंने कहा लेकिन जिस देश का सपना राष्ट्रपिता ने संजोया था वह अब विपरीत होता दिखाई दे रहा है। उनके नाम का सहारा लेकर राजनीति करने वाले राजनेता राम और हिन्दू के कट्टर विरोधी बन गए हैं। ऐसे में देश की जनता का जागरण करना उन्हें अपने कर्तव्य का अहसास दिलाना बेहद आवश्यक बन गया है। संतों ने कहा कि वे भगवान श्री कृष्ण की कर्मभूमि कुरुक्षेत्र में गीता ज्ञान की पावन स्थली ज्योतिसर से इस जन जागरण का संकल्प लेकर आगे बढ़ रहे हैं। संतों ने कहा कि प्रथम चरण में हरियाणा प्रदेश के गांव-गांव में यह ज्वाला जगाई जाएगी और लोगों को गाय पालन से होने वाले लाभ व जीवन पर पड़ने वाले सुप्रभाव के बारे बताया जाएगा। दंडी स्वामी व संत गोपालदास ने कहा हिंदू समाज बहूत सशक्त समाज है, जो अभी भी गांवों में बसता है, लेकिन समाज हिंदू संस्कृति से विमुख होता जा रहा है। इसका कारण भ्रष्ट सरकार है, जो अपने लाभ के लिए विदेशी संस्कृति को बढ़ावा दे रही है।
प्रशासन की प्रताड़ना पर रोष
सरकार से गोचारिणी भूमि मुक्त न होने से नाराज संत गोपाल दास ने हुड्डा सरकार को कटघरे में खड़ा किया और कहा कि बार-बार आश्वासन देने के बावजूद वायदा खिलाफी की गई है। करनाल के श्री कृष्ण आश्रम के दंडी स्वामी ने कहा कि भ्रष्टाचार ने समाज में जड़ें जमा ली हैं। सरकार की कई नीतियां हिन्दू संस्कृति के लिए खतरा बन गई हैंं। उन्होंने कहा कि संस्कृति को बचाने के लिए देश के संतों को ही आगे आना होगा। डा. गणेश दत्त वत्स
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