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संत तुलसी दास जी ने रामचरित मानस में ठीक ही लिखा है-
धीरज धरम मित्र अरु नारी।
आपत काल परखिए चारी।।
एक दिन अचानक हिरन दौड़ा उन तीनों के पास आया और बोला, मित्रो! एक व्याध मेरा पीछा कर रहा है। मेरी रक्षा करो। यह सुन कौआ तुरन्त पेड़ पर उड़कर जा बैठा और इधर-उधर देखने लगा। कौए ने देखा कि व्याध दूसरी दिशा में जा रहा है। उसने हिरन से कहा, ह्यअब डरने की कोई बात नहीं है। तुम निडर होकर घूमो। व्याध दूसरी दिशा में दूर निकल गया है।ह्ण चारों तालाब के किनारे वृक्ष की छाया में बैठे घंटों बातें करते रहे।
कुछ दिनों के बाद जब कछुआ, चूहा और कौआ बैठे बातें कर रहे थे, तो शाम हो गई। पर हिरन नहीं आया। अंधेरा होने पर उन तीनों को बड़ी चिन्ता सताने लगी। उन्होंने सोचा, ह्यलगता है हिरन व्याध के जाल में कहीं फंस गया है या शेर, चीते ने जंगल में उस पर हमला तो नहीं कर दिया।ह्ण वे तरह-तरह की शंकाएं करने लगे। ऐसे ही विचार प्राय: ऐसे अवसरों पर हमारे मन में भी उठते हैं।
यह सुन कछुए ने कौवे से कहा, भैया,तू जल्दी से उड़कर हिरन का पता लगा। कौवे की दृष्टि बड़ी तेज होती है। उसने देखा कि हिरन कुछ दूर पर व्याध के फैलाए जाल में फंसा पड़ा है। कौआ उड़ कर हिरन के पास गया। हिरन की दशा देख कौआ रो पड़ा। हिरन बोला, ह्यमित्र, अब मेरी मौत पास खड़ी है। सबसे कहना मेरी भूल क्षमा करें। मैं अब तुम सबसे कभी नहीं मिल सकूंगा। व्याध कल प्रात: मुझे मार डालेगा। वह मेरी खाल बाजार में बेच कर धन कमाएगा।ह्ण
कौआ बोला, ह्यदोस्त, हिम्मत से काम लो। निराश मत हो ओ। हमारा मित्र चूहा अभी आकर, अपने पैने दांतों से जाल काट कर तुम्हें मुक्त कर देगा। मैं अभी चूहे को बुलाकर यहां लाता हूं।ह्ण
थोड़ी ही देर में कौआ, चूहे को लेकर वहां आ पहुंचा। उसने अपने पैने दांतों से जाल कुतर डाला। उसी समय कहीं से वहां कछुआ भी आ पहुंचा। कौवे ने कछुए को देखकर कहा, ह्यमित्र, तुमने यहां आकर अच्छा नहीं किया। वापिस लौट जाओ। व्याध आ गया तो संकट में पड़ जाओगे।ह्ण
चूहा इस समय तक जाल काट चुका था। तभी अचानक व्याध वहां आ पहुंचा। हिरन भाग खड़ा हुआ। चूहा वहीं बिल में छिप गया। कौआ पेड़ पर जा पहुंचा। पर व्याध ने कछुए को धीरे-धीरे जाते हुए देखा। उसने बढ़कर उसे ही पकड़ लिया और कहने लगा, हिरन तो भाग गया। आज कछुए को ही खाकर परिवार का पेट पालूंगा।
व्याध ने कछुए को पकड़ कर जाल में बांध कन्धे पर लटका लिया। वह घर की ओर चल पड़ा।
उधर इन तीनों मित्रों ने कछुए को छुड़ाने की योजना बनाई। उन्होंने तय किया कि आगे जाकर हिरन मरा हुआ-सा व्याध के मार्ग में लेट जाए। कौआ हिरन के ऊपर बैठ कर चोंच मारने लगे। यह देख व्याध हिरन को उठाने अवश्य आएगा। इतने में चूहा कछुए को जाल से मुक्त कर देगा। कछुआ समीप के तालाब में उतर जाएगा। हिरन भाग जाएगा। चूहा बिल में चला जाएगा और कौआ उड़ कर पेड़ पर जा बैठेगा। ऐसे सब बचे लेंगे।
योजना पक्की थी। उन सभी ने वैसा ही किया। हिरन आगे जाकर एक तालाब के समीप मरा जैसा लेट गया। कौआ उस हिरन के ऊपर बैठकर चोंच मारने लगा। चूहा घात लगा कर छिप कर बैठ गया। तीनों चतुर मित्र व्याध के आने की राह देखने लगे।
थोड़ी ही देर में व्याध उधर से निकला। कछुआ जाल में बंधा उसके कन्धे पर लटका था। व्याध हिरन को भूमि पर पड़ा देख कर बोला, अरे, लो हिरन तो स्वयं ही मर गया। यह सोच उसने कछुए को जमीन पर रखा और हिरन को लेने उसकी ओर आगे बढ़ा। चूहे ने आनन-फानन जाल काट डाला। कछुए ने तालाब में छलांग लगा दी। कौआ उड़ कर कांव-कांव कर पेड़ पर जा बैठा। हिरन कुछ ही पल में कुलाचें भरता हुआ आंखों से ओझल हो गया।
व्याध ने लौट कर पीछे देखा। उसने अपना सिर पीट लिया। वहां न कछुआ था और न हिरन। वह दु:खी हो अपनी मूर्खता पर पछताने और रोने लगा। व्याध उन चारों की चाल समझ गया। वे चारों मित्र एक गुप्त एवं सुरक्षित स्थान पर एकत्र हुए। अपनी मित्रता के बल पर ही उन चारों ने व्याध से छुटकारा पाया। सच है, मित्रता में बड़ी शक्ति है। पर मित्रता पक्की और सच्ची होनी
चाहिए। हरिशंकर काश्यप
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