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मुझ जैसे आम आदमी से उनका केवल बात कर लेना मेरा सौभाग्य हो या ना हो, मेरा सुरक्षा चक्र अवश्य है। उनके बेटे को पढ़ाने की नाकाम कोशिश करने के लिए उनके घर जाता हूं तो कभी-कभार कहो मास्टर कैसे हो? पूछ लेते हैं। इतने भर से ही दूसरों को लगता है कि मैं उनका कृपा पात्र हूं। उन सबकी गलत फहमी बनी रहे इसी में मेरा भला है क्यूंकि वे बाहुबली हैं।
बार-बार चुनावों में सफलता पाकर अपने क्षेत्र की सारी जनता को वे अपनी प्रजा समझते हैं। उनके क्षेत्र में रहना है तो अपने होने को न होने जैसा रखकर ही जीने में समझदारी है वरना कुछ अनहोनी हो जाने का पूरा खतरा बना रहता है। अन्य लोगों की तरह मैं भी उनके काफिले के सड़क पर गुजरने के समय किनारे रूक जाता हूं। उनकी एस यू वी के आगे-पीछे कम से कम दो और गाडि़यां दौड़ती हैं। बीचवाली गाड़ी की छत पर लाल बत्ती चमकती रहती है। आगे पीछे की गाडि़यों में बैठे सुरक्षा गाडोंर् की बंदूकें यूं तनी रहती हैं जैसे अभी आग उगलने लगेंगी। पार्टी का झंडा लहराती बीचवाली गाड़ी में वे स्वयं कम ही दीखते हैं, उनका अधिकांश समय तो राजधानी में बीतता है। उनकी गाडि़यां सड़क की भीड़ को साइरन की जोरदार पी-पों,पी-पों से इधर-उधर हांक करके जब फर्राटे से निकलती हैं तो सब जानते हैं कि लाल बत्ती वाली गाड़ी में वे नहीं बल्कि उनका प्यारा बेटा है जिसकी अभी मसें फूटी भर हैं ़इस इलाके में वे या उनकी आंखों का तारा जो चाहे वही कानून है।
मैं अकेले उनसे नहीं उनकी पूरी रावण सेना से आतंकित हूं। जितना उनसे घबराता हूं, उतना ही उनके बेटे से भी, जिसे घर पर आकर ट्यूशन देने का उनका हुक्म मैंने सर झुका कर स्वीकार किया था। उन्होंने हंस कर कहा था ह्यतुम बस थोड़ा देख लेना मास्टर। उसे कौन मास्टरी करनी है। जितना आराम से पढ़ लिख ले काफी है। शेर के बच्चे को दहाड़ना आना चाहिए बाकी सब चलता है और हां, परीक्षा तो वो पास करेगा ही चाहे पढ़े चाहे न पढ़े़ह्ण फिर मैं पढ़ाने की कोशिश करता रहा और वह होनहार बिरवा अपने पात और चीकने करता रहा। सोलह साल का होते होते अपने कई सहपाठियों को हाकी स्टिक से पीट कर घायल कर चुका था। एकाध पर तमंचा चला चुका था। शराब से शुरू करके, नशीली गोलियों की दरम्याना मंजिलों से जब वह गुजर रहा था तो इसका संकेत दबी जुबांन से मैंने उसके बाहुबली पिता को देने की कोशिश की थी। पर एक ठहाके के साथ उत्तर मिला था अरे मास्टर वो अभी बच्चा है, समय आने पर सब अपने आप समझ जाएगा ़शेर का बच्चा बकरी तो नहीं बन सकता है! तो मैं घबरा कर खुद चुप लगा गया था।
दसवीं की परीक्षा में उसकी प्रथम श्रेणी का प्रबंध वे स्वयं कर लेंगे ये वे मुझे बता चुके थे ़इसीलिये उस दिन जब उन्होंने मुझे बुलवा भेजा कि कोइ जरूरी काम है तो आश्चर्य हुआ। सामने आने पर उन्हें पहली बार थोड़ा चिंतित देखा। मुझसे वे बोले मास्टर, अपने लल्ला अगले महीने अठारह साल के हो जायेंगे मैंने उन्हें बधाई दी। सोचा शायद अठारहवीं वर्षगांठ पर कोई भव्य आयोजन करना चाहते हैं। पर उन्होंने कहा अरे नहीं मास्टर, बात कुछ और है। अभी तक तो बच्चा था, मैं निश्चिन्त रहता था कि कभी कानून की गिरफ्त में आ भी गया तो अवयस्क होने के नाते इसका कुछ बिगड़ेगा नहीं पर अब जवानी में जो गलतियां हो सकती हैं उसके खिलाफ कानून कुछ जियादा ही सख्त हो गए हैं अठारह बरस से कम होने की जो सुरक्षा बनी हुई थी जल्द ही जाती रहेगी। तो मास्टर, तुम्हारे जिम्मे काम ये है कि जरा स्कूल के रिकार्ड निकलवा कर इनकी जन्मतिथि बदलवा दो बेचारे बच्चे को दो तीन साल और थोड़ी मौज मस्ती के लिए मिल जायेंगे। वरना तो अब वक्त बहुत खराब आ गया है। देखो न कैसे-कैसे साधू पुरुषों को भी मीडियावाले चक्कर में फंसा देते हैं। मैं अवाक था़ अठारह से कम होने का कानूनी कवच पहनकर ये किशोर राक्षस अब भस्मासुर की तरह जाने किस कानून की धज्जियां उड़ाएगा और सब बेबस देखते रहेंगे। अठारह का अड़ंगा इतना सक्षम होगा ये कभी सोचा न था।
अरुणेन्द्र नाथ वर्मा
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