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कमल के पिता शहर के जाने-माने उद्योगपति थे, उनकी अनेक फैक्ट्रियां चल रही थीं। हौजरी का बहुत बड़ा व्यवसाय था। बारह महीने उनकी फैक्ट्रियों में हजारों श्रमिक कार्य करते थे, व्यवसाय इतना अच्छा चल रहा था कि इधर माल तैयार हुआ, उधर उस माल की बिक्री हो गयी। देश में ही नहीं विदेशों में भी उनके द्वारा बनाए गए रेडीमेड कपड़ों की बहुत मांग थी। कमल अपने पिता के व्यवसाय से होने वाली आमदनी के बारे में सब कुछ जानता था, क्योंकि कमल को कभी किसी भी प्रकार से पैसे की तंगी नहीं थी। वह स्कूल में पढ़ने जाता तो निजी कार से जाता, ड्राईवर हमेशा साथ रहता, वह जहां कहता ड्राईवर वहीं उसे लेकर जाता, स्कूल के बाद यदि उसका मन होता तो वह बाजार में जाता तथा मनमानी खरीदारी करता, मनमाने रेस्टोरेंट में जाकर मनचाही वस्तुएं खाता, घर का खाना तो जैसे उसे अच्छा ही नहीं लगता। घर पर जाता तो विभिन्न विषयों के लिए अलग-अलग अध्यापक उसे ट्यूशन पढ़ाने के लिए आते। वह उन अध्यापकों का सम्मान न करता, बस उन्हें कुछ खिला पिलाकर घर से रवाना कर देता। पढ़ाई उसके लिए कोई अहमियत नहीं रखती थी, यदि उससे कोई पढ़ाई करके अच्छे नंबर लाने की बात कहता, तो वह उस बात को यह कहकर हवा में उड़ा देता कि ज्यादा पढ़-लिख कर वह क्या करेगा, उसे तो बड़ा होकर अपने पिता का कारोबार ही संभालना है।
उसकी कक्षा में एक लड़का था विजय। साधारण परिवार का लड़का था, उसके पिता कमल के पिता की फैक्ट्री में ही कारीगर थे। विजय पढ़ने में तेज-तर्रार था, विद्यालय में अध्यापक जो कुछ भी पढ़ाते, वह झट से उसे याद कर लेता, यही नहीं वह विद्यालय के अन्य क्रियाकलापों में भी भाग लेता था, सो विद्यालय में सभी अध्यापक उसे होशियार छात्र की संज्ञा देते थे तथा सदैव उसकी सहायता करने के लिए तैयार रहते थे। विजय काम से काम रखता, जितना काम उसे दिया जाता, उसे मन लगाकर पूरा करता। उसने वह गुण अपने पिता से सीखा था। उसके पिता का कहना भी यही था कि जीवन में यदि सफल होना है तो काम से जी मत चुराओ, मेहनत करके प्राप्त की जाने वाली सफलता सुख का अनुभव कराती है। सो वह भी यही सोचकर मेहनत करता कि भविष्य के लिए वह अपना अनुभव बढ़ा रहा है तथा कभी भी की गयी मेहनत बेकार नहीं जाती।
कमल जानता था कि विजय के पिता उसके पिता की फैक्ट्री में कारीगर हैं, सो कई बार उसने विजय से कहा भी- पढ़ने लिखने में समय गंवाकर तुम्हें क्या मिलेगा, बड़े होकर तुम्हें भी अपने पिता की तरह मेरी फैक्ट्री में कारीगर ही बनना है।
विजय कमल की बात पर कतई ध्यान नहीं देता, क्योंकि वह जानता था कि जीवन में आगे बढ़ने के लिए ज्ञान प्राप्त करने से बढ़कर अन्य कोई विकल्प नहीं है तथा यदि जीवन में कुछ पाना है तो उसके लिए कुछ समय के लिए आराम और सुखों का त्याग तो करना ही पड़ेगा।
सो विजय ने मन लगाकर पढ़ाई जारी रखी। कमल को अध्यापक केवल इसलिए पास कर देते, क्योंकि वह अध्यापकों से ट्यूशन पढ़ता था, जबकि विजय अपनी मेहनत के बल पर पूरे स्कूल में प्रथम आता। अपनी मेहनत और ज्ञान के आधार पर विजय अपने सभी अध्यापकों का चहेता बन गया। अध्यापक उसके गुणों से प्रभावित होकर उसे अधिक से अधिक ज्ञानवान बनाने हेतु उसकी सहायता करने लगे, जिसका परिणाम यह हुआ कि वह अपने ज्ञान और अनुभव के बल पर देश की शीर्ष सेवा हेतु आयोजित परीक्षा में सफल हुआ तथा शीर्ष प्रशासनिक अधिकारी बन गया।
कमल के पास चूंकि सभी सुख सुविधाएं थीं, सो वह अपने किसी कार्य को सही ढंग से पूरा करने में असमर्थ रहा, जिसका दुष्परिणाम यह रहा कि उसका कारोबार कम हो गया, जो नए कारोबारी उस कारोबार में आये, उनका कारोबार फलने-फूलने लगा।
एक दिन कमल अपनी फैक्ट्री के किसी प्रमाणपत्र को प्राप्त करने के लिए प्रशासनिक अधिकारी के पास पहुंचा तो सीट पर विजय को बैठे देखकर चौंक गया और बोला- विजय तुम यहां इस सीट पर?
विजय मुस्कराया और बोला- सब मेहनत का कमाल है, कुछ खोकर ही कुछ पाया जाता है। स्कूल में पढ़ाई के समय अपना आराम और सुविधाएं भूलकर यदि मैंने मेहनत न की होती, तो आज मैं जरूर आपकी फैक्ट्री में ही कारीगर होता। कमल झेंप गया। उससे कोई उत्तर देते नहीं बना।
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