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० स्वतंत्रता दिवस विशेषांक में विभिन्न विद्वानों के सारगर्भित लेखों को स्थान देकर पाञ्चजन्य ने बहुत ही समयानुकूल कार्य किया है। इसके लिए पाञ्चजन्य की टोली को साधुवाद। सारे ही लेख बड़े प्रभावी और कुछ ज्ञान देने वाले हैं। इस विशेषांक से पाठकों को विपरीत परिस्थितियों का भान होगा।
-मनोज पाठक
भोपाल (म.प्र.)
० ह्यकमाने के चक्कर में गंवाते गये सबह्ण को पढ़कर यह कहना उचित है कि पृथ्वी पर लाखों प्रजातियां हैं लेकिन इस पृथ्वी को नुकसान पहुंचाने में मानव सबसे आगे है। पर्यावरण प्रदूषण को रोकने हेतु जल का अपव्यय रोकें, अधिक से अधिक पौधे लगाएं व एक निश्चित समय तक उनका पालन पोषण करें। अपने स्वार्थ की पूर्ति हेतु मानव किस-किस रूप में पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहा है इसका अहसास उसे स्वयं भी नहीं है। खेती में उर्वरकों और कीटनाशकों के रूप में रसायनों के प्रयोग के बढ़ने से पर्यावरण को बहुत बड़ा खतरा उत्पन्न हो रहा है। कारखानों, दोपहिया-चौपहिया वाहनों, इलेक्ट्रॉनिक कचरों के जलाने इत्यादि से जो धुआं निकलता है वह वायु प्रदूषण के रूप में पर्यावरण को नुकसान पहंचा रहा है।
-निमित जायसवाल
ग 39, ई.डब्लू.एस., रामगंगा विहार फेस
प्रथम, मुरादाबाद-244001 (उ.प्र.)
० विशेषांक में अनेक ज्वलन्त मुद्दों को शामिल करके एक नई परम्परा शुरू की गई है। राजनीति, शिक्षा,रक्षा अदि विषयों की जांच-पड़ताल से यह अंक पठनीय भी रहा। अर्थव्यवस्था के बारे में सही लिखा गया है कि कर्ज बढ़ता गया ज्यों-ज्यों दवा की। इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता है कि देश आज गंभीर अर्थ संकट में है। कर्ज इतना हो गया है कि उसका सूद देने में ही देश का बहुत पैसा खत्म हो जाता है।
-मनीष कुमार
तिलकामांझी,जिला-भागलपुर(बिहार)
० हमारे देश में आज भी गुलामी की अंग्रेजी मानसिकता का राज है। किसी भी राष्ट्र के लिए सबसे पहली और बड़ी प्राथमिकता है देशवासियों को शिक्षा के जरिए नैतिकवान बनाना। किन्तु अब तक यह काम नहीं किया जा रहा है। उल्टे शिक्षा का स्तर गिराया जा रहा है। बच्चों को नैतिकवान बनाने की जगह उन्हें भटकाने का काम किया जा रहा है।
-प्रहलाद जोशी
शनिवार पेठ, नागपुर(महाराष्ट्र)
० आजादी के समय लोगों ने सोचा था कि अब स्वतंत्र भारत सुख-चैन से प्रगति कर पाएगा। किन्तु यह सपना हो गया है। भारत से अलग होने के बाद भी पाकिस्तान और बंगलादेश भारत को फिर से खण्ड-खण्ड करना चाह रहे हैं। भारत के लोग पाकिस्तान और बंगलादेश की साजिश को न समझ पाएं इसलिए यहां पंथनिरपेक्षता का राग अलापा जाता है। इसकी आड़ में कट्टरवादियों और जिहादियों को बढ़ावा दिया जा रहा है। भारत के देशभक्त लोग इस बात को अच्छी तरह समझें।
-हरिओम जोशी
चतुर्वेदी नगर, जिला-भिण्ड (म.प्र.)
० कौन कहता है कि आज भारत में भारतीयों द्वारा बनाए गए कानून का राज है? भारत में जिस कानून को स्वीकार गया है वह उन्हीं अंग्रेजों का बनाया हुआ है जिन्होंने भारत में फूट डालो और राज करो की नीति के तहत राज किया था। आज भी यही हो रहा है। एक विदेशी द्वारा स्थापित कांग्रेस अंग्रेजों की तरह ही देश के लोगों को मजहब,जाति और प्रान्त में बांट कर देश पर राज कर रही है।
-सुहासिनी प्रमोद वालसंगकर
द्वारकापुरम,दिलसुखनगर
हैदराबाद-60(आं.प्र.)
० हिन्दी की वर्तमान स्थिति को रेखांकित करता आलेख ह्यक से कबूतर को फुर्र करने की चालह्ण प्रासंगिक है। हिन्दी और अंग्रेजी के घालमेल से न केवल गलत भाषा को प्रचारित किया जा रहा है,बल्कि सुसंस्कृत भाषा के विरुद्घ षड्यंत्र रचा जा रहा है। चैनलों ने तो भाषा को पूरी तरह बिगाड़ दिया है। पत्र-पत्रिकाओं में भी बड़ी ही चालू किस्म की भाषा प्रयोग की जा रही है,यह ठीक नहीं है। हर चीज की एक मर्यादा होती है। भाषा की भी एक मर्यादा है उसे ध्यान में रखा जाना चाहिए।
-मनोहर ह्यमंजुलह्ण
पिपल्या-बुजुर्ग
जिला-पश्चिम निमाड़(म.प्र.)
० विशेषांक में विषयों का चयन बहुत अच्छा था। हमारी सेना की जो हालत बना दी गई है वह बहुत ही नुकसानदायक है। जिन लोगों की वजह से सेना की यह हालत हुई है उन लोगों को भारत की नई पीढ़ी माफ नहीं करेगी। ह्यसाहित्य की सड़कों पर हुडदंगी जत्थेह्ण में वामपंथियों और सेकुलरों की पोल पट्टी खोली गई है। उर्दू कहानीकार किशन चंदर को सलमा सिद्दीकी से विवाह करने के लिए धर्म बदलना पड़ा और फिर निकाह हुआ। यहां सेकुलरवादी या वामपंथी चुप क्यों रहे?
-मयंक सिंह
बजलपुरा, तेघड़ा
जिला -बेगूसराय (बिहार)
० भारत में अनगिनत समस्याएं हैं। उन्हीं में से कुछ समस्याओं को विशेषांक में उठाया गया है। देश की अधिकतर समस्याओं के लिए कांग्रेस पार्टी जिम्मेदार है। आतंकवाद इसलिए बढ़ रहा है कि कांग्रेस ने इसको खत्म करने के लिए कोई ठोस नीति ही नहीं बनाई है। राजग सरकार ने पोटा कानून बनाया था। इस सरकार ने आते ही उस कानून को खत्म कर दिया। देश में अभी तक कोई ऐसा कानून नहीं है जिससे आतंकवादी डरें।
-हरिहर सिंह चौहान
जंवरीबाग नसिया
जिला-इन्दौर-452001(म.प्र.)
० 15 मुद्दों पर गहन विचार मंथन करके पाञ्चजन्य ने अपने कर्तव्य बोध का परिचय दिया है। राष्ट्रहित में इन विषयों का विश्लेषण बहुत जरूरी है। पाञ्चजन्य ही एक ऐसा अखबार है जो इस तरह के मुद्दों को बड़ी गंभीरता के साथ उठाता है। इसलिए हम जैसे पाठकों के लिए पाञ्चजन्य एक समाचार पत्र ही नहीं है,बल्कि मार्गदर्शक भी है।
-ठाकुर सूर्य प्रताप सिंह ह्यसोनगराह्ण
कांडरवासा
जिला-रतलाम-457222(म.प्र.)
प्रधानमंत्री किसके रखवाले हैं?
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 29 अगस्त को राज्य सभा में कोलगेट घोटाले से संबंधित फाइलों एवं अन्य विषयों पर कहा कि मैं कोयला घोटालों की फाइलों का रखवाला नहीं? जब विपक्ष ने इन्हीं गुम फाइलों को लेकर पावस सत्र को कई दिन नहीं चलने दिया तब कांग्रेस पार्टी कहने लगी कि प्रधानमंत्री इसमें हस्तक्षेप कर सकते हैं। यह नहीं कहा गया कि प्रधानमंत्री इस विषय पर कोई वक्तव्य या जवाब देंगे, बल्कि हस्तक्षेप करेंगे। अब हस्तक्षेप तो अपनी जगह पर है, प्रधानमंत्री ने सीधे हथौड़ा ही मार दिया। बता दिया कि मंै कोई बाबू थोड़े ही-हूं, जिसका काम फाइलों की रखवाली करना हो। अब जब फाइलें गुम गई हैं, तो एक कमेटी उसकी खोज कर रही है। वह कब तक मिल जाएगी, इसके बारे में कोई कुछ बोल ही नहीं रहा है। यह कमेटी फाइलों को खोज ही लेगी, ऐसा भी कोई दावा नहीं किया जा रहा है। औपचारिक आशावाद जरूर दिखाया जा रहा है कि गुमी हुईं फाइलें एक-न-एक दिन मिल जायेंगी।अब यदि गुमी फाइलें नहीं मिलेंगी तो सरकार या उसकी कमेटी बड़े आराम से कह देगी कि गुमी फाइलें कहां हैं? इसके संबंध में कोई साक्ष्य नहीं मिला। ऐसी स्थिति में सर्वोच्च न्यायालय के पास भी थक हार कर बैठने के अलावा कोई चारा नहीं है।
अब सैकड़ों से ज्यादा कोलगेट घोटाले से संबंधित इन गुमी फाइलों के बारे में सरकार का रवैया कुछ ऐसा दिखता है, जैसे यह बहुत सामान्य ही नहीं, बल्कि बहुत तुच्छ घटना है, और विपक्ष इसे वेबजह तूल दे रहा है। अब सरकार का सोचना यह भी हो सकता है कि आखिर में ये फाइलें तो सरकार की ही थीं, इससे भला विपक्ष, देश की जनता यहां तक कि सर्वोच्च न्यायालय को क्या लेना-देना? अब सर्वोच्च न्यायालय भले ही कहे कि आखिर गुमी फाइलों को लेकर एफ.आई.आर. क्यों नहीं कराई गई? अरे भाई फाइलें गुम होंती तो एफ. आई.आर. कराई जाती। जब जानबूझकर गुमाई गई है, तो एफ.आई. आर. क्यों? और यदि मजबूरी में एफ.आई.आर. करा भी दी गई, तो कोई जरूरी थोड़े ही है कि इसके लिए जिम्मेदार लोगों को कठघरे में खड़ा ही कर दिया जाएगा और गुम हुईं फाइलें मिल ही जाएंगी। अरे पुलिस और सी.बी.आई. भी तो सरकार की ही है। कह दिया जाएगा कि इस संबंध में केाई सबूत नहीं मिला। अब इससे भले सर्वोच्च न्यायालय सिर पीट ले, सरकार की सेहत पर क्या फर्क पड़ता है? अब पहले तो सरकार संबंधित अधिकारियों से पूछताछ पर अड़ंगा लगाती है। कहती है, नियमों के अनुसार पूछताछ बगैर उसकी अनुमति के नहीं हो सकती। 2006 से 2009 के मध्य जब यह मुख्य रूप से कोलगेट घोटाला बताया जाता है, उस समय के कोयला सचिव एच.सी. गुप्ता से सी.बी.आई. द्वारा पूछताछ के लिए सरकार ने कितने रोड़े अटकाए। अरे भाई यह देश के सबसे बड़े घोटाले की जांच का सवाल है। भला जांच में पूछताछ के लिए अनुमति का क्या औचित्य? पर सरकार जब चाहती ही नहीं कि इस घोटाले की जांच हो तो वह तरह-तरह के अड़ंगे लगाएगी।
आखिर में ये कोई ऐसी-वैसी फाइलें तो हैं नहीं। बल्कि एक भीषण बला है, जो सरकार चला रहे लोगों को ही जेल भिजवा देगी। फिर तो गुमना ही इनकी नियति है। ऐसी स्थिति में बड़ा सवाल यह कि फिर घोटालों की जांच कैसे हो? अरे घोटाले इसके लिए थोड़े ही किए गए हैं कि उनकी जांच हो।
बड़ी बात यह कि यदि प्रधानमंत्री अपने ही किए गए फैसलों की फाइल के भी रखवाले नहीं तो फिर किस चीज के रखवाले हैं? वह कहते हैं कि विपक्ष उन्हें सदन में ही ह्यचोरह्ण कहता है। पर इतना तो तय है कि प्रधानमंत्री चोरी भले न करते हों, पर चोरी तो कराते ही हैं। उन्हे संरक्षण देते हैं। इतना ही नहीं वह घोटालेबाजों को भी संरक्षण देते हैं। अब वह निजी तौर पर भले चोर न हों पर कोलगेट प्रकरण में कोयला मंत्री रहते और अब फाइलों को गुमवाकर उन्होंने जो कालाबाजी दिखाई है, उससे तो बड़े-से-बड़ा चोर भी गच्चा खा जाएगा।
-वीरेन्द्र सिंह परिहार
अर्जुन नगर, सीधी (म.प्र.)
भाद्रपद शुक्ल 11 रवि 15 सितम्बर, 2013
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(विश्वकर्मा पूजा)
,, 14 बुध 18 ,, ,,
भापद्रपद पूर्णिमा गुरु 19 ,, ,,
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(प्रतिपदा, श्राद्ध)
,, 2 शनि 21 ,, ,,
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