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भ्रष्टाचार, महंगाई, घोटाले और अपने मंत्रियों की बेलगाम जुबान के रास्ते आम आदमी के अपमान जैसे मुद्दों पर देश में गुस्से से उबलती जनता का ध्यान बंटाने की गरज से सोनिया पार्टी की सरकार ने 31 जुलाई को आंध्र प्रदेश को बांटकर नया तेलंगाना राज्य बनाने की आखिरकार घोषणा कर दी। लेकिन देश के 29 वें राज्य के गठन को लेकर भी सोनिया पार्टी की सरकार ने लोकतांत्रिक मर्यादाओं का मखौल उड़ाया। प्रमुख विपक्षी पार्टी भाजपा की इस मांग को सिरे से नजरअंदाज कर दिया गया कि 5 अगस्त से शुरू होने जा रहे संसद के मानसून सत्र में इस विषय से जुड़े तमाम पहलुओं पर चर्चा के बाद आगे बढ़ा जाए।
इसमें संदेह नहीं कि तेलंगाना राज्य बनाने की मांग पिछले लंबे अर्से से आंदोलनों, धरना-प्रदर्शनों, भूख हड़तालों और इस्तीफों के जरिए जोर पकड़ती जा रही थी। आंध्र के क्षेत्रीय राजनीतिक दल तेलंगाना राष्ट्र समिति के अध्यक्ष के. चंद्रशेखर राव की पूरी राजनीति इसी एक मुद्दे के गिर्द घूमती रही है। इसकी आड़ में वे कभी यूपीए के घटक बने थे, पर राज्य गठन में कांग्रेस द्वारा देरी किए जाने की बात पर गठबंधन छोड़ कर चले गए थे।
हालांकि कांग्रेस के मैनेजरों को लगता है कि नए राज्य के गठन से कांग्रेस को चुनावी फायदा होगा, लेकिन जगनमोहन रेड्डी के जबरदस्त असर के चलते आंध्र की तरह तेलंगाना में भी कांग्रेस से नाराज लोगों की कमी नहीं है। इसकी एक झलग नए राज्य के गठन संबंधी घोषणा के फौरन बाद से दिखनी शुरू हो गई थी। प्रदेश की किरण रेड्डी सरकार पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। सरकार के तीन मंत्रियों, 19 विधायकों और 7 विधान परिषद सदस्यों ने अपने इस्तीफे दे दिए।
आलाकमान पर दबाव बनाने का यह पैंतरा दिसम्बर 2009 में भी चला गया था जब एक के बाद एक इस्तीफों के बाद कांग्रेस ने तेलंगाना बनाने का अपना फैसला पलट लिया था। इन पंक्तियों के लिखे जाते वक्त, खबर यह भी है कि केन्द्रीय मंत्रिमंडल में पद संभाले आंध्र के कुछेक नेताओं के इस्तीफे भी तैयार हैं। इनमें मुख्य हैं पल्लम राजू, जे. डी. सीलम, पुरंदेश्वरी देवी और किल्ली कृपा रानी।
उधर हैदराबाद में सीमांध्र के कांग्रेसी नेताओं ने भी डेरा डाला हुआ है और वे तेलंगाना बनाने की घोषणा पर उबल रहे हैं। तेलंगाना बनने की घोषणा होने के बाद से वृहत रायलसीमा की मांग भी जोर पकड़ने लगी है।
बहरहाल, 31 जुलाई को नई दिल्ली में हुई केबिनेट बैठक में तेलंगाना के गठन पर मुहर लगाने के बाद तय हुआ कि आंध्र प्रदेश के मौजूदा 23 में से 10 जिले तेलंगाना में जाएंगे और आने वाले 10 साल तक हैदराबाद शहर संयुक्त राजधानी रहेगा। हालांकि केन्द्रीय गृहमंत्री सुशील शिंदे का कहना है कि नए राज्य को अमली जामा पहनने में अभी 6-7 महीने लग जाएंगे। लेकिन तेलंगाना विरोधी कांग्रेसियों ने जिस तरह से तलवारें तानी हुई हैं, उससे लगता है राह उतनी आसान नहीं रहेगी।
आउल बाबा को भी लगता है अलग तेलंगाना राज्य बनना चाहिए। इससे तेल की कीमतों में गिरावट आएगी।
– विक्रम शर्मा, फेसबुक पर
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