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अमरीकी आव्रजन कानून दुनिया के शेष देशों से कोई बीज, मिट्टी या पौधा अपने यहां लाने की अनुमति नहीं देता। यह पर्यावरण संरक्षण और जैव विविधता से जुड़ा जटिल विषय है। परंतु दो दशक पहले भारत से गया एक अनूठा बीज ओहायो प्रांत की धरती पर जम ही गया। दिलचस्प बात यह कि इस बीज के रोपने से कोई अंतरराष्ट्रीय अथवा स्थानीय कानून नहीं टूटा। यह पौधा था हिन्दू धर्म का। भूमि पूजन के साथ वर्ष 1992 में हायत रोड, पॉवेल में भारतीय हिन्दू टेम्पल की नींव रखी गई। विविधता में एकता देखने वाले भारतीय दर्शन और 'सबै भूमि गोपाल' की गूंज के साथ आस्था का वह वृक्ष अब बड़ा आकार लेने लगा है।
आज इस मंदिर में प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से दस हजार से ज्यादा लोग जुड़े हैं। रामानुजाचार्य की जयंती के अवसर पर आयोजित कोई कार्यक्रम अमरीका में देखने को मिल सकता है इसकी कल्पना भी नहीं थी। मगर मंदिर में ऐसे ही एक कार्यक्रम में सहभागिता का अवसर मिला। 'एप्पल आईपैड' संभाले, धोती-कुर्ता में सजे चौथी-पांचवी कक्षा के दो छात्र दर्शकों के सामने आए तो पूर्व और पश्चिम की संस्कृतियों के अद्भुत मेल की एक नई पहल देखने को मिली।
कोलबंस स्थित 'भारतीय हिन्दू टेम्पल' में भारतीय संस्कृति को समझने में सहायक साहित्य भी उपलब्ध है। इसके अतिरिक्त विभिन्न भारतीय भाषाओं की कक्षाएं भी यहां सप्ताहांत में चलती हैं। इन कक्षाओं के लिए उमड़ने वाली संख्या का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि करीब चार सौ छात्रों का दीक्षांत समारोह हाल ही में संपन्न हुआ है।
मंदिर का संचालन करने वाली समिति के चेयरमैन, प्रसिद्ध हृदयरोग विशेषज्ञ डा. राज त्रिपाठी की अगुआई में संस्था के लक्ष्य बेहद स्पष्ट हैं। हिन्दू धर्म की अलख जगाना और इसके प्रति अन्य मतावलंबियों में व्यापक समझ पैदा करना। मंदिर की स्थापना करने वाली संस्था ने ऐसा वातावरण तैयार करने का लक्ष्य रखा है जहां हिन्दू धर्म के कार्य व्यवहार को मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक तौर से संपन्न किया जा सके। लक्षित कार्य को पूरा करने में संस्था को उल्लेखनीय सफलता मिली भी है। संस्था से युवाओं के जुड़ाव पर मंदिर समिति का विशेष ध्यान है।
राह भटक गए क्रिस्टोफर कोलबंस ने अमरीका को ही 'इंडिया' मान लिया था। आज उसी अमरीका के कोलबंस में भारत अपने सहिष्णु सांस्कृतिक वैश्टिष्ट्य के साथ जीवंत हो उठा है। हितेश शंकर
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