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छत्तीसगढ़ में पिछले दिनों एक साथ कई नेताओं को अपनी गोलियों का निशाना बनाकर, नक्सलियों ने एक और बहुत बड़ी गलती कर दी। अभी तक नक्सलियों ने अनगिनत हमले किये हैं, जिनमें से कुछ मरने वालों की संख्या के रूप में कभी-कभी याद कर लिए जाते हैं, जैसे 76, 55आदि। इस हमले में सिर्फ 30 लोग मरे, फिर भी यह हमला अब तक का सबसे बड़ा नक्सली हमला हो गया। कैसे? सन् 2007 में छत्तीसगढ़ के रानी बोदली में नक्सलियों ने 55 पुलिसकर्मियों को मार दिया था। एक स्कूली इमारत को जिसको पुलिस ने अपना शिविर बनाया था। घटना रात में हुई, नक्सलियों ने घेरा बनाकर गोलियां दागीं, दोनों ओर से गोलियां चलीं। नक्सली घेरा छोटा करते-करते स्कूल तक पहुंच गए, तब तक पुलिस की गोलियां खत्म हो चुकी थीं, लिहाजा उन्होंने अपने आपको स्कूल की इमारत में ही बंद कर लिया। नक्सलियों ने इमारत में चारों ओर से घेरकर आग लगा दी और दरांती लेकर आगे और पीछे के दोनों दरवाजों पर खड़े हो गए, आग बढ़ी तो मरने के डर से जो जवान बाहर निकले, उसका सर बड़ी ही बेदर्दी से धड़ से अलग कर दिया गया। लगभग 4-5 घंटे चली इस मारकाट में 54 जवान शहीद हुए, जिनमें से अधिकांश जिन्दा जलकर मरे। पर क्या किसी भी लिहाज से वह घटना वर्तमान घटना से छोटी थी या फिर वह घटना, जिसमें नक्सलियों ने 76 जवानों को छत्तीसगढ़ के चिंतलनार में घेरकर मार दिया था? फिर इस बार ही गांधी परिवार और उनके दिशा-निर्देश पर चलने वाले प्रधानमंत्री को वहां की सुध क्यों आयी? इस बार तो वायुसेना प्रमुख ने भी कहा, 'हमारे जहाज नागपुर में तैयार खड़े हैं।' चिंतलनार घटना के अगले दिन रात में जगदलपुर अस्पताल में अस्पताल के कर्मचारी और बस कुछ जवान ही मौजूद थे। वहां न देश की चिंता करने वाला कोई नागरिक था, न ही देश को चलने वाले नेता। अगले दिन देश के तत्कालीन गृहमंत्री पी. चिदम्बरम गए और श्रद्धाञ्जलि की रस्म अदायगी कर 76 परिवारों को उनके पालनहारों के शव ताबूतों में बंद करके भिजवा दिये गये। बस हो गया उनका काम। न ही कोई जांच, न ही कोई संदेह।
n शैलेन्द्र पाण्डेय
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