|
कहावत पुरानी है-
काजर की कोठरी में
कैसो भी सयानो जाय,
एक लीक काजर की
लागिहै पै लागिहै।।
पर कांग्रेस इस कहावत के निहितार्थ को शायद समझ नहीं सकी, या 50 साल से अधिक समय तक देश का शासन चलाते-चलाते उसे लगा कि वह जरूरत से ज्यादा सयानी हो गयी है और अब उस पर कोई कालिख नहीं लगेगी। पर उसका सयानापन धरा का धरा रह गया है और दाग से भरा हुआ सोनिया कांग्रेस का दामन लगातार काला होता जा रहा है। नए दौर में राजीव के समय बोफर्स से शुरू हुई कांग्रेसी कलंक-कथा में राष्ट्रमंडल खेल, 2जी स्पेक्ट्रम, अगास्ता वेस्टलैण्ड जैसे अनेक नाम जुड़ गए थे। पर देश के सबसे बड़े घोटाले का पिछले साल मार्च में पर्दाफाश किया था देश के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने। सीएजी ने सरकारी लेन-देन का विश्लेषण कर साफ-साफ बताया था कि आकाश बेचने (2जी) में भ्रष्टाचार करने के बाद धरती बेचने (देश के बहुमूल्य प्राकृतिक संसाधन-कोयला) में भी सरकार ने कम से कम देश को 1 लाख 86 हजार करोड़ रुपए का चूना लगाया। सीएजी की रपट सन् 2004 से 2009 के बीच कोयला खादानों के आवंटन में की गई अनियमितताओं के विश्लेषण पर आधारित थी। इस कालखण्ड में कोयला मंत्रालय अधिकांश समय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के ही पास था, लिहाजा उंगली प्रधानमंत्री की ओर ही उठनी थी। ऐसे में वित्त मंत्री चिदम्बरम् सबसे पहले आगे आए और बोले, 'न कोई घोटाला हुआ और न ही देश को कोई आर्थिक हानि उठानी पड़ी।' तो अब बताइये चिदम्बरम जी कि आपकी ही सरकार का तोता (सीबीआई) यह क्यों रट रहा है कि कोलगेट मामले में अनियमितताएं बरती गयीं, धोखाधड़ी की गई, तथ्यों को छिपाया गया। प्रधानमंत्री को बचाने और सीबीआई की अंतरिम व गोपनीय रपट को न्यायालय के आदेश के बावजूद 'जांचने' के चक्कर में आपके कानून मंत्री अपनी कुर्सी गवां बैठे। सर्वोच्च न्यायालय की निगरानी के चलते मजबूर हुई सीबीआई को अब कांग्रेस के बड़े दिग्गजों के घर और दफ्तर पर छापे मारने पड़ रहे हैं, और आश्चर्य यह कि घोटाले के खुलासे के 18 महीने बाद भी उसके हाथ 'ठोस सबूत' लग रहे हैं। इन्हीं सबूतों के आधार पर सीबीआई अब तक कोयला घोटाले में 12 प्राथमिकियां (एफआईआर) दर्ज कर चुकी है। कांग्रेस को अब रास्ता नहीं सूझ रहा कि वह जांच को प्रधानमंत्री कार्यालय तक पहुंचने से कैसे रोके। लगातार दर्ज हो रही प्राथमिकियों के बीच बड़ी बात यह है कि घोटाला-काल में कोल सचिव रहे एच.सी. गुप्ता से सीबीआई पूछताछ करना चाहती थी और सरकार उसे इसकी इजाजत नहीं दे रही थी। सीबीआई का कहना था कि घोटाला-काल में कोयला मंत्रालय के सचिव रहे अधिकारी से पूछताछ किए बिना जांच आगे नहीं बढ़ पा रही है। कोल सचिव से यह पूछना जरूरी है कि किन कारणों से आवेदक कम्पनियों की जांच किए बिना उन्हें करोड़ों रुपए के कोल ब्लाक आवंटित कर दिए गए। तत्कालीन कोल सचिव व वर्तमान में भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग के सदस्य एच.सी.गुप्ता से पूछताछ के लिए नियमानुसार अनुमति आवश्यक थी, लेकिन कम्पनी मामलों के मंत्री सचिन पायलट इसकी इजाजत नहीं दे रहे थे। हार कर सीबीआई को धमकी देनी पड़ी- 'आपकी शिकायत सर्वोच्च न्यायालय से करेंगे।' कानून मंत्री अश्वनी कुमार का हाल देख न्यायालय के चाबुक से घबराए पायलट ने आखिरकार एच.सी.गुप्ता से पूछताछ की इजाजत दे दी है।
इस बीच 12वें आरोप पत्र में जिन दो कांग्रेसी दिग्गजों के नाम सामने आए हैं उससे सरकार हिल गयी है। इनमें एक हैं पूर्व कोयला मंत्री दासारि नारायण राव और दूसरे प्रसिद्ध उद्योगपति व कांग्रेस सांसद नवीन जिंदल। कांग्रेस महासचिव राहुल के सबसे चहेते सांसदों में से एक हैं नवीन जिंदल। जाने-माने उद्योगपति व कुरुक्षेत्र (हरियाणा) से कांग्रेस के लोकसभा सदस्य नवीन जिंदल अपनी ईमानदारी और राष्ट्रवादिता का दंभ भरते नहीं अघाते। उनका दावा है कि उनके प्रयासों से ही अब प्रत्येक भारतीय अपने घर-दफ्तर पर तिरंगा फहरा सकता है। इसके लिए वे सर्वोच्च न्यायालय तक गए थे। कांग्रेस के इस 'नायक' का खलनायकी वाला असली चेहरा अब सबके सामने आया जब सीबीआई ने उनका नकाब उतार दिया। सर्वोच्च न्यायालय की बार-बार पड़ती फटकार के बाद सीबीआई ने पहली बार दम दिखाया और जिंदल की कम्पनियों पर छापा मार दिया। उसके हाथ पुख्ता सुबूत लगे हैं कि जिंदल की कम्पनी ने अवैध तरीके से कोयले की खदान आवंटित कराने के लिए तत्कालीन कोयला मंत्री दासारि नारायण राव को 2 करोड़ 25 लाख रुपए की रिश्वत दी थी। सीबीआई ने फिल्म निर्माता से नेता और मंत्री बने दासारि नारायण राव के दिल्ली और हैदराबाद स्थित ठिकानों पर भी छापेमारी की और सबूतों के साथ उनका नाम भी 12वें आरोप पत्र में शामिल किया। यहां यह भी बताते चलें कि जिंदल की कम्पनी ने भारत में ही नहीं कोलंबिया में भी धोखाधड़ी की थी, पर वहां की सरकार सख्त थी, उसने न केवल जिंदल स्टील एण्ड पावर की सम्पत्ति जब्त और कुकर्ी की बल्कि उसे प्रतिबंधित भी कर दिया। वहां जिंदल को 9 करोड़ डालर का नुकसान उठाना पड़ा, हर्जाना भरना पड़ा। पर यहां तो जांच चलती रहेगी लेकिन वसूली कुछ नहीं होगी। पैसा किसने दिया, कैसे दिया यह तो पता चल गया, पर वापस कैसे होगा, इसका कुछ अता-पता नहीं। फिलहाल नवीन जिंदल विदेश में हैं। छुट्टियां मना रहे हैं। यहां सीबीआई ने दिल्ली स्थित आवास पर छापा मारा तो कुछ अल्मारियां ऐसी बंद मिली हैं जिनकी चाबी नवीन के पास है। नवीन जिंदल को संदेश दे दिया गया है कि लौट आओ और अल्मारी खोलो, ताकि बाकी राज भी बाहर आ सकें। जिस प्रकार सर्वोच्च न्यायालय 'कोलगेट' मामले की निगरानी कर रहा है और प्रत्येक 15 दिन में सीबीआई इस मामले में प्रगति रपट (स्टेट्स रपट) देने की मजबूरी में तेजी से काम कर रही है, उससे उम्मीद की जानी चाहिए कि पूरे राज का पर्दाफाश होगा और घोटाला कांग्रेस की अन्तहीन कलंक कथा का सच सामने आएगा। पाञ्चजन्य ब्यूरो
इस बंदरबाट में इन्हें इतने का लाभ मिला
निजी कम्पनियां अनुमानित
लाभ (करोड़ में)
स्ट्रेटिजिक इनर्जी टेक सिस्टम 33,060
(टाटा-सैसल समूह का संयुक्त उपक्रम)
इलेक्ट्रो स्टील कास्टिंग 26,320
जिंदल स्टील एण्ड पावर लिमिटेड 21,226
भूषण स्टील, जय बालाजी, रश्मि सीमेंट 15,967
राम स्वरूप लौह उद्योग, औचनिक कार्प्स 15,633
उत्तम स्टील, विकास मेटल, एसीसी
जेएसपील और गगन स्पन्ज 12,762
एमसीएल, जेपीएल, जिंदल 10,419
स्टैन्लेस, श्याम सीआरआई
टाटा स्टील 7,161
छत्तीसगढ़ कोल कम्पनी 7,023
जेईएससी और जेएएस इन्फ्रा. 6,851
सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनियां
एनटीपीसी 35,024
टीएनईबी 26,584
केटीपीसी 22,301
जेएसईबी 18,648
एमएमटीसी 18,628
डब्लूवीपीडीसीएल 17,358
सीएमडीसी 16,498
एमएसईबी 15,335
जेएसएमडीसीएल 11,988
एमपीएसएमसीएल 9,947
क्या है कोलगेट?
देश में 1976 तक कोयला खदान के लिए कोई एकीकृत कानून नहीं था। यह प्राकृतिक सम्पदा उस राज्य के अधीन थी। कोयला खादान (राष्ट्रीयकरण) संशोधन कानून-1976 के बाद यह अधिकार कोल इंडिया लि. को मिला और वह सिर्फ सरकारी कम्पनियों को खदान आवंटित करती थी। ऊर्जा उत्पादन की जरूरत को देखते हुए 1993 में निजी कम्पनियों को भी ब्लाक आवंटन का रास्ता खुला पर कोई स्पष्ट नीति नहीं बनी। 2004 में बनी 'प्रतियोगी बोली' वाली योजना पर अमल नहीं। इस दौरान 2004-2009 के बीच कुल 197 खदानें आवंटित की गईं। इनमें 57 खदानें निजी कम्पनियों को आवंटित की गईं। सीएजी ने पूरी जांच के बाद पाया कि कोल ब्लाक पाने वाली अनेक कम्पनियों ने आवेदन में सही तथ्य प्रस्तुत नहीं किए, पिछले कोल ब्लाक का उल्लेख नहीं किया, रातों-रात नई कम्पनियां बनाईं गयीं और सरकार ने उनकी जांच किए बिना बाजार से सस्ती दर पर कोल ब्लाक आवंटित कर दिये। इससे देश को 1 लाख 86 हजार करोड़ रुपए का घाटा हुआ। विपक्ष के दबाव के बाद यह रपट 17 अगस्त, 2012 को संसद में प्रस्तुत की गयी। इस रपट के आने के बाद से अनेक आवंटन रद्द किए जा चुके हैं। जिन्होंने आवंटन के बावजूद उत्खनन शुरू नहीं किया है, उनके खिलाफ नोटिस जारी हो चुका है।
जिंदल–राव की करामात
l जिंदल समूह की कम्पनियों-जिंदल स्टील एण्ड पावर लिमिटेड, गगन स्पन्ज एण्ड आयरन, जिंदल रियलिटी और एनडी एक्जिम ने छिपाए तथ्य और किया आवेदन, पुराने आवंटन नहीं बताए।
l झारखण्ड के अमरकोंडा मुरगादंगल में मिले दो कोल ब्लाक
l बदले में जिंदल ने कोयला राज्यमंत्री दासारि नारायण राव को दी 2.25 करोड़ की रिश्वत
l सीधे तौर पर रिश्वत न देकर जिंदल की कम्पनियों ने राव की कम्पनी सौभाग्य मीडिया के शेयर खरीदे
l 28 रुपए का शेयर 100 रु. में खरीदा।
ये सब भी हैं जांच के घेरे में
1. केन्द्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय- इनके भाई सुधीर सहाय की एस.के.एस. इस्पात कम्पनी को मिला लाभ
2. कोयला मंत्री श्री प्रकाश जायसवाल- इनके करीबी की नेको कम्पनी में भागीदारी है।
3. कांग्रेस के समर्थन से झारखंड के मुख्यमंत्री रहे मधु कोड़ा- इनके करीबी विजय जोशी की विनी आयरन एण्ड स्टील को मिले अनेक कोल-ब्लाक
4. लालू प्रसाद की राजद के नेता व पूर्व वाणिज्य मंत्री प्रेमचंद गुप्ता -कोल ब्लाक आवंटन में धांधली कराने में भूमिका
5. महाराष्ट्र के मंत्री राजेन्द्र दर्डा और कांग्रेस सांसद विजय दर्डा – इनकी कम्पनी जस इन्फ्रास्ट्रक्टचर प्रा. लि. ने कोल ब्लाक दिखाकर शेयर बाजार में भी लूट की।
सरकार बताए
l प्रतियोगी बोली के आधार पर नियम पारित करने से पूर्व ही 2004 से 2009 के बीच कोल-ब्लाक आवंटन की जल्दी क्यों? l इसके लिए जिम्मेदार कौन? l बाजार भाव से कम पर औद्योगिक समूह को कोल ब्लाक आवंटन करने की क्या मजबूरी थी? l यदि पूरी प्रक्रिया पारदर्शी नहीं थी तो सारे आवंटन रद्द क्यों नहीं किए गए?
टिप्पणियाँ