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पिछले दिनों केरल की अमीना नामक एक मुस्लिम महिला को हज यात्रा करने से रोक दिया गया। कारण यह बताया गया कि उसके साथ ऐसा कोई सगा-सम्बंधी नहीं है जिसे 'महरम' की संज्ञा दी जा सके। महरम के रूप में कोई पुरुष ही होना चाहिए। मरहम का अर्थ है ऐसा सगा-सम्बंधी जिससे वह विवाह नहीं कर सकती। यानी पिता, दादा, परदादा, भाई, बेटा, पोता, भतीजा, भांजा आदि। महिला के साथ जो भी इस यात्रा पर जाएगा वह उसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी लेगा और हज की क्रिया पूर्ण करने में सहायता प्रदान करेगा।
अमीना कुट्टी केरल के मल्लपुरम जिले की है। इस समय उसकी आयु 64 वर्ष की है। उसने 2013 में सम्पन्न होने वाली हज यात्रा के लिए अपना आवेदन प्रस्तुत किया था। सऊदी अरब की सरकार उसकी यात्रा पर रोक लगाए उससे पहले ही केरल की हज कमेटी ने उसके आवेदन को रद्द कर दिया है। अमीना के चार पुत्र हैं लेकिन वे अपने व्यापार में इतने व्यस्त हैं कि मां के लिए समय नहीं निकाल सकते हैं। अतएव अमीना ने अपनी पड़ोसन, जो हज यात्रा पर जा रही है, के साथ हज करने का विचार बनाया। लेकिन हज कमेटी ने एक निरकुंश मुल्ला की तरह यह फतवा सुना दिया है कि यदि उसके साथ उसका रक्षक यानी महरमदार नहीं है तो वह हज करने नहीं जा सकती। हज कमेटी को यह अधिकार है कि वह जांच-पड़ताल करके ही यात्री को वीजा के लिए हरी झंडी दे। इस फैसले के खिलाफ अमीना ने केरल उच्च न्यायालय में याचिका दायर की है। न्यायालय कोई क्रांतिकारी फैसला देगा तब तो इस्लामी जगत में हाय तौबा मच जाएगी लेकिन ऐसा लगता है कि कठमुल्लाओं के सामने अमीना को हार माननी ही पड़ेगी। यानी मुस्लिम महिला होते हुए भी वह हज यात्रा नहीं कर सकेगी।
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