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मजहब के आधार पर भारत का विभाजन करके 14 अगस्त 1947 को पाकिस्तान नाम से एक नया देश सामने आया। इससे तीन दिन पूर्व 11 अगस्त 1947 को पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना ने कहा था पाकिस्तान में किसी के साथ मजहब के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाएगा। यही कारण है कि पाकिस्तान में माहौल ठीक न रहते हुए भी बड़ी संख्या में हिन्दू और सिख रह गए। कट्टरवादियों के दबाव में 23 मार्च, 1956 को पाकिस्तान को 'इस्लामी गणराज्य' बनाया गया। तभी से आज तक वहां हिन्दुओं और सिखों के खिलाफ मुहिम चल रही है। विभाजन के समय पाकिस्तान में हिन्दू और सिखों की आबादी 1 करोड़ 80 लाख के करीब थी। पर अब वहां लगभग 30 लाख हिन्दू और सिख बचे हैं। सवाल उठता है कि 1 करोड़ 50 लाख हिन्दू और सिख कहां गए? पाकिस्तान से आने वाली खबरें बताती हैं कि वहां वर्षों से हिन्दुओं और सिखों का जबरन मतान्तरण किया जा रहा है। जो लोग मतान्तरण से मना करते हैं उन्हें पाकिस्तान से खदेड़ने की कोशिशें होती हैं। इसके बावजूद जो हिन्दू पाकिस्तान में ही रहना चाहते हैं उनकी बहू-बेटियों की इज्जत लूटी जाती है, जबरन किसी मुस्लिम युवक से निकाह कराया जाता है। जो हिन्दू इन सबका विरोध करते हैं उनकी हत्या कर दी जाती है। पाकिस्तानी हिन्दू भारत आने के लिए तड़प रहे हैं। किन्तु उन्हें भारत आने के लिए वीजा नहीं दिया जाता है। वे लोग वर्षों तक वीजा के लिए भटकते हैं। बहुत मुश्किल से तीर्थयात्रा के नाम पर उन्हें एकाध महीने के लिए भारत आने की इजाजत मिलती है। किन्तु जो पाकिस्तानी हिन्दू भारत आ जाते हैं, वे यहां मरना पसन्द करते हैं, पर पाकिस्तान वापस नहीं जाना चाहते हैं। किन्तु भारत की सेकुलर सरकार पाकिस्तानी हिन्दुओं को यहां रखने के पक्ष में नहीं रहती है। इस वजह से पाकिस्तानी हिन्दुओं को भारत में भी कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
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