दो गोशालाएं'गरीब नवाज' और 'राम रहीम'
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मुजफ्फर हुसैन
अपना भारत का एक विचित्र देश है। यहां सैकड़ों गायें प्रतिदिन कटती भी हैं और सैकड़ों गोमाताओं को बचाने के लिए हिन्दू और मुस्लिम साथ-साथ अपना योगदान देने में भी पीछे नहीं रहते हैं। आज सारे देश में मुस्लिमों द्वारा चलाई जाने वाली गोशालाओं की संख्या 150 से कम नहीं है। समय-समय पर पाञ्चजन्य के पाठकों के सम्मुख मुस्लिमों द्वारा चलाई जा रहीं गोशालाओं का विवरण यह लेखक प्रस्तुत करता रहा है।
पिछले दिनों एक व्याख्यानमाला के निमित्त इस लेखक को मालवा के प्रसिद्ध नगर आगर जाने का अवसर मिला। वहां की गोशाला के संबंध में पूछताछ की तो श्री मालानी एवं परमार जी ने एक गोरे-चिट्टे युवक की ओर इशारा किया, जिसका नाम राजेश देसाई है। अब तक तो आगर के इतिहास पर चर्चा हो रही थी। लेकिन गोशाला के नाम पर श्री देसाई ने अपना मौन तोड़ा और कहा हमें इस बात पर गर्व है कि हमारे परिसर में दो गोशालाएं ऐसी हैं, जिन्हें मुस्लिम बंधु संचालित करते हैं। उन्होंने राजगढ़ जिले के मुल्लाखेड़ी नामक गांव में चल रही गोशाला की चर्चा की जिसका नाम है 'गरीब नवाज गोशाला'। पाठकों को यह बताने की आवश्यकता नहीं है कि अजमेर के ख्वाजा को गरीब नवाज कहकर पुकारा जाता है। शाजापुर के प्रसिद्ध वकील श्री कृष्णकुमार कराडा एवं उनके अन्य साथियों के साथ जब मैं मुल्लाखेड़ी पहुंचा तो थोड़ी दूरी पर ही एक अधेड़ और छरहरे बदन के व्यक्ति को देखा, जो सर्दी से कांप रहा था। वकील साहब ने नाम से पुकारा रमजान भाई कैसे हैं? वे मुझे अचरज से देख रहे थे। जब मैंने पूछा सर्दी में ओढ़ने के लिए कुछ नहीं है? तो वे कहने लगे एक चादर थी जो बछिया को ओढ़ा दी। अभी छोटी है इसलिए उसकी चिंता करनी पड़ती है…। घर के निकट पहुंचे तो खूबसूरत श्वेत धवल, लेकिन मुंह के पास ललाई वाली बछिया खड़ी थी। रमजान भाई को चाटने लगी, वे उसके चेहरे को सहलाते भी रहे और बातें भी करते रहे। मैंने पूछा गोशाला कितने वर्षों से चलाते हो? कहने लगे याद नहीं यह तो पिताजी के समय से चली आ रही है। इसका नाम गरीब नवाज क्यों रखा? तो कहने अजमेर वाले ख्वाजा मुझे पालते हैं और मैं उनकी गायों को पालता हूं। गायों की संख्या 113 बताई। कहने लगे अभी तो जंगल चरने चली गई हैं। गायों के लिए हरी घास मिलती है तो बड़ी खुशी होती है, लेकिन गर्मी में बड़ा कष्ट होता है। तब क्या करते हो? वकील साहब हमारी चिंता करते हैं और राजेश जी तो इन सबके पिता समान हैं। हमारे से अधिक चिन्ता उन्हें रहती है। जिस वस्तु की आवश्यकता होती है वे कहीं न कहीं से हमें लाकर दे देते हैं। चारा, खली और लावसी (गुड़ में पकाए हुए चावल) मिल जाए तो फिर क्या कहना? कमी तो हर चीज की रहती है लेकिन यहां के गोभक्त हमें कष्ट नहीं होने देते हैं। अब तो मध्य प्रदेश सरकार भी हमें अनुदान देने लगी है। बहुत थोड़ा ही सही लेकिन शिवराज सिंह की सरकार ने इन मूक प्राणियों की ओर जो ध्यान दिया है उसके लिए हम उनके शुक्रगुजार हैं। रमजान भाई आगे क्या योजना है? गायों की संख्या बढ़ जाए और उनकी सेवा करता रहूं। हमारी तीन पीढ़ियों से यह गोशाला चल रही है। भविष्य में भी चले यह ख्वाजा साहब से हमारी प्रार्थना है। जब मैंने कहा विश्वास रखो अब इस देश में गाय और गोशाला का भविष्य उज्ज्वल है तो रमजान की आंखों में चमक लौट आई।
बछड़े की स्मरण–शक्ति
आगर में ही एक पुराना शासकीय पशु प्रजनन केन्द्र भी है। यहां डा. अरविन्द महाजन अपनी सेवाएं दे रहे हैं। गाय के अनेक गुणों का वर्णन करते-करते जब उनके दूध निकालने का समय आया तो डा. अरविन्द ने कहा गाय और उसके बछड़े की स्मरण शक्ति का आपको एक नमूना बताता हूं। गायों का दूध बारी-बारी से निकाला जा रहा था। इन गायों के नाम दिए गए थे, जैसे-प्रीती, लक्ष्मी, गोमती, बबली, मीना, शर्मिला आदि। गाय के इन बछड़ों को अपनी मां के नाम भली प्रकार से याद थे। दूध निकालने से पहले बछड़ों का टोला जहां खड़ा था, वहां जाकर उनकी मां का नाम पुकारा जाता था। बछड़ा अपनी मां का नाम सुनते ही भागता और उसके थन को मुंह में ले लेता। यदि भूल से भी किसी अन्य बछड़े को वहां ले जाया जाता तो न मां दूध पिलाती थी औ न ही उसका बछड़ा दूध पीता था। उक्त दृश्य सामान्य व्यक्ति को दंग कर देने वाला था।
यही मेरा परिवार
शाजापुर से लगता हुआ ही मध्य प्रदेश का राजगढ़ जिला है। यहां जो मुस्लिम बंधु गोशाला चलाते हैं उनका नाम करीम पटेल है। गोशाला जहां स्थित है उस गांव का नाम पालेन है। पाठकों को यह याद दिला दें कि स्वतंत्रता के पूर्व मालवा का यह परिसर ग्वालियर के सिंधिया परिवार के अंतर्गत आता था। इस गोशाला का नाम है राम-रहीम गोशाला। इस नाम के पीछे यह तर्क दिया जाता है कि यहां की जनता में मजहब के नाम पर कोई मतभेद नहीं है। हिन्दू और मुस्लिम गोमाता की सेवा राम और रहीम बनकर करते हैं।
राजेश देसाई का कहना था कि इस गोशाला की एक बड़ी विशेषता है, क्योंकि इसके परिसर में गोदान की परम्परा है। हर साल औसतन एक हजार गायों का दान किया जाता है। कोई सम्पन्न व्यक्ति किसी गरीब आदमी को गाय देकर उसकी अर्थव्यवस्था में सहायक होता है। गाय और बैल यहां की सबसे बड़ी सम्पत्ति है। लेकिन हम किसी अन्य के हाथों इसका दान नहीं करते हैं, क्योंकि अपरिचित गोमाता के साथ किसी और प्रकार का व्यवहार भी कर सकता है? दान की हुई गाय नजरों के सामने रहनी चाहिए। भाई द्वारा बहन को गोदान करने की परम्परा है। विवाह में भी गो को भेंट स्वरूप दिया जाता है। जब गोदान का औसतन आंकड़ा पूछा तो राजेश भाई कहने लगे हिन्दू परिवारों में एक हजार और मुस्लिम परिवारों में कम से कम 50 गायों का दान होता है। यहां की ग्रामीण जनता का गोप्रेम आश्चर्यजनक है। करीम पटेल से पूछा गया कि आपके परिवार में और कौन-कौन हैं? उन्होंने अपनी गोशाला की ओर इशारा करते हुए कहा यही मेरा परिवार है… मुझे इस पर गर्व है कि मेरे गायों, बैलों और बछड़ों का कुनबा राम रहीम का कुनबा है। वर्षों से हम उनकी सेवा करते हैं और ये हमारी सेवा करते हैं। रमजान खान और करीम पटेल दोनों का कहना था कि अभाव तो अनेक हैं लेकिन हमारा भाव एक है, और वह है हमारी इस माता के लिए अर्पण और समर्पण।
मां शारदा की वेशभूषा में तबस्सुम
गत 17 फरवरी को मालदा (प. बंगाल) में बच्चों का एक रंगारंग कार्यक्रम आयोजित हुआ। इसी कार्यक्रम के दौरान वेशभूषा प्रतियोगिता भी हुई। इस प्रतियोगिता में स्कूली बच्चों ने भाग लिया। इन्हीं बच्चों में एक थी तबस्सुम लासमीन। इसने मां शारदा की वेशभूषा में इस प्रतियोगिता में भाग लेकर दर्शकों को आश्चर्यचकित कर दिया। सबने तबस्सुम की बड़ी तारीफ की। तबस्सुम के घर वाले भी बड़े खुश हुए। तबस्सुम स्थानीय अरविन्द पार्क के सरस्वती शिशु मन्दिर की छात्रा ½èþ* n |ÉÊiÉÊxÉÊvÉ
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