पाकिस्तान में निशाने पर शिया समुदाय
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शियाओं ने की फौजी हिफाजत की मांग
35 दिन के अन्दर 206 शियाओं की हत्या
आलोक गोस्वामी
पाकिस्तान में शिया समुदाय उबल रहा है। एक के बाद एक फिदायीन हमलों, बम विस्फोटों से शिया बहुल इलाके दहले हुए हैं। इन हमलों में सैकड़ों जानें जा चुकी हैं। लाहौर, पेशावर, कराची, क्वेटा में बसे शिया हाजरा अपनी जान की खैर मना रहे हैं और सहमे-सहमे जी रहे हैं कि न जाने कब किस स्कूल, बाजार, मस्जिद में धमाका हो जाए और लाशों के अबार लग जाएं। 10 जनवरी को क्वेटा में फिदायीन हमले में 117 लोग मारे गए, सौ घायल हुए, तो 16 फरवरी को बलूचिस्तान के हाजरा शहर में फिर से हमला हुआ, जिसमें 89 शिया मारे गए। यह हमला एक बाजार में किया गया था। और पीछे जाएं तो डेरा गाजी खान, डेरा इस्माइल खान, कराची, लाहौर, पाराचिनार आदि जगहों पर शिया समुदाय को निशाना बनाया जाता रहा है।
लेकिन 16 फरवरी को शिया बहुल हाजरा शहर पर हुए हमले से शियाओं में तीखा आक्रोश उपजा। हजारों की तादाद में शिया मारे गए लोगों के शवों को दफनाने की बजाय उनको लेकर धरने पर बैठ गए। उनकी मांग थी कि जब तक शियाओं को फौजी हिफाजत नहीं दी जाती वे मृतकों को नहीं दफनाएंगे। मामला गरमाता देख प्रधानमंत्री राजा परवेज अशरफ को बलूचिस्तान के मुख्यमंत्री को बर्खास्त कर सूबे को केन्द्र के नियंत्रण में लेने की घोषणा करनी पड़ी। तब जाकर शियाओं का गुस्सा थोड़ा शांत हुआ।
इस बीच पाकिस्तान के तकरीबन हर बड़े शहर में शियाओं ने जुलूस निकालकर सरकार से पूरी हिफाजत देने की मांग की। करीब तीन दिन कई शहरों में चक्का जाम रहा, बाजार बंद रहे, राजमार्ग और रेलमार्ग रोक दिए गए। कई स्थानों पर हिंसक झड़पें हुईं। इस्लामाबाद, पेशावर, लाहौर में जनजीवन अस्त-व्यस्त रहा। शियाओं ने मांग की कि लश्करे-झांगवी गुट पर कार्रवाई की जाए। पाकिस्तान में सुन्नी तालिबान और अल कायदा जिहादी गुट शियाओं को गैर-मुस्लिम मानते हैं। बताते हैं कि शियाओं पर हमलों की जिम्मेदारी लेने वाला लश्करे-झांगवी गुट पाकिस्तान से अमरीका के पैर उखाड़ने और एकछत्र सुन्नी सत्ता कायम करने के लिए अस्थिरता फैला रहा है। क्वेटा में हाजरा समुदाय की आबादी 5 लाख है और इसीलिए यह शहर झांगवी के निशाने पर है। लश्करे झांगवी वही सुन्नी उग्रवादी गुट है जिसकी सुरक्षाबलों के कुछ तत्वों से मिलीभगत है।
इस्लामवादियों ने की ब्लॉगर राजीब की हत्या
बंगलादेश में जनता सड़कों पर
मुल्ला को फांसी की मांग
आखिर अहमद राजीब हैदर की हत्या हो गई। अपने ब्लॉग के जरिए बंगलादेश के नागरिकों को एकजुट होकर अपना आक्रोश व्यक्त करने का आह्वान करने वाले राजीव को इस्लामवादियों ने उसके घर के ही सामने मार डाला। उस दिन, 15 फरवरी को वह खुद शाहबाग चौक पर एक लाख से ज्यादा लोगों की रैली में भाग लेकर लौट रहा था। जमाते-इस्लामी वाले उसे कई दिन से धमकाते भी आ रहे थे कि जमात के नेता, '71 के दोषी मुल्ला को फांसी देने की मांग को हवा न दे। पर राजीब ने कट्टर जमात वालों की धमकी के आगे घुटने नहीं टेके। बंगलादेश के वार क्राइम्स ट्राइब्यूनल ने '71 की लड़ाई में पाकिस्तानी फौजियों का साथ देकर अपने ही देश के लोगों की हत्याएं करने के आरोप में जमाते इस्लामी के नेता अब्दुल कादिर मुल्ला को उम्रकैद की सजा सुनाई थी, लेकिन फौरन बाद ही पूरा मुल्क ही सड़कों पर आ गया। लोग मुल्ला और उसके जैसे ही '71 में पाकिस्तानी सेना के हमदर्दों को सजाए मौत की मांग करते हुए ढाका, चटगांव, खुलना, कोक्स बाजार, कोमिला…. तमाम बड़े शहरों में लामबंद हो गए। करीब 15 दिन तक जबरदस्त प्रदर्शन जारी रहे। इस जनांदोलन को ब्लॉग के जरिए ताकत देने वालों में से ही एक था 26 साल का अहमद राजीब हैदर। उसने जमाते इस्लामी वालों के ऐसे कच्चे चिट्ठे खोले अपने ब्लॉग पर कि लोग उसे पढ़-पढ़कर इस्लामवादियों के खिलाफ मोर्चे निकालने लगे।
राजीब की हत्या से बंगलादेश में उफान आ गया। गुस्साए लोग लाख से भी ज्यादा की संख्या में ढाका के मुख्य चौराहे शाहबाग चौक पर जमा हो गए। उन्होंने राजीब के हत्यारों को फौरन गिरफ्तार करने और जमाते-इस्लामी के उन नेताओं को मौत की सजा देने की मांग की जिन पर '71 में अपने ही मुल्क के लोगों पर जुल्म करने के आरोप साबित हुए हैं। राजीब की हत्या ने बंगलादेशियों में ऐसा ज्वार पैदा कर दिया कि लोग सब कुछ छोड़ प्रदर्शनों में शामिल होने लगे। खुद प्रधानमंत्री शेख हसीना राजीब के घर जाकर परिजनों से मिलीं। उन्होंने कहा कि राजीब के हत्यारों को सियासत करने का कोई हक नहीं है। जमाते-इस्लामी और उससे जुड़े गुटों का लोकतंत्र में यकीन नहीं है, वे आतंकवाद में यकीन करते हैं।
जमात के नेता मुल्ला के खिलाफ बंगलादेशियों में इतना गुस्सा है कि वे उसको सजाए मौत दिए जाने तक सड़कों से हटने को तैयार नहीं हैं। कानून मंत्री कमरुल इस्लाम ने तो यहां तक कहा कि जनता चाहती है कि जमात का बिस्तर गोल कर दिया जाए। पूरी उम्मीद है कि जमाते-इस्लामी को राजनीति से प्रतिबंधित कर दिया जाएगा। यह जनता का ही दबाव था कि बंगलादेशी संसद को युद्ध अपराध कानून में संशोधन करना पड़ा। अब अभियोजना पक्ष '71 की लड़ाई में सामूहिक हत्या के अपराधी विपक्षी नेता मुल्ला को मौत की सजा दिए जाने की अपील दाखिल कर सकता है। 17 फरवरी को पारित हुए इस संशोधन से पहले बचाव पक्ष की ओर से ही अपील की जा सकती थी। '71 की लड़ाई के दौरान मुल्ला पर 381 नागरिकों की हत्या में संलिप्तता का आरोप है।
+ɱÉÉäEò गोस्वामी
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