|
महंगाई के इस युग में एक आम आदमी जो कमाता है उससे घर चलाना भी मुश्किल हो रहा है। फिर भी भविष्य की चिंता आदमी को कुछ न कुछ बचाने के लिए मजबूर करती है। खान-पान, रहन-सहन इत्यादि में कटौती करके आदमी कुछ बचाने का प्रयास करता है। महीनों, वर्षों तक पाई-पाई जोड़ने के बाद उसके पास कुछ राशि जमा होती है तो उसे वह कहीं निवेश करता है। निवेश का उद्देश्य यही रहता है कि पैसे में थोड़ी बढ़ोतरी होती रहेगी और वह पैसा भविष्य में काम आएगा। पर आम आदमी की इस आस पर जबरदस्त प्रहार हो रहा है। लोग जितना निवेश कर रहे हैं, उन्हें उनका मूलधन भी प्राप्त नहीं हो रहा है।
चाहे देश की सबसे बड़ी सरकारी बीमा कंपनी भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) हो, एसबीआई लाइफ इंश्योरेंस कंपनी लि. हो, रिलायंस इंश्योरेंस हो या कोटक महिन्द्रा बैंक, हर जगह निवेशक ठगा-सा महसूस कर रहे हैं। इसका कारण है कि ये कंपनियां निवेश कराते समय आम लोगों को अपनी शर्तों की जानकारी नहीं देती हैं। (प्रपत्र के पीछे इनकी शर्तें लिखी तो होती हैं, पर बहुत ही बारीक अक्षरों में, जिन्हें पढ़ना संभव नहीं होता।) आम आदमी को इनकी शर्तों की जानकारी तब होती है जब वह एक निश्चित अवधि के बाद अपना पैसा वापस लेने की बात करता है।
टूट रहा है विश्वास
बात एलआईसी से शुरू करते हैं। इसकी साख गांव-गांव तक है। इसके एजेंट भी हर जगह हैं। जब कोई आदमी एलआईसी की कोई योजना (पॉलिसी) लेता है तो अपने किसी परिचित एजेंट से ही लेता है। इसलिए उसके मन में विश्वास रहता है कि जो भी होगा अच्छा ही होगा और वह आंख मूंदकर कोई योजना ले लेता है। पर एलआईसी की कुछ योजनाओं ने पिछले कुछ वर्षों में आम आदमी के विश्वास को ही तोड़ने का काम किया है। ऐसे अनेक लोग हैं जिनका एलआईसी के प्रति विश्वास टूटा है। विकासपुरी, नई दिल्ली में रहने वाले श्री अनिल कुमार ने बताया कि पांच वर्ष पहले एलआईसी के एक एजेंट ने उन्हें मार्केट प्लस में निवेश करने की सलाह दी। उसने यह भी बताया कि यदि आप दस हजार रु. वार्षिक कम से कम तीन साल तक जमा कराएंगे तो चौथे साल में अच्छी राशि मिल सकती है। उसने यह भी कहा कि इस 'पॉलिसी' को आप तीन साल से भी आगे अपनी मर्जी तक बढ़ा सकते हैं। अर्थात् आप जब तक चाहें तब तक दस हजार रु. सालाना जमा कराते रहें। एजेंट की बातों पर उन्होंने वह 'पॉलिसी' ले ली। वे 5 साल तक दस हजार रु. सालाना जमा कराते रहे। इस तरह उन्होंने पांच साल में 50 हजार रुपए जमा कराया। पांच साल बाद उन्होंने पैसा निकालने के लिए आवेदन किया। कुछ समय बाद एलआईसी की ओर से उन्हें लगभग 48 हजार रु. का एक चेक मिला। चेक देखकर वे चौंके। पूछताछ करने पर कहा गया कि चूंकि यह 'पॉलिसी' शेयर बाजार पर आधारित थी और शेयर बाजार में भाव कम चल रहा है इसलिए आपको जमा राशि से भी कम राशि मिल रही है।
एक दूसरा उदाहरण जिसमें निवेशक ने दिसम्बर 2009 में मार्केट प्लस में 50 हजार रु. निवेश किया था। कहा गया था कि यह पैसा तीन साल से पहले नहीं निकल सकता है। तीन साल पूरे होने पर जनवरी 2013 में जब वह पैसा निकाला तो सिर्फ 52,600 रु. मिले। यदि यह पैसा बचत खाते में ही तीन साल तक रहता तो यह कम से कम 60 हजार रु.से ऊपर होता। अत: यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि लोग एलआईसी की विभिन्न योजनाओं में निवेश क्यों करें? यह सवाल एलआईसी के एक अधिकारी से पूछे जाने पर नाम न छापने की शर्त पर उन्होंने कहा कि शेयर बाजार पर आधारित योजनाओं पर कुछ नहीं कहा जा सकता है। बाजार ठीक रहेगा तो निवेशक को फायदा होता है अन्यथा नहीं। जमा राशि से भी कम राशि क्यों मिलती है? इस पर उन्होंने कहा कि निवेशक पहली किश्त के रूप में जो राशि देता है वह पूरी राशि जमा नहीं हो पाती है। उसी राशि से एजेंट को कमीशन दिया जाता है और कुछ अन्य सेवाओं के लिए थोड़ी राशि काट ली जाती है। यह बात निवेशक को नहीं बताई जाती है।
एलआईसी देश की सबसे बड़ी बीमा कंपनी है। उसकी पूरे देश में एक अलग साख भी है। एलआईसी शेयर बाजार में पैसा लगाती है। सही सलाह देने के लिए उसके पास अर्थ विशेषज्ञों का एक बड़ा दल है। ये अर्थ विशेषज्ञ सलाह देने के लिए मोटी तनख्वाह पाते हैं। इसके बावजूद यदि एलआईसी के किसी निवेशक को उसकी जमा पूंजी भी वापस न हो तो उसके अर्थ विशेषज्ञों के कामकाज पर अंगुली उठेगी ही।
रिलायंस कंपनी की एक योजना में निवेश करने वाले एक सज्जन ने बताया कि उन्होंने 50 हजार रु. तीन साल तक जमा कराए। पांच साल बाद जब उन्होंने पैसा निकालना चाहा तो कहा गया कि सिर्फ एक लाख पैंतालीस हजार रु. मिलेंगे। उन्हें भी वही कहा गया कि शेयर बाजार की वजह से ऐसा हो रहा है। निवेशकों को यह बात पहले क्यों नहीं बताई जाती है?
छल–कपट
एसबीआई लाइफ इंश्योरेंस कंपनी लि. ने तो पिछले दिनों अपने एक निवेशक के साथ ऐसा धोखा किया कि वह निवेशक अवाक् रह गया। पश्चिम विहार, नई दिल्ली में रहने वाले कृष्ण कुमार कपूर ने बताया कि 8 सितम्बर 2012 को एसबीआई लाइफ इंश्योरेंस की दरियागंज शाखा से खुशी शर्मा का उनके पास फोन आया। अपने आपको प्रबंधक बताते हुए खुशी शर्मा ने उनसे कहा कि वरिष्ठ नागरिकों के लिए उनके पास एक नई योजना है। इसके अन्तर्गत सावधि जमा (एफडी) पर 12 प्रतिशत ब्याज मिलेगा और यह 'कर' मुक्त भी होगा। यानी जो राशि जमा होगी उस पर कोई कर नहीं लगेगा। फोन पर उनको यह भी कहा गया कि आवश्यक कागजात के साथ बैंक का एक प्रतिनिधि उनसे कल मिलेगा। दूसरे दिन वह प्रतिनिधि उनसे मिला पर कोई कागजात नहीं ले गया। उसने कहा कि आप चेक दे दें। 15 दिन के अंदर आपके पास जरूरी कागजात पहुंच जाएंगे। चूंकि श्री कपूर का खाता 1958 से एसबीआई में है। इसलिए उसके प्रतिनिधि पर विश्वास कर उन्होंने 60 हजार रु. का चेक दे दिया। उस योजना में उन्होंने जनकपुरी, नई दिल्ली में रहने वाली अपनी बेटी कविता प्रकाश को उत्तराधिकारी बनाया। एकाध दिन बाद बैंक का वह प्रतिनिधि उनकी बेटी के पास गया और उनको बताया कि उनके पिता ने उनके लिए एक 'पालिसी' ली है। फिर उसने एक फार्म भरकर उनसे हस्ताक्षर भी करा लिए। जब श्री कपूर को उनकी बेटी ने सारी बात बताई तो वे चौंक गए। उनकी बेटी को जो कागजात दिए गए थे उनमें कहीं भी एफडी की बात नहीं थी। वे बीमा के कागजात थे। बीमा भी श्री कपूर के नाम नहीं, उनकी बेटी के नाम। इसे उन्होंने अपने साथ धोखा माना और फिर इसकी शिकायत संबंधित अधिकारी से की। पर कहा गया कि शिकायत 15 दिन के बाद की गई है इसलिए अब कुछ नहीं हो सकता है। इसके बाद उन्होंने इसकी शिकायत आर्थिक अपराध शाखा से की। इतना होने के बाद बैंक ने अपनी गलती मानकर पैसा लौटाने की बात कही है।
ओल्ड राजेन्द्र नगर, नई दिल्ली निवासी श्री चन्द्र प्रकाश गोसाईं ने अपनी पोती के नाम कोटक महिन्द्रा बैंक की एक 'पॉलिसी' ली थी। इसके अन्तर्गत हर महीने उन्होंने तीन हजार रु.तीन साल तक जमा कराया। तीन साल बाद उन्होंने वह पैसा निकालकर और कहीं निवेश करने का मन बनाया। किंतु उन्हें कहा गया कि केवल 87 हजार रु. मिलेंगे। इस बैंक ने भी शेयर बाजार का बहाना बनाया। श्री गोसाईं ने पाञ्चजन्य से कहा कि शेयर बाजार की आड़ में निवेशकों से धोखा किया जा रहा है। जब शेयर बाजार नीचे है तो फिर इन बैंकों का लाभ कैसे बढ़ रहा है? शेयर बाजार के उतार-चढ़ाव का असर बैंकों की सेहत पर क्यों नहीं पड़ता है? जाहिर है ये कम्पनियां निवेशकों के पैसे के बल पर अपनी तिजोरियां भर रही हैं और निवेशक को हाथ मलने के लिए मजबूर कर रही हैं। इनकी मनमानी पर रोक लगनी ही चाहिए।
टिप्पणियाँ