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पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मांस निर्यात की राजधानी बन चुके मेरठ के कत्लगाहों से पशुओं का खून निरन्तर यहां की काली नदी में गिर रहा है। कन्नौज में यह नदी गंगा में मिलती है। इस बीच नदी मार्ग पर पड़ने वाले अन्य नगरों, खासतौर पर मेरठ जैसे ही बड़े मांस बाजार अलीगढ़ से भी भारी मात्रा में पशु रक्त इस काली नदी में गिरता है। इस प्रकार प्रतिदिन लाखों लीटर पशु रक्त गंगा को अपवित्र कर रहा है। 8 जनवरी तक सरकार ने गंगा के इस अपवित्रीकरण को रोकने के लिए कुछ नहीं किया, जबकि मकर संक्रांति, 14 जनवरी से प्रयाग में प्रथम शाही स्नान के साथ कुंभ की शुरूआत हो रही थी। मेरठ से नदी जल प्रयाग तक पहुंचने में 6 दिन लगते हैं। इसका अर्थ था कि 14 जनवरी को स्नानार्थी पशु रक्त मिले जल का प्रयोग स्नान व आचमन हेतु करते। इसलिए भारी हुआ विरोध और जनाक्रोश को देखते हुए राज्य सरकार ने कत्लखानों में पशुओं के वध पर 9 जनवरी से 10 मार्च तक प्रतिबंध लगा दिया। पर अवैध कत्लखानों में पशु कटान तेजी से जारी है। मेरठ की गलियों में दैनिक उपयोग के लिए तो पशु कटान हो ही रहा है, भारी मात्रा में गोमांस भी बाहर भेजा जा रहा है।
अल आलिया का नमूना
कमेलों (पशु वधशालाओं) को जाते हुए गोवंश भरे कितने ही ट्रक जागरूक नागरिकों द्वारा समय-समय पर पकड़कर पुलिस को सौंपे जाते रहे हैं। इनमें से कुछेक ट्रकों का गोवंश जरूर गोशालाओं आदि के सुपुर्द कर दिया जाता है, पर अनेक में लदा गोवंश पुन:कसाइयों के हाथों ही चला जाता है। मांस व्यापारियों की पुलिस के साथ गहरी साठगांठ है। इसका ताजा उदाहरण मेरठ के अल आलिया मीट प्रोसैसिंग प्रा.लि. नामक मांस निर्यातक का है। यह इकाई मेरठ- हापुड़ रोड पर नौगजा पीर, खरखौदा थाना क्षेत्र में स्थित है। इसका मालिक हाजी इजलाल वह कुख्यात शख्स है, जिसने मई 2008 में तीन हिन्दू युवकों का मेरठ में अपने घर पर बेरहमी से कत्ल किया था। वह अपने लगभग एक दर्जन साथियों के साथ साढ़े चार साल से जेल में है। उसकी गैरमौजूदगी में उसका मीट प्लांट हापुड़ का राशिद और अजराड़ा का अनीस मिलकर चला रहे हैं। 9 दिसंबर, 2012 को जिलाधिकारी (मेरठ) के आदेश पर उप जिलाधिकारी (सदर) संजय चौहान, क्षेत्रीय पुलिस अधिकारी (अपराध) रूपेश सिंह तथा कई सरकारी पशु चिकित्सकों ने मिलकर छापा मारा। वहां कोई कागज सही नहीं पाया गया। प्रदूषण विभाग के अनापत्ति प्रमाण पत्र सहित फैक्ट्री कानून आदि से जुड़े कागजात भी नहीं मिले। यहां 25 हजार पैकेट (प्रत्येक में 20 किलो मांस) मौजूद थे। इनका नमूना भरकर मथुरा प्रयोगशाला भेजा गया। आश्चर्य कि उन तमाम पैकेट्स, जिनमें गोमांस का शक था, बाद में स्थानीय पुलिस द्वारा फैक्ट्री की ही सुपुर्दगी में दे दिया गया (ताकि बाद में इन्हें बदला जा सके)। मांस लाबी और प्रशासन की मिलीभगत इसी से स्पष्ट हो जाती है। जनवरी के ही प्रथम सप्ताह में मथुरा की प्रयोगशाला ने गोमांस की पुष्टि करते हुए अपनी रपट भेज दी। तब पुलिस द्वारा इसे छुपाने का खेल शुरू हुआ। खरखौदा के थाना प्रभारी तेजसिंह यादव और मेरठ के उप पुलिस अधीक्षक रपट आने से इंकार करते रहे, जबकि स्थानीय मीडिया ने वह रपट छाप दी। तब वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (मेरठ) के.. सत्यनारायण ने स्वीकार किया कि गोमांस की पुष्टि हुई है। उसके बाद निचले स्तर के उक्त अधिकारियों ने कहा कि गोहत्या निरोधक कानून के अन्तर्गत भी कार्रवाई की जाएगी।
सारे नियम ताक पर
मेरठ जिले के लगभग डेढ़ दर्जन मीट व पैकेजिंग प्लांट हैं। अवैध प्लांट तो अनगिनत हैं। ये सभी सरकारी तंत्र के संरक्षण में गोहत्या अथवा गैरकानूनी पशुवध द्वारा प्राप्त मांस के व्यापार में लगे हैं। पशु वधगृहों में कहीं भी ईटीपी (रक्त आदि बहिस्राव को प्रदूषणरहित करने का संयंत्र) नहीं लगा है। सर्वत्र क्षमता से ज्यादा पशु कटते हैं। गोवध प्रतिबंधित है, पर वह भी बड़ी संख्या में होता है। मेरठ नगर निगम का कत्लगाह शहर से स्थानांतरित कर घोसीपुर में लगाया गया है। यहां भी ठेकेदार फिरोज कुरैशी ने प्रदूषण नियमों को ताक पर रखा हुआ है। क्षमता 350 पशु प्रतिदिन है, पर कटान 5 हजार से ज्यादा का है। तमाम सीसीटीवी कैमरे खराब रखे गये हैं, ताकि कोई प्रमाण ही न मिले।
सभी वैध-अवैध पशु वधगृहों (कमेलों) का बहिर्स्राव, जिसमें मुख्यत: पशु रक्त होता है, काली नदी पहुंचता है। घोसीपुर के सबसे बड़े कमेले से तो सीधे ही काली नदी में गिरता है। यह काली नदी दंतवाड़ा, (जिला मुजफ्फरनगर) से निकलकर मेरठ, अलीगढ़ होते हुए कन्नौज में गंगा में मिलती है। रास्ते का तमाम औद्योगिक कचरा और पशु रक्त बहाकर गंगा में मिला देती है। राज्य सरकार ने कुंभ के प्रथम मुख्य स्नान का ध्यान करते हुए इस मार्ग की पेपर मिलों, डिस्टिलरियों जैसी 49 प्रदूषक औद्योगिक इकाइयों को 9 जनवरी से बंद रखने का आदेश दिया, वहीं मुस्लिम वर्ग के दबाव में वैध-अवैध कमेलों के बारे में कोई आदेश नहीं आया। बाद में केवल लाइसेंस प्राप्त कत्लगाहों को बंद रखने का आदेश आया तो स्थानीय मुस्लिम नेता याकूब कुरैशी ने मांग कर दी कि हम क्या खाएं, जबकि स्थानीय मुस्लिमों व अन्य मांसभक्षियों के लिए मेरठ की गलियों में हो रहा अवैध कटान ही बहुत होता है। बड़े कत्लखानों में तो मांस निर्यात के लिए ही पशु काटे जाते हैं और मांस निर्यातक लाबी स्थानीय प्रशासनिक अधिकारियों से लेकर सरकार के प्रमुख तक हफ्ता पहुंचाती है। यही वजह है कि प्रतिदिन लगभग एक लाख किलोलीटर पशु रक्त (गोरक्त सहित) गंगा में मिल रहा है। कच्चा खून मिलने से जल में 'होलीफार्म बैक्टीरिया' का संक्रमण भयावह स्तर पर पहुंचा हुआ है। भूगर्भ जल में भी जहरीले बैक्टीरिया घुल गये हैं। कटान के बाद शव व हड्डियों की सफाई में प्रयुक्त रसायनों से बीओडी (बायोकैमिकल आक्सीजन डिमांड) दो से बढ़कर 84 मिलीग्राम प्रति लीटर पहुंची हुई है। यह किसी सूरत में तीन मिलीग्राम से ज्यादा नहीं होनी चाहिए।
पश्चिम उत्तर प्रदेश की जनता लंबे समय से कहती आई है कि सरकार और पुलिस के संरक्षण में गोवध होता है। अल आलिया मीट प्रोसैसिंग प्रा.लि. का मामला भी इसका प्रमाण है। हाल ही में और भी मामले सामने आये हैं। 17 नवम्बर, 2012 को लोगों ने मेरठ पुलिस को जानकारी दी थी कि फलावदा कस्बे से आ रहे एक वाहन में गोमांस भरा है। पुलिस ने कुछ नहीं किया। तब गोभक्तों ने वह वाहन मेरठ के पांडव नगर में घेर लिया। वाहन चालक ने मांस होने से इंकार किया। पर लोगों ने बोरियों में बंद मांस देख लिया। चालक की पिटाई हुई, उसका एक साथी भाग गया। तब सिविल लाइन थाने के प्रभारी ओमप्रकाश पुलिस सहित पहुंचे और लोगों से दुर्व्यवहार करने लगे। उन्होंने मौके पर पत्रकारों से कहा कि यह गोमांस नहीं है। फिर भी जनाक्रोश के कारण उन्हें मजबूर होकर नमूना मथुरा प्रयोगशाला भेजना पड़ा। वहां से 2 दिसंबर को गोमांस पुष्टि की रपट आ गयी थी, पर थानेदार और क्षेत्राधिकारी ने लंबे समय तक रपट छुपाई। अब 8 जनवरी को वह मीडिया द्वारा उजागर कर दी गयी है। तब पुलिस ने इस मामले में जहां मीट लाने वाले वाहिद और आस मोहम्मद पर केवल 429 व भा.दं.स.11(ख) धाराएं लगायी थीं, वहीं गोमांस पकड़वाने वालों पर धारा 147, 148, 273, 323, 425 लगा दीं। साठ लोगों को आरोपी बनाया गया। इनमें बजरंग दल के पूर्व प्रांत संयोजक संदीप बहल (एडवोकेट) भी हैं। मीट माफियाओं से ज्यादा गंभीर धाराएं उनका विरोध करने वालों पर थोपी गयी हैं।
2 फरवरी को उ.प्र.पुलिस के उप महानिरीक्षक ने आदेश जारी किया कि पशुओं से भरे ट्रकों की सघन जांच की जाए। यदि पशु बाजारों के अतिरिक्त गोवंश को कहीं और ले जाया जा रहा हो, विशेषकर शक हो कि वे कटान के लिए ले जाए जा रहे हैं, तो उन्हें तुरंत मुक्त कर दिया जाए। इस आदेश के बाद जब इस संवाददाता ने 3 फरवरी को बागपत से मेरठ आ रहे ऐसे 8 ट्रकों का पीछा किया तो रास्ते में पड़ी दस जांच चौकियों पर उनकी कहीं भी जांच नहीं हुई। ट्रक ड्राइवर ने ब्रेक मारा, रोकने वाले की मुट्ठी गर्म की और आगे चल दिया। यदि अवैध कटान के लिए ले जाए जा रहे गोवंश से भरे ट्रकों को गोभक्तों की कोई टोली रोकती तो उनके खिलाफ साम्प्रदायिकता फैलाने, दंगा करने, लूट, मारपीट आदि धाराओं में मुकदमा दर्ज किया जाता। यह एक बड़ा परिवर्तन हुआ है अखिलेश की सरकार के काल में ।
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