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आवाज के बिना जीवन की कल्पना करना अत्यंत कठिन है। मुंह से आवाज न निकलने अथवा आवाज के खराब हो जाने पर अभिव्यक्ति में परेशानी उत्पन्न हो जाती है। जब एक सामान्य स्वस्थ व्यक्ति के बोलते समय असामान्य आवाज निकलती है तो यह स्वरभंग की स्थिति कहलाती है। ऐसी स्थिति में आवाज कर्कश, अस्पष्ट, हल्की, कंपन्न करती हुई अथवा मात्रा में परिवर्तन सुनने को मिलता है। स्वरभंग की यह परेशानी अनेक कारणों से उत्पन्न होती है।
यह परेशानी तब पैदा होती है, जब गले के 'वोकल कार्ड' में सूजन, घाव अथवा क्रियाकलाप में कमी हो जाती है। 'वोकल कार्ड' के बीच में 'पॉलिप' (अतिरिक्त मांस) के उत्पन्न हो जाने, जिससे दोनों 'वोकल कार्ड' के मिलने में 'गैप' आ जाये अथवा एक या दोनों 'वोकल कार्ड' लकवाग्रस्त हो गये हों, की स्थिति में भी स्वरभंग की परेशानी उत्पन्न हो सकती है। 'लैरिन्क्स' जिसे 'वॉयस बाक्स' कहा जाता है, श्वसन तंत्र का एक हिस्सा होता है, जिसमें 'वोकल कार्ड' स्थित होते हैं। 'लैरिन्क्स' में 'वोकल कार्ड' मांसपेशियों से बने दो बैण्ड होते हैं जो अंग्रेजी के अक्षर वी की तरह जुड़े होते हैं। जब हम बोलते हैं या गाते हैं तो इसमें कम्पन होती है और आवाज उत्पन्न होती है।
स्वरभंग की स्थिति अनेक कारणों से उत्पन्न हो सकती है। अनेक कारणों में प्रमुख कारण है 'वोकल कार्ड' में सूजन का हो जाना। यह श्वसन तंत्र के ऊपरी भाग में विषाणुओं के संक्रमण के कारण होता है। स्वर का अतिप्रयोग अथवा दुष्प्रयोग (अधिक गाने अथवा चिल्लाने आदि) इसका दूसरा कारण है। इसके अतिरिक्त भी स्वरभंग के संभावित निम्नलिखित कारण हैं-
पेट से 'वोकल कार्ड्स' की तरफ उल्टे प्रवाहित होने वाली गैस के कारण भी स्वरभंग हो सकता है।
'एलर्जी'-मौसम के अनुरूप या साल भर रहने वाली 'एलर्जी' भी स्वरभंग की परेशानी का कारण हो सकती है।
'थॉयरायड' की परेशानी-खासतौर पर अनुपचारित थायरायड के कारण भी स्वरभंग हो सकता है।
स्नायविक रोग : पक्षाघात, 'पार्किन्सन्स डिजीज', 'मल्टीपल स्क्लेरोसिस' जैसी बीमारियों के कारण 'वोकल कार्ड्स' को जाने वाली स्नायुओं पर दुष्प्रभाव पड़ने पर स्वरभंग की संभावना हो सकती है।
कैंसर- 'लैरिन्क्स का कैंसर' (सांस की नली), 'फैरिन्क्स' (गला), फेफड़े, थॉयरायड एवं 'लिम्फोमा कैंसर' में स्वरभंग की परेशानी पैदा हो सकती है। कुछ मामलों में स्वरभंग कैंसर का पहला संकेत भी हो सकता है। स्तन, फेफड़े अथवा शरीर के किसी भी अंग का कैंसर जो फेफड़े के क्षेत्र में फैल गया हो तथा उसके कारण 'वॉयस बाक्स' को जाने वाली स्नायु दब गयी हो। इस कारण भी स्वरभंग हो सकता है।
अधिक शराब के सेवन के कारण स्वरभंग होने की संभावना होती है।
धूम्रपान : बीड़ी, सिगरेट तथा धूम्रपान के अन्य माध्यमों के प्रयोग करने एवं दूसरे व्यक्तियों द्वारा किये जा रहे धूम्रपान से निकलने वाले धुएं के कारण स्वरभंग की परेशानी उत्पन्न हो सकती है।
'लैरिन्क्स' की मांसपेशियों में 'स्पास्मोडिक डिस्फोनिया' की परेशानी उत्पन्न हो जाने पर स्वरभंग की शिकायत हो सकती है।
श्वास के माध्यम से 'फॉरेनबॉडी' (बाहरी वस्तु) अथवा 'कॉस्टिक' पदार्थो के शरीर में चले जाने के कारण स्वरभंग हो सकता है।
अस्थमा अथवा सी.ओ.पी.डी. बीमारियों में लम्बे समय तक 'कार्टिकोस्टरॉयड' के इस्तेमाल करने पर स्वरभंग की परेशानी हो सकती है।
आवाज पर दबाव पड़ना
आवाज पर दबाव पड़ना एक आम परेशानी है। यह गायकों अथवा जिनका कार्य अधिक बोलने का होता है उनमें यह परेशानी ज्यादातर देखने को मिलती है। मनुष्य की आवाज की 'आइडियल पिच' उसकी आवाज की सीमा का एक तिहाई है। इस पिच पर उचित सांस प्रक्रिया तथा 'वोकल कार्ड' की लम्बाई और खिंचाव का संतुलन बना रह सकता है। यदि इनमें किसी भी कारक-पिच, 'लेन्थ', खिंचाव अथवा सांस में परिवर्तन होता है तो 'थायरोरिटेनॉएड' और 'इंटरआर्टनॉएड' मांसपेशियों पर कुछ दबाव पड़ने लगता है। स्वर पर दबाव की मात्रा व्यक्ति द्वारा किये गये स्वर के गलत इस्तेमाल की अवधि तथा प्रतिदिन कितने घंटे इस्तेमाल किया जाता है-इस पर निर्भर करती है। यह परेशानी तेज स्वर का प्रदर्शन करने वाले कलाकारों, प्रवचनकर्ताओं अथवा अध्यापकों को होती है। अप्रशिक्षित 'पॉप सिंगर' तथा सुनने में अक्षम व्यक्ति के सहयोगी जिन्हें हमेशा तेज आवाज में बोलना पड़ता है, को भी यह परेशानी हो सकती है। आवाज पर दबाव पड़ने का दूसरा कारण यह होता है जब गले में परेशानी होती है और इस अवधि में आवाज का अधिक इस्तेमाल किया जाता है।
'वोकल नोड्यूल्स'
इसे 'सिंगर्स नोड्स' अथवा 'स्क्रीमर्स नोड्स' भी कहा जाता है। आजकल कुछ गायक अस्वाभाविक आवाज निकालते हैं तथा कुछ लोग बहुत जोर से चिल्लाते हैं। इससे जहां से आवाज निकलती है, उस स्थान पर दुष्प्रभाव पड़ता है। इसके कारण 'लैरिंक्स' के अगले भाग और इसके पश्च भाग बहुत अधिक कंपन करने लगते हैं। अत: दोनों 'कॉर्ड्स' पर 'फाइब्रोसिस' एवं 'ट्रौमेटिक स्कारिंग' होने की संभावना हो सकती है।
ये 'नोड्यूल्य ग्लोटिस' के जोड़ के आगे तिहाई तथा पीछे दो तिहाई हिस्से पर छोटे और भूरे-सफेद रंग के होते हैं। अधिकांशत: यह दोनों तरफ होते हैं। इस परिस्थिति में मरीज का स्वर भंग हो सकता है। 'आपरेशन' द्वारा इन 'नोड्यूल्स' को निकालने की जरूरत पड़ सकती है। यदि ये बहुत छोटे होते हैं तो 'स्पीच थेरेपी' के माध्यम से बिना 'आपरेशन' के स्थिति में सुधार लाया जा सकता है।
बचाव
अक्सर खराब आवाज सुबह के समय ठीक हो जाती है अथवा लम्बे समय के आराम के बाद ठीक हो जाती है लेकिन कभी-कभी इस्तेमाल के कारण मांसपेशियों के कमजोर होने से आवाज अस्पष्ट हो जाती है। इसके लिए आवश्यक है कि एक-दो सप्ताह तक बोलना बिल्कुल बंद कर दिया जाए। मरीज को पेन और कागज अपने पास रखना चाहिए तथा इस पर लिखकर अपनी बात कहनी चाहिए। फुसफुसा कर बोलना भी स्वर विश्राम नहीं है। इसके बाद 'स्पीच थिरेपिस्ट' से संपर्क करना चाहिए।
मद्यपान से परहेज करें।
पर्याप्त मात्रा में पानी अथवा तरल पीयें।
'वेपोराइजर' का प्रयोग करें। उबलते पानी में आधा चम्मच 'टिंक्चर बेन्जोएन' डालकर उसकी भाप 10 मिनट दिन में तीन बार लें।
उन कार्यों को करने से बचें जिससे 'वोकल कार्ड' पर दबाव पड़ता हो जैसे फुसफुसाना, तेज आवाज में चिल्लाना या आवश्यकता से ज्यादा गीत गाना आदि।
पेट में गैस को कम करने के लिए दवा लें।
स्वरभंग के मामलों में सर्दी व खांसी की दवा बिना चिकित्सक के परामर्श से न लें। जरूरत हो तो कान, नाक व गले के चिकित्सक से संपर्क करें।
यदि आवाज खराब हुई है तो नाक एवं गले के संभावित संक्रमण (जुकाम, खांसी) इत्यादि का तुरन्त इलाज करवायें।
तीन हफ्ते तक आवाज खराब रहने पर उसकी विस्तृत जांच करवाना आवश्यक है तथा इसका कारण किसी गंभीर रोग के शुरू होने का संकेत भी हो सकता है।
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