|
छत्तीसगढ़, झारखण्ड और ओडिशा में नक्सली खतरनाक ढंग से आक्रामक हो उठे हैं। पुलिस और अर्धसैनिक बलों के बाद वे भारतीय सशस्त्र सेना को भी चुनौती देने लगे हैं। इस हेतु वे रॉकेट प्रक्षेपक और प्रापेलरों तक का निर्माण करने लगे हैं। गत दिनों दक्षिण बस्तर के घोर नक्सल प्रभावित क्षेत्र में वायुसेना के एक हेलीकाप्टर पर किये गए हमले से यह चिंताकारक तथ्य प्रमाणित हुआ है। बस्तर के सुकमा जिले में जनवरी के तीसरे सप्ताह में नक्सलियों द्वारा घात लगाकर किए गए आक्रमण में घायल जवानों को लाने के लिए भेजे गये वायुसेना के हेलीकाप्टर पर रॉकेट प्रक्षेपकों से हमला किया गया। हेलीकाप्टर घने वन में कुछ समय तक संपर्क से कटा रहा। पायलट ने गहरी सूझबूझ का परिचय देते हुए हेलीकाप्टर को सुकमा जिले में एक स्थान पर उतारा। यह वही जिला है जहां गत वर्ष नक्सलियों ने जिलाधिकारी एलेक्स पॉल मेनन का अपहरण कर लिया था।
प्रक्षेपक का गुपचुप निर्माण
हेलीकाप्टर के पायलट और कमांडो यदि तत्परतापूर्वक निर्णय न लेते तो नक्सली गोलियों से छलनी हेलीकाप्टर दुर्घटनाग्रस्त होकर नष्ट हो सकता था। संयोग से हेलीकाप्टर केंद्रीय आरक्षित बल के एक छोटे शिविर से आठ-दस किलोमीटर की दूरी पर उतरने में सफल हो गया था। यह भी सुखद संयोग था कि घने वन में उतनी दूरी तय करते हुए वायुसेना कर्मियों की नक्सलियों को टोह नहीं लग पाई, परंतु इस हड़बड़ी में एक घायल वायरलैस ऑपरेटर उस हेलीकाप्टर में ही रह गया। यह ऑपरेटर छत्तीसगढ़ पुलिस का कर्मचारी था। जिस स्थान पर हेलीकाप्टर को आपात स्थिति में उतारा गया वह उस स्थान से लगभग सौ किलोमीटर दूर था जहां से हेलीकाप्टर ने उड़ान भरी थी। नक्सलियों के हमले से हेलीकाप्टर की हायड्रालिक प्रणाली बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गयी थी और उसका जनरेटर भी विफल हो गया था।
सशस्त्र बलों, छत्तीसगढ़ पुलिस और गुप्तचर तंत्र द्वारा एकत्र सूचनाओं के अनुसार नक्सली विमान भेदी प्रक्षेपक बनाने में लगभग सफल हो चुके हैं। गत वर्ष उन्होंने वायुसेना के एक हेलीकॉप्टर को निशाना बना कर एक तकनीकी कर्मचारी की हत्या कर दी थी। तब भी कुशाग्रता और गहरी समझ का परिचय देते हुए पायलट उसे लेकर सुरक्षित स्थान पर पहुंचने में सफल हो गया था। परंतु सुरक्षाबलों के माथे पर गहन चिंता की रेखाएं तब भी खिंच गई थीं। उन्हीं दिनों छत्तीसगढ़ पुलिस को सूचनाएं मिली थीं कि राज्य से बाहर विमान-प्रक्षेपकों के कल-पुर्जे निर्मित हो रहे हैं, जिन्हें बस्तर के अगम्य अबूझमाड़ स्थित एक नक्सली फैक्टरी तक पहुंचाने के लिए रायपुर भेजा जाता है। एक छापे के दौरान पुलिस ने रायपुर की एक परिवहन कंपनी से प्रक्षेपकों के अलग-अलग भाग बरामद किये थे जिन्हें नक्सली तकनीकी विशेषज्ञ 'असेम्बल' कर सकते थे। वे कोलकाता से भेजे गये थे। उस संबंध में एक संदिग्ध को हिरासत में लिया गया था। सूचना इस आशय की भी मिली थी कि नेपाल के माओवादियों के माध्यम से सीमावर्ती क्षेत्रों में सक्रिय भारत के नक्सलवादी अधुनातन आयुध सामग्री प्राप्त कर रहे हैं। लगभग चार दशकों से बस्तर के अबूझमाड़ को योजनाबद्ध ढंग से अपनी सामरिक राजधानी बनाते रहे नक्सलियों ने चार हजार वर्ग किलोमीटर से अधिक बीहड़ इलाके को अपना मुक्त क्षेत्र घोषित कर दिया था। उस दौरान कांग्रेस राजनीतिक जोड़तोड़ और पुलिस तथा गुप्तचर तंत्र के उपयोग से विपक्षियों को उत्पीड़ित करते हुए अपनी सरकारें बनाने में तल्लीन रही। कांग्रेस की इस राजनीतिक अदूरदर्शिता का भरपूर लाभ लाल चरमपंथियों ने उठाया। उस बीच कुछ समय के लिए विपक्ष की सरकारें बनीं तो उन्होंने नक्सलियों के विरुद्ध जनजागरण अभियान के माध्यम से वनवासियों को एकजुट करने की योजना बनाई, परंतु वामपंथियों और कांग्रेस के साधन-संपन्न प्रचारतंत्र ने इसके खिलाफ इतना विषवमन किया कि उसका प्रशासन के मनोबल पर विपरीत असर पड़ा। इसका मनोवैज्ञानिक लाभ नक्सलियों ने उठाया। नवंबर 2004 में छत्तीसगढ़ में जब भाजपा सरकार ने प्रबल जनादेश से राजकाज संभाला तो सघन नक्सली हिंसा की समस्या उसे विरासत में मिली।
एक विकट राष्ट्रीय समस्या
छत्तीसगढ़ सरकार गत नौ वर्षों से चरमवामपंथियों पर निरंतर दबाव बना रही है। वह नक्सली समस्या को एक विकट राष्ट्रीय समस्या के रूप में लेती है। केंद्र से उसकी यही अपेक्षा है कि देश के नौ राज्यों के लगभग साठ जिलों में पसरे नक्सलियों के विरुद्ध एक सर्वदलीय राष्ट्रीय सहमति बने। फरवरी 2013 के प्रथम सप्ताह में बस्तर के नक्सल प्रभावित क्षेत्र के प्रवास पर आए केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने भी सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया कि नक्सलियों के विरुद्ध डा. रमन सिंह सरकार द्वारा चलाई जा रही विकास तथा सुरक्षात्मक संयुक्त नीति की उपयोगिता प्रमाणित हो रही है। उन्होंने राज्य की खाद्यान्न सुरक्षा योजना के नक्सली क्षेत्रों में हो रहे सकारात्मक प्रभाव को भी स्वीकार किया, परंतु अपनी संपूर्ण शक्ति चुनावी गणित पर केंद्रित करने वाले छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस के नेताओं ने अपनी ही पार्टी के केंद्रीय मंत्री की आलोचना में स्वर मुखर किये। उन्होंने अपनी ही केंद्र सरकार के प्रभावी नेता के छत्तीसगढ़ प्रवास के दौरान उनके कार्यक्रमों का सार्वजनिक रूप से बहिष्कार किया। उनके स्वागत और विदाई के लिए विमानतल पर नहीं पहुंचे। राज्य की भाजपा सरकार के लोक कल्याणकारी कार्यों की प्रशंसा करने पर राज्यपाल श्री शेखर दत्त को बर्खास्त करने तक की मांग भी प्रदेश के कांग्रेसी नेता कर बैठे।
नौ वर्षों से सत्ता से बाहर छत्तीसगढ़ कांग्रेस के नेता इसी वर्ष प्रस्तावित विधानसभा चुनावों में सफलता पाने के ध्येय से किसी भी सीमा तक जाने में इतने उतावले हो गये हैं कि नक्सलियों के आनुषांगिक संगठनों से भी तालमेल बिठाने में जुट चुके हैं। वे नक्सलियों द्वारा भारतीय राष्ट्र राज्य को दी जा रही विकराल चुनौती को अनदेखा कर रहे हैं। कांग्रेस के इस दृष्टिकोण का प्रत्यक्ष लाभ नक्सलियों को मिल रहा है। उनके मनोबल को इस प्रकार एक राजनीतिक संबल मिलता है। राज्य की पुलिस एवं यहां पदस्थ अर्धसैनिक बलों को भी इस कारण फूंक-फूंक कर कदम उठाने पड़ते हैं। सामान्यत: नक्सली ग्रामीणों की वेशभूषा में रहते हैं। नक्सली वर्दी में उनकी सक्रियता रणनीतिक दृष्टि से इधर कम होती जा रही है। वे कम वय के लड़के-लड़कियों को भी जबरिया अपनी लाल वाहिनी में भरती कर रहे हैं। ग्रामीण वेशभूषा के नक्सली जब मुठभेड़ में हताहत होते हैं तो कांग्रेस द्वारा उन्हें निर्दोष वनवासियों की हत्या के रूप में प्रचारित करके सुरक्षाकर्मियों तथा राज्य शासन के विरुद्ध वातावरण बनाया जाता है।
हिंसा का व्याप
इस बीच छत्तीसगढ़ पुलिस द्वारा जब्त की गई सामग्री और बंदी बनाए गए नक्सलियों से हुई पूछताछ में अनके चिंताकारक तथ्य उजागर हुए हैं। वे अपने प्रभाव क्षेत्र में सड़कें बनने नहीं देते। कच्चे-पक्के मार्गों को वे बारूदी सुरंगों से पाटकर रखते हैं। अधिकतर सुरक्षाकर्मी इन सुरंगों के विस्फोट से ही हताहत होते हैं। यद्यपि उनसे अधिसंख्य वनवासियों का मोहभंग हो चुका है, फिर भी वन्य क्षेत्रों में उनका इतना भयावह आतंक है कि उनके विरुद्ध मुंह खोलने का कोई साहस नहीं कर पाता। उनकी लाल वाहिनी से बाहर रहने का साहस करने वाले विद्यार्थियों की वे सार्वजनिक रूप से निर्मम हत्या करके अपने आतंक का विस्तार करते हैं। स्कूल-कालेज जाने वाले वाहनों पर हमले करके वे कितने ही विद्यार्थियों की हत्याएं कर चुके हैं। एक सप्ताह पूर्व राजनांदगांव जिले के उमरपाल गांव में चल रही ग्रामीण स्तरीय एक कबड्डी स्पर्धा पर केवल आतंक फैलाने के ध्येय से गोलियां बरसा कर उन्होंने परमेश्वर नामक 30 वर्षीय युवक की हत्या कर दी। एक अन्य प्रतिभाशाली खिलाड़ी बीरबल गंभीर रूप से घायल हो गया। खिलाड़ियों पर की गई इस गोलीबारी की भर्त्सना करने का साहस भी कांग्रेस नहीं जुटा पाई है।
छत्तीसगढ़ पुलिस एवं अर्धसैनिक बलों के संयुक्त अभियान से नक्सलियों पर जो दबाव बना है उससे उनमें हताशा पनप रही है। चूंकि बस्तर और अन्य क्षेत्रों में नक्सलियों का नेतृत्व आज भी आंध्र प्रदेश के आतंकवादी कर रहे हैं इसलिए वहां से आए उनके शीर्ष रणनीतिकार सशस्त्र बलों को चुनौती देने के लिए विमान भेदी प्रक्षेपकों के निर्माण में जुट गये हैं। अबूझमाड़ में गत दिवस केंद्रीय आरक्षित बल द्वारा मारे गये छापों के दौरान इन प्रक्षेपकों के कल-पुर्जे और उनके निर्माण का विस्तृत प्रारूप जब्त किया गया। गत वर्ष भी माओवादी शिविरों से हेलीकाप्टर को गिराने के लिए उपयोग में लाये जाने वाले रॉकेट प्रक्षेपकों की निर्माण विधि की मार्गदर्शिका बरामद हुई थी, जिसमें सामरिक विषयों के जानकारों की विशेषज्ञता की छाप देखी गई थी। उसके साथ ही अंग्रेजी, हिंदी एवं तेलुगू में निर्देश पुस्तिकाएं भी प्राप्त हुई थीं। अब वायुसेना के हेलीकाप्टर को क्षतिग्रस्त करके घने वन में 'आपात लैंडिंग' के लिए विवश कर देने से नक्सलियों की नयी व्यूहरचना के साक्ष्य मिले हैं। उसे गंभीरता से लेते हुए केंद्र सरकार को अधिक समन्वय तथा समझ विकसित करनी चाहिए।
नेपाल से लाल शह
नेपाल से सटे उत्तर प्रदेश, बिहार तथा पश्चिम बंगाल के सीमावर्ती क्षेत्रों में सक्रिय नक्सलियों के लश्कर-ए-तैयबा सहित कुछ भारत विरोधी अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी संगठनों के साथ तार जुड़ जाने की जानकारी केंद्रीय गृह विभाग को प्राप्त है। उससे भी नक्सलियों के भारत विरोधी षड्यंत्र का आभास हो जाता है। बहुत दूर न भी जायें तो शताब्दियों से भारत के बंधु एवं सखा रहे नेपाल में माओवादियों द्वारा की जा रही व्यूह रचना से उन राजनीतिज्ञों को भी सचेत हो जाना चाहिए जो राजनीतिक सत्ता को ही अपना चरम एवं परम लक्ष्य मानते हैं। नेपाल को कम्युनिस्ट चीन की गोद में बैठा देने की योजना पर काम कर रहे कामरेड पुष्प कमल दहल 'प्रचण्ड' के भी इस वैश्विक स्वप्न में भारतीय कामरेड लाल रंग भर रहे हैं। माओवादी जिस प्रकार संपूर्ण शांति प्रक्रिया में पलीते लगाकर गत डेढ़ दशक से क्रमश: अस्थिरता एवं असुरक्षा का वातावरण बनाते आ रहे हैं, उससे भारत के कांग्रेसी नेताओं को भी सबक लेना चाहिए। यदि नेपाल में चीन से सटी सीमाओं के आर-पार एक ही चरित्र की शासन प्रणाली विकसित हो जाती है तो उसके बाद भारत लाल सेना के सीधे निशाने पर होगा। नेपाल में विभिन्न कम्युनिस्ट पार्टियों ने आपस में लड़ते-भिड़ते रहने का प्रहसन करते हुए वहां जो अराजकतापूर्ण वातावरण बना दिया है उसमें कथित 'सर्वहारा की सत्ता' की फसल ही लहलहा सकती है। यह स्थिति लोकतंत्र के तो कदापि अनुकूल नहीं होती। नेपाली माओवादियों के भारतीय समर्थक क्या इस कटु सत्य को स्वीकार करना चाहेंगे?
टिप्पणियाँ