सरकारी ठगी
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आंध्र प्रदेश के रंगारेड्डी जिले के मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट के आदेश की अंतिम कानूनी परिणति जो भी हो, लेकिन उससे सरकार द्वारा ठगी किये जाने का पर्दाफाश तो हो ही गया है। यह संभवत: अपनी तरह का पहला मामला हो सकता है, पर बेलगाम राजनेताओं के लिए एक नसीहत अवश्य बन सकता है। मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट ने पुलिस को इस आरोप की जांच का आदेश दिया है कि क्या केंद्रीय गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे और उनके पूर्ववर्ती पी. चिदंबरम ने पृथक तेलंगाना राज्य गठन की बाबत अपने बयानों से तेलंगाना क्षेत्र की जनता को ठगा है? जाहिर है, पहले जांच और फिर उस पर अदालती फैसला लंबी प्रक्रिया का मामला है, लेकिन आरोप में दम है। बात वर्तमान से ही शुरू करें तो शिंदे ने संसद का शीतकालीन सत्र सुचारु चलाने के लिए पहले तो 28 दिसंबर को तेलंगाना मुद्दे पर सर्वदलीय बैठक का दांव चला और फिर बैठक में ऐलान कर दिया कि एक महीने में फैसला हो जायेगा। जब समय सीमा बीती तो शिंदे बदल गये, बोले, अभी तो विचार-विमर्श चल रहा है। कहना नहीं होगा कि मामला तो सीधे-सीधे ठगी का ही है। वैसे शिंदे के पूर्ववर्ती चिदंबरम तो और भी कमाल रहे। आमरण अनशन पर बैठे तेलंगाना राष्ट्र समिति के मुखिया चंद्रशेखर राव का अनशन तुड़वाकर बिगड़ते हालात को काबू करने के लिए चिदंबरम ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के जन्मदिन के अवसर पर 9 दिसंबर, 2009 को पृथक तेलंगाना गठन की प्रक्रिया शुरू करने का ऐलान आधी रात को किया था, लेकिन दो सप्ताह में ही मुकर गये। बोले, प्रक्रिया का मतलब है कि सभी विकल्पों पर विचार करेंगे और फिर न्यायमूर्ति बी. एन. कृष्णा की अगुआई में एक समिति बना दी, जिसकी रपट भी आ गयी, पर तेलंगाना नहीं बना। अब सरकार की ठगी का इससे बड़ा उदाहरण और क्या होगा?
कांग्रेस की असलियत
यह तो दीवार पर लिखी इबारत की तरह साफ है कि गत 16 दिसंबर को देश की राजधानी दिल्ली में दौड़ती बस में हुए सामूहिक बलात्कार की घटना के लिए छह दरिंदों के अलावा कोई और जिम्मेदार है तो वह केंद्र सरकार ही है। हालांकि कानून-व्यवस्था राज्य का विषय होता है, लेकिन दिल्ली क्योंकि पूर्ण राज्य नहीं है, इसलिए दिल्ली पुलिस सीधे केंद्रीय गृह मंत्रालय के नियंत्रण में काम करती है। दिल्ली पुलिस की काहिली का अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि दो घंटे से भी ज्यादा समय तक सड़कों पर दौड़ती बस में बलात्कार होता रहा, पर उसे भनक तक नहीं लगी। केंद्र में गठबंधन सरकार का नेतृत्व कांग्रेस कर रही है और गृह मंत्रालय पर भी उसी का कब्जा है, इसलिए वह भी इस जघन्य अपराध की जवाबदेही से मुक्त नहीं हो सकती, लेकिन रंग बदलना तो कांग्रेस की फितरत है। देश का युवा इस घटना के विरोध में सड़कों पर था, पर कांग्रेसी 'युवराज' का कहीं अता-पता नहीं था। पीड़िता के लिए न्याय और महिलाओं के लिए बेहतर सुरक्षा मांग रहे इन युवाओं पर दिल्ली पुलिस ने आंसू गैस के गोले ही नहीं दागे, बर्बरतापूर्वक लाठियां भी बरसायीं, लेकिन फिर भी राजनीति करने की चाल से कांग्रेस बाज नहीं आयी। दस, जनपथ के दरबारियों ने कुछ प्रदर्शनकारी युवाओं को सोनिया-राहुल से मिलने के लिए बुलाकर प्रचार पाने की कोशिश की, पर कांग्रेस की गंभीरता की कलई फिर खुल गयी। केंद्र सरकार ने बलात्कार कानून में संशोधन सुझाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जे. एस. वर्मा की अध्यक्षता में समिति बनायी। समाचार माध्यमों के जरिये अपनी गंभीरता का ढिंढोरा पीटने वाली कांग्रेस ने इस समिति को अपने सुझाव आधी रात को भिजवाये, जब न्यायमूर्ति वर्मा सो चुके थे।
जोर का झटका
कांग्रेस को जोर का झटका धीरे से लग गया। दूसरों के कंधे पर बंदूक रख कर राजनीति करने की कांग्रेसी फितरत पुरानी है, फिर चाहे उसके लिए साम, दाम, दंड, भेद –किसी का भी सहारा लेना पड़े। हरियाणा में वर्ष 2005 में हुए विधानसभा चुनावों में सिख मतों को भरमाने के लिए कांग्रेस ने गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी का शिगूफा छोड़ा था। वह चाल कितनी कामयाब रही, यह तो शोध और खोज का विषय है, लेकिन दिल्ली में सिख समुदाय को बांटने का यह खेल कांग्रेस परमजीत सिंह सरना के जरिये कई साल से खेल रही थी। अभी जनवरी में हुए दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के चुनावों में एक बार फिर बिसात बिछायी गयी कि इस साधन संपन्न कमेटी की कमान अपने हाथ से न निकल जाए, लेकिन सिख समुदाय इस बार झांसे में नहीं आया। दिल्ली के सिख मतदाताओं ने सरना के अकाली दल को नकारते हुए शिरोमणि अकाली दल (बादल) को स्पष्ट बहुमत दे दिया। शिरोमणि अकाली दल को भाजपा का भी समर्थन हासिल था। इसलिए इन चुनाव परिणामों को इसी साल होने वाले दिल्ली विधानसभा चुनावों के परिणामों का संकेतक माना जा रहा है। यह झटका तो धीरे से लगा है, पर विधानसभा चुनावों का झटका कांग्रेस को बहुत भारी पड़ने वाला है, क्योंकि दिल्ली देश का दिल है और देश में भी लोकसभा चुनाव बहुत दूर नहीं हैं।
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