वोट जमा करने के लिए इस्लामिक बैंक!
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वोट जमा करने के लिए इस्लामिक बैंक!
कांग्रेस अपने 'युवराज' राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए हर वह कुकर्म कर रही है जो देश को पुन: एक बार विभाजन की ओर धकेल रहा है। सच्चर कमेटी और रंगनाथ मिश्र आयोग की मनगढ़ंत सिफारिशों को लागू करने के लिए इस सरकार ने पंथनिरपेक्षता की हत्या करके देश के इतिहास में पहली बार बजट में मुस्लिमों के लिए अलग से धन का आवंटन किया। इसी सरकार ने अल्पसंख्यक मंत्रालय (जिसे मुस्लिम तुष्टीकरण मंत्रालय कह सकते हैं) का गठन किया। अब यह सरकार मुस्लिम वोटों को सुरक्षित रखने के लिए इस्लामिक बैंक शुरू करने की दिशा में कदम बढ़ा चुकी है। सूत्रों का कहना है कि सोनिया-मनमोहन सरकार इस प्रयास में है कि 2014 के आम चुनाव से पहले भारत में इस्लामिक बैंक काम करना शुरू कर दे। इसके लिए सरकार बैंकिंग और कराधान से जुड़े कानूनों में संशोधन करने जा रही है। उल्लेखनीय है कि कुछ समय पूर्व केन्द्र सरकार ने भारतीय रिजर्व बैंक (आर.बी.आई) को एक पत्र लिखा था, जिसमें कहा गया था कि क्या भारत में इस्लामिक बैंक शुरू हो सकता है? इसके जवाब में आरबीआई ने सरकार को बताया है कि वर्तमान बैंकिंग अधिनियम इस्लामिक बैंक शुरू करने की अनुमति नहीं देता है। आरबीआई के इस जवाब के बाद कानून मंत्री (अब विदेशी मंत्री) सलमान खुर्शीद ने इस्लामिक बैंक को लेकर योजना आयोग और आरबीआई को पत्र लिखा था। कुछ दिन पहले ही सलमान खुर्शीद ने स्वयं कहा भी था कि इस्लामिक बैंक को लेकर उन्होंने योजना आयोग और आरबीआई को पत्र भेजा है।
आये दिन इस्लामिक बैंक को लेकर हो रही बयानबाजी को देखते हुए आरबीआई के गवर्नर डी.सुब्बाराव ने 4 अक्तूबर को पुद्दुचेरि में कहा, 'विश्व के अनेक भागों में इस्लामिक बैंक काम कर रहे हैं। किन्तु बैंकिंग अधिनियम भारत में इस्लामिक बैंक की अनुमति नहीं देता, क्योंकि यह बैंकों को आरबीबाई से ब्याज पर पैसा लेने और जमा करने की सहूलियत देता है। पर हम सरकार से इस बात के लिए पत्राचार कर रहे हैं कि इस्लामिक बैंक के लिए कानून में किस प्रकार से बदलाव या संशोधन किया जा सकता है।' 22 नवम्बर को भी कोची में डी.सुब्बाराव ने कहा मौजूदा कानून के रहते इस्लामिक बैंक संभव नहीं है।
रिजर्व बैंक के गवर्नर के इन बयानों के बाद इस्लामिक बैंक पर बहस छिड़ गई है। इसके समर्थक सेकुलर और मुस्लिम नेता कह रहे हैं कि इस्लामिक बैंक से रोजगार के अवसर बढ़ेंगे, देश तेजी से प्रगति करेगा। वहीं बहुत लोग शंका जता रहे हैं कि इस्लामिक बैंक से मतांतरण को बढ़ावा मिलेगा, समाज में विभेद बढ़ेगा, भारत का इस्लामीकरण होगा…।
क्या है इस्लामिक बैंकिंग?
यह शरीयत के कानूनों के अनुसार गठित किया गया एक बैंक होता है, जो अपने ग्राहकों के जमा पैसे पर न तो ब्याज देता है और न ही ग्राहकों को दिए गए किसी कर्ज पर ब्याज लेता है, क्योंकि शरीयत के अनुसार ब्याज लेना 'हराम' है। ऊपरी तौर पर जो भी इस बैंक को देखेगा उसे तो यही लगेगा कि वाह, कितना अच्छा बैंक है, बिना ब्याज का कर्ज देता है। पर इस बैंक की गहराई में झांकेंगे तो असलियत पता चलेगी। यह सवाल किसी भी व्यक्ति के मन में उठ सकता है कि जो बैंक न ब्याज लेता है, न देता है, तो वह अपने कर्मचारियों को वेतन कहां से देता है? उसके अन्य खर्चे कहां से पूरे होते हैं? इसका अर्थ तो यही हुआ कि वह जरूर कुछ करता है। क्या करता है उसे भी जान लें। इस्लामिक बैंक 'पिछले दरवाजे' से सूद लेते हैं। उल्लेखनीय है कि इस्लामिक बैंक अपने यहां जमा धन से मुख्य रूप से अचल सम्पत्ति खरीदते हैं। मकान, दुकान, घर बनाने वाले भूखंडों आदि पर निवेश करते हैं। इस निवेश से जो मुनाफा होता है उसे ग्राहकों के बीच बांटा जाता है। अगर कोई घर खरीदने के लिए किसी इस्लामिक बैंक के पास ऋण अर्जी लगाता है तो उसे पैसा नहीं दिया जाता है, बल्कि घर ही खरीदकर दिया जाता है। मान लीजिए उस घर का वर्तमान मूल्य 20 लाख रु. है, तो वह किश्त इस तरह बांधता है कि 15-20 साल में उस ग्राहक से उसे 30-32 लाख रु. मिल जाते हैं। इसे धोखा और पाखंड ही तो कहा जाएगा।
भारत का इस्लामीकरण
भारत में 26 सरकारी बैंक, 20 निजी बैंक और 41 विदेशी बैंक कारोबार कर रहे हैं। मार्च 2012 तक इन बैंकों की कुल सम्पत्ति 71.64 खरब थी। परंतु इनमें से किसी को भी अचल सम्पत्ति न खरीदने का अधिकार है और न ही रखने का। जबकि इस्लामिक बैंक का ज्यादातर कारोबार अचल सम्पत्ति पर ही निर्भर है। दुर्भाग्यवश यदि भारत में इस्लामिक बैंक शुरू होते हैं तो यहां भी वे दुकान, मकान और अन्य भूखंडों को खरीदकर अपने पास रखेंगे। जब इस्लामिक बैंक शरीयत के अनुसार काम करते हैं तो यह भी तय है कि भारत में वे उन्हीं लोगों को अपनी सेवाएं देंगे, जो शरीयत के अनुसार चलते हैं, यानी मुस्लिमों को। क्या इस हालत में वे गैर-मुस्लिम शरीयत को नहीं अपनाएंगे, जिन्हें यह कहा जाएगा कि इस्लामिक बैंक से सुविधा लेने के लिए शरीयत के नियमों का पालन करो? साफ है कि इस्लामिक बैंकों के माध्यम से भारत का इस्लामीकरण करने की कोशिश की जाएगी।
ऐसे शुरू हुई बात
भारत में इस्लामिक बैंक की सुगबुगाहट रघुराम राजन समिति की एक सिफारिश से हुई। इस समिति ने अगस्त 2008 में सिफारिश की थी कि वित्तीय क्षेत्र में सुधार के लिए ब्याज मुक्त बैंकिंग व्यवस्था लागू की जाए। इसके बाद तो अनेक मुस्लिम नेता इस्लामिक बैंक की पैरवी करने लगे। अक्तूबर 2009 में केरल सरकार ने एक आदेश जारी कर कहा कि केरल में इस्लामिक बैंक शुरू किया जाएगा। इसके साथ ही केरल स्टेट इंस्ट्रियल डवलपमेंट कारपोरेशन (केएसआईडीसी) ने अल बरकाह फाइनेंशियल सर्विसेज लि. (जिसका संचालन केरल में शरीयत के अनुसार होता है) को उसकी पूंजी का 11 प्रतिशत पैसा अपने खाते से दे दिया ताकि इस्लामिक बैंक की औपचारिकताएं पूरी की जाएं। केरल सरकार के इस निर्णय को जनता पार्टी के अध्यक्ष डा. सुब्रह्मण्यम स्वामी ने केरल उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर कर चुनौती दी।
उधर केरल उच्च न्यायालय में इस पर बहस होती रही और इधर मुस्लिम नेता सरकार पर इस्लामिक बैंक के लिए दबाव बनाने लगे। 27 जनवरी, 2010 को के. रहमान खान ने राज्यसभा में कहा, 'भारत सरकार शरीयत आधारित इस्लामिक बैंक की स्थापना करे।' शायद इसी दबाव के कारण प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अक्तूबर 2010 में अपनी मलेशिया यात्रा के दौरान कहा, 'सरकार आरबीआई से पूछेगी क्या इस्लामिक बैंक संभव है?'
उन्हीं दिनों डा. सुब्रह्मण्यम स्वामी ने न्यायालय में बहस करते हुए कहा कि इस्लामिक बैंकिंग पद्धति या इस प्रकार का कोई भी वित्तीय निगम भारत के कानूनों के विरुद्ध है। डा.स्वामी ने कहा कि इस्लामिक बैंकिंग पद्धति लागू करने का अर्थ है पार्टनरशिप एक्ट (1932), भारतीय संविदा कानून (1872), बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट (1949), कॉआपरेटिव सोसायटी एक्ट (1961) एवं नेगोशियेबल इस्ट्रूमेंट (1881) का उल्लंघन है।
फरवरी 2011 को केरल उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जयचलामेश्वर और न्यायमूर्ति पी.आर.रामचन्द्र मेनन ने डा.स्वामी की याचिका पर कहा, 'यदि भारत के कानून इसकी अनुमति देते हैं तो यह (इस्लामिक बैंकिंग) उचित है।'
इस निर्णय से यह आभास तो नहीं होता कि न्यायालय ने इस्लामिक बैंकिंग पद्धति को अनुमति दे दी है। पर सेकुलर मीडिया ने न्यायालय के इस निर्णय को इस्लामिक बैंक को अनुमति देने के रूप में उछाला। उर्दू अखबारों ने एक स्वर से कहा, 'मुल्क में पहले इस्लामी बैंक को हरी झंडी।' इन सबका परिणाम यह हुआ कि मुस्लिम नेता और सेकुलर खुलकर इस्लामिक बैंक की मांग करने लगे। यदि दुर्भाग्य से ऐसा होता है तो यह भारत के लिए किसी भी दृष्टि से ठीक नहीं होगा। मालूम हो कि यूरोप के जिन-जिन देशों में इस्लामिक बैंक काम कर रहे हैं वहां बड़ी संख्या में लोग मतांतरित होकर मुस्लिम बन रहे हैं। ब्रिटेन और अन्य यूरोपीय देशों में एशिया से गए मुस्लिमों को बसाने, उनको रोजगार उपलब्ध कराने में इस्लामिक बैंकों का बहुत बड़ा योगदान है। इस कारण उन देशों में तेजी से मुस्ल्मिों की आबादी बढ़ रही है। स्थानीय लोग उनकी हरकतों से परेशान भी होने लगे हैं। अनेक देशों में इस्लामिक बैंक बन्द करने की मांग भी उठने लगी है। फिर भारत में इस्लामिक बैंक की चर्चा क्यों?
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