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अपने ही देश में अपने ही लोग किस प्रकार भय का जीवन जी रहे हैं, यह पता चला भारत-बंगलादेश के सीमावर्ती गांव फांसीदेवा में। यहां भारत-बंगलादेश के बीच कोई स्पष्ट विभाजन व तारबंदी अभी तक नहीं हुई है, और निकट भविष्य में भी इसका हो पाना संभव नहीं लगता है। भारत की सीमा में बह रही महानन्दा नदी के बीचों-बीच कभी सीमान्त पहचानने वाला एक 'पिलर' था। बंगलादेश के लोगों या उसके सैनिकों ने उस 'पिलर' को भारतीय क्षेत्र के भीतर नदी के अन्दर लगा दिया है। इससे लगभग 20-25 मीटर भारत-भूमि 'बंगलादेश' का हिस्सा बन गयी है। यह बात भारतीय सीमा पर रहने वाले लोग जानते और बताते हैं। पर इस क्षेत्र के प्रति भारत की उदासीनता का लाभ उठाकर बंगलादेश की सीमा रक्षा वाहिनी फांसीदवा गांव के शिव मंदिर के सामने भक्तों को बैठने के लिए जो चबूतरा बना है, उसके ऊपर छत नहीं बनाने दे रही है। छत बनाने के लिए कई वर्ष पूर्व जो पिलर बनाये गये थे, वे जस के तस हैं। बंगलादेश के सैनिक मंदिर निर्माण का विरोध कर रहे हैं और भारतीय सीमा सुरक्षा बल के जवान तब तक कुछ बोल और कर सकने से मना कर रहे हैं जब तक सरकार उन्हें कोई निर्देश न दे। स्थानीय लोगों ने कुछ हिन्दू संगठनों से भी आग्रह किया, पर निराशा ही हाथ लगी। इससे फांसीदेवा के लोगों में दु:ख है और गुस्सा भी।
'फिन्स' द्वारा आयोजित 'सरहद को प्रणाम' कार्यक्रम के तहत गत 22 नवम्बर की सुबह वहां जाने का अवसर मिला, तब यह सचाई देखने को मिली। भारत के अन्य प्रांतों से आये 15 युवा कार्यकर्ता एवं स्थानीय गांववासी कार्यक्रम में सम्मिलित हुए। सिलिगुडी से रा.स्व.संघ के उत्तर बंग प्रान्त प्रचारक गोविन्द घोष, सिलिगुड़ी के जिला संघचालक डा. सत्यपद पाल, विद्या भारती के परिमल कोनर एवं सिलिगुड़ी नगर के कार्यकर्ता भी कार्यक्रम में शामिल हुए। बाद में शिव मंदिर के खुले आंगन में ही एक सभा हुई। इसमें गांव के प्रमुख समाजसेवी डा. अरुण राय ने कहा- हम ग्रामवासियों को बंगलादेश की सीमा रक्षा वाहिनी यदा-कदा तंग करती है। सीमा सुरक्षा बल के जवानों को बताने पर भी वे कुछ नहीं करते हैं। उनका कहना होता है कि जहां तारबंदी है, हम उसकी ही रक्षा करेंगे, गांव और उसके मंदिर की रक्षा का काम स्थानीय प्रशासन और पुलिस का है। दुर्भाग्य यह कि फांसीदेवा सीमा पर तारबंदी है ही नहीं।
फांसीदेवा के ही टिंकू साहा के मकान के दूसरे तल पर 'लिंटर' डालने की तैयारी चल रही थी। 23 नवम्बर को बंगलादेश की सीमा रक्षा वाहिनी के जवानों ने भारत की सीमा में जबरन घुसकर निर्माण कार्य रुकवा दिया। उसी दिन दोपहर में भारत के सीमा सुरक्षा बल के क्षेत्रीय अधिकारियों व बंगलादेश की सीमा रक्षा वाहिनी के क्षेत्रीय अधिकारियों की उच्चस्तरीय बैठक हुई। उसमें पाया गया कि टिंकू साहा का मकान भारतीय सीमा में है और उसके दो मंजिला बनने से सीमा पर कोई अड़चन नहीं आएगी, तो बंगलादेश की सीमा रक्षा वाहिनी ने मकान बनाने पर सहमति जता दी। पर प्रश्न यह है कि बंगलादेश की सीमा रक्षा वाहिनी भारतीय क्षेत्र में बेधड़क कैसे घुसी चली आती है? स्थानीय प्रशासन व सीमा सुरक्षा बल क्या कर रहा है? सीमा पर अभी तक तारबंदी क्यों नहीं हुई है? देश की रक्षा क्या भगवान भरोसे ही हो रही है?
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