वे नहीं सुधरेंगे
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लगता है कि कांग्रेस और उसके नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने न सुधरने की कसम खा रखी है। तभी तो वे चुनाव-दर-चुनाव गैर कांग्रेस शासित राज्यों की सरकारों पर केंद्र सरकार द्वारा विकास योजनाओं के तहत भेजे जाने वाले धन के दुरुपयोग के आरोप लगाने से बाज नहीं आते। ये आरोप कुछ इस अपमानजनक अंदाज में लगाये जाते हैं, मानो केंद्र सरकार राज्यों को कोई खैरात बांटती हो–और वह भी कांग्रेस के कोष से। गैर कांग्रेसी राज्य सरकारों के विरुद्ध इस दुष्प्रचार का मुंहतोड़ जवाब उत्तर प्रदेश और बिहार समेत कई राज्यों के मतदाता अपने जनादेश से दे चुके हैं, लेकिन कांग्रेसी हैं कि बाज ही नहीं आते। गुजरात के सर्वांगीण विकास का लोहा देश ही नहीं, विदेश भी मानता है, लेकिन कांग्रेसियों को वह नजर ही नहीं आता। होना तो यह चाहिए था कि राज्य-दर-राज्य अपने चुनावी सफाये से कांग्रेस कुछ सबक सीखती। पर सुधर जाये, तो वह कांग्रेसी ही क्या? सो, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से लेकर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी तक हर कांग्रेसी ने एक ही राग अलापा कि केंद्र ने तो बहुत पैसा दिया, पर वह आम आदमी तक नहीं पहुंचा। बदहाल अर्थव्यवस्था वाला केंद्र अपने से बेहतर विकास और अर्थव्यवस्था वाले गुजरात को धन के प्रबंधन और सदुपयोग को ले कर कठघरे में खड़ा करे तो भला कौन यकीन करेगा? जाहिर है, कोई नहीं। पर लगता है कि गुजरात के मतदाताओं को कांग्रेस का घमंड तोड़ने के लिए उसे कुछ ज्यादा ही कठोर सबक सिखाना पड़ेगा।
राहुल बाबा की बातें
राजनीति के अंशकालीन पर्यटक राहुल गांधी भी लंबा इंतजार करवाने के बाद आखिरकार गुजरात पहुंच ही गये। गुजरात में दो चरणों में होने वाले मतदान के पहले चरण के लिए प्रचार के आखिरी दिन वहां पहुंचे कांग्रेसी 'युवराज' ने ऐसे-ऐसे किस्से-कहानी सुनाये कि खुद ही उपहास का कारण बन गये। 'युवराज' बोले कि गुजरात में आम आदमी की आवाज तो छोड़िए विपक्ष तक की बात नहीं सुनी जाती। विधानसभा की बैठकें साल में महज 25 दिन होती हैं। अब उन्हें कौन बताये कि कांग्रेस शासित राज्यों, दिल्ली और हरियाणा में तो विधानसभा इतने दिन भी नहीं चलती। फिर बोले, विपक्ष को तो विधानसभा से बाहर निकाल दिया जाता है, जबकि सच यह है कि पिछले दिनों कांग्रेस शासित हरियाणा में ही विपक्षी सदस्यों को निलंबित किया गया था। इसके बाद कांग्रेसी 'युवराज' ने कहानी सुनायी कि किस तरह जवाहर लाल नेहरू के जेल चले जाने के बाद उनके घर आये महात्मा गांधी भी जमीन पर सोये थे। लोग हैरत में पड़ गए कि दशकों बाद दुनिया में आये राहुल बाबा को यह कहानी किसने सुनायी, जो अभी तक अनसुनी रही। हद तो तब हो गयी, जब राहुल ने महात्मा गांधी को अपना राजनीतिक गुरु भी बता दिया। वैसे गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'युवराज' को जो सलाह दी, वह नहले पर दहला रही। मोदी बोले, अगर राहुल की गांधी के प्रति इतनी ही श्रद्धा है तो फिर उनकी उस सलाह पर अमल क्यों नहीं करते कि कांग्रेस को भंग कर दिया जाये?
वालमार्ट का सच
भारत के 'मल्टीब्रांड रिटेल' में प्रवेश के लिए 'लाबिंग' पर 125 करोड़ रुपये खर्च करने पर संसद में चाहे जितना हंगामा हुआ हो, पर भारतीय राजनीति के कांग्रेसी सच को समझने वालों को कोई आश्चर्य नहीं हुआ। भला कांग्रेसी शासन में ऐसा कौन-सा बड़ा कारोबारी फैसला रहा है, जिसे ले कर लेनदेन की बातें सामने न आयी हों? इतिहास में बहुत पीछे न भी लौटें तो बोफर्स से शुुरुआत कर सकते हैं। वह तो हथियारों की खरीद का आमतौर पर बदनाम मान लिया जाने वाला मामला था, पर क्या अमरीका से परमाणु करार भी संदेह से परे रह पाया था? सच तो यह है कि उसी करार के चलते अल्पमत में आयी मनमोहन सिंह सरकार ने जुलाई, 2008 में जब लोकसभा में बहुमत साबित किया तो सदन में उन नोटों की गड्डियां दिखायी गयीं तो मदद करने के प्रलोभन के रूप में विपक्षी सांसदों को दी गयी थीं। सरकार ने वालमार्ट के खुलासे की न्यायिक जांच का ऐलान किया है, पर आज तक ऐसी किसी भी जांच का सच सामने आया है क्या?
समाजवादी सांप्रदायिकता
सेकुलरवाद की स्वयंभू ठेकेदार समाजवादी पार्टी का असली चेहरा आठ महीने में ही सामने आ गया है। सांप्रदायिक हिंसा की सबसे ज्यादा घटनाएं उत्तर प्रदेश में हुई हैं। आधा दर्जन शहरों में हुए सांप्रदायिक दंगों में सरकारी आंकड़ों के मुताबिक ही 34 लोग मारे जा चुके हैं। कहना नहीं होगा कि मृतकों की वास्तविक संख्या इससे कहीं ज्यादा हो सकती है। बेशक उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी की सरकार इस साल मार्च में ही बनी, पर उससे पहले भी राज्य में मायावती के नेतृत्व वाली जो बसपा सरकार थी, वह भी सेकुलरवाद की स्वयंभू ठेकेदारी में खुद को किसी से कम नहीं आंकती थी। वैसे कड़वा सच यह भी है कि सांप्रदायिक हिंसा में सपा, बसपा को पीछे छोड़ती नजर आ रही है।
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