सशस्त्र घुसपैठ का खतरा
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भारत पाक सीमा (नियंत्रण रेखा) पर गहराता
सीमांत क्षेत्रों में दहशत फैलाकर घुसपैठिए भेजना
पाकिस्तान की सैनिक रणनीति
लगता है कि 2014 में होने वाले संसदीय चुनावों की तैयारियों में जुटे हमारे राजनीतिक दलों का ध्यान देश की बाह्य एवं भीतरी सुरक्षा पर गहराते जा रहे संकटों के खतरों की ओर नहीं जा रहा। विशेषतया पाकिस्तान के साथ लगने वाली 1264 किलोमीटर कश्मीर की सीमा पर बढ़ती जा रही पाकिस्तान की सैनिक हलचलों पर सरकार की ओर से हो रही कोताही चिंता का विषय है। यद्यपि सीमाओं के अग्रिम मोर्चों और चौकियों पर डटे हुए भारतीय सेना और सीमा सुरक्षा बल के जवान पूरी सतर्कता और हिम्मत के साथ अपने कर्तव्य की पूर्ति में जुटे हैं परंतु सरकारी राजनेताओं की अति कमजोर निर्णय क्षमता और ढीली ढाली राजनीतिक इच्छाशक्ति के कारण जवानों का मनोबल टूट रहा है। इन दिनों पाकिस्तान की राजनीतिक परिस्थितियां डांवाडोल हैं। वहां की सरकार अस्थिर है, परंतु नियंत्रण रेखा के रास्ते भारत में सशस्त्र घुसपैठियों को धकेलने की नीति पर पाकिस्तान की सरकारी पूरी तरह अडिग, सतर्क और सक्रिय है।
भारत में सशस्त्र-प्रशिक्षित आतंकवादी घुसपैठ करवाते रहना पाकिस्तान की भारत के संबंध में व्यवहार में लाई जा रही विदेश नीति का सैद्धांतिक आधार है। यही वजह है कि पाकिस्तान की किसी भी सैनिक अथवा गैर सैनिक सरकार ने आज तक कभी घुसपैठ से संबंधित भारत के आरोपों को गंभीरता से नहीं लिया। जम्मू-कश्मीर में भारत-पाक सीमा को दो भागों में विभाजित करके देखा जाता है। 750 किलोमीटर नियंत्रण रेखा और 514 किलोमीटर अंतरराष्ट्रीय सीमा पर पाकिस्तान के सैनिक सदैव तोपों, राकेटों और मोर्टार हथियारों के साथ तैनात रहते हैं। इस सीमा के इस पार भारत की सैन्य चौकियों पर गोलाबारी करते रहने का पाकिस्तानी कुप्रयास कभी बंद नहीं होता। पाकिस्तान के रेंजरों (सीमा सुरक्षा जवान) द्वारा की जाने वाली कवरिंग फायर की आड़ लेकर सशस्त्र घुसपैठिए जम्मू कश्मीर की सीमा में घुसते हैं। अधिकांश घुसपैठिए भारतीय सैनिकों के हाथों मारे जाते हैं परंतु भारत में घुसने वालों की तादाद भी कम नहीं होती। मल्टी एजेंसी सेंटर (एमएसी) के सूत्रों के अनुसार जनवरी 2012 से अक्तूबर 2012 तक 250 पाकिस्तानी घुसपैठियों ने कश्मीर की सीमा के रास्ते से भारत में घुसने का प्रयास किया। इनमें से 124 आतंकी घुसपैठिए जम्मू-कश्मीर में घुसने में सफल हो गये।
पीओके और कश्मीर में जड़ें जमा चुका है
भारत विरोधी संगठित आतंकवाद
भारतीय क्षेत्रों विशेषतया जम्मू-कश्मीर के सीमांत क्षेत्रों में भेजे जाने वाले आतंकियों को पाकिस्तान की सेना पूरी तरह तैयार करती है। भारतीय सैनिकों के हाथों मारे गए आतंकियों से बरामद किट (गोला बारूद, साहित्य, गुप्त ठिकानों के नक्शे आदि) से ऐसे सारे सबूत भारतीय सुरक्षा एजेंसियों को अक्सर मिलते रहते हैं। इन घुसपैठियों को सीमा पर लगी बिजली के करंट वाली तारों को काटने का प्रशिक्षण दिया जाता है। इनकी किट में ऐसी तारों को काटने वाले औजार और रात के अंधेरे में देख सकने वाले चश्मे पर्याप्त मात्रा में हैं। इनके पास दूर तक जायजा लेने वाली अत्याधुनिक दूरबीनें भी रहती हैं जिनका इस्तेमाल करके यह घुसपैठिए भारतीय क्षेत्रों में स्थापित महत्वपूर्ण सैनिक ठिकानों की टोह लेते हैं। पाकिस्तान के सैनिक भारतीय चौकियों पर अंधाधुंध गोलाबारी करके भारतीय जवानों को जवाबी कार्रवाई में उलझाए रखते हैं। इसी को कवरिंग फायर कहा जाता है जिसका सहारा लेकर यह आतंकी हथियारों सहित भारतीय सीमा में आ जाते हैं। पाकिस्तान की सेना इन्हें मात्र कवरिंग फायर ही नहीं देती अपितु भारतीय जवानों की गोलियों से बच निकलने वालों को सुरक्षित वापस लौटने में भी इसी तरह की मदद करती है। पाकिस्तानी रेंजर इस काम में सिद्धहस्त होते हैं।
इस प्रकार जो सशस्त्र घुसपैठिए भारत के सीमांत क्षेत्रों में पहुंचने में सफल हो जाते हैं उनके आगे बढ़ने की प्रक्रिया भी पाकिस्तान की सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है। जम्मू-कश्मीर के सीमावर्ती इलाकों में पाकिस्तान के एजेंटों की भरमार है। इन्हें 'गाइड' कहा जाता है। घुसपैठियों को आतंकियों के गुप्त ठिकानों तक पहुंचा देने का काम यह 'गाइड' ही करते हैं। स्थानीय दुर्गम पहाड़ी मार्गों के चप्पे-चप्पे से वाकिफ यह गाइड स्थानीय नागरिक होते हैं जिनकी मेहनत की कीमत उन्हें मिल जाती है। ऐसे देशद्रोही तत्वों का दबदबा स्थानीय जनसंख्या पर रहता है जिससे इनका और घुसपैठियों का काम आसान हो जाता है। स्थानीय मददगारों से लेकर पाकिस्तान की सेना और आईएसआई तक जुड़ी हुई इस अत्यंत गोपनीय परंतु संगठित व्यवस्था के कारण पाकिस्तानी घुसपैठिए कश्मीर की सीमा के रास्ते से आकर भारत के बड़े-बड़े शहरों तक पहुंच जाते हैं। इन शहरों तक पहुंचने, ठहरने, खाने, पीने और हिंसक वारदात करके फिर भाग जाने में भी यही व्यवस्था काम करती है। भारी चौकसी के बावजूद यह सिलसिला रुकता नहीं है।
इस्लाम के लिए कुर्बान होने की घुट्टी से लबरेज
पाक प्रशिक्षित कश्मीरी आतंकी
उल्लेखनीय है कि 1965 और 1971 में पाकिस्तान ने भारत पर सीधा युद्ध थोपने के पूर्व अपने नियमित सैनिकों को सादे वेश में (परंतु हथियारों के साथ) जम्मू-कश्मीर के सीमांत क्षेत्रों विशेषतया पुंछ और कुपवाड़ा इलाके में भेजा था। भारतीय नागरिकों में दहशत फैलाने, सैनिक ठिकानों की जानकारी लेने और पाकिस्तानी सैनिकों के आक्रमण का रास्ता प्रशस्त करने की यह रणनीति पूरी तरह पिट गई और दोनों युद्धों में पाकिस्तानी फौज के पांव उखड़ गए। तत्पश्चात पाकिस्तान ने सीधे युद्ध की रणनीति छोड़कर थोड़ी-थोड़ी परंतु निरंतर सशस्त्र घुसपैठ का रास्ता अख्तियार किया। इसी रणनीति के तहत पाकिस्तान के सैन्याधिकारियों ने भारतीय कश्मीर के युवकों को पाक अधिकृत कश्मीर में आधुनिक हथियारों की ट्रेनिंग की पुख्ता व्यवस्था कर दी। कश्मीर घाटी में कार्यरत पाकिस्तान समर्थक तत्वों द्वारा स्थापित अलगाववादी संगठनों द्वारा कश्मीरी युवकों को सीमा पार करवाकर पीओके में प्रशिक्षण के लिए भेजने का पूरा जिम्मा ले लिया। पाकिस्तान के रहने वाले युवाओं को इन्हीं कश्मीरी युवकों के साथ भारत में घुसपैठ करवाई जाती है।
इस तरह कश्मीर के अलगाववादी नेताओं, कट्टरवादी मजहबी जमातों, कश्मीरी आतंकी युवकों, गाइडों, पाकिस्तान के रेंजरों, पीओके में चलने वाले प्रशिक्षण शिविरों के कमांडरों, पाक सैनिक अधिकारियों और आईएसआई की एक ऐसी कड़ी बद्ध श्रृंखला काम करती है। भारतीय सैन्य खुफिया एजेंसियों के आंकड़ों के अनुसार पाकिस्तान और पाक अधिकृत कश्मीर में ऐसे लगभग 150 प्रशिक्षण शिविर मौजूद हैं जहां पाकिस्तान और भारतीय कश्मीर के युवकों को इस्लाम के नाम पर आतंकी जिहाद के लिए तैयार किया जाता है। लगभग तीन हजार युवक इन शिविरों में ट्रेनिंग ले रहे हैं। इन सभी को भारत विशेषतया जम्मू-कश्मीर में हिंसक गतिविधियों को अंजाम देने के लिए तैयार किया जा रहा है। जम्मू-कश्मीर और पाकिस्तान की अंतरराष्ट्रीय सीमा और नियंत्रण रेखा के रास्ते से इन युवा जिहादियों को भारत में जाकर दहशत फैलाने और इस्लाम के लिए कुर्बान हो जाने की घुट्टी पिलाई जाती है। सैन्याधिकारियों से मिली जानकारी के अनुसार इस समय जम्मू-कश्मीर में करीब आठ सौ आतंकी घुसपैठिए पहाड़ों में स्थापित गुप्त ठिकानों में मौजूद हैं। इन ठिकानों पर पर्याप्त खाद्य सामग्री, हथियारों के जखीरे, मोबाइल फोन, लैपटाप गर्म कपड़े, दवाइयां इत्यादि की सारी व्यवस्था होती है। भारतीय सुरक्षा जवानों ने ऐसे कई ठिकानों को ध्वस्त किया है।
पाकिस्तान के दुस्साहस को खत्म करने के लिए
आक्रामक रणनीति की जरूरत
नवम्बर 2003 से भारत पाक-सीमा (जम्मू-कश्मीर) पर दोनों देशों की सहमति से लागू संघर्ष विराम को पाकिस्तान ने अब तक दो सौ से भी ज्यादा बार तोड़ा है। इसी वर्ष नवम्बर के दूसरे सप्ताह में पाक सैनिकों ने जम्मू संभाग के पुंछ जिले की कृष्णा घाटी में स्थित भारत की एक दर्जन सेनिक चौकियों पर बाकायदा मोर्टारों (छोटी तोपों) और राकेटों से भारी हमला करके सीधे युद्ध जैसी स्थिति बना दी। यद्यपि भारतीय सैनिकों की जवाबी कार्रवाई में सशस्त्र घुसपैठिए जम्मू संभाग में घुस नहीं सके परंतु सीमा के उस पार पाकिस्तान की सेना क्या कर रही है इसके आभास ने भारत के सैन्याधिकारियों को सतर्क कर दिया है। संघर्ष विराम के बाद यह अब तक का सबसे बड़ा सशस्त्र घुसपैठ का प्रयास था। सैन्य सूत्रों के अनुसार 2009 में 69 आतंकी भारत में घुसे थे। 2010 में 94 पाकिस्तानी घुसपैठियों ने कश्मीर में प्रवेश किया। 2011 में यह संख्या घटकर 63 हो गई परंतु इस वर्ष यह संख्या 120 का आंकड़ा पार कर गई। 20 नवम्बर 2012 तक के यह आंकड़े खुफिया एजेंसियों की रपट पर आधारित हैं। सुरक्षा विशेषज्ञों के अनुसार यह चिंता का विषय है।
अगस्त 2012 के अंतिम सप्ताह में जम्मू-कश्मीर सीमा के अग्रिम क्षेत्रों का जायजा लेने एक उच्च स्तरीय टीम केन्द्रीय गृह सचिव आर के सिंह के नेतृत्व में नियंत्रण रेखा पर गई थी। इस टीम में सेना की उत्तरी कमान के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ जम्मू-कश्मीर के डीजीपी अशोक प्रसाद भी शामिल थे। अपनी गहरी जांच पड़ताल के बाद इस टीम ने निष्कर्ष निकाला कि सीमा पर लगी कांटेदार तार को और भी ज्यादा मजबूत और हर मौसम में भरोसेमंद बनाने की जरूरत है। डीजीपी अशोक प्रसाद ने टीम को जानकारी दी कि 90 प्रतिशत आतंकवादी इन्हीं रास्तों से कश्मीर में प्रवेश करते हैं। भारत के सैनिक अपनी कुर्बानियां देकर इस सशस्त्र घुसपैठ को विफल करने का भरसक प्रयास करते हैं। परंतु पाकिस्तान की ओर से भारत में हिंसा फैलाने का यह कुकृत्य समाप्त होने की बजाय उलटा बढ़ता जा रहा है। जम्मू-कश्मीर की सीमा पर कई वर्षों तक तैनात रह चुके एक सेवानिवृत्त सीमा सुरक्षा बल के अधिकारी के मुताबिक जब तक भारत के सैनिक मात्र जवाबी कार्रवाई करते रहेंगे पाकिस्तानी सशस्त्र घुसपैठ समाप्त नहीं हो सकती। आगे बढ़कर सीधा आक्रामक रुख अख्तियार करने की जरूरत है। यह काम सरकार की प्रबल इच्छाशक्ति से ही हो सकता है। समझौतावाद और घुटना टेक मानसिकता इसमें बड़ी बाधाएं हैं।
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