महाराष्ट्र के ये 'कोयलाबाज मंत्री'पैसा है, पर विकास करना नहीं आता
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महाराष्ट्र/द.बा.आंबुलकर
केन्द्र और महाराष्ट्र में कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में आवंटित कोयले की कुल 27 खदानों में से मात्र 2 कोयला खदानों से ही वास्तव में कोयले का उत्पादन शुरू हुआ है, 17 कोयला खदानों के आवंंटन से लेकर संचालन तक के मामले केन्द्रीय जांच ब्यूरो (साबीआई) को जांच लिए सौंप दिए गए हैं, जबकि राज्य की 8 कोयला खदानों पर सवालिया निशान लगा हुआ है। उल्लेखनीय है कि महाराष्ट्र राज्य के विदर्भ संभाग में चंद्रपुर, वर्धा, यवतमाल तथा नागपुर जिलों में कोयले की खदानें हैं। 1999 में राज्य में कोयला खदानों के निजी क्षेत्र में आवंटन की प्रक्रिया शुरू हुई। जिसके बाद सन् 2004 से लेकर 2009 तक जिन खदानों का आवंटन किया गया, उनमें से 21 खदानें निजी क्षेत्र को तथा 6 कोयला खदानें सरकारी क्षेत्र में वितरित की गयीं।
किनको मिली खदान?
कोयले की खदानें निजी क्षेत्र की जिन कम्पनियों को आवंटित की गईं उनमें इस्पात, गोंडवाना इस्पात, वीर गंगा स्टील, गुप्ता मैटेलिक्स, चमन मैटेलिक्स, अदानी पावर कम्पनी, महाराष्ट्र सिमलेस, धारीवाल इंफ्राट्रक्चर्स, केसोराम इंडस्ट्रीज, ए.एम.आर. आयरन एंड स्टील, सेंचुरी टेक्सटाइल्स, जे. के. सीमेंट, आई.एम.टी. स्टील एंड पावर, गुजरात अंबुजा सीमेंट तथा लाफार्ज इंडिया शामिल हैं। इन तमाम कम्पनियों ने कोयला खदानों का आवंटन होने के बावजूद कोयले का उत्पादन अब तक शुरू नहीं किया है। राज्य में आवंटित कोयला खदानों में से कर्नाटक पावर कार्पोरेशन तथा सनफोग आयरन एंड स्टील कम्पनी ने ही अपनी खदानों से कोयले का उत्पादन शुरू किया है। इससे यह भी स्पष्ट हो गया है कि राज्य में आवंटित कोयला खदानों में कोयले का खनन शुरू न होने के कारण ही राज्य में बिजली संयंत्रों का उत्पादन भी ठप पड़ा हुआ है।
कोयला खदानों से संबद्ध काले कारनामे तथा भ्रष्टाचार से संबद्ध मामले विगत दस वर्षों से केन्द्रीय स्तर पर, प्रधानमंत्री कार्यालय से लेकर कोयला मंत्रालय की संसदीय समिति तक उठाने वाले भाजपा के चंद्रपुर से सांसद हंसराज अहीर का योगदान इस मामले में विशेष सराहनीय रहा है। हंसराज अहीर के ही अथक प्रयासों के फलस्वरूप यह बात संसद से लेकर सड़क तक सार्वजनिक हो पायी है। कोयले की दलाली में केन्द्र सरकार और महाराष्ट्र सरकार-दोनों का रंग काला है। केन्द्र सरकार द्वारा राज्य खनन निगम को सौंपी 400 लाख टन क्षमता वाली विदर्भ के आगझरी, वरोरा, अडकोली तथा गोरेपेलपा नामक चार खदानों को निगम द्वारा मात्र 15 से 37 रुपए प्रति टन की कीमत पर कुछ निजी प्रतिष्ठानों को सौंप दिया गया। इसके कारण महाराष्ट्र सरकार को आने वाले 30 सालों में प्रतिवर्ष 703 करोड़ रुपयों की आय मिलना अपेक्षित है। इसके विपरीत मध्य प्रदेश को केन्द्र से मिले कोयला खदानों की क्षमता महाराष्ट्र की तुलना में 104 लाख टन कम, यानी 296 लाख टन है। बावजूद इसके मध्य प्रदेश शासन द्वारा अपनायी गई नीति के कारण उसे कोयला खदानों से प्रतिवर्ष 815 करोड़ रुपयों की राजस्व आय मिलना सुनिश्चित है।
यहां दो सवाल प्रमुखता से उभर रहे हैं। एक, जो बात मध्य प्रदेश सरकार को समझ में आयी तथा राज्य के हित को देखते हुए जिस पर अमल किया गया, वह बात महाराष्ट्र सरकार की समझ में क्यों नहीं आयी? दूसरी बात, गत कई वर्षों से समूचे महाराष्ट्र में बिजली की कमी को ध्यान में रखते हुए राज्य में मौजूद कोयला खदानों का वितरण महाराष्ट्र बिजली निर्माण निगम को सौंपने की बजाय कुछ निजी कम्पनियों को क्यों सौंपा गया? इन सारी बातों को रेखांकित करते हुए सांसद हंसराज अहीर ने राज्य के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण से शिकायत की है। पर मुख्यमंत्री ने चुप्पी साधे रखना ही पसंद किया। दरअसल चुप्पी साधे रखना मुख्यमंत्री चव्हाण की मजबूरी बन गयी है। इसका मुख्य कारण है राज्य के कांग्रेसी नेताओं तथा मंत्रियों का कोयले के काले कारोबार में शामिल होना। इसमें मुख्य रूप से शामिल हैं राज्य से कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य तथा 'लोकमत' पत्र के प्रमुख विजय दर्डा, उनके भाई व राज्य सरकार में मंत्री राजेन्द्र दर्डा तथा राज्य के सार्वजनिक निर्माण मंत्री छगन भुजबल। दर्डा बंधुओं द्वारा कोयले से की गई काली कमाई की चर्चा के बाद अब छगन भुजबल के काले कारनामों को भाजपा नेता तथा पूर्व सांसद किरीट सोमैय्या ने सार्वजनिक किया तथा वे सभी तथ्य सीबीआई को सौंपने का सराहनीय कार्य किया है।
भाजपा का वार
किरीट सोमैय्या के अनुसार केवल महाराष्ट्र में ही एक लाख करोड़ रुपए से भी अधिक के इस कोयले के काले कारोबार में महाराष्ट्र के कांग्रेसी नेताओं तथा 6 मंत्रियों की सीधी हिस्सेदारी है। इनके माध्यम से 168 निजी प्रतिष्ठान विशेष रूप से लाभान्वित हुए हैं। किरीट सोमैय्या ने इन सारे काले कारनामों से संबद्ध 12 हजार पृष्ठों का जो प्रतिवेदन सी.बी.आई. को सौंपा है, उसमें राज्य के सार्वजनिक निर्माण मंत्री तथा राष्ट्रवादी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता छगन भुजबल द्वारा संचालित आर्मस्ट्रांग एनर्जी नामक कम्पनी के बंद होने के बावजूद उसका 10 रूपए का शेयर 8885 रुपए में बिकने का धमाका किया है। इसे 'व्यवसायिक अजूबा' बताते हुए किरीट सोमैय्या ने सी.बी.आई. को और भी साक्ष्य देने का भरोसा दिलाया है। राज्य की कोयला खदानों के वितरण-आवंटन के मामले में व्याप्त भ्रष्टाचार में राज्य के शिक्षा मंत्री राजेन्द्र दर्डा तथा सार्वजनिक निर्माण मंत्री छगन भुजबल के स्पष्ट रूप से सामने आने के बाद विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष एकनाथ खडसे ने मांग की है कि दोनों मंत्रियों को अपने पदों से त्यागपत्र दे देना चाहिए। भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष सुधीर मुनगंटीवार ने इसी मुद्दे पर समूचे राज्य में व्यापक जन-आंदोलन छेड़ने की चेतावनी दी है।
पैसा है, पर विकास करना नहीं आता
प. बंगाल/बासुदेब पाल
एक ओर प. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी लगातार आरोप लगा रही हैं कि केन्द्र सरकार से राज्य सरकार को पैसा नहीं मिल रहा है, दूसरी तरफ सचाई यह है कि राज्य के 100 से अधिक विधायक अपनी क्षेत्रीय विकास निधि को भी खर्च नहीं कर पाते हैं। इन विधायकों में कैबिनेट के मंत्री भी शामिल हैं। प. बंगाल में नियमानुसार प्रत्येक विधायक को अपने निर्वाचन क्षेत्र के विकास के लिए प्रतिवर्ष 60 लाख रुपए आवंटित किए जाते हैं। पिछले वर्ष राज्य में सत्ता परिवर्तन के बाद से अब तक राजकीय कोष से विधायक निधि के लिए इस योजना के अन्तर्गत 226 करोड़ 20 लाख रुपए का अनुमोदन किया गया। इस साल के सितम्बर माह तक राज्य योजना एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन विभाग द्वारा दिए गए आंकड़ों के अनुसार राज्य के एक मनोनीत विधायक सहित 295 विधायकों ने कुल 48 करोड़, 28 लाख, 18 हजार रुपए ही अपने क्षेत्र के विकास के लिए खर्च किए। यह कुल आवंटित विधायक निधि का मात्र 21.34 प्रतिशत ही है।
ये हैं वे 'माननीय'
राज्य योजना एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन विभाग के एक उच्च अधिकारी ने बताया कि प्रचलित रीति के अनुसार दो किस्तों में हर 6 महीने के बाद विधायक निधि का अनुमोदन किया जाता है। पहली छमाही में आवंटित धन का उपयोग प्रमाण-पत्र तथा कार्य वृद्धि प्रमाण पत्र मिलने के बाद ही दूसरी किस्त के धन का आवंटन करने हेतु अनुमोदन किया जाता है। गत वर्ष सत्ता परिवर्तन और ममता बनर्जी सरकार द्वारा कार्यभार संभालने के बाद जुलाई एवं सितम्बर महीने में कुल 60 लाख रुपए विधायक निधि हेतु आवंटित किए गए। लेकिन 11 सितम्बर तक 100 विधायकों ने 60 लाख रुपए का आधा यानी 30 लाख रुपए का भी उपयोग प्रमाण पत्र नहीं दिया। इस सूची में राज्य के कई मंत्री भी शामिल हैं, इनके नाम हैं- सुब्रत मुखर्जी, पूर्णेन्दु बसु, ज्योतिप्रिय मलिक, गौतम देव, जावेद खान और रचपाल सिंह। 60 लाख में से सुब्रत बाबू ने 8 लाख रु. मात्र, ज्योतिप्रिय मलिक ने 26.15 लाख रु., गौतम देव ने 10.32 लाख रुपए के खर्च का ही हिसाब दिया। श्रम मंत्री पूर्णेन्दु बसु ने तो हिसाब ही नहीं दिया। आवंटित धन में से आधा खर्च तो किया, पर उपयोग प्रमाण पत्र देने में विफल रहे, ऐसे माकपा के दो चर्चित विधायक हैं अब्दुल रज्जाक मोल्ला एवं सुशान्त घोष।
तर्क कैसे-कैसे?
किसी भी योजना का काम अगर समाप्त होने में देरी हो तो, उस योजना का खर्च बढ़ जाता है। शायद इसीलिए जानबूझकर काम में देरी की जाती है। पर विधायक निधि खर्च करने में नाकाम रहे विधायक ही इसे महत्व नहीं देते। बालीगंज के विधायक एवं राज्य के पंचायत और ग्रामोन्नयन मंत्री सुब्रत मुखोपाध्याय ने कहा- 'विविध कामों के लिए कोलकाता महानगर निगम के कुछ स्कूलों एवं क्लबों को विधायक निधि से रुपया दिया। बाद में उन्होंने समस्याओं के बारे में बताया, देखना पड़ेगा कि क्या समस्या है।' राजारहाट-गोपालपुर के विधायक एवं श्रममंत्री पूर्णेन्दु बसु ने कहा कि माकपा द्वारा संचालित नगर पालिका के कारण छह महीने तक काम हुआ ही नहीं। अभी स्कूलों में पीने के पानी, स्ट्रीट लाइट और अन्य दूसरे कामों हेतु पैसा दिया गया है, काम चल रहा है। एक महीने के अन्दर उपयोग प्रमाण पत्र दे सकूंगा। उत्तरबंग उन्नयन मंत्री एवं जलपाईगुड़ी के डावग्राम के विधायक गौतम देव ने तो राज्य के सार्वजनिक निर्माण विभाग की ओर ही अंगुली उठा दी। कहा, 'मेरे इलाके में सड़क और पुल बनाने का काम सार्वजनिक निर्माण विभाग कर रहा है। उन्होंने उपयोग प्रमाणपत्र नहीं दिया, इसीलिए मैंने भी नहीं जमा कराया।' बांकुड़ा के रादूपुर के विधायक उपेन किस्कु ने सारी जिम्मेदारी जिला प्रशासन माकपा के ऊपर डाल दी।
और तो और, राज्य योजना एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन विभाग के अनुसार स्वयं मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को विधायक निधि हेतु 90 लाख रुपए मिले थे। 11 सितम्बर तक वे मात्र 26 लाख रुपए ही खर्च कर पायीं। उद्योगमंत्री पार्थ चट्टोपाध्याय को भी 90 लाख रुपए मिले थे, उन्होंने भी 25 लाख रुपए का ही हिसाब दिया है। उधर केन्द्रीय मंत्री सुबोध कान्त सहाय ने कहा कि पिछले तीन साल में पश्चिम बंगाल को केन्द्र द्वारा आवंटित 134 करोड़ 90 लाख रुपए राज्य सरकार खर्च नहीं कर पायी है।
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