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लोकसभा में बहस के दौरान समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव उस रूप में दिखे कि विपक्ष के प्रस्ताव के समर्थन में अंत तक खड़े रहेंगे। बोले भी, 'आप (सत्ता पक्ष/कांग्रेस) कितनी भी सफाई दें, कितने भी तर्क दें, पर एफडीआई देश के हित में नहीं है। इससे 27 करोड़ लोग बेरोजगार हो जाएंगे। गांधी, लोहिया, जयप्रकाश होते तो एफडीआई लाने की किसी की हिम्मत न होती।' चूंकि मायावती लोकसभा की सदस्य नहीं है, इसलिए उनकी पार्टी बसपा के नेता दारा सिंह चौहान ने उनका पक्ष कुछ यूं रखा, 'अंग्रेजों ने मसाले के कारोबार के नाम पर यहां आकर 200 वर्षों तक राज किया। मल्टीब्रांड रिटेल में एफडीआई उसी का एक रूप है। एफडीआई की इजाजत देना गांधी जी का अपमान है।' पर विपक्ष के प्रस्ताव के विरुद्ध जब केन्द्रीय वाणिज्य मंत्री सरकार का पक्ष रख रहे थे तो उनके जवाब से असंतुष्ट होकर पूर्व निर्धारित रणनीति के तहत मायावती की पार्टी के सदस्य सदन से बर्हिगमन कर गए और जवाब पूरा सुनकर मुलायम अपने साथियों के साथ बाहर आ गए। इस तरह दोनों ही दल मतदान से अलग हो गए और सरकार को राहत पहुंचाई।
विपक्ष के प्रस्ताव का समर्थन न करके, मतदान से बचकर और उससे सरकार को बचाकर भी मुलायम सिंह यादव ने क्या बयान दिया, जरा पढ़िए, 'विदेशी ताकतों के दबाव में सरकार ने यह फैसला लिया है। इससे किसानों और व्यापारियों की बर्बादी तय है। सरकार द्वारा किसानों-व्यापारियों की उपेक्षा की जा रही थी इसलिए हम बहस बीच में ही छोड़कर बाहर आ गए। उधर लोकसभा में मतदान के दौरान अनुपस्थित रहकर सरकार को बचाने वाली मायावती पार्टी के सामने राज्यसभा में आंकड़े का संकट दूर करने के लिए सरकार ने सीबीआई का चाबुक चलाया तो मायावती ने घोषणा कर दी कि वह एफडीआई पर सरकार के साथ हैं। तर्क यह कि 'इसे राज्यों के निर्णय पर छोड़ दिया गया है कि वे इसे लागू करें या नहीं। फिर हानि क्या है।' पर राज्यों के लागू करने या न करने पर पाबंदी तो पहले भी नहीं थी, फिर लोकसभा से बर्हिगमन क्यों? वहां भी सत्ता पक्ष के साथ क्यों नहीं खड़ी रही आपकी पार्टी? पर इसका जवाब इनसे मिलने की उम्मीद मत रखिए। हां, सिर्फ मायावती के समर्थन के कारण ही मनमोहन सरकार राज्यसभा में अपनी नाक बचा पाई। यदि मायावती की बसपा के 15 सांसदों ने सरकार के साथ मतदान न किया होता तो नियम 167-168 के तहत विपक्ष के प्रस्ताव के समर्थन में 109 के मुकाबले कांग्रेस को 123 मत नहीं, बल्कि 108 मत मिलते। बसपा के 15 सांसद कम होने से सरकार अल्पमत में होती और एक वोट से पराजित होती। पर इस ' एक वोट की चोट' से देश का किसान, मजदूर, व्यापारी और बेरोजगार कराहने को मजबूर होगा।
पल–पल बदलता राग
0 मायावती– जनता के बीच
'हम खुदरा बाजार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के पक्ष में नहीं हैं।
लोकसभा में दारा सिंह चौहान
यह ईस्ट इंडिया कंपनी का ही दूसरा रूप है। हम एफडीआई का समर्थन नहीं करते।
राज्यसभा में मायावती
चूंकि राज्यों पर इसे लागू करने की पाबंदी नहीं है, इसलिए हम सरकार के पक्ष में मतदान करेंगे।
0 मुलायम सिंह यादव– जनता के बीच
इससे किसान-बेरोजगार तबाह हो जाएंगे, व्यापारी बर्बाद हो जाएंगे।
लोकसभा में
यदि गांधी, लोहिया, जेपी होते तो एफडीआई की सोच भी नहीं सकते थे।
बहिर्गमन के बाद सदन के बाहर
यह सरकार विदेशियों के दबाव में है।
राज्यसभा में (रामगोपाल यादव)
हम सरकार के इस निर्णय का विरोध करते हैं लेकिन लोकसभा की तरह राज्यसभा में भी वाकआउट करेंगे।
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