पासपोर्ट पर अरुणाचल और अक्साई चिन अपने दिखाए!
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आलोक गोस्वामी
पासपोर्ट पर अरुणाचल और अक्साई चिन अपने दिखाए!
सयाने चीन ने भारत के नक्शे को लेकर फिर से एक नया बखेड़ा खड़ा कर दिया है। पिछले कुछ समय से वह नए जारी होने वाले ई. पासपोर्टों पर चीन का जो नक्शा मुहर के रूप में छाप रहा है उसमें अरुणाचल प्रदेश और अक्साई चिन को अपने इलाके दर्शा रहा है। कुछ हफ्ते पहले चीन की यह हरकत भारत के विदेश विभाग की जानकारी में आई। भारत ने भी चीन की इस एकतरफा मनमानी का जवाब देते हुए नए निर्देश जारी किए हैं, जिनके तहत बीजिंग स्थित भारतीय दूतावास चीनी नागरिकों को जो नए वीसा जारी कर रहा है उन पर भारत का नक्शा है जिसमें अरुणाचल प्रदेश और अक्साई चिन बाकायदा भारत के हिस्से दर्शाए गए हैं।
ध्यान देने की बात है कि चीन ने पहले भी जम्मू-कश्मीर के निवासियों को 'स्टेपल' वीसा दिए थे और इसके पीछे वजह बताई थी कि जम्मू-कश्मीर 'विवादित क्षेत्र' है। उसने तब अरुणाचल प्रदेश वालों को वीसा देने से भी इनकार किया था। भारत ने तब भी चीन की उस हरकत का पुरजोर विरोध करते हुए चीन को अपनी कड़ी आपत्ति दर्ज कराई थी। उसके बाद चीन ने जम्मू-कश्मीर के निवासियों को बिना छेड़छाड़ किए वीसा देने बहाल किए थे।
अक्साई चिन और अरुणाचल प्रदेश की चीन के साथ 1030 किमी. की बिना बाड़ की सीमा सटी है। भारत और चीन ने 1993 और 1996 में करारों पर दस्तखत करके वास्तविक नियंत्रण रेखा का सम्मान करने के वायदे किए थे। लेकिन चीन जब-तब उस वायदे से मुकर जाता है और उसके पीछे सीमाओं का 'पुख्ता सीमांकन' न होने को वजह बताता है। इस बीच खबर है कि भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिवशंकर मेनन सीमा विवाद पर बातचीत के अगले दौर के लिए जल्दी ही बीजिंग जाने वाले हैं।
चीन ने ऐसी ही हरकत फिलिपीन्स और विएतनाम के साथ भी की है। उसने इन देशों के कुछ टापुओं और दक्षिण चीन सागर की उनके हिस्से की जलराशि को अपनी सीमाओं में दिखाया है। जहां भारत ने अरुणाचल और अक्साई चिन पर चीनी चाल का कूटनीतिक तरीके से जवाब देने का रास्ता अपनाया, वहीं फिलिपीन्स और विएतनाम ने रत्तीभर लचीला रुख न दिखाते हुए चीन को तुरन्त कड़ी आपत्ति दर्ज कराई। ऐसी हरकतों पर तीखा विरोध उठने पर चीनी विदेश विभाग के प्रवक्ता हुआ चुनयिंग ने कहा कि नए पासपोर्ट 'अंतरराष्ट्रीय मानकों पर आधारित' हैं। लेकिन चीन के इस जवाब से फिलिपीन्स और विएतनाम की त्योरियां और चढ़ गई ½éþ*l
कारगिल शहीद के पिता की गुहार
'कैप्टन कालिया को यातना देने वाले पाकिस्तानी फौजी दंडित हों'
कारगिल शहीद कैप्टन सौरभ कालिया की जांबाजी को कौन भुला सकता है? अपनी पहली ही तैनाती में कारगिल में मई 1999 में वे काक्सर इलाके में गश्त लगाते हुए पाकिस्तानी सेना द्वारा पकड़ लिए गए थे, लेकिन दुश्मन की बर्बर यातनाओं के बावजूद उन्होंने अपनी टुकड़ी के बारे में नहीं बताया था। वे 22 दिन बंधक रहे और अंतत: 9 जून 1999 को जब उस शहीद की मृत देह पाकिस्तानी सेना ने भारत को सौंपी थी तब उनके साथ हुए पाशविक व्यवहार का कुछ अंदाजा लगा था और पाकिस्तानी फौजियों की क्रूरता साबित हुई थी। आज उनके आहत पिता सरकार को ढेरों चिट्ठियां लिखने और उनका कोई जवाब न पाने से खिन्न होकर सर्वोच्च न्यायालय में गुहार लगाने को मजबूर हुए हैं। उनकी एक ही मांग है कि उनके बेटे को यातना देने वाले पाकिस्तानी फौजियों की पहचान करके उन्हें अंतरराष्ट्रीय संधि का उल्लंघन करते हुए कैप्टन कालिया को यातनाएं देने के लिए सजा दी जाए।
शहीद कैप्टन सौरभ कालिया के पिता, एक सेवानिवृत्त वैज्ञानिक, डा. एन.के. कालिया ने सर्वोच्च न्यायालय के माध्यम से मांग की है कि भारत का गृह मंत्रालय और विदेश मंत्रालय इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस से उस यातना की तहकीकात करने के लिए कहें जिसकी वजह से उनका बेटा शहीद हुआ। भारत सरकार पाकिस्तान पर उन दोषी फौजियों को सजा देने का दबाव बनाए जिन्होंने कैप्टन कालिया को बर्बर यातनाएं दीं। डा. एन.के. कालिया भारत सरकार के इस दिशा में लापरवाह रवैए से दुखी होकर अदालत की शरण में गए हैं ताकि पाकिस्तान के युद्ध अपराधों का निशाना बने भारतीय जांबाजों को न्याय दिलाया जा सके।
कैप्टन सौरभ कालिया 4 जाट रेजीमेंट के बहादुर जवान थे जो मृत्यु को सामने देखकर भी कर्तव्य पथ से नहीं डिगे थे। लेकिन भारत सरकार के पास शायद वक्त नहीं है कि अपने देश की आन-बान-शान की रक्षा में शहीद होने वालों और उनके माता-पिताओं की टीस समझे! l
थाईलैंड के शिक्षकों ने सरकार से कहा–
'हमें इस्लामी उग्रवादियों से बचाओ'
थाईलैंड के दक्षिणी सूबे पत्तनी के स्कूलों में ताले पड़े हैं। वहां के शिक्षकों ने साफ कह दिया है कि जब तक सरकार मुस्लिम उग्रवादियों के हमलों से उनकी सुरक्षा की गारंटी नहीं देती तब तक सूबे के तमाम प्राइमरी स्कूल बंद रहेंगे। पत्तनी सूबे के 332 स्कूलों के अध्यापक संघ के प्रमुख बूनसोम तोंगस्रीपलाई का कहना है कि स्कूल तब तक बंद ही रहेंगे जब तक सरकार शिक्षकों की सुरक्षा को लेकर उनमें भरोसा नहीं जगाती। अभी पिछले हफ्ते ही सूबे के नोंगचिक जिले में एक महिला प्रधानाचार्या की हत्या कर दी गई थी।
थाईलैण्ड बौद्ध बहुल देश है, लेकिन पत्तनी, नाराथिवाट और याला वे सूबे हैं जहां मुस्लिमों की बहुतायत है। 2004 से इन सूबों को इस्लामी उग्रवाद ने निशाना बनाया हुआ है और इसमें अब तक 5000 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं। तीनों सूबों में 1305 स्कूल हैं जिनके शिक्षकों को फौजी काफिले में घर से स्कूल और स्कूल से घर लाया ले-जाया जाता रहा है। कई बार रास्ते में फौजियों के काफिले पर ही इस्लामी उग्रवादी हमले बोल चुके हैं।
आखिर मजहबी उन्मादियों ने वहां स्कूल के शिक्षकों पर खास निशाना क्यों साधा हुआ है? वह इसलिए क्योंकि वे सरकार के प्रतीक हैं और इसलिए भी क्योंकि उनके स्कूलों में बौद्ध बच्चे पढ़ने आते हैं, जिनके घर-परिवार वहीं आस-पास रहते हैं, तो स्कूलों के शिक्षकों पर हमले करके इस्लामी उग्रवादी स्कूल बंद कराना और इलाके के बौद्धों को डराकर उनको वहां से जान बचाकर भाग खड़े होने को मजबूर करना चाहते हैं। ताकि फिर पूरे इलाके में बचें तो बस मुसलमान ही मुसलमान। l
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