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'धर्मनिरपेक्ष' नहीं पंथनिरपेक्ष
दीपावली विशेषांक बेहद अच्छा लगा। धर्माचार्यों और विद्वानों के विचारों के सुसज्जित यह अंक जनमानस को आशावान बनाने में सहायक होगा। संवाद की ये पंक्तियां मस्तिष्क को मथने वाली हैं, 'हम एक-दूसरे की आंखों में धूल झोंक सकते हैं, नियति की नहीं। स्वामी विवेकानन्द की वाणी हमें याद रखनी होगी कि भारत उठेगा, लेकिन भौतिक समृद्धि के बल पर नहीं, आध्यात्मिक चेतना के सहारे। हमारी वह आध्यात्मिक चेतना ही 'स्व' का बोध है। इस 'स्व' को विस्मृत करने से ही हमारा नैतिक पतन होता है।'
–विजय कुमार कोहली
सी-3ए/39 बी, एम.आई.जी. फ्लैट, जनकपुरी
नई दिल्ली-110058
द यह अंक लोककल्याण को समर्पित है। पूज्य विजय कौशल जी महाराज बिल्कुल सही कह रहे हैं बेदाग नेतृत्व चाहिए जिससे अच्छा वातावरण बने। सुन्दर और ज्ञानवर्धक अंक के लिए पाञ्चजन्य परिवार को बधाई!
–हरिहर सिंह चौहान
जंवरीबाग नसिया, इन्दौर-452001 (म.प्र.)
गलत अर्थ
जगद्गुरु स्वामी रामभद्राचार्य जी महाराज ने अपने लेख 'राम-सापेक्ष राष्ट्रवाद बने परिवर्तन का आधार' में जो बातें लिखी हैं उनसे मैं पूरी तरह सहमत हूं। आज देश में सेकुलरवाद का गलत अर्थ लगाया जा रहा है। इसका अर्थ होता है 'पंथनिरपेक्षता' पर नेता धर्मनिरपेक्षता कहते हैं। साधारण आदमी भ्रम में है। वह किसे सही माने और किसे गलत? सेकुलर नेता सेकुलरवाद की आड़ में समाज में द्वेष पैदा कर रहे हैं। महाराज जी ने उचित ही कहा है कि इस सेकुलरवाद के कारण ही देश अपने क्रांतिकारियों की अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतर रहा है।
–मनीष कुमार
तिलकामांझी, भागलपुर (बिहार)
केवल धन की प्राप्ति
प्रो. ब्रजकिशोर कुठियाला का आलेख 'भारतीय मूल्यों पर आधारित वैकल्पिक मीडिया' तथ्यपूर्ण है। मीडिया का दायित्व केवल समाचार देना नहीं, बल्कि समाज को जागरूक तथा संवेदनशील बनाना है। वर्तमान में सेकुलर मीडिया का उद्देश्य केवल धन कमाना रह गया है। देश की संस्कृति और विरासत से दूर टी.वी. चैनल पैसे के लिए ही नारी देह का लज्जापूर्ण दर्शन कराते हैं और हिन्दी भाषा को भी भ्रष्ट कर रहे हैं। इस मानसिकता से उबरना जरूरी है।
–मनोहर 'मंजुल'
पिपल्या–बुजुर्ग, प. निमाड़-451225(म.प्र.)
बेखौफ कट्टरवादी
श्री देवेन्द्र स्वरूप ने प्रश्न उठाया है कि क्या खण्डित भारत अखण्ड रह पाएगा? ऐसे अनेक प्रश्न उन लोगों को भी परेशान कर रहे हैं, जो आएदिन देश की बिगड़ती हालत से जूझ रहे हैं। कट्टरवादी बेखौफ घूम रहे हैं और समाज में भय पैदा कर रहे हैं। दिल्ली, गाजियाबाद, हैदराबाद मुम्बई आदि शहरों में जो हुआ है उसका मकसद समाज में भय पैदा करना ही था। दुर्भाग्य से हमारे सेकुलर नेता उन घटनाओं पर चुप हो जाते हैं।
–विकास कुमार
शिवाजी नगर, वडा, जिला–थाणे (महाराष्ट्र)
द जिस तुष्टीकरण का बीजारोपण नेहरू-गांधी ने किया वह अब भारत को विनाश की तरफ मजबूती से धकेलने लगा है। सत्तालोलुप हिन्दू नामधारी विभिन्न दलों के नेता अपना 'स्व' खो चुके हैं। इस विषम परिस्थिति में स्वामी विवेकानन्द के आदर्शों और उद्घोषों को ध्यानपूर्वक देखना होगा। अमरीका की धरती पर उन्होंने कहा था, 'गर्व से कहो हम हिन्दू हैं।' इस महान उद्घोष के पीछे उनकी मंशा थी हिन्दुओं के जागृत होने से ही भारत सहित दुनिया का भला है।
–क्षत्रिय देवलाल
उज्जैन कुटीर, अड्डी बंगला, झुमरी तलैया कोडरमा-825409 (झारखण्ड)
द तुष्टीकरण की राजनीति ने भारत को कमजोर कर दिया है। 80 प्रतिशत हिन्दू होते हुए भी देश में मुस्लिमों और ईसाइयों की मनमानी चल रही है। वे जो करना चाहते हैं, कर रहे हैं, जो मांगना चाहते हैं मांग रहे हैं। दुर्भाग्य से उनकी मांगें भी मानी जा रही हैं। इस हालत में भारत अखण्ड कैसे रहेगा? सरकार ही इस देश के साथ द्रोह कर रही है, जो अत्यन्त पीड़ादायक है।
–प्रमोद प्रभाकर वालसंगकर
1-10-81, रोड नं.-8बी, द्वारकापुरम दिलसुखनगर, हैदराबाद-500060(म.प्र.)
द जब भारत का बंटवारा हुआ था उस समय से आज मुस्लिमों की संख्या तेजी से बढ़ रही है और हिन्दुओं की घट रही है। नसबन्दी हिन्दू ही करा रहे हैं। सेकुलर भी हिन्दुओं की आबादी को घटाने पर जोर दे रहे हैं। याद रखिए जब तक इस देश में हिन्दू बहुसंख्यक हैं तब तक यह पंथनिरपेक्ष है। हिन्दुओं की संख्या कम होने के बाद यहां पंथनिरपेक्षता नहीं रहेगी।
–राधेश्याम सोनी
जे एन बी, खैराबाद, सीतापुर (उ.प्र.)
द पाञ्चजन्य से बहुत कुछ जानकारी मिलती है। कई बार पाकिस्तानी हिन्दुओं की व्यथा पढ़ने को मिली। परन्तु मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि पाकिस्तान में हिन्दू अल्पसंख्यक होकर दु:खी हैं, पर हम अपने ही देश में बहुसंख्यक होकर भी पीड़ित हैं, भगवान भरोसे जी रहे हैं। सेकुलरों ने हिन्दू-विरोध को ही अपनी राजनीतिक सफलता का पैमाना मान लिया है।
–चन्द्रशेखर अग्रवाल
12/214, मेन मार्केट, धनपुरी, जिला–शहडोल (म.प्र.)
पाञ्चजन्य पढ़ने का सौभाग्य
प्रत्येक सप्ताह मुझे पाञ्चजन्य पढ़ने का सौभाग्य मिलता रहता है। देशहित से जुड़े हर विषय और हर घटना का अच्छा विवरण पाञ्चजन्य से प्राप्त होता है। किसी-किसी विषय की इतनी अच्छी जानकारी मिलती है कि मन प्रफुल्लित हो जाता है।
–वेदप्रकाश कुमार
सी-7/72, ईस्ट आफ कैलाश, नई दिल्ली-65
कथनी–करनी में फर्क
कुछ समय पहले प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने कहा था, 'पैसे पेड़ पर नहीं उगते।' उनकी कथनी और करनी में बहुत बड़ा अन्तर है। पिछले वर्ष उनके पास 5 करोड़ रु. की सम्पत्ति था और इस वर्ष साढ़े 10 करोड़ की संम्पत्ति उनके पास कैसे हो गई? क्या प्रधानमंत्री के हाथ कुबेर का खजाना लग गया? पिछले दिनों उन्होंने 375 नेताओं को भोज दिया। उस भोज में एक थाली की कीमत 7721 रु. थी। एक भोज में प्रधानमंत्री ने 28 लाख रु. खर्च कर दिए। वही हमें उपदेश देते हैं कि 26 रु. में दिनभर का काम चलाओ।
–डा. वीरेन्द्र सिंह बिष्ट
लोहनी निवास, टनकपुर चम्पावत-262309 (उत्तराखण्ड)
त्रिभाषा सूत्र लागू हो
भारतीयता, देश की भाषाओं, संस्कृति और परम्पराओं पर जिस प्रकार से प्रहार हो रहा है और हम सब अपने आपको और अपने राष्ट्रीय इतिहास को भूल कर पूरी तरह से पाश्चात्य संस्कृति में रंग रहे हैं। ऐसा गुलामी के दिनों में विदेशी शासक भी नहीं कर पाये थे। विद्यालयी शिक्षा के क्षेत्र में जहां भारतीय भाषाओं विशेष रूप से हिन्दी, संस्कृत, पंजाबी, बंगला, मराठी, गुजराती, तमिल, तेलुगू, मलयालम को समाप्त कर केवल अंग्रेजी का प्रभुत्व बढ़ाया जा रहा है। साथ ही फ्रेन्च, जर्मन, जापानी, स्पेनिश भाषाओं का शिक्षण केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, दिल्ली शिक्षा निदेशालय और निजी विद्यालयों द्वारा योजनाबद्ध किया जा रहा है। यह एक दिन उसी प्रकार से घातक सिद्ध होगा जैसा कि लार्ड मैकाले की नीति ने गुलामी के दिनों में भारतीय संस्कृति और भाषाओं को समाप्त किया था और राबर्ट क्लाइव ने अपने देश के उत्पादनों और भारत के स्वावलम्बन और कृषि को परावलम्बी बनाने के लिए गायों की संख्या कम करने के लिए कसाई खाने खुलवाये। और धीरे–धीरे गायों की संख्या कम होने लगी, जबकि 1757 में जनसंख्या से गायों की संख्या 30 प्रतिशत अधिक थी। ठीक यही स्थिति आज विद्यालयी शिक्षा में उत्पन्न होती जा रही है।
भारत सरकार ने राष्ट्रीय एकता हेतु और भारतीय भाषाओं के समन्वय के लिए 1968 में 'त्रिभाषा सूत्र' विद्यालयी शिक्षा में निर्धारित किया। जिसमें (1) भारतीय भाषा/मातृभाषा (2) राष्ट्रभाषा हिन्दी (3) कोई भी अन्य भाषा अंग्रेजी, संस्कृत, फ्रेंच, जर्मनी, जापानी। उसके पीछे मुख्य उद्देश्य था उत्तर भारतीय किसी दक्षिण की या दूसरी भारतीय भाषा का अध्ययन करें और दक्षिण भारतीय उत्तर की भाषाओं का अध्ययन करें। यही सब कुछ सोच समझ कर सरकार ने संसद में स्वीकृत कराकर दिल्ली विद्यालयी अधिनियम 1973 बनाया और उसके नियमानुसार कक्षा 10 तक त्रिभाषा सूत्र (तीन भाषाएं) पढ़ाना अनिवार्य किया। अनेक वर्षों तक सभी उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों में तीन भाषाएं पढ़ाई जाती रहीं। परन्तु निजी विद्यालयों के संचालकों ने अपने प्रभाव से केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड और दिल्ली शिक्षा निदेशालय से 10वीं कक्षा की परीक्षा में 2 भाषाओं का पढ़ना और उत्तीर्ण होना पाठ्यक्रम में निर्धारित करा लिया। इसका हिन्दी प्रेमियों ने विरोध किया तब शिक्षा निदेशालय ने त्रिभाषा सूत्र लागू कराने के निर्देश दिये थे। लेकिन तीसरी भाषा वैकल्पिक कर दी गई।
परन्तु शिक्षा निदेशालय धीरे–धीरे फिर लापरवाह हो गया। इसी का लाभ लेकर पब्लिक स्कूलों के साथ अनेक प्रतिष्ठित विद्यालयों ने धीरे–धीरे त्रिभाषा सूत्र को अपने विद्यालयों से हटा दिया। अंग्रेजी तो अनिवार्य रूप से पढ़नी है और दूसरी कोई और जिसमें विदेशी भाषा भी पढ़ानी शुरू कर दी। फलस्वरूप हिन्दी और भारतीय भाषाओं पर कुठाराघात शुरू हो गया, जो निरन्तर बढ़ता जा रहा है। आज अनिवार्य रूप से राष्ट्रभाषा हिन्दी पढ़ने वालों की संख्या घटकर 35 प्रतिशत तथा संस्कृत पढ़ने वालों की 18 प्रतिशत रह गई है। आशा है सरकार इस ओर ध्यान देगी।
–महेश चन्द्र शर्मा
ई-81, दयानन्द कालोनी, किशनगंज, दिल्ली-7
पञ्चांग
वि.सं.2069 तिथि वार ई. सन् 2012
मार्गशीर्ष कृष्ण 11 रवि 9 दिसम्बर, 2012
” ” 12 सोम 10 ” “
” ” 13 मंगल 11 ” “
” ” 14 बुध 12 ” “
मार्गशीर्ष अमावस्या गुरु 13 ” “
मार्गशीर्ष शुक्ल 1 शुक्र 14 ” “
” ” 2 शनि 15 ” “
(खरमास प्रारंभ)
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