|
राम मंदिर आंदोलन के शलाका पुरुष गोरक्षपीठाधीश्वर महंत अवेद्यनाथ का भरोसा राजनीतिज्ञों पर से उठ गया है। बेहद अस्वस्थ चल रहे 96 साल के महंत अवेद्यनाथ का कहना है कि राष्ट्रीय दलों से लेकर क्षेत्रीय दलों तक मुस्लिम तुष्टीकरण में विश्वास रखते हैं। इसलिए इनसे राम मंदिर के पक्ष में खड़े होने की उम्मीद करना अपने आपको धोखा देने के समान है। जब से मंदिर आंदोलन शुरू हुआ, भाजपा को छोड़कर किसी भी राजनीतिक दल ने हमारा समर्थन नहीं किया। फिर भी मैं कहना चाहूंगा कि मसले का राजनीतिक स्तर पर समाधान मुश्किल है। उन्होंने कहा कि इसलिए नहीं लगता है कि संसद के स्तर पर कानून बन सकेगा।
आपसी समझौते से मंदिर बनाने के सवाल पर उन्होंने कहा कि हमने किसी भी समय समझौते से इन्कार नहीं किया है लेकिन लाख टके का सवाल है कि क्या मुसलमान रामजन्मभूमि पर राममंदिर चाहेंगे? अगर हां तो समझौते की मेज पर बैठा जा सकता है। वे बताएं कि उसके बदले उन्हें क्या चाहिए। इसी के साथ उन्होंने यह भी साफ किया कि अगर मुसलमान ही नहीं, कोई भी यह चाहे कि परिसर में मंदिर और मस्जिद साथ-साथ बनें तो यह असंभव है। राम मंदिर के साथ मस्जिद कतई मंजूर नहीं है। अगर इससे इतर मुसलमान कुछ और चाहते हैं तो उन्हें बताना होगा। उन्होंने कहा कि ऐसे हालात में सर्वोच्च न्यायालय से ही हमें आशा है। पचास के दशक से राममंदिर आंदोलन चल रहा है, हिंदुत्व की प्रबल जनभावना के आगे सरकारें झुकती रही हैं। चूंकि सारे साक्ष्य हमारे समर्थन में हैं इसलिए हर स्तर पर विभ्न्न न्यायालयों के निर्णय हमारे पक्ष में आते रहे हैं। पिछले साल इलाहाबाद उच्च न्यायालय का फैसला भी हिंदुओं के पक्ष में ही आया। अब मामला सर्वोच्च न्यायालय में है। राम मंदिर के पक्ष में साक्ष्य अकाट्य हैं इसलिए हम आशा करते हैं कि राम मंदिर के पक्ष में उसका भी निर्णय आना चाहिए। इस सवाल पर कि अगर फैसला मंदिर के साथ मस्जिद का आया तो, उनका कहना था कि पहले ही हमने कहा कि मंदिर के साथ मस्जिद की बात हमें कतई मंजूर नहीं है।
टिप्पणियाँ