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बीते 26 नवंबर को अयोध्या के कारसेवकपुरम में विशाल संत सम्मेलन हुआ। रामजन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष महंत नृत्यगोपालदास समेत बड़ी संख्या में अयोध्या के संतों और महंतों ने इसमें हिस्सा लिया। सभी संतों ने राम मंदिर निर्माण के प्रति प्रतिबध्दता जताते हुए यह संकल्प दोहराया कि अयोध्या की शास्त्रीय सीमा में किसी भी मस्जिद का निर्माण स्वीकार नहीं करेंगे। विहिप संरक्षक श्री अशोक सिंहल को सभी संतों ने विश्वास दिलाया कि राम मंदिर के उनके प्रयासों को सभी संतों का सर्वथा समर्थन व आशीर्वाद प्राप्त है।
6 दिसंबर, 1992 से 6 दिसम्बर, 2012! पूरे 20 साल। तब रामजन्मभूमि परिसर स्थित गुलामी के प्रतीक बाबरी ढांचे को ढहा दिया गया था। इसकी आड़ में उत्तर प्रदेश की तत्कालीन कल्याण सिंह सरकार को बर्खास्त कर दिया गया था। केंद्र में सरकार थी कांग्रेस की। प्रधानमंत्री थे पी.वी. नरसिंह राव। बीते 20 सालों में सरयू में पानी काफी बह चुका है। केंद्र में कई सरकारें आईं, उत्तर प्रदेश में भी राजनीतिक परिवर्तन हुए।
तब भी तिरपाल अब भी तिरपाल
पिछले 20 सालों में अगर कुछ नहीं बदला है तो केवल रामलला का घर। जैसे पहले वह तिरपाल में रहते थे, वैसे ही अब भी तिरपाल में रहते हैं। अस्थाई मंदिर ही उनका आवास है। वही अवरोध, वही प्रतिबंध, वही बाधाएं। दर्शन करने में वही परेशानी। अयोध्या में प्रवेश करते ही रामलला मंदिर की ओर बढ़िए तो सबसे पहले सुरक्षा बलों की पूछताछ और जांच-पड़ताल से गुजरना पड़ता है। जैसे-तैसे मंदिर के मुख्य द्वार तक पहुंचे तो वहां दो-तीन बार गहन तलाशी के बाद अंदर प्रवेश की इजाजत। रामलला के पास तक पहुंचते ही भक्त हालांकि हर परेशानी को भूल जाता है, लेकिन उसे उनके दर्शन दूर से ही करने पड़ते हैं। वहां के पुजारी उसका चढ़ावा आदि रामलला के पास तक पहुंचाते हैं। उसकी इच्छा रहती है कि वह अपने रामलला का दर्शन नजदीक से करे। इसकी टीस संतों से लेकर अयोध्या आने वाले हर श्रद्धालु के मन में है। कार्तिक पूर्णिमा का अवसर हो, 14 कोसी या पंचकोसी परिक्रमा का अवसर या कोई अन्य त्योहार, अयोध्या आने वाले हर भक्त के मन में यह आकांक्षा होती है कि उसके रामलला का मंदिर भव्यता प्राप्त करे।
मजबूत है रामलला का पक्ष
पिछले साल अक्तूबर में इलाहाबाद उच्च न्यायालय का फैसला आया रामलला के पक्ष में। न्यायालय ने रामलला को पक्षकार माना और कहा कि केंद्र सरकार द्वारा अधिग्रहीत भूमि का एक तिहाई (बीच का हिस्सा) हिस्सा उनका है। न्यायालय ने निर्मोही अखाड़े और 'बाबरी मस्जिद' पक्षों की याचिकाओं को कालबाह्य मानते हुए खारिज कर दिया। दोनों का एक-एक तिहाई हिस्से पर अधिकार माना। प्रकारांतर से दो तिहाई हिस्सा हिंदू पक्ष को मिला। हालांकि इस पर उच्च न्यायालय ने रोक लगी दी है। विभिन्न न्यायालयों में रामलला के सखा त्रिलोकी नाथ पांडे कहते हैं कि यह रोक ठीक है, क्योंकि असल पक्षकार तो रामलला हैं और पूरा परिसर उनका ही है।
हर हाल में बनेगा मंदिर
हनुमान गढ़ी में महंत मनमोहन दास से मुलाकात हुई तो बेचैन दिखे, कहा, राम मंदिर का निर्माण हर हिंदू की अभिलाषा है। यह उसके स्वत्व से जुड़ा प्रश्न है। 20 साल हो गए, अब बहुत प्रतीक्षा हो गई। हिंदू समाज कितना बर्दाश्त करेगा? तब हिंदू समाज की एकजुटता से ढांचा ढहा था, अब मंदिर बनाने के लिए भी उसी एकजुटता की जरूरत है। उन्होंने कहा कि पिछले 20 साल में हिंदू समाज में मंदिर निर्माण को लेकर उत्सुकता बनी हुई है। अब समय आ गया है कि हिन्दू समाज फिर से एकजुट हो। अयोध्या स्थित रामबल्लभा कुंज के अधिकारी राजकुमार दास कहते हैं कि राम मंदिर बनेगा। उसके लिए अब शांतिपूर्ण तरीके से दबाव बनाने की जरूरत है। ऐसा दबाव बने जो केंद्र और प्रदेश सरकारों को बाध्य करे ताकि वे उसके पक्ष में खड़ी होने के लिए विवश हो जाएं। वह कहते हैं कि केंद्र में दृढ़ इच्छाशक्ति वाली सरकार चाहिए। रामलला तो हर हिंदू को प्राणों से भी प्यारे हैं। पिछली बार की तरह इस बार भी वरिष्ठ संतों के मार्गदर्शन में युवा संतों को आगे आने की जरूरत है।
अभी और कुर्बानी की जरूरत
रामभक्त देवन्द्र सिंह राठौर कहते हैं कि जिस दिन हिंदू समाज में एकजुटता आ जाएगी, उसी दिन मंदिर का रास्ता साफ हो जाएगा। एकजुटता के कारण ही 6 दिसंबर, 1992 को केंद्र सरकार की हिम्मत नहीं पड़ी कि वह ढांचा ढहाने का अभियान रोक पाए। मंदिर के लिए कोठारी बंधुओं सहित अनेक कारसेवकों का बलिदान आज भी प्रेरणा देता है कि राम मंदिर के लिए अभी और बलिदान की जरूरत है। अयोध्या-फैजाबाद में 'हिंदू हेल्पलाइन' के संयोजक गया प्रसाद तो मंदिर निर्माण को लेकर खासे उत्साहित हैं। वह कहते हैं कि राम मंदिर को लेकर संत समाज जो मार्गदर्शन देगा, उसी के अनुसार हिंदू युवा आगे काम करेंगे। ढांचा तो ढह चुका है, अब मंदिर बनाने की बारी है। 20 साल का समय बहुत होता है। मंदिर निर्माण की तैयारी चल रही है।
तैयारी तेज
राम मंदिर निर्माण की तैयारी देखनी हो तो अयोध्या आना होगा। दो प्रमुख केंद्र हैं तैयारी के। एक कारसेवकपुरम और दूसरा है श्रीराम कार्यशाला। कारसेवकपुरम में योजनाएं बनती हैं। कार्यशाला में मंदिर के लिए पत्थर तराशने का काम हो रहा है। देशभर से अयोध्या आने वाले भक्त रामलला के दर्शन करते हैं तो कार्यशाला और राम मंदिर के भव्य मॉडल को देखना नहीं भूलते। यहां आकर उनकी यह आशंका निर्मूल हो जाती है कि मंदिर नहीं बनेगा। यह देखकर कि कारीगरों द्वारा निरंतर पत्थरों को तराशने का काम हो रहा है, उनके मन को संतोष होता है। पास में ही एक स्थान पर करीब साढ़े तीन लाख रामशिलाएं भी रखी हैं, जिन्हें पूरे देश में 1989 में पूजा गया था। देश के कोने-कोने से पुजकर लाई गईं रामशिलाओं को देखकर भक्त प्रसन्न हो जाते हैं। इन भक्तों में कई ने उस समय इनको पूजा था। राजस्थान के कोटा से आईं फूलमती तो रामशिलाओं को देर तक निहारतीं रह गईं। यही हाल मॉडल देख रहे मध्य प्रदेश के राम प्रसाद और सूर्य प्रसाद का था। इन सभी का कहना था कि अब मंदिर बनने का उन्हें पूरी तरह विश्वास हो चुका है। साथ ही यह भी कहते हैं कि इस बार शांति से काम हो। शांति से ही मंदिर निर्माण को भव्य स्वरूप दिया जा सकेगा।
उत्साह में भारी बढ़ोतरी
न्यायालय में 'रामलला के सखा' त्रिलोकी नाथ पांडेय बताते हैं कि गत वर्ष उच्च न्यायालय के निर्णय के बाद देशभर के रामभक्तों में नये उत्साह का संचार हुआ है। बड़ी संख्या में भक्त यहां आते हैं, कार्यशाला देखते हैं, मॉडल देखते हैं, रामशिलाओं को नमन करते हैं। रामशिलाओं के तराशने आदि में हर माह करीब दो लाख रुपये का खर्च आता है। मॉडल के पास दानपात्र में पहले माह भर में करीब 30-35 हजार रुपये चढ़ावा आता था। पिछले साल उच्च न्यायालय के निर्णय के बाद उत्साह में बढ़ोतरी हुई है। धीरे-धीरे रामभक्तों की संख्या बढ़ रही है। चढ़ावा भी बढ़ने लगा है, अब करीब 80 हजार से लेकर एक लाख रुपये हर माह चढ़ावा आ रहा है। इससे पता चलता है कि मंदिर निर्माण को लेकर लोगों में कितना उत्साह है।
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