उ.प्र. बना उपद्रवी तत्वों का 'मुलायम क्षेत्र'
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उ.प्र. बना
उपद्रवी तत्वों का 'मुलायम क्षेत्र'
हृदयनारायण दीक्षित
उत्तर प्रदेश उपद्रवी तत्वों व आतंकवादियों का 'मुलायम क्षेत्र' हो गया है। प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार सिर्फ सात माह पुरानी है लेकिन साम्प्रदायिक हिंसा व दंगों की बाढ़-सी आ गई हैं। आम जन भयभीत है। सरकार के खुफिया तंत्र, पुलिस और प्रशासन-सभी असफल हो रहे हैं। फैजाबाद में हिंसा की प्रशासनिक विफलता पुलिस महानिदेशक के वक्तव्य से भी स्पष्ट हो चुकी है। पुलिस ने तुष्टीकरण नीति के चलते तुरंत कार्रवाई नहीं की। स्थिति बिगड़ती गयी और बात कर्फ्यू तक जा पहुंची।
ये कैसी मेहरबानी?
दरअसल साम्प्रदायिक आक्रामकता के बीज सपा की चुनावी घोषणाओं व नतीजों में ही हैं, सपा ने भारी बहुमत पाने का श्रेय मुस्लिम सम्प्रदाय को दिया था। सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने कहा कि यह सरकार मुसलमानों के कारण बनी है। सरकार के गठन के बाद से ही मुस्लिम सम्प्रदाय के लिए तमाम बजट खर्च करने की भी घोषणाएं हुईं। सरकार मुस्लिम सम्प्रदाय के उपद्रवी तत्वों पर भी मेहरबान हो गयी। ऐसे में मसूरी (गाजियाबाद) में उपद्रवी तत्वों ने एक थाने पर भी हमला किया, पर पुलिस वालों पर ही कार्रवाई हुई, हमलावरों पर ध्यान नहीं दिया गया। नतीजतन, उ.प्र. पुलिस अब निष्पक्ष कार्रवाई करने की मनोदशा में नहीं है।
सरकार ने अब मुकदमा वापसी की नई मुहिम शुरु की है। राजधानी लखनऊ, फैजाबाद, गोरखपुर व वाराणसी में भयंकर बम विस्फोट हुए थे। पूरा प्रदेश थर्रा गया था। पुलिस ने बहुत मेहनत की, तथ्य और साक्ष्य जुटाने में वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। पुलिस ने किसी निर्दोष को फंसाने के लिए यह मेहनत नहीं की थी। लेकिन न्यायालय को लिखे राज्य शासन के पत्र में पुलिस के आरोप पत्र को देखे बिना, बिना पढ़े और बिना जांच के ही आरोपियों को निर्दोष मान लिया गया है। शासन के पत्र में आरोपी लोगों को 'निर्दोष मुसलमान' कहा गया है। पुलिस ने उनके विरुद्ध आतंकवाद के साक्ष्यों के आधार पर ही न्यायालय में आरोप-पत्र दाखिल किए थे, वे मुस्लिम होने के कारण आरोपी नहीं बने, वे मुस्लिम होने के कारण ही निर्दोष भी नहीं हैं। अपराध शास्त्र, दंड विधान, दण्ड प्रक्रिया संहिता या अन्य कानूनी प्रक्रिया में पंथ-मजहब का कोई भेदभाव नहीं होता। सपा सरकार ने उन्हें 'निर्दोष मुस्लिम' बताकर वोट बैंक को संदेश दिया है कि सरकार आतंकवादी अभियुक्तों को भी मुस्लिम होने के कारण मुक्त करना चाहती है।
ये दरियादिली क्यों?
आतंकवाद के आरोपियों से मुकदमा वापस लेने की समाजवादी मुहिम खतरनाक है। न्यायालय ने भी इस पर आश्चर्य जताया है और कहा है कि आज मुकदमा वापसी और कल क्या इन्हें पद्मश्री मिलनी है? यह पाकिस्तानी आतंकी तत्वों का उत्साह बढ़ाने वाली कोशिश है। लेकिन सपा 2014 के लोकसभा चुनाव में इस सम्प्रदाय के थोक वोट चाहती है। सपा का लक्ष्य मुस्लिम वोट बैंक को रिझाना है। सभी मुसलमानों को आतंकवाद के आरोपियों से जोड़कर देखना पूरी तरह गलत है। लेकिन उन पर मुकदमा वापसी की घोषणा भर से मजहबी तत्व उत्साहित हैं। वे सोच रहे हैं कि आतंकवाद जैसे जघन्य अपराध में फंसे लोगों पर भी सरकार मेहरबान है तो हम पर भी मेहरबान होगी ही, आखिर सरकार हमारी अपनी है। उनके लिए उपद्रव करने का सुनहरा मौका है।
बम विस्फोटों के आरोपी आतंकी ही होते हैं। पाकिस्तानी आतंकवादियों को रास्ता दिखाने, रहने और आतंकी घटनाओं को अंजाम देने वाले कई लोग स्थानीय होते हैं। सरकार देशी आतंकियों की खोजबीन और धरपकड़ को अपना मुख्य कार्य नहीं मानती। सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने एक समय स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट आफ इंडिया (सिमी) जैसे खतरनाक संगठन की भी पैरोकारी की थी और तत्कालीन सिमी प्रमुख शाहिद बद्र पर बहराइच न्यायालय में चल रहे राष्ट्रद्रोह के मुकदमे की वापसी के लिए भी ऐसा ही एक सरकारी आवेदन दिया था।
सिमी का सच
सिमी एक आतंकवादी संगठन है। उ.प्र. के अलीगढ़ में 1977 में जन्मी सिमी का जाल अब पूरे देश में है। हालांकि अभी उस पर प्रतिबंध लगा है। सिमी की निगाह में भारत का संविधान इस्लाम विरोधी है। राष्ट्र-राज्य बकवास है, पंथ निरपेक्षता और हिन्दू-मुस्लिम भाईचारा बेकार और इस्लाम विरोधी है। उसकी दृष्टि में सभी गैरइस्लामी जन 'काफिर' हैं, दुनिया के सभी गैरइस्लामी विचार, सभ्यता और संस्कृतियां बेहूदा हैं। सिमी ने अपने मुखपत्र 'इस्लामिक मूवमेन्ट' (अध्याय 3, जनवरी 1992) में साफ लिखा था 'कोई भी राजनीतिक दल अपनी सेकुलरवादी घटिया विचारधारा के जरिए ठोस और सकारात्मक बदलाव नहीं ला सकता। असली बदलाव का एकमात्र रास्ता इस्लामी जीवन पद्धति है। इस आतंकवाद और सिमी पर 'मुलायम रुख' रखने वाले सेकुलर दल दया के पात्र हैं।
सपा की साम्प्रदायिक नीति
उ.प्र. की साम्प्रदायिक आक्रामकता सपा की तुष्टीकरण नीति का ही परिणाम है। साम्प्रदायिक हिंसा के सूत्रधार सार्वजनिक हैं। पुलिस और प्रशासन की जानकारी में हैं। मूल प्रश्न यह है कि हिंसा की शुरूआत करने वाले आक्रामक तत्व कानूनी कार्रवाई से क्यों नहीं डरते? वे बेखौफ क्यों हैं? सरकार ने सात माह के कार्यकाल में एक सम्प्रदाय को ही संरक्षण योग्य क्यों बताया गया है? राज्य शासन सबको संरक्षण देता है। राज्य को आपराधिक तत्वों पर कार्रवाई करते समय जाति और पंथ, मजहब का विचार नहीं करना चाहिए। लेकिन सपा सरकार लगातार एक सम्प्रदाय का ही स्तुतिगान कर रही है। पुलिस-प्रशासन सरकार की प्राथमिकता जान गया है। पुलिस-प्रशासन स्वाभाविक ही उपद्रवी तत्वों पर कार्रवाई से डरा हुआ है। गलती सपा सरकार की, लेकिन अब भाजपा पर आरोप लगाने की तैयारी है, और इसी के बहाने हिन्दू समाज पर। लखनऊ में एक सम्प्रदाय ने ही अराजकता फैलाई थी, दूसरा कोई पक्ष नहीं था। उपद्रवियों ने सरेआम कानून को चुनौती दी थी। पुलिस-प्रशासन मौन था। उपद्रवी लोहे के राड लिए हुए हिंसक थे, लेकिन उपद्रव रोकने की तत्परता किसी ने नहीं दिखाई। क्या कारण थे? पुलिस प्रशासन ने अपनी उपस्थिति को अनुपस्थिति जैसा क्यों बनाया? क्या पुलिस के पास साहस का अभाव था? बुनियादी वजह क्या थीं? सरकार ने इस अराजकता पर आज तक कोई ठोस कार्रवाई क्यों नहीं की? इलाहाबाद, कानपुर में भी ऐसा ही हुआ। लखनऊ, इलाहाबाद और कानपुर में एक सम्प्रदाय ही था, दूसरा था ही नहीं। वह एक सम्प्रदाय ही आक्रामक है। मथुरा-कोसीकलां के हमलावरों को बचाने और बहुसंख्यक समाज के पीड़ितों को फंसाने की सरकारी कार्रवाई दु:खद है। कांवडियों के साथ हुई आक्रामकता पर भी सरकार ने ध्यान नहीं दिया। जाहिर है कि प्रशासन उच्चस्तरीय मार्गदर्शन निर्देशों के चलते ही मूकदर्शक है।
सपा सरकार ने संदेश दिया है कि मुस्लिम सम्प्रदाय ही महत्वपूर्ण है। इसलिए बहुसंख्यक समुदाय भयभीत है। पुलिस बल ने सरकार का इशारा समझ लिया है। उसके मनोबल पर भी इसका बुरा असर पड़ा है। मजहबी सर्वोपरिता का सरकारी संदेश राज्य के गांव-गली तक फैल चुका है। इसी संदेश ने उपद्रवी तत्वों के हौसले बढ़ाए हैं और उन्हें बेखौफ किया है। भारत का स्वभाव समरसता है, साम्प्रदायिकता कतई नहीं। समाजवादी सरकार ही साम्प्रदायिकता बढ़ा रही है। राज्य की कानून व्यवस्था ध्वस्त है। सरकार ने साम्प्रदायिक सद्भाव को आघात लगाया है। उन्मादी हमलावर हैं, कानूनप्रिय बहुसंख्यक असुरक्षित हैं। सरकार ने जो बोया है, वही उगा है। एक सम्प्रदाय को विशेषाधिकार और बाकी का तिरस्कार और धिक्कार ही ताजा साम्प्रदायिक तनाव कारण है।
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