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श्री बड़ाबाजार कुमारसभा पुस्तकालय द्वारा द्वितीय 'राष्ट्रीय शिखर प्रतिभा सम्मान'
सामाजिक कार्यकर्ता को लक्ष्य प्राप्ति हेतु सतत् अग्रसर रहना चाहिए
–स्वामी सत्यमित्रानंद गिरि, संस्थापक, भारतमाता मंदिर, हरिद्वार
कोलकाता की सुप्रसिद्ध सामाजिक संस्था श्री बड़ाबाजार कुमारसभा पुस्तकालय द्वारा दिया जाने वाला 'राष्ट्रीय शिखर प्रतिभा सम्मान' इस वर्ष भारतमाता मंदिर, हरिद्वार (उत्तराखंड) के संस्थापक स्वामी सत्यमित्रानंद गिरि को दिया गया। संस्था ने यह सम्मान पिछले वर्ष से ही देना शुरू किया है।
संस्था की ओर से स्वामी सत्यमित्रानंद गिरि को सम्मानस्वरूप शॉल, श्रीफल और मानपत्र दिया गया। इस अवसर पर संबोधित करते हुए स्वामी सत्यमित्रानंद गिरि ने कहा कि समाज का काम करने वालों को निरंतर गतिशील रहना चाहिए और उनकी इस गतिशीलता में गंगा की तरह पवित्रता भी होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि सामाजिक कार्यकर्ता को मान–अपमान से ऊपर उठकर लक्ष्य प्राप्ति हेतु सतत् अग्रसर रहना चाहिए। कर्म के मार्ग पर चलते हुए परमात्मा का सदैव आश्रय लेना चाहिए। प्रभु की इच्छा में अपनी इच्छा का समर्पण करने वाले साधक की इच्छा अवश्य पूरी होती है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता तथा पूर्व केन्द्रीय मंत्री डा. मुरली मनोहर जोशी ने कहा कि भारत की असली पहचान उद्योगों, कारखानों एवं वैज्ञानिक अविष्कारों से नहीं, बल्कि आध्यात्मिक ऊर्जा एवं सांस्कृतिक चेतना से है। उन्होंने कहा कि हमारी हस्ती इसलिए नहीं मिटती क्योंकि हमारे देश में समन्वय और सद्भाव विद्यमान है। आज विश्व सही रास्ते की तलाश में भटक रहा है। इसका सही रास्ता भारत की आध्यात्मिक चेतना में निहित है। समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित साध्वी ऋतंभरा ने कहा कि भारत संस्कृति के दीपों को आलोकित–प्रज्ज्वलित करने वाली सनातन यात्रा है। स्वामी सत्यमित्रानंद गिरि जैसे संत जब राष्ट्र का चिंतन करते हैं तो देश की दिशा बदल जाती है। उन्होंने कहा कि स्वामी सत्यमित्रानंद का धर्म जागरण अभियान हमें स्वामी विवेकानंद की स्मृति करा देता है। उन्होंने कहा कि स्वामीजी ने भारतमाता मंदिर के माध्यम से अव्यक्त संस्कृति को व्यक्त करने का महत्वपूर्ण कार्य किया है।
कार्यक्रम का शुभारम्भ श्री सत्यनारायण तिवारी के स्वामीजी द्वारा रचित 'सौंप दिया इस जीवन का सब भार तुम्हारे हाथों में' भजन गायन से हुआ। पुस्तकालय के पूर्व अध्यक्ष श्री कृष्ण स्वरूप दीक्षित ने स्वामीजी का परिचय कराया। धन्यवाद ज्ञापन किया पुस्तकालय के पूर्व अध्यक्ष श्री जुगल किशोर जैथलिया ने तथा संचालन डा. प्रेमशंकर त्रिपाठी ने किया। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में शहर की अनेक सामाजिक–धार्मिक संस्थाओं के पदाधिकारी तथा गण्यमान्य नागरिक उपस्थित थे। प्रतिनिधि
'इंडिया एंड चाइना: आफ्टर फाइव डिकेड ऑफ द 1962 वार' पर संगोष्ठी
पचास साल बाद भारत–चीन
सेंटर फॉर सिक्यूरिटी एंड स्ट्रेटेजी, इंडिया फाउंडेशन के तत्वावधान में गत 19 नवंबर को नई दिल्ली में 'इंडिया एंड चाइना: आफ्टर फाइव डिकेड ऑफ द 1962 वार' विषयक संगोष्ठी का आयोजन हुआ। संगोष्ठी में भारत और चीन के बीच 1962 में हुए युद्ध के बाद की स्थिति, भारत-चीन संबंध, दोनों देशों की सामरिक क्षमताएं आदि विषयों पर विस्तार से चर्चा हुई।
संगोष्ठी की अध्यक्षता जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में 'सेंटर फॉर ईस्ट एशियन स्टडीज' के अध्यक्ष प्रो. श्रीकांत कोंडापल्ली ने की। वक्ता के रूप में पूर्व थलसेना प्रमुख जनरल (से.नि.) वी.पी. मलिक, पूर्व वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल (से.नि.) अनिल टिपणिस और प्रसिद्ध लेखक श्री क्लाउडे अर्पी उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन सेंटर फॉर सिक्यूरिटी एंड स्ट्रेटेजी, इंडिया फाउंडेशन के निदेशक श्री पी.सी. डोगरा ने किया।
जनरल वी.पी. मलिक ने अपने संबोधन में भारत-चीन के विभिन्न पहलुओं का उल्लेख करते हुए कहा कि भारत-चीन के बीच सीमा को लेकर विवाद है। चीन, अक्साई चिन और अरुणाचल प्रदेश पर बार-बार अपना अधिकार जताता है, जबकि यह भारत के अभिन्न अंग हैं। उन्होंने कहा कि हमें देश की उत्तरी सीमा की सेना को आधुनिक बनाने की आवश्यकता है, ताकि समय आने पर हम मुकाबला कर सकें। जनरल मलिक ने कहा कि आजादी के इतने साल बाद भी हम 70 प्रतिशत रक्षा उपकरण निर्यात करते हैं, यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है। जबकि हमारे यहां डी.आर.डी.ओ. जैसे संस्थान हैं। उन्होंने इस अवसर पर चीन की बढ़ती हुई सैनिक क्षमता का भी विस्तार से उल्लेख किया।
एयर चीफ मार्शल अनिल टिपणिस ने 1962 में हुए युद्ध के कारणों तथा स्थिति पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि 1962 में हमारी सेना के पास आधुनिक हथियार नहीं थे, लेकिन आज स्थिति बदली है। उन्होंने कहा कि दोनों देशों के बीच की समस्या आज भी है। श्री क्लाउडे अर्पी ने तिब्बत की वर्तमान स्थिति से सभी को अवगत कराया। संगोष्ठी में रा.स्व.संघ के सहसरकार्यवाह श्री दत्तात्रेय होसबले, अ.भा. सह सम्पर्क प्रमुख श्री राममाधव व श्री अरुण कुमार आदि सहित बड़ी संख्या में राजधानी दिल्ली के प्रबुद्ध गण्यमान्य नागरिक विशेष रूप से उपस्थित थे। प्रतिनिधि
चित्रकूट में पांच दिवसीय ग्रामश्री मेला सम्पन्न
दिखीं गांव की प्रतिभाएं
दीनदयाल शोध संस्थान, चित्रकूट के तत्वावधान में गत दिनों 5 दिवसीय ग्रामश्री मेला सम्पन्न हुआ। मेले में जिला पंचायत सतना के सहयोग से चलने वाले स्वयं सहायता समूहों के उत्पादों की प्रदर्शनियां लगाई गईं।
मेले में उद्यमिता विद्यापीठ से प्रशिक्षित व स्वरोजगार से जुड़े स्वयं सहायता समूहों द्वारा अचार, मुरब्बा, विभिन्न मसाले वाशिंग पाउडर, तेल, बेकरी उत्पाद, जूट बैग, जूट टाटपट्टी, दरी, बांस से बनी सामग्री, मोमबत्ती, अगरबत्ती, सिन्दूर, बिन्दी, खिलौने, चूड़ी इत्यादि सामग्री की प्रदर्शनी लगायी गयीं। साथ ही उद्यमिता विद्यापीठ द्वारा खादी ग्रामोद्योग आयोग एवं दीनदयाल औद्योगिक प्रशिक्षण केन्द्र, चित्रकूट द्वारा संचालित होने वाले विभिन्न कार्यक्रमों में परामर्श के माध्यम से ग्रामीण बेरोजगार नवयुवक-युवतियों का पंजीकरण किया गया।
मेले में गोवंश विकास अनुसंधान केन्द्र द्वारा विभिन्न नस्लों की गायों, गोमूत्र व पंचगव्य से बने गुणकारी उत्पादों की प्रदर्शनी भी लगायी गई। पांच दिन तक चले ग्रामश्री मेले में चित्रकूट अंचल के पारम्परिक नृत्य 'दिवारी' की प्रतियोगिता का आयोजन भी हुआ। इसमें बांदा, टीकमगढ़, छतरपुर, चित्रकूट तथा सतना जिले के कई समूहों ने 'दिवारी' नृत्य का सुंदर प्रदर्शन किया।
मेेले में प्रत्येक दिन रात्रि को एल.सी.डी. के माध्यम से बड़े परदे पर रामायण का प्रदर्शन भी किया गया जिसे हजारों की संख्या में लोगों ने देखा। 'दिवारी' नृत्य और रामायण के प्रदर्शन के महत्व को बताते हुए उद्यमिता विद्यापीठ की निदेशक डा. नंदिता पाठक ने बताया कि दीनदयाल शोध संस्थान श्रद्धेय नानाजी की योजना से गांवों में पारम्परिक व विलुप्त हो रही कलाओं व प्रतिभाओं को संरक्षित व संवर्धित करने का प्रयास किया जा रहा है। चित्रकूट के सांसद श्री आर.के. पटेल ने मेले का अवलोकन किया हुए कहा कि मेले में शत-प्रतिशत लोग ग्रामीण क्षेत्रों से हैं। गांव से जुड़े स्वयं सहायता समूहों के विकास के लिये उद्यमिता विद्यापीठ के प्रयास से यह ग्रामश्री मेला एक सकारात्मक प्रसास है। गांव से जुड़ी प्रत्येक प्रतिभा के विकास के लिये उपयुक्त स्थान प्रदान करने के लिये मेले का आयोजन लाभकारी सिद्ध हो रहा है।प्रतिनिधि
गोसेवा के लिए पुरस्कृत
गो–विज्ञान संशोधन संस्था, पुणे (महाराष्ट्र) के तत्वावधान में गत दिनों पुणे में 'श्रद्धेय मोरोपंत पिंगले गो सेवा पुरस्कार' समारोह सम्पन्न हुआ।
समारोह में मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित प्रसिद्ध सिने कलाकार श्री सुरेश ओबरॉय ने कहा कि गोमाता मातृत्व का 'महाकाव्य' है। गाय का दूध, गोबर, गोमूत्र और उससे बनी औषधियां मानव जीवन के लिए कल्याणप्रद हैं यह वैज्ञानिकों ने सिद्ध कर दिया है। उन्होंने कहा कि आज आवश्यकता इस बात की है कि गोमाता का महत्व विज्ञान आधारित गुणवत्ता पर हो।
कार्यक्रम के मंच पर संस्था के अध्यक्ष श्री राजेन्द्र लुंकड, दादरा नगर हवेली मुक्ति संग्राम समिति के अध्यक्ष श्री बाबासाहेब पुरंदरे और भोसटी गोशाला के श्री बाबूसेठ बोथ्रा आसीन थे। श्री सुरेश ओबरॉय तथा मंचस्थ अतिथियों ने गोसेवा के लिए गुजरात के डा. हितेश जानी को 31 हजार, विटे सांगली के डा. जयंत तथा बाबा बर्वे को 21 हजार तथा मावल पुणे के श्री सुकनसेठ बाफना को 11 हजार रुपए का पुरस्कार देकर सम्मानित किया।
कार्यक्रम का संचालन संस्था के सचिव श्री बापूराव कुलकर्णी ने किया। इस अवसर पर बड़ी संख्या में पुणे के गण्यमान्य नागरिक उपस्थित थे। समारोह से पूर्व 'गोशाला कार्यशाला' का आयोजन हुआ। इसमें 21 गोशाला प्रतिनिधि और 60 गोपालकों ने भाग लिया। सुधाकर पोटे
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