ममता बनर्जी संप्रग से अलग हो गईं और उन्होंने सरकार के लिए भी संकट खड़ा कर दिया, लेकिन शरद पवार उनके कदम को उचित ठहराकर क्या संकेत दे रहे हैं? उनका कहना है कि खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की मंजूरी पर संप्रग सरकार से समर्थन वापस लेने वाली ममता बनर्जी को फैसला लेने का पूरा हक है। यानी कांग्रेस मनमानी करेगी तो संप्रग से बाहर जाने का रास्ता खुला है। ये संप्रग का जहाज डूबने के संकेत हैं, जिन्होंने सोनिया गांधी और उनकी पार्टी को बेचैन कर दिया है, विशेषकर 'युवराज' राहुल गांधी के भविष्य को लेकर, कि यदि संप्रग बिखर गया और कांग्रेस सत्ता से बेदखल हो गई तो 'युवराज' की ताजपोशी का क्या होगा? इसलिए संप्रग को एकजुट करने की कोशिशों के बीच मंत्रिमंडल विस्तार का चुग्गा डाला जा रहा है, लेकिन पंछी हैं कि फंसने का नाम नहीं ले रहे। प्रमुख सहयोगी दल द्रमुक के मुखिया करुणानिधि ने कांग्रेस की ओर से चिरौरी किए जाने के बावजूद साफ इनकार कर दिया कि उनकी पार्टी मंत्रिमंडल में शामिल नहीं होगी। टू जी स्पेक्ट्रम आवंटन में हुए महाघोटाले में फंसे द्रमुक कोटे के मंत्रियों व सांसद की फजीहत से नाराज करुणानिधि रूठकर बैठे हैं। इसलिए मंत्रिमंडल विस्तार के बहाने सहयोगी दलों को एकजुट करने का पासा खाली जाते देख कांग्रेस छटपटा रही है। लेकिन वह इस सच्चाई से आंखें चुरा रही है कि उसकी नीतियों ने देश का बंटाढार कर दिया, इसलिए लोकप्रियता खो चुके संप्रग के डूबते जहाज में अब कोई बैठने को तैयार नहीं है। भ्रष्टाचार के सारे रिकार्ड तोड़ चुकी सरकार यह भूल रही है कि उसने जहां बेतहाशा बढ़ी महंगाई से आम आदमी का जीना दूभर कर दिया है, वहीं सरकारी खजाने का पैसा ऐशो-आराम व आयोजनों पर किस तरह बर्बाद किया जा रहा है, जबकि प्रधानमंत्री आर्थिक सुधारों का झुनझुना बजाकर जनता को भरमा रहे हैं। संप्रग सरकार की तीसरी वर्षगांठ पर दिए गए सरकारी भोज में 7721 रु.प्रति थाली का खर्चा उस गरीब जनता को मुंह चिढ़ाने वाला है जिसे 23 रु. में एक दिन के खर्च पर जीने की नसीहत दी जाती है। गरीबों का इससे बड़ा मजाक और सरकारी खजाने का इससे बड़ा दुरुपयोग क्या हो सकता है? एक ओर तो प्रधानमंत्री देश की बिगड़ती अर्थव्यवस्था के चलते सरकारी खर्च में कटौती और जनता को दी जा रहीं सुविधाओं में सब्सिडी को कम करने की बात करते हैं और कहते हैं कि 'पैसे क्या पेड़ पर उगते हैं', दूसरी ओर उनके मंत्री एक साल में अपनी यात्राओं पर ही 678 करोड़ रुपए फूंक देते हैं जो पिछले वर्ष से 12 गुना से भी ज्यादा हैं। ऐसी संवेदनहीन और गैर जिम्मेदार सरकार जनता की नजरों से तो उतर ही गई थी, अब उसके घटक दल भी उससे कतरा रहे हैं तो आश्चर्य कैसा?
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