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कन्नड़ भाषा में 'इड़किडु' का अर्थ होता है- 'फेंका हुआ'। लेकिन कर्नाटक प्रांत के इड़किडु गांव को देख कर अब यह अर्थ गलत साबित होता दिखाई दे रहा है। यह गांव अब पूरी तरह से विकसित हो चुका है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों ने इस गांव को एक निर्मल, आदर्श ग्राम बनाया और साबित कर दिया कि यहां सिर्फ संघ की शाखाएं नहीं लगतीं, गांव के हित और विकास का भी विचार किया जाता है।
अब तक इड़किडु गांव का विकास नहीं हुआ था। इतने वर्षों में गांव से अस्पृश्यता नहीं मिट पाई थी। 1977 में जब रा.स्व.संघ के वरिष्ठ अधिकारी श्री हो.वे. शेषाद्रि यहां आए, तब उन्होंने स्वयंसेवक और कार्यकर्ताओं से एक भावभरा प्रश्न पूछा- 'यहां शाखाएं तो बड़ी अच्छी चला रहे हो, इसके आगे क्या करने का सोचा है?' ऐसे ही एक बार तत्कालीन प्रांत प्रचारक श्री यादवराव जोशी ने ध्यान दिलाया था कि हमारा काम यहां चलते इतने वर्ष हो गए किन्तु अस्पृश्यता अब भी नहीं मिटी है। इसका प्रभाव यह रहा कि एक स्थानीय कार्यकर्ता श्री के.एस. विश्वनाथ ने एक बात मन में ठान ली की 'इड़किडु बदलेगा!' और संघ के संस्थापक डा. हेडगेवार जी के जन्मशताब्दी वर्ष (1989) से इस गांव में ग्राम विकास का कार्य प्रारंभ हुआ।
लक्ष्य निर्धारित
हर घर में एक गाय, रसायन-मुक्त जैविक खेती, मिश्रित खेती (एक ही खेत में अलग-अलग फसल लेना), हर घर में बायोगैस/गोबर गैस प्लांट, हर घर में सौर ऊर्जा संयंत्र, सारी जरूरी सब्जियां घर के आंगन में उगाना, घर के निकट औषधि वनस्पति लगाना, मधुमक्खी पालन और मधु निर्माण, शराबबंदी, जल संचयन, सादगी- इन लक्ष्यों को सामने रखकर काम शुरू किया गया।
गांव में संघ की चार शाखाएं चलती हैं- धर्मनगर, उरिमाजिलु, अशोकनगर और कोलपे। धर्मनगर शाखा सब से पुरानी और एक तरह से मातृ शाखा है। इसके पूर्व 1970 में पोवाप्पा नायक और कण्टाप्पा गौड़ा के नेतृत्व में गांव के सभी व्यक्ति एकत्र आए और कुला, इड़किडु और विटलमुन्दुर में 'भजन मंदिरों' का निर्माण शुरू हुआ था। उसी का स्वरूप बढ़ाते हुए भजन मंदिरों के साथ-साथ धीरे-धीरे महिला मंडली, सार्वजनिक गणेशोत्सव, सिलाई प्रशिक्षण व शिशु मंदिर भी शुरू हुए। अब इड़किडु में ही पांच भजन मंदिर चलते हैं। सभी मंदिरों में सप्ताह में एक बार प्रात: प्रार्थना व शाम को सत्संग होता है। भगवत् गीता और रामायण के वर्ग भी चलते हैं। गांव के उत्सव भी सार्वजनिक रूप से सब लोग इकट्ठा आकर मनाते हैं। इन्हीं उत्सवों में सहभोज होता है, जिनमें सभी जाति के लोग साथ में बैठकर भोजन करते हैं। कलशाभिषेक जैसे कार्यक्रमों में बिना किसी भेदभाव के सब लोगों को अपने हाथों से अभिषेक करने का मौका मिलता है। प्रसाद के लिए चावल सभी घरों से समान मात्रा में लिया जाता है और प्रसाद बनाने के लिए 250 घरों की महिलाएं इकट्ठा होती हैं। सभी घरों पर गिरने वाला बरसात का पानी संकलित कर कुंओं में छोड़ा जाता है। जिससे करीब एक करोड़ लीटर पानी मिलता है। मंदिर परिसर में अरकनट (सुपारी) के लगभग 1500 पेड़ लगाए गये हैं। हर पेड़ के लिए 50 रुपए शुल्क भी लिया जाता है। आगे चल कर इन्हीं पेड़ों से मंदिर का खर्च चलने लगा। मंदिर की निधि से गरीब रोगियों तथा छात्रों को मदद दी जाती है।
बीड़िनामजलु श्री आदिपराशक्ति देवस्थान पूरी तरह से श्रमदान और गांववालों के योगदान से बना है। यहां विवाह विधि कराए जाते हैं, जिसका कोई भी शुल्क नहीं लिया जाता। यहां सार्वजनिक ग्रंथालय भी है। धर्मनगर के श्री दुर्गा मंदिर में भी जल संचयन, औषधि वनस्पति वाटिका और गरीबों की सहायता के कार्य चलते हैं।
सुन्दर गांव
यहां का सूर्या उच्च माध्यमिक विद्यालय भी कार्यक्रमों का एक केन्द्र बना है। स्कूल की चारदीवारी पर छात्रों द्वारा सुवचन और कई प्रकार की जानकारियां लिखी जाती हैं। परिसर में प्लास्टिक के दुष्प्रभावों के बारे में छात्र जनजागरण करते हैं। जो छात्र दस किलो या अधिक प्लास्टिक कचरा इकट्ठा करता है, उसे प्रोत्साहन के तौर पर शैक्षणिक साहित्य नि:शुल्क दिया जाता है।
गांव में इड़किडु सीए बैंक की चार शाखाएं हैं। यह बैंक मात्र 6,000 रु. पूंजी पर शुरू हुआ था। अब इसमें सात करोड़ रु. जमा हैं, और 6.5 करोड़ के कर्ज गांव के ही लोगों को दिए गए हैं। लगभग हर घर का एक व्यक्ति बैंक का सदस्य है। आज इस बैंक के 2,00 सदस्य हैं। कर्नाटक सरकार ने इस बैंक को 'आदर्श बैंक' का पुरस्कार भी दिया है। 201 'नवोदय समूह' और 175 महिला स्वयंसहायता समूह भी इस बैंक से जुड़े हैं। बैंक के अध्यक्ष का चुनाव खुले तरीके से और निर्विरोध होता है। एक अध्यक्ष लगातार दो बार चुनाव नहीं लड़ता। इड़किडु में तीन सहकारी दूध सोसायटी हैं। जिले में सबसे अधिक दूध उत्पादन करने वाला गांव इड़किडु ही है। गांव के 720 घरों में से 400 घर खेती के साथ-साथ दूध उत्पादन भी करते हैं। साल भर में साढ़े सात लाख लीटर दूध यहां से बाहर जाता है और एक करोड़ रुपयों का कारोबार होता है। इससे गांव की आर्थिक स्थिति में भारी सुधार आया है। इतना ही नहीं, गांव के बच्चों का पोषण भी अच्छी तरह से होने लगा है।
इड़किडु के 100 घरों में गोबर गैस प्लांट लगे हैं। इससे एलपीजी का खर्च भी बचा है और जंगल कटाई भी कम हुई है। गैस के नए प्लांट के लिए स्थानीय बैंक अधिकारी सहयोग करते हैं। एक समय के 'फेंके हुए' गांव को 'सुंदर गांव' बनाने की प्रक्रिया में यहां का हर व्यक्ति शामिल है। (न्यूज भारती)
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