हिन्दुत्व से चिढ़ क्यों?
दिंनाक: 23 Jun 2012 14:43:42 |
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मनुष्य का अहंकार ऐसा है कि प्रासादों का भिखारी कुटी का अतिथि-देवता भी बनना स्वीकार नहीं करेगा।
–महादेवी वर्मा (दीपशिखा, चिन्तन के कुछ क्षण)
वोट की राजनीति ने हमारे समाज को बहुसंख्यक–अल्पसंख्यक, साम्प्रदायिक–सेकुलर व अन्य जाति–मत–पंथ में विभाजित कर देश का जो नुकसान किया है उसकी भरपाई कैसे होगी, इसका विचार किए जाने की बजाय इस विभेद को सत्ता के लिए और भी गहराने की साजिशें हो रही हैं। जनता के बीच इस प्रकार के भ्रम निर्माण कर अपने राजनीतिक स्वार्थ साधने की मानो होड़ लगी है। देश का प्रधानमंत्री सेकुलर हो, यह कहने का अर्थ क्या है? संविधान निर्माताओं ने तो प्रधानमंत्री पद की यह 'विशिष्ट पहचान' बनाने का कोई चिंतन नहीं किया, क्योंकि शायद उनका मानना रहा होगा कि भारत जिन सनातन मूल्यों, धर्म–संस्कृति का पोषक रहा है, वहां तो सर्वसमावेशी और सहअस्तित्व का भाव ही हमारे सामाजिक व राष्ट्रीय जीवन का आधार है। इसलिए यहां मत–पंथ के आधार पर किसी प्रकार का सामाजिक विभाजन करना उन्होंने उचित नहीं समझा। अत: केन्द्रीय शासन और उसके प्रमुख के रूप में प्रधानमंत्री का दायित्व लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करते हुए बिना किसी भेदभाव के देश की समस्त जनता की सुख–समृद्धि व हिफाजत की चिंता करना है। लेकिन इसके विपरीत प्रधानमंत्री को 'सेकुलर' जैसी पहचान देने की कोशिशें हो रही हैं। सर्वपंथसमभाव तो भारत के हिन्दू चिंतन की विशेषता है। ऐसे हिन्दुत्व <
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