|
महाराष्ट्र/द.वा.आंबुलकर
महाराष्ट्र सरकार का कीर्तिमान
मंत्री गिरफ्तार, फिर भी मंत्रिमण्डल में शामिल
पिछले दिनों महाराष्ट्र के परिवहन तथा कृषि राज्यमंत्री गुलाबराव देवकर को अपने गृहनगर एवं निर्वाचन क्षेत्र जलगांव में 46 करोड़ रुपयों के भ्रष्टाचार के मामले में गिरफ्तार किया गया। मंत्रियों एवं राजनेताओं के कई तरह के भ्रष्टाचार के मामले महाराष्ट्र में उजागर होते रहे हैं, पर यह पहली बार हुआ है कि राज्य के एक मंत्री को भ्रष्टाचार के मामले में गिरफ्तार किया गया है। प्रशासनिक गलियारों से लेकर मीडिया एवं विधानसभा में भी गुलाबराव देवकर की गिरफ्तारी की निंदा एवं उनके कृत्यों की भर्त्सना की गई तथा गिरफ्तारी और जमानत पर रिहा होने के बाद भी उनका मंत्रीपद बरकरार रखने के निर्णय की भी तीव्र भर्त्सना की जा रही है।
इस सारे मामले में लीपा-पोती करने के प्रयास में राष्ट्रवादी कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष मधुकर पिचड ने कहा है कि अपनी गिरफ्तारी के बाद राज्यमंत्री गुलाबराव देवकर ने राज्यमंत्री पद से अपना त्यागपत्र राष्ट्रवादी कांग्रेस के नेताओं को भेज दिया था, पर उन्हें जमानत पर रिहा कर दिये जाने से पार्टी ने उनका त्यागपत्र स्वीकार नहीं किया है। मधुकर पिचड, जो स्वयं भी राज्य के मंत्री रह चुके हैं, इस संवैधानिक वास्तविकता को शायद भूल गये हैं कि यदि किसी मंत्री को मंत्री पद से त्यागपत्र देना होता है तो उसे अपना त्यागपत्र मुख्यमंत्री को भेजना होता है, न कि अपने दल के अध्यक्ष को।
जलगांव में सार्वजनिक भवन निर्माण परियोजना से संबद्ध 15 साल पुराने भ्रष्टाचार के एक मामले में राज्यमंत्री गुलाबराव देवकर के अलावा शिवसेना के पूर्व विधायक तथा जलगांव जिले के शिवसेना नेता सुरेश दादा जैन सहित अनेक लोगों गिरफ्तार किया गया था। सूत्रों के अनुसार 15 वर्ष पूर्व जलगांव में सार्वजनिक भवन निर्माण परियोजना के अंतर्गत 11,000 आवासीय भवनों के निर्माण हेतु सार्वजनिक निविदा आमंत्रित की गयी थी। इस निविदा सूचना के तहत 11 ठेकेदारों ने अपनी निविदाएं भेजी थीं। इन निविदा सूचनाओं में अंतिम चरण में जो परिवर्तन किये उसके आधार पर गुलाबराव देवकर तथा सुरेश दादा जैन के चहेते दो ठेकेदारों की निविदाएं ही स्वीकृत हुईं। इन्हीं कथित रूप से स्वीकृत निविदाओं के आधार पर संबद्ध ठेकेदारों ने करोड़ों रुपयों की ऋण राशि योजना के प्रारंभिक चरण में ही ऐंठ ली। इस सारी परियोजना में व्याप्त भ्रष्टाचार के मामले को राज्य विधानसभा में नेता-प्रतिपक्ष एकनाथ खडसे ने समय-समय पर उठाया व इसकी उच्चस्तरीय न्यायिक जांच की मांग की। इसी मांग के तहत जांच होने पर गुलाबराव देवकर तथा उनके सहयोगियों को दोषी पाया गया। राज्यमंत्री से संबद्ध भ्रष्टाचार के मामले की जांच में जलगांव के जिला पुलिस अधीक्षक इशू सिंघू ने अहम भूमिका निभाई। किसी भी राजनीतिक दबाव के बिना मामले की न्यायिक पैरवी में उन्होंने कोई कसर बाकी नहीं रखी, जिससे उनकी बहुत सराहना हो रही है। पर प्रश्न यह है कि अपने आपको भ्रष्टाचार के मामलों में बेदाग बताने वाले राज्य के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने भ्रष्टाचार के मामले में गिरफ्तार किये जाने पर भी संबद्ध मंत्री गुलाबराव देवकर को मंत्रिपरिषद से क्यों नहीं निकाला? क्या यह भ्रष्टाचार में उनकी सहयोगी भूमिका नहीं है?
प.बंगाल /बासुदेब पाल
ममता की नाकामी का एक साल
पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस सरकार की पहली वर्षगाठ पर मुख्यमंत्री सुश्री ममता बनर्जी ने अपने मंत्रिपरिषद के सदस्यों को निर्देश दिया कि किसी भी विभाग के लिए आवंटित केन्द्रीय आर्थिक अनुदान वापस न जाए, उसका पूरा उपयोग हो। अगर पैसा वापस गया तो उस विभाग के मंत्री को जिम्मेदार माना जायेगा। मजे की बात यह है कि राज्य का स्वास्थ्य व अन्य कई विभाग स्वयं मुख्यमंत्री के पास हैं और इस स्वास्थ्य विभाग को केन्द्र सरकार द्वारा दिया गया 1044 करोड़ रुपया खर्च नहीं हो पाया है। राज्य स्वास्थ्य मंत्रालय को 'राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन' योजना के अन्तर्गत यह पैसा दिया गया था। इस योजना के तहत राज्य सरकार को 1563 करोड़ 08 लाख रुपये मिले थे। इनमें से 29 फरवरी, 2012 तक 1044 करोड़ रुपए खर्च नहीं हुए, इसकी जिम्मेदारी अब कौन लेगा?
स्वास्थ्य विभाग में एक राज्यमंत्री हैं चन्द्रिमा भट्टाचार्य। उनसे इस बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा- मैं कोई भगवान नहीं हूं कि जब चाहे पूछे जाने पर सारे तथ्य बता सकूं। कितना खर्च हुआ, कितना नहीं, यह मैं नहीं बता सकती। मेरी जानकारी में नहीं है।' स्वास्थ्य विभाग के एक पदाधिकारी ने बताया कि राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के अन्तर्गत महामारी रोकने, रोगों का प्रकोप कम करने, अंध निवारण, कुष्ठ निवारण, क्षय रोग की रोकथाम, मच्छर और मक्खी से पैदा होने वाले रोगों को रोकने हेतु, शिशु एवं माताओं को स्वस्थ रखने के अनेक प्रकल्प चलाए जाते हैं।
पिछले साल राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन योजना में पश्चिम बंगाल को 535 करोड़ रुपए दिए गए थे। उनमें से 354 करोड़ खर्च हुए। शिशु व मातृत्व चिकित्सा हेतु 325 करोड़ रुपए मिले थे। मार्च माह में जिलों को 200 करोड़ रुपए दिए गए थे, लेकिन केवल 124 करोड़ रु. ही खर्च किये जा सके। पल्स पोलियो व टीकाकरण कार्य सूची का भी पूरा पैसा खर्च नहीं हो पाया। प्रारंभ में मुख्यमंत्री ने चिकित्सालयों का दौरा करके उस पर सबसे अधिक ध्यान दिया था। मुख्यमंत्री अब स्वास्थ्य जैसे संवेदनशील मामले पर उतना ध्यान नहीं दे पा रही हैं जितना देना चाहिए, फिर भी स्वास्थ्य मंत्रालय को किसी और को नहीं सौंप रही हैं।
प्रकल्प राशि (करोड़ों रु. में) खर्च हुआ प्रतिशत खर्च नहीं हुआ
मातृ एवं शिशु विकास 463.81 225.53 48.63 238.27
राष्ट्रीय ग्रामीण स्वा. मि. 704.05 210.13 29.85 493.91
टीकाकरण 102.82 43.49 42.3 59.32
रोग प्रतिरोध व्यवस्था 2.12 1.31 61.86 0.81
अन्ध निवारण 19.91 11.05 55.47 8.86
कुष्ठ निवारण 2.70 1.19 44.39 1.50
मच्छर-मक्खी से जनित 31.38 7.35 23.42 24.03
रोग प्रतिरोध
क्षय रोग रोकथाम 33.76 18.19 53.91 15.56
कुल 1563.08 518.28 33.16 1044.79
टिप्पणियाँ