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उ.प्र./शशि सिंह
मायावती सरकार के घोटालों की खुल रही है परतें
मायावती के शासन काल ४० हजार करोड रुपयों के घोटाले हुए। उन सबकी जांच कराई जाएगी और दोषियों को माफ नहीं किया जाएगा।' उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव जब यह कहते हैं तो सहसा विश्वास ही नहीं होता है कि इतना बड़ा घोटाला हुआ होगा। यह सच भी है कि मायावती के राज में उत्तर प्रदेश में बड़े पैमाने पर जितनी आर्थिक अनियमितताएं हुई, आजादी के बाद किसी भी राज्य सरकार में नहीं हुई। पूरा का पूरा पांच साल “घोटालों का काल' कहा जा सकता है। राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन घोटाला, ईको पार्क घोटाला, नोएडा भूमि घोटाला, मायावती के आवास निर्माण में हुई अनियमितता, हाथी मूर्ति घोटाला-ये सब नए घोटाले हैं। मायावती के पहले के शासनकाल में हुए ताज कारिडोर घोटाले और आय से अधिक संपत्ति के मामले भी अभी तक लंबित
हैं। बहरहाल आजकल चर्चा हो रही है हाथी मूर्तियों तथा ईको पार्क में हुए घोटाले की। प्रदेश की राजधानी लखनऊ और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली से सटे नोएडा में बहुजन समाज के नेताओं के नाम पर बने पार्कों और स्मृति स्थलों पर लगी हाथी की मूर्तियों को
बनवाने और स्थापित करवाने में करोड़ों रुपये के घोटाले की बात सामने आ रही है। इस मामले में कई मुकदमे भी दर्ज किए जा चुके हैं। ताबड़तोड़ छापेमारी की जा रही है। घोटाले के तार पूरे प्रदेश से जुड़े हुए हैं। यह मामला तो दबा रह जाता, लेकिन लूट की बंदरबांट में बेईमानी के कारण यह मामला खुल गया। आगरा जिले के फतेहपुर सीकरी निवासी मदन लाल ने राजधानी के गोमती नगर थाने में शिकायत दर्ज कराई कि लखनऊ मार्बल्स की मालकिन विद्या अग्रवाल के पति आदित्य अग्रवाल ने उन्हें एक हाथी की मूर्ति बनाने के लिए 48 लाख रुपये देने को कहा था, लेकिन एक लाख अग्रिम, बाद में 6 लाख 56 हजार रु. यानी कुल 7 लाख 56 हजार रुपये ही दिए। इसी के बाद मामला तूल पकड़ने लगा। कहते हैं कि इतने बड़े पैमाने पर हुए घोटाले को शासन में उच्च स्तर पर संरक्षण मिला हुआ था। लूटे गए सरकारी धन की बंदरबांट ऊपर से नीचे तक हुई। बहरहाल जब आरोपी आदित्य के यहां छापा मारा गया तो अधिकारी दंग रह गए। तहखाने से ही उसका कार्यालय संचालित हो रहा था। वहां से पुलिस को एकमुश्त 64 लाख रुपये नकद मिले। कई ऐसे महत्वपूर्ण कागजात भी मिले जिनसे घोटाले में बड़े अधिकारियों की संतिप्तता साबित होती है। बताया जाता है कि लखनऊ मार्बल्स ने एक हाथी को तैयार कराने में 5 लाख 62 हजार रुपए खर्च किए। पर उसे नोएडा तक भिजवाने, उसके रंग-रोगन और रख-रखाव के लिए 47 रु. लाख वसूले। यानी एक हाथी की कीमत 5 लाख 62 हजार रु. और ढुलाई आदि पर 47 लाख रु. खर्च हुए। एक हाथी की कुल कीमत पड़ी 52 लाख 62 हजार रुपए। उस पर लगने वाला वैट (मूल्य संवर्धित कर) अलग से। हाथी की ऐसी 16 मूर्तियों को बनवाने और नोएडा के पार्क में लगाने का आदेश हुआ था। हाथी-मूर्ति में लूट के इस खेल में और भी बड़े घोटाले हुए हैं। राजधानी के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक आशुतोष पांडेय के अनुसार चुनार चेन सैंड स्टोन के एक हाथी की कीमत सवा चार लाख रुपए तय की गई थी, लेकिन उसकी फिनिशिंग, कटाई और ढुलाई में करीब 54 लाख रुपये का खर्च दिखाया गया है। यानी एक हाथी की कुल लागत पड़ी 58 लाख रुपये। उन्होंने बताया कि इसकी जांच-पड़ताल हो रही है कि इसमें कैसे और किन लोगों ने हिस्सेदारी की। बताते चलें कि आदित्य अग्रवाल इस बड़े खेल का बहुत छोटा-सा खिलाड़ी है। उसने अगर मदन लाल को 48 लाख रु. वादा कर केवल 7
लाख 56 हजार रु. दिए तो बाकी के रुपए अपने पास ही तो रख नहीं लिए होंगे। ऊपर से लेकर नीचे तक हिस्सा पहुंचाया होगा। तभी तो मामला दबा रहा और माया शासन जाने के बाद जिनके साथ नाइंसाफी हुई, वे बेईमानी का आरोप लगाते हुए सामने आ रहे हैं। राजस्थान के रूपेश बंसल ने भी हजरत गंज थाने में शिकायत दर्ज कराई है कि पत्थरों की आपूर्ति करने के बाद उसके भी लाखों रुपए हड़प लिये गए हैं।
हाथी घोटाले की तरह ही ईको पार्क के रख-रखाव में भी भारी लूट की बात सामने आयी है। ईको पार्क (बौद्ध विहार, शांति उपवन) राजधानी के वीआईपी रोड पर स्थित है। बताते हैं कि यहां तैनात लोक निर्माण विभाग के एक अवर अभियंता (जेई) ने मिस्त्री को ही ठेकेदार बनवाया, उसे बिना “वर्क आर्डर' के काम दिलाया और लाखों रु. खुद हड़प लिये। फतेहपुर सीकरी (आगरा) के निवासी अशोक कुमार ने पुलिस को बताया कि वह ईको पार्क में पहले एक ठेकेदार के साथ मिस्त्री का काम करता था। उसे लोक निर्माण विभाग के अभियंता अभिमन्यु ने ठेकेदार बनाने का लालच देकर अपनी फर्म का पंजीकरण कराने की सलाह दी। इस पर उसने आगरा से ही फर्म का पंजीकरण करवा लिया। अवर अभियंता ने उसे बिना “वर्क आर्डर' के ईको पार्क में दीवारों के पत्थर बदलने, कटिंग व मरम्मत का ठेका दे दिया। 200 रुपये प्रति वर्ग मीटर के हिसाब से उसे करीब साढ़े सात लाख रुपए के भुगतान की बात तय हुई थी, लेकिन बाद में उसे दो चेकों के माध्यम से केवल ढाई लाख रुपये दिए गए। शेष भुगतान के लिए उक्त अवर अभियंता के कई चक्कर लगाने पड़े, फिर भी उसका भुगतान नहीं मिला। उसने आरोप लगाया कि उक्त अवर अभियंता ने उसके सिर पर रिवाल्वर सटाकर मारने की धमकी भी दी और सादे “लेटर पैड' पर हस्ताक्षर करा लिया। बाद में पता चला कि अवर अभियंता ने उक्त “लेटर पैड' के जरिए शेष भुगतान हड़प लिया। अब उसे चुप रहने को कहा जा रहा है। उसने भी हजरत गंज थाने में मुकदमा दर्ज कराया है।
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