बात बेलाग
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बात बेलाग
समदर्शी
मायावती के कुशासन से तंग उत्तर प्रदेश के मतदाताओं ने जब समाजवादी पार्टी को भारी बहुमत से सत्ता सौंपी, तभी जंगलराज की वापसी की आशंका जतायी जाने लगी थी। पिछली बार सपा सरकार का नेतृत्व मुलायम सिंह यादव कर रहे थे, पर इस बार जब स्पष्ट से भी अधिक बहुमत मिला तो उन्होंने इसे बेटे अखिलेश की ताजपोशी का सही समय माना। मुख्यमंत्री बने अखिलेश ने भी कहा था कि पुरानी गलतियां दोहरायी नहीं जाएंगी, लेकिन उनके शपथ ग्रहण के साथ ही उत्तर प्रदेश भर में सपा कार्यकर्त्ताओं और समर्थकों की जो गुंडागर्दी शुरू हुई है, वह थमने का नाम नहीं ले रही। थमे भी कैसे, मुख्यमंत्री की कथनी और करनी में शुरू से ही विरोधाभास जो नजर आ रहा है। मुलायम सिंह के पहले मुख्यमंत्रित्वकाल में 'सुपर सीएम' के रूप में चर्चित से भी ज्यादा बदनाम रहे पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बाहुबली डी. पी. यादव की चुनाव पूर्व सपा में 'एंट्री' रोककर अखिलेश ने शाबाशी तो लूटी और उसका चुनावी लाभ भी उठा लिया, लेकिन जेल मंत्री की कुर्सी पूर्वी उत्तर प्रदेश के माफिया माने जाने वाले उन रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया को सौंप दी, जो खुद अनगिनत गंभीर आपराधिक मुकदमों से घिरे हैं। अखिलेश की कथनी-करनी के इस विरोधाभास का जो अर्थ निकाला जाना चाहिए, वही सपाई बाहुबलियों और अपराधियों ने निकाला है। नतीजतन अखिलेश राज के 100 दिन पूरे होने से पहले ही उत्तर प्रदेश में जंगलराज नजर आने लगा है और मतदाताओं को डर सता रहा है कि कहीं वे कुएं से निकल कर खाई में तो नहीं गिर गये।
पीएम का एक, सीएम के चार
भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। आबादी के लिहाज से भी यह चीन के बाद दुनिया का दूसरा बड़ा देश है। हालांकि प्रधानमंत्री के मीडिया सलाहकार की भूमिका तेजी से कांग्रेस और नेहरू परिवार के प्रति निष्ठावान पत्रकारों को उपकृत करने की कवायद में बदलती गयी है। मनमोहन सिंह के अभी तक के कार्यकाल में दो मीडिया सलाहकार बदल चुके हैं। तीसरे का तो पदनाम भी बदल कर 'कम्युनिकेशन एडवाइजर' कर दिया गया है, लेकिन फिर भी इतने बड़े देश के प्रधानमंत्री 'मीडिया' को 'मैनेज' करने के लिए एक सलाहकार से काम चला रहे हैं। पर दिल्ली के तीन ओर बसे छोटे से राज्य हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ने एक-दो नहीं, चार मीडिया सलाहकार भर्ती कर रखे हैं। इन चारों में से तीन चंडीगढ़ में बैठते हैं और एक दिल्ली में, पर चारों कुछ अद्भुत समानताएं भी हैं। मसलन, चारों कांग्रेसी कार्यकर्त्ता हैं और उनका मीडिया से कभी भी दूर-दूर का कुछ लेना-देना नहीं रहा है। अब भी इनका संपर्क और संवाद मीडिया से नाममात्र का ही रहता है। फिर, हरियाणा सरकार के भारी खर्चे पर पलने वाले ये चारों मीडिया सलाहकार आखिर करते क्या हैं? यह न सरकार को पता है और न कांग्रेस को। शिकायत दस, जनपथ तक पहुंच गयी है। अब देखें, सार्वजनिक रूप से फिजूलखर्ची रोकने और पारदर्शिता बरतने की नसीहत देने वाली सोनिया गांधी अपने लाड़ले मुख्यमंत्री की मनमानी पर कोई अंकुश लगाती हैं या नहीं।
वफादारी का इनाम
इसी सप्ताह उत्तराखण्ड के राज्यपाल की शपथ लेने वाले अजीज कुरैशी के बारे में जब मीडिया में की खबर आयी कि उन्हें उत्तराखण्ड का राज्यपाल बनाया गया है तो मीडिया वाले भी हैरान-परेशान कि आखिर यह महाशय हैं कौन। कांग्रेसियों ने बताया कि मध्य प्रदेश के पुराने कांग्रेसी हैं। मीडिया की हैरानी फिर भी नहीं थमी, आखिर ऐसे अल्पज्ञात शख्स को अचानक राज्यपाल कैसे बना दिया गया? अंतत: इस उत्सुकता को शांत किया खुद अजीज कुरैशी ने। उन्होंने मीडिया को बताया कि उन्हें नेहरू परिवार के प्रति वफादारी के इनाम के तौर पर ही उत्तराखंड का राज्यपाल बनाया गया होगा। पुराने निष्ठावान कांग्रेसियों को, खासकर विपक्ष शासित राज्यों में राजभवनों में बिठाकर राजनीतिक अस्थिरता का खेल खेलने के लिए तो कांग्रेस अरसे से बदनाम रही है, पर अब जनाब अजीज कुरैशी ने यह भी खुलासा कर दिया है कि परिवार के प्रति निष्ठा का भी कैसा-कैसा इनाम मिलता है कांग्रेस में।
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