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Apr 7, 2012, 12:00 am IST
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आवरण कथा 1

दिंनाक: 07 Apr 2012 17:11:56

आवरण कथा 1

रूस में अब सबसे बड़े हिन्दू मन्दिर पर गिरेगी गाज?

   n  आलोक गोस्वामी

ऐसा मालूम होता है कि रूस का 'आर्थोडॉक्स क्रिश्चियन चर्च' भगवद्गीता पर पाबंदी लगाने की अपनी कथित हरकत के बदले दुनियाभर में फटकार खाने से तिलमिलाया हुआ है। उसकी भगवद्गीता को 'उग्र साहित्य' बताने की हिमाकत को दरकिनार करने वाली रूसी अदालत विश्वभर में बसे कान्हा के करोड़ों भक्तों के अभिनंदन की पात्र बनी थी। अंतरराष्ट्रीय कृष्ण भावनामृत संघ (इस्कॉन) ने भगवद्गीता के रूसी अनुवाद पर पाबंदी लगाने की रूसी आर्थोडॉक्स चर्च के कारिंदों की चाल नाकाम होने पर अदालत से लेकर पूरे रूस में कृष्ण संकीर्तन करके आनंद व्यक्त किया था। भारत सहित दुनियाभर में बसे आस्थावान हिन्दुओं ने उल्लास में भरकर रूसी अदालत और उसके माननीय न्यायाधीश का साधुवाद किया था।

लेकिन आर्थोडॉक्स चर्च तिलमिलाया हुआ था। उसकी उसी तिलमिलाहट की ताजा मिसाल सामने आई है जब उसके कथित इशारे पर रूस के सबसे बड़े हिन्दू मंदिर को उसके भवन से हटाने की कुत्सित चाल      चली गई।

नियमों के विरुद्ध हरकत

हुआ यूं कि 29 मार्च को सेंट पीटर्सबर्ग की उत्तर-पश्चिम जिला आर्बिट्रेशन अदालत में एक महत्वपूर्ण मामले की सुनवाई हुई। मामला था सेंट पीटर्सबर्ग के हिन्दू मंदिर की इमारत का पट्टा खत्म करने का। यह पट्टा 1996 में मंदिर का संचालन करने वाली संस्था 'वैदिक सोसायटी ऑफ स्पिरिचुअल डेवेलपमेंट' को इमारत के स्वामी राज्य के मालिकाना अधिकार वाले निगम 'जेएससी गोस्नीखीमानलित' ने 49 साल के करार पर बाकायदा हस्ताक्षर के बाद दिया था। लेकिन अचानक ही निगम ने थानेदारी दिखाते हुए पट्टे को खत्म करने की चाल चल दी। जबकि हिन्दू संस्था की ओर से पट्टे के करार की किसी भी शर्त का कभी उल्लंघन नहीं किया गया था। यह मामला (मामला क्र.ए-56, 55258/2010) 13 आर्बिट्रेशन अपील अदालत में गया। कहते हैं, आर्थोडॉक्स चर्च के जबरदस्त दबाव और स्थानीय चर्च प्रतिनिधियों की बढ़ती सरगर्मी के चलते अदालत ने हिन्दू संस्था के खिलाफ फैसला सुनाते हुए पट्टा खारिज करने का फरमान जारी कर दिया। हारकर हिन्दू संस्था मंदिर की रक्षा का संकल्प करके उससे ऊपर की आर्बिट्रेशन अदालत में मामला ले गई। लेकिन जिसका अंदेशा था, वही हुआ। ऊपरी आर्बिट्रेशन अदालत ने निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा और पट्टे वाले परिसर से मंदिर हटाने का फैसला सुना दिया।

वैदिक संस्था बोर्ड के अध्यक्ष सुरेन कार्पेतयन ने प्रधानमंत्री व्लादिमीर पुतिन को अपनी व्यथा लिखकर भेजी। उल्लेखनीय है कि पुतिन सेंट पीटर्सबर्ग से ही हैं। उन्हें पट्टे को यूं अचानक रद्द करने की निगम की मनमानी के बारे में बताया गया। पर नतीजा कुछ नहीं निकला। संस्था की ओर से भारत की राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल को भी 28 मार्च को चिट्ठी लिखी गई, कूटनीतिक रास्तों से मदद की गुहार की गई, लेकिन वहां से भी उन्हें कोई जवाब अभी तक नहीं मिला है। निगम अड़ा रहा, भले ही इतने पुराने मंदिर और मंदिर से जुड़े भक्तों की आस्था पर गाज गिरती है तो गिरे।

अदालत में अपील

लेकिन कृष्ण भक्तों ने आस नहीं छोड़ी। वे यह मामला 2 अप्रैल को रूस की सर्वोच्च आर्बिट्रेशन अदालत में ले गए। उन्होंने सर्वोच्च अदालत में अपील की कि निचली अदालतों के फैसलों पर स्थगनादेश दिया जाए। लेकिन हैरानी की बात है कि वहां उनकी अपील सुनवाई के लिए दर्ज ही नहीं की गई। 4 अप्रैल को अपील खारिज कर दी गई। सुरेन सच में आहत हैं, क्योंकि इस मंदिर को स्थापित करने और सेंट पीटर्सबर्ग में हिन्दू-गैर हिन्दू निवासियों के बीच संस्कृत, योग, वेद-वेदांत, हिन्दू संस्कृति-परम्परा-दर्शन का प्रचार-प्रसार करने में रूसी नागरिक सुरेन का बहुत बड़ा योगदान रहा है। वर्षों पहले वे इस्कॉन से जुड़े थे और रूस में इस्कॉन की स्थापना करने वालों में से एक थे। सेंट पीटर्सबर्ग के इस मंदिर में राधा-कृष्ण, शिव-पार्वती, चैतन्य महाप्रभु, गणेश, मां दुर्गा सहित अनेक देवी-देवताओं के सुंदर विग्रह हैं। मंदिर में हिन्दू तीज-त्योहार धूमधाम से संपन्न होते हैं और मंदिर से जुड़े सांस्कृतिक केन्द्र में वेद पठन-पाठन, योग, हिन्दू संस्कृति आदि का अध्ययन करने बड़ी तादाद में लोग आते हैं। मंदिर में भारतीय शास्त्रीय गीत-संगीत को भी प्रोत्साहन देने के अनेक कार्यक्रम आयोजित किए      जाते हैं।

चर्च की शह पर

यही बात तो खलती है रूसी आर्थोडॉक्स चर्च को। पाञ्चजन्य से बात करते हुए सुरेन ने बताया कि कुछ समय से रूसी आर्थोडॉक्स चर्च ने अपने को सबसे ऊपर मानते हुए खासतौर पर हिन्दू धर्म और कृष्ण भक्तों पर निशाना साधा है। रूस की सरकार भी क्या चर्च के फरमान मानती है? यह पूछने पर सुरेन ने बताया कि सरकार को लगता है कि चर्च की बात मानना उन्हें चुनावी फायदा दिला सकता है। इसलिए वह भी उसके खिलाफ जाने से कतराती है। सुरेन एक ताजा उदाहरण बताते हैं। अभी कुछ दिन पहले कुछ युवक चर्च के सामने उसकी हेकड़ी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे थे कि पुलिस आई और उन्हें जेल में ठूंस दिया। जबकि 30 मार्च को आर्बिट्रेशन अदालत का फैसला आते ही रूसी सरकार के तहत कार्यरत निगम ने मन्दिर की इमारत को कब्जाने के लिए निजी सुरक्षा गार्ड बुलाकर जोर-जबरदस्ती करके इमारत पर ताला लगाने की कोशिश की। सुरेन और दूसरे हिन्दू भक्तों ने मिलकर उसका विरोध किया। लेकिन शिकायत के बावजूद पुलिस ने जबरन कब्जा करने आए लोगों पर कोई कार्रवाई नहीं की। उल्लेखनीय है कि यह मन्दिर और अध्ययन केन्द्र किसी सरकारी अनुदान से नहीं बल्कि भक्तों के सहयोग से चल रहे हैं। लेकिन सभी नियमों को धता बताकर रूसी सरकारी निगम पट्टे को यूं अचानक खत्म कैसे कर सकता है? अदालत ने मंदिर हटाने का फैसला सुनाकर श्रद्धालुओं के दिलों को एक बार फिर आहत किया है। प्रयास न छोड़ते हुए वैदिक सोसायटी ने 4 अप्रैल को सेंट पीटर्सबर्ग स्थित भारत के कोंसुलेट जनरल विश्वास सकपाल को फिर से चिट्ठी लिखकर भारत सरकार से इस मामले में मदद की गुहार की है। n

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