हृदय रोग एवं प्राकृतिक चिकित्सा
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प्राकृतिक चिकित्सा
डा. हर्ष वर्धन
एम.बी.बी.एस.,एम.एस. (ई.एन.टी.)
आम धारणा है कि हृदय रोग में एलोपैथी एवं आधुनिक चिकित्सा पद्धति ही कारगर है, लेकिन यहां जानकारी के लिए बताना आवश्यक है कि आयुर्वेद एवं प्राकृतिक चिकित्सा के विशेषज्ञों ने भी इस रोग के संदर्भ में चिन्ता की है तथा अपने अनुभवों के आधार पर बहुमूल्य जानकारियां दी हैं। ऐसे पाठक जिन्हें आयुर्वेद एवं प्राकृतिक चिकित्सा पद्धतियों की उपयोगिता में विश्वास हो उनके लिए हृदय के स्वास्थ्य से संबंधित जानकारियों की चर्चा भी यहां की जा रही है। मुख्यत: हृदय रोग पश्चिमी देशों में 20वीं सर्दी का रोग माना जाता है। यूरोप में 1930 तथा अमेरिका में 1940 के दशकों में यह रोग फैला, परन्तु भारतीय चिकित्सा ग्रंथों में इसका उल्लेख चरक और सुश्रुत के समय से ही मिलता है। हृदय के बारे में चरक संहिता में उल्लेख है-
षडङ्गमङ्ग विज्ञानमिन्द्रियाण्यर्थपंचकम्।
आत्मा च सगुणश्चेतश्चिन्त्यं च हृदि संश्रितम्।।
अर्थात छह अंगों से युक्त हमारा शरीर ज्ञान इंद्रियां, आत्मा, मन और चिंतन-हृदय पर ही निर्भर है।
यही नहीं, महर्षि चरक ने हृदय रोग के कारणों का भी उल्लेख इस प्रकार किया है-
अत्यादानं गुरुस्निग्धमचिन्तनमचेष्टनम्।
निद्रासुखं चाप्यधिकं कफहृद्रोगकारणम्।।
अर्थात्-आवश्यकता से ज्यादा, वसायुक्त एवं गरिष्ठि भोजन करना, अधिक चिंताग्रस्त रहना, एक ही स्थान पर बैठे-बैठे समय व्यतीत करना और निद्राप्रिय होना-कफ को बढ़ाते हैं और हृदय की बीमारी पैदा करते हैं।
हृदय रोग की तात्कालिक चिकित्सा
जब हृदय रोग का दौरा पड़ता है तब स्थिति अत्यंत नाजुक हो जाती है और जीवन पर मृत्यु का खतरा मंडराने लगता है। ऐसी स्थिति में रोगी को शारीरिक और मानसिक विश्राम देने के लिए किसी एकांत स्थान तथा साफ-सुथरे बिस्तरे पर सिर को ऊंचा रखते हुए लिटा देना चाहिए। उसके पहने हुए कपड़ों को ढीला कर देना चाहिए। रोगी उत्तेजित न होने पाये, इसका पूरा ध्यान रखना चाहिए तथा इसके लिए उसके समक्ष उत्तेजना पैदा करने वाले क्रियाकलाप अथवा शब्दों के इस्तेमाल से परहेज करना चाहिए। जब तक रोगी इस संकट से उबर न जाये, उसे उपवास पर रखना चाहिए। यदि शरीर बहुत कमजोर हो तो जरूरत के अनुसार संतरे, अंगूर, अनार या कागजी नीबू का रस दे देना चाहिए। इस दौरान पेट को साफ रखने पर विशेष ध्यान देना चाहिए तथा पेट साफ होने में परेशानी हो तो एनिमा दे देना चाहिए। उपवास के समाप्त होने पर रोगी को कुछ समय के लिए फलों के जूस, फिर फल और दूध पर रखना चाहिए। प्रतिदिन दो बार 15 मिनट से बढ़ाकर आधे घंटे तक हृदय पर बदल-बदल कर कपड़े की ठंडी पट्टी रखनी चाहिए और अंत में सूखे कपड़े से रगड़ कर लाल कर देना चाहिए। सांस की तकलीफ हो अथवा कफ तेज हो तो पैरों को गरम करने लिए उन पर ऊनी पट्टी या गरम कपड़ा लपेट देना चाहिए। साथ ही ठंडे जल से भीगे कपड़े की एक पट्टी अलग से रखकर पूरी छाती पर एक घंटे के लिए पट्टी लगानी चाहिए। यह प्रयोग प्रत्येक बीस मिनट बाद करना चाहिए तथा प्रत्येक बार गीली पट्टी हटाने के उपरांत सूखे कपड़े से रगड़कर उस स्थान को लाल कर देना चाहिए। यदि घबराहट अधिक हो रही हो तो पट्टी के बजाय साधारण पानी में तर करके फिर बर्फ के पानी में तरकर और निचोड़कर लगानी चाहिए।
हृदय शूल (दिल का दर्द अथवा एंजाइना पेक्टोरिस) में पांच मिनट तक गरम जल में कपड़े को भिगो-निचोड़ कर उससे सिकाई करके 15 मिनट तक ठंडी पट्टी का प्रयोग करना चाहिए। इस क्रिया को 4-5 बार दोहराना चाहिए या पांच मिनट तक हॉट फुट बॉथ (पैरों का गरम स्नान) देने के आधे घंटे तक हाथों और पैरों को गरम कपड़ा लपेट कर गरम रखना चाहिए।
यदि हृदय बैठ रहा हो तथा धड़कन बंद हो रही हो तो रीढ़ पर ठंडी और गरम सिकाई करनी चाहिए तथा बीच-बीच में “स्पंज बाथ” या गरम पानी में भिगो और निचोड़ कर कपड़े की पट्टी से हृदय की तब तक सिकाई करनी चाहिए जब तक हृदय की धड़कन अपनी स्वाभाविक अवस्था में न आ जाए। सिकाई के बाद लेटे-लेटे ही या टब में बैठकर मेहन स्नान ले लिया जाए तो अधिक लाभ होता है।
दिल की धड़कन बढ़ने की स्थिति में आधे-आधे घंटे पर 20 मिनट के लिए ठंडी पट्टी हृदय पर रखनी चाहिए। पट्टी पूरे हृदय क्षेत्र एवं पूरी दाहिनी पंजरी तक लगानी चाहिए और परेशानी बढ़ने पर रीढ़ पर भी और हर बार पट्टी उतरने पर उस स्थान को सूखे कपड़े से रगड़कर लाल कर देना चाहिए। नित्य कर्म से निवृत्त होने के उपरांत 12-21 पत्ते काली तुलसी तथा उपलब्ध न हो तो हरी तुलसी को चबाकर थोड़ा पानी पी लेना चाहिए। इसके उपरांत तीन घंटे तक कुछ नहीं खाना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि इस प्रयोग से 3-4 दिनों में भयानक हृत्कम्प (इसमें जोर-जोर से दिल धड़कने के दौरे आते हैं। ऐसी अवस्था में रोगी को घबराहट होती है। यह रोग पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में ज्यादा होता है) दूर हो जाता है।
हृदय रोग के साथ शरीर में सूजन आ जाये और जलोदर के लक्षण दिखाई देने लगें तो रोगी के पूरे शरीर को गीली चादर से लपेट दें तदोपरांत ऊनी कंबलों से पुन: लपेट कर तीन-चार घंटों तक रखें। पसीना निकालने के प्रयोगों के उपरंत तौलिया स्नान देना चाहिए। उसके पश्चात् कटि-स्नान या मेहन स्नान अथवा साधारण स्नान देना चाहिए। हृदय रोग में यदि नींद न आती हो तो सोने से पूर्व 15 मिनट तक सिर पर ठंडे जल से भीगे और निचोड़े कपड़े को रखकर तथा पैरों को गरम पानी में रखने से लाभ होता है।
हृदय रोग में शहद का सेवन अत्यधिक फायदेमंद होता है। इसे थोड़ा-थोड़ा इस्तेमाल करें फिर धीरे-धीरे बढ़ाकर 100 ग्राम प्रतिदिन नीबू के रस के साथ ठंडे पानी से लेना चाहिए। सूजन अथवा हृदय रोग के गंभीर हो जाने पर नमक को त्याग देना चाहिए तथा प्रयास यह करना चाहिए कि सायंकाल का भोजन सूर्य अस्त होने के पूर्व संपन्न हो जाए।
पाठकों की जानकारी हेतु यह बताना आवश्यक है कि उपरोक्त विधियां प्राकृतिक चिकित्सा पर आधारित हैं, जो दुष्प्रभावरहित एवं सहज हैं लेकिन इसके लिए यह भी आवश्यक है कि हमारी जीवनचर्या एवं खान-पान भी अनुशासित एवं मर्यादित होने चाहिए। हृदय रोग की स्थिति अत्यंत गंभीर हो जाए तो अस्पताल में ले जाना बेहतर है, क्योंकि हृदय रोग में आधुनिक चिकित्सा प्रक्रियाओं एवं बाईपास आपरेशन इत्यादि की भी आवश्यकता पड़ती है जो प्राकृतिक चिकित्सा में संभव नहीं है। हृदय रोग से संबंधित मरीज एक शिक्षित चिकित्सक विशेषकर हृदय रोग विशेषज्ञ के संपर्क में रहकर ही कोई भी प्रक्रिया अपनायें ताकि बेहतर मार्गदर्शन मिल सके। द
(लेखक दिल्ली सरकार में स्वास्थ्य एवं शिक्षा मंत्री रहे हैं।)
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