दृष्टिपात
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आलोक गोस्वामी
इस्रायल और ईरान के बीच इन दिनों बेहद ठनी हुई है। ईरान के परमाणु बम तैयार करने संबंधी संयुक्त राष्ट्र की परमाणु एजेंसी की पुष्टि के बाद दोनों देशों में लड़ाई के बादल गहराने लगे हैं। 6 नवम्बर को तो इस्रायल के राष्ट्रपति शिमोन पेरेज ने साफ शब्दों में चेतावनी दी थी कि ईरान पर हमले के आसार बढ़ते जा रहे हैं। इस चेतावनी के बाद दोनों देशों के नेताओं ने एक-दूसरे का कचूमर निकाल देने की ताकत होने का दावा करते हुए मीडिया में शोले भड़काते बयान जारी करने का सिलसिला चलाया हुआ है।
इस सबके बीच भू-राजनीति के जानकार मानते हैं कि लड़ाई छिड़ेगी या नहीं, इसका अंतिम फैसला तो अमरीकी राष्ट्रपति ओबामा ही करने वाले हैं। अमरीका का मूड, फिलहाल इस्रायल की उम्मीद यानी फौजी हमले को समर्थन देने का नहीं दिखता। उधर फ्रांस के विदेश मंत्री एलेन जुप्पे का कहना है कि वहां की फौजी हलचल पूरे क्षेत्र को डगमगा देने वाले हालात पैदा कर सकती है, जिनका पूरी दुनिया पर गहरा असर पड़ेगा। जुप्पे का कहना है कि उनका देश ईरान पर बस पाबंदियां लगाने तक की हद तक जाएगा। वैसे पिछले कई सालों से इस्रायल और ईरान में भड़काने वाले बयानों की जंग छिड़ी हुई है, युद्ध की धमकियां दी जाती रही हैं। इस्रायल कहता आ रहा है कि ईरान के परमाणु कार्यक्रम उसके परमाणु बम बनाने की तैयारियों को आड़ देने का काम कर रहे हैं। जबकि दूसरी ओर ईरान लगातार इस बात से इनकार करते हुए कहता आ रहा है कि उसके परमाणु कार्यक्रम बिजली बनाने और चिकित्सा की जरूरतों के लिए हैं। इस्रायल की ताजा धमकियों पर ईरान ने भी पलटवार करते हुए कहा है कि अगर तेल अवीव ने उस पर हमला किया तो वह भी इस्रायल और दुनियाभर में उससे जुड़ी चीजों पर हमले बोल देगा। ऐसे में, इस्रायली नेता कितने ही शोले उगलें, हरी झंडी तो वाशिंगटन को ही दिखानी है, क्योंकि अगर अमरीकी इजाजत के बिना इस्रायल ने ईरान पर हमला बोला तो आगे के लिए अमरीका-इस्रायल संबंधों में गहरी दरार पड़ने की पूरी संभावना है।
दिलचस्प बात यह है कि इस्रायल की गुप्तचर एजेंसी मोसाद के पूर्व प्रमुख मीर दागान जहां ईरान पर हमले के खिलाफ हैं, वहीं एक सर्वेक्षण के अनुसार, इस्रायल की 41 फीसदी जनता हमले के पक्ष में है, 39 फीसदी विरोध में और 20 फीसदी न 'हां' में है न 'ना' में। उधर, इजिप्ट के 'अल-अखबार' को दिए इंटरव्यू में ईरानी राष्ट्रपति महमूद अहमदीनेजाद ने चेताया कि इस्रायल ढहने के कगार पर ½èþ*
जवाहिरी की उतावली ने ली
लादेन की जान
एयमन अल जवाहिरी की उतावली ही आखिरकार अल कायदा के सरगना ओसामा बिन लादेन की जान ले गई। यह सनसनीखेज खुलासा किया है लादेन-वध करने वाले अमरीका के चुस्त-चौकन्ने और बेहद मारक 'सील' दस्ते के एक पुराने जांबाज चक फारर ने। उसके अनुसार, जवाहिरी अल कायदा का मुखिया बनने को इस कदर उतावला था कि वह बार-बार एक इनसानी कूरियर को एबटाबाद (पाकिस्तान) स्थित लादेन के गुप्त अड्डे पर भेजता था। उस इनसानी कूरियर को पकड़कर अमरीकी खुफिया एजेंसी सी.आई.ए. ने पूछताछ की थी। चक फारर की 8 नवम्बर को छपकर आई किताब 'सील टारगेट गेरोनीमो' में इस बाबत विस्तार से लिखा हुआ है। चक ने लिखा कि यह जानते हुए कि उसके इस इनसानी कूरियर का खुलासा हो चुका है, जवाहिरी दूसरे इनसानी कूरियर अबू अहमद अल कुवैती को बिन लादेन के अड्डे पर बार-बार भेजता रहा। इस सूचना के आधार पर यह समझा जा सकता है कि यह जवाहिरी ही था जिसने अमरीकी जांबाजों को लादेन के गुप्त अड्डे तक पहुंचाया था। इसके पीछे लादेन की सुरक्षा को बार-बार भेदा जाना ही एकमात्र जरिया हो सकता था। पहले वाले इनसानी कूरियर के पकड़े जाने और राज उगलने की बाबत जानते हुए भी जवाहिरी ने कुवैती को इस्तेमाल करके लादेन की सुरक्षा को भेदने का एक तरह से इंतजाम कर दिया था।
विएतनामी मंदिरों का जीर्णोद्धार!
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को विएतनाम के चौथी से तेहरवीं शताब्दी के बीच वहां के चंपा राजाओं द्वारा बनाए मंदिरों के जीर्णोद्धार का काम सौंपा गया है। 1999 में विएतनाम में 'माइ सन सेंक्च्युरी' को संयुक्त राष्ट्र ने विश्व धरोहर के रूप में स्वीकारा था। इसी परिसर में दक्षिण पूर्व एशिया के कई मशहूर हिन्दू मंदिर और स्मारक हैं जो जीर्ण-शीर्ण हालत में हैं। ये अधिकांशत: ईंटों के बने हैं जिनके संरक्षण की दक्षता विएतनाम में न होने के चलते भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण से यह काम करने का अनुरोध किया गया था। इस दिशा में वहां फ्रांस और इटली के विशेषज्ञ भी काम कर रहे हैं? उल्लेखनीय है कि इस सेंक्च्युरी में स्थित करीब 70 यादगार धरोहरें '69 में अमरीकी बमबारी से थर्रा उठी थीं। गजब के वास्तुशिल्प वाले इन मन्दिरों के उद्धार के लिए विएतनाम सरकार ने भारत सरकार से मदद की गुहार की थी। भारतीय विदेश मंत्रालय ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को निर्देश दिया, जिसने तुरन्त विशेषज्ञों का एक दल तैनात किया। इस दल ने इस सिलसिले में एक विस्तृत रपट बनाकर विदेश मंत्रालय को सौंप दी है। उम्मीद है, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण जल्दी ही इन मंदिरों को ढांचागत मजबूती देकर इन्हें आने वाले लंबे समय तक संरक्षित करने की दिशा में कदम उठाएगा
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