बात बेलाग
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जन लोकपाल विधेयक की मांग को लेकर अण्णा हजारे के अनशन-आंदोलन को संसदीय लोकतंत्र को कमजोर करने वाला बताने वाले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने हाल ही में दिल्ली में सीबीआई और राज्यों के भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो के सम्मेलन में फरमाया कि प्रस्तावित लोकपाल का जो भी स्वरूप हो, भ्रष्टाचार के मामलों में सीबीआई की भूमिका महत्वपूर्ण बनी रहेगी। ध्यान रहे कि अण्णा के जन लोकपाल के जिन प्रावधानों पर मनमोहन सरकार और कांग्रेस को आपत्ति है, उनमें सीबीआई को लोकपाल के अधीन लाना भी शामिल है। आखिर राजनीतिक गलियारों में सीबीआई को “कांग्रेस ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टीगेशन्स” यों तो नहीं कहा जाने लगा है। सर्वोच्च न्यायालय की सख्ती से 2 जी घोटाले की जांच को मजबूर हुई सीबीआई अब भी अपने राजनीतिक आकाओं के इशारों पर नाचने में संकोच नहीं करती। बड़े माने जाने वाले कई लोग 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले के आरोपी के रूप में तिहाड़ जेल में हैं। मामला एक ही है, लेकिन जमानत पर सीबीआई के रंग अलग-अलग नजर आते हैं। तिहाड़ जेल की शोभा बढ़ा रहे लोगों में तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री एवं द्रमुक प्रमुख करुणानिधि की सांसद बेटी कणिमोझी भी शामिल हैं। दीपावली के मौके पर कई आरोपियों ने पटियाला हाउस स्थित विशेष न्यायाधीश की अदालत में जमानत की अर्जी लगायी। 24 अक्तूबर को जब जमानत पर सुनवाई हुई तो सीबीआई ने अप्रत्याशित रूप से कणिमोझी, शरद कुमार, करीम मोरानी, आसिफ बलवा और राजीव अग्रवाल की जमानत अर्जी का तो विरोध नहीं किया, लेकिन आर. के. चंदोलिया और शाहिद उस्मान बलवा की जमानत अर्जी का विरोध किया। सीबीआई ने अपने इस भेदभाव के पक्ष में तर्क भी गढ़ लिए कि इन लोगों के विरुद्ध जिस अपराध का मामला है, उसमें सजा का प्रावधान अलग-अलग है। जो बात सीबीआई ने नहीं बताई, वह यह कि करुणानिधि हाल ही में दिल्ली आकर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मिले थे। इस बार उनके तेवर भी कांग्रेस के प्रति पहले जैसे तीखे नहीं थे। बहरहाल अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया और बड़े लोगों को भी दीपावली तिहाड़ में ही मनानी पड़ी।
हार के बाद रार
हरियाणा के हिसार संसदीय क्षेत्र के उप चुनाव में कांग्रेस के जीतने की खुशफहमी तो खुद कांग्रेसियों को भी नहीं रही होगी, पर उसके प्रत्याक्षी जयप्रकाश जमानत भी नहीं बचा सकेंगे, इसकी उम्मीद भी विरोधियों को नहीं थी। जयप्रकाश को मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने अपने ही दल के तमाम दिग्गजों के विरोध के बावजूद टिकट दिलवाया था। लगभग एक पखवाड़े तक वह मंत्रिमण्डल समेत हिसार में डेरा भी डाले रहे। लेकिन क्षेत्र के मतदाताओं का मन नहीं पसीजा। हिसार के मतदाताओं ने इस बार भजनलाल के पुत्र कुलदीप विश्नोई को लोकसभा के लिए चुना। इंडियन नेशनल लोकदल का दूसरा स्थान भी बरकरार रहा, लेकिन सबसे बुरी गत कांग्रेस की हुई, जिसके उम्मीदवार की जमानत तक नहीं बची। चुनावी हार के बाद अब हरियाणा कांग्रेस में रार मची है। मुख्यमंत्री ने चंडीगढ़ में हरियाणा प्रदेश कांग्रेस की बैठक कर केन्द्रीय मंत्री शैलजा, कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव वीरेन्द्र सिंह और अपने ही मंत्रिमण्डल की सदस्य किरण चौधरी के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिए प्रस्ताव भी पारित करवा दिया। दिलचस्प बात यह है कि हिसार का चुनाव परिणाम आते ही गुड़गांव प्रसासन ने कुछ हुड्डा विरोधी कांग्रेसियों के घरों पर बुलडोजर भी चलवा दिया।
निकल गयी दिवाली
उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनावों के लिए कांग्रेस से गठबंधन का राष्ट्रीय लोकदल का इंतजार खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा। उम्मीद की जा रही थी कि कांग्रेस छोटे चौधरी को दिवाली का तोहफा देगी, लेकिन दिवाली तो खाली निकल गई। ऐसे वक्त जबकि घोटालों से घिरी कांग्रेस को कोई लकड़ी से भी नहीं छूना चाहता, रालोद प्रमुख अजित सिंह ने उससे चुनावी गठबंधन का राजनीतिक जोखिम उठाने का साहस जुटाया, तो उसके कारण भी साफ हैं। एक, कांग्रेस की तरह रालोद के पास भी गठबंधन के लिए कोई और विकल्प नहीं बचा है। दूसरे केन्द्र में कांग्रेस सरकार का अभी दो साल से भी ज्यादा कार्यकाल बचा है। वैसे कांग्रेस गठबंधन के लिए तैयार है और अजित सिंह को मंत्री बनाने के लिए भी, लेकिन दोनों ही मामलों में वह अपनी मनमानी करना चाहती है। रालोद के गढ़ में भी कुछ सीटों पर प्रत्याशी घोषित कर चुकी कांग्रेस इन सीटों को नहीं छोड़ना चाहती और अजित को उनकी पसंद का मंत्रालय भी नहीं देना चाहती। राजनीतिक सौदेबाजी में कांग्रेस और अजित में से कम कोई नहीं है, लेकिन वक्त हाथ से निकला जा रहा है। इसलिए रालोद कार्यकर्ताओं को यह डर सताने लगा है कि कहीं कांग्रेस वर्ष 2007की तरह आखिर तक लटका कर झटका ही न दे दे।
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