सम्पादकीय
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रत्न मिट्टियों में से ही निकलते हैं। स्वर्ण से जड़ी हुई मंजूषाओं ने तो कभी एक भी रत्न उत्पन्न नहीं किया।
-जयशंकर प्रसाद (विशाख, पृ. 13)
जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला अपनी गिरती साख को बचाने के लिए वोट राजनीति का खेल खेलते हुए राष्ट्रहित को दांव पर लगाने पर आमादा हैं और अपना चुनावी वादा पूरा करने के नाम पर कश्मीर घाटी से सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम हटवाने की पुरजोर कोशिश कर रहे हैं। इस अधिनियम से प्रभावित कुछ क्षेत्रों को उन्होंने “अशांत क्षेत्र” के दायरे से बाहर लाने और वहां से विशेषाधिकार अधिनियम हटवाने की फिर से घोषणा की है। इसका सीधा अर्थ है कि वे अलगाववादियों के आगे घुटने टेकते हुए जिहादी आतंकवाद के खतरे की अनदेखी कर रहे हैं। राज्य में जिहादी आतंकवाद की नाक में नकेल कसने का काम तो मुख्य रूप से सेना व सशस्त्र बल ही कर रहे हैं और इसीलिए वे जिहादी आतंकवादियों के हितैषियों व पाकिस्तानपरस्त अलगाववादी नेताओं की आंखों में खटकते हैं। ये नेता गाहे-बगाहे सशस्त्र बलों व सेना को तो अमानवीय व क्रूर बताकर उनका हौवा खड़ा करते रहते हैं, जबकि नृशंस आतंकवादी घटनाओं को हमेशा नजरअंदाज करते हैं। उनकी नजर में सिर्फ देशद्रोहियों व भारतविरोधी आतंकवादियों के ही मानवाधिकार हैं, इनकी हैवानियत से त्रस्त कश्मीरी हिन्दुओं व बेमौत मारे जा रहे नागरिकों और उनके पीड़ित परिजनों के कोई मानवाधिकार उन्हें नहीं दिखाई देते हैं। उमर अब्दुल्ला अपने पिता व दादा की राष्ट्रघाती राजनीतिक विरासत को पोसते हुए सिर्फ अपनी गद्दी की चिंता में निमग्न हैं और राष्ट्रहित के विपरीत जाकर कभी भारत में कश्मीर के विलय पर प्रश्न उठाते हैं, तो कभी राज्य को स्वायत्तता दिए जाने व सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम समाप्त करने की मुहिम चलाते हैं। वे भूल जाते हैं कि वह भारत संघ के एक संवैधानिक दायित्व को संभालने वाले व्यक्ति हैं। कश्मीर उनकी जागीर नहीं है, जहां उनकी मनमानी चलेगी और वे भारत विरोधी गतिविधियों को संरक्षण देते रहेंगे।
दुर्भाग्य यह है कि उमर अब्दुल्ला की सरकार में सहभागी कांग्रेस के नेतृत्व वाली केन्द्र की संप्रग सरकार कश्मीर समस्या को गंभीरता से न लेकर चुनावी राजनीति के नजरिये से ही देखती है। वस्तुत: कश्मीर समस्या की जड़ ही पं. नेहरू के समय से कांग्रेस की गलत कश्मीर नीति व वोट की राजनीति रही है। राज्य को विशेष दर्जा देने वाली जिस धारा 370 का संविधान में अस्थाई प्रावधान किया गया था, वह कांग्रेस के राजनीतिक समीकरणों के चलते अभी तक बनी हुई है और राज्य में अलगाववाद व विभाजनकारी पाकिस्तानपरस्त तत्वों को उससे प्रोत्साहन मिलता है। संप्रग सरकार ऐसे तत्वों के प्रति नरमी बरतते हुए अपने सत्ता के गणित को ही महत्व देती है। इसी कारण वह उमर अब्दुल्ला की राष्ट्रविरोधी भूमिका की लगातार अनदेखी करती रही है। उनके दबाव में कश्मीर से करीब 3 हजार जवानों को पहले ही हटाया जा चुका है और अब गृहमंत्री सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम पर भी ढुलमुल रवैया अपनाए हुए हैं। गृह मंत्रालय उमर अब्दुल्ला को कड़ा जवाब देने की वजाय हालात की समीक्षा करने में जुटा है, जबकि सेना की ओर से अधिनियम को हटाए जाने का कड़ा विरोध किया जा रहा है। जिहादी आतंकवाद और माओवादी नक्सलवाद के मोर्चे पर पूरी तरह विफल रहे गृहमंत्री चिदम्बरम जम्मू-कश्मीर के मामले में भी ऊहापोह में फंसे हैं।
राज्य में कांग्रेस व नेशनल कांफ्रेंस का गठबंधन सत्ता में होने से कांग्रेस के राजनीतिक हित आड़े आ रहे हैं। जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस जब तक सत्ता स्वार्थों से बाहर निकलकर अपनी गलत कश्मीर नीति की दिशा राष्ट्रहित और संसद के संकल्प के आलोक में ठीक नहीं करती, तब तक कश्मीर घाटी में अलगाववादी, राष्ट्रद्रोही व पाकिस्तान प्रेरित आतंकवादी तत्वों की गर्दन मरोड़ने के लिए वहां सेना व सशस्त्र बलों की उपस्थिति तथा उन्हें विशेषाधिकारों से लैस बनाए रखना अत्यंत आवश्यक है। अब उमर अब्दुल्ला कहते हैं कि राज्य की पुलिस हालात से निपटने में सक्षम है। उन्हें याद रखना चाहिए कि इसी पुलिस की मौजूदगी के बावजूद लाखों कश्मीरी हिन्दू जिहादी आतंकवाद के चलते अपना घर-बार और माल-असबाब छोड़ने पर विवश हुए। वहां न तो उनका जीवन सुरक्षित था और न उनकी बहू-बेटियों का सम्मान। उमर अब्दुल्ला अलगाववादियों की शह पर नाचने वाले पत्थरबाजों व सेना के दबाव में पाकिस्तान भाग गए आतंकवादियों के तो आर्थिक हितों व पुनर्वास की चिंता में लगे हैं, लेकिन विस्थापित कश्मीरी हिन्दुओं के लिए उनके मन में कोई संवेदना नहीं है, उनकी घर वापसी के लिए उन्होंने क्या किया? देश की जनता इस सच्चाई को समझे और कश्मीर समस्या पर राजनीतिक खेल खेल रही राज्य व केन्द्र सरकार को राष्ट्रहित में निर्णय लेने के लिए बाध्य करने हेतु एक जाग्रत शक्ति के रूप में खड़ी हो, तभी भारत का मुकुटमणी कश्मीर केसर की क्यारियों की सुगंध देशभर में बिखेरता रहेगा अन्यथा चीन और पाकिस्तान की दुरभिसंधियां व कांग्रेस के सत्ता- स्वार्थ वहां आग सुलगाए रखेंगे।
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