आवरण कथा
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यात्रा ने जगाया
भ्रष्टाचार मुक्त स्वाभिमानी
भारत का सपना
-आलोक गोस्वामी-
11 अक्तूबर को जेपी के जन्मस्थान सिताबदियारा (बिहार) जाकर उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण करके भाजपा संसदीय दल के अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने छपरा से अपनी छठी पारदेशीय जनचेतना यात्रा की शुरुआत करके भारतीय राजनीति में यात्राओं के जरिए जहां जनता से सीधे संपर्क के आयाम को फिर से रेखांकित किया वहीं उन्होंने अब तक की भ्रष्टतम सरकार का तमगा पाने वाली मनमोहन सरकार को अपने दस जनपथीय खोल में दुबक जाने को भी विवश किया है। वे जेपी ही थे जिन्होंने आजाद भारत के इतिहास में जन जागृति और जन सहयोग से लोकतंत्र की पहली लड़ाई लड़ी थी। बात “73-“74 की है। संपूर्ण क्रांति का नारा देते हुए जेपी ने बिहार की धरती से जो बिगुल फूंका था उसकी गूंज से “77 में इंदिरा गांधी शासन ढह गया था। उसी धरती से आडवाणी ने अपनी यह यात्रा आरंभ करने के पीछे राजनीतिक शुचिता, भ्रष्टाचार का खात्मा और कालेधन की वापसी ही प्रमुख कारण गिनाए। जून में स्वामी रामदेव और अगस्त में अण्णा हजारे के भ्रष्टाचार और राजनीतिक दुराचार विरोधी आंदोलनों से देशभर में आम जनता जिस तरह खुद होकर जुड़ी थी और गली-गली में भ्रष्ट सत्ता के खिलाफ गुस्सा प्रकटाया था, उससे कहीं न कहीं जेपी आंदोलन की भले छोटी सी, पर एक झलक जरूर मिली थी। लोग सहज ही हाथों में मशालें लेकर सड़कों पर उतरे थे और इस बेसुध सरकार को जमकर कोसा था। जनता में एक चेतना जगी थी। आडवाणी उसी चेतना को जिलाए रखने के लिए जन चेतना यात्रा पर निकले हैं। और यह सही भी है, क्योंकि देश की आबादी का एक बड़ा हिस्सा यानी मध्यम वर्ग रोजी रोटी की मशक्कत में इतना उलझा दिया गया है कि उसे देश से, उसकी पीड़ा से, उसकी जरूरतों से उतना सरोकार नहीं रहता। उसे जगाने के लिए स्वामी रामदेव और अण्णा का तप लगता है और वह जगा रहे उसके लिए आज संसद के वरिष्ठतम सदस्यों में से एक आडवाणी जैसे व्यक्तित्व को देश का भ्रमण करना पड़ता है।
छपरा में बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार के हरी झंडी दिखाने के साथ ही 38 दिन में 23 राज्यों में जाकर जन चेतना का अलख जगाने निकले आडवाणी ने यात्रा की पूर्व संध्या पर 10 अक्तूबर को नई दिल्ली में पत्रकार वार्ता में साफ तौर पर कहा कि यह सरकार अपने ही भ्रष्ट आचरण और जनता के दुख-दर्द से दूर होने के कारण शायद ही इस कार्यकाल के बचे तीन साल पूरे कर पाए। उन्होंने कहा कि आजादी के बाद भारत के लोगों ने अपनी समस्याओं के निराकरण की जैसी इच्छा जताई थी वैसा कुछ नहीं हुआ, क्योंकि उत्तरोत्तर शासनों में कमियां थीं। और इस सरकार के काम- काज से जनता में आक्रोश बढ़ता गया है। महंगाई और भ्रष्टाचार की हदें लांघकर कालेधन के कारोबारियों को बचाने वाली इस सरकार के प्रति जनता में गुस्सा है। उन्होंने कहा कि संप्रग में नेतृत्व की कमी के कारण लोगों में पूरी राजनीतिक व्यवस्था के प्रति अनास्था दिख रही है। यह लोतंत्र की भारी क्षति है। आडवाणी ने नोट के बदले वोट, 2 जी आवंटन सहित अन्य घोटालों की चर्चा करते हुए कहा कि इस सरकार ने लोकतंत्र की साख को बट्टा लगाया है। उन्होंने कहा कि इस यात्रा में इसीलिए वे ईमानदार राजनीति किंवा लोकतंत्रीय राजनीति पर बल देंगे। क्योंकि, उनके अनुसार, लोकतंत्र में राजनीतिक दलों की अहम भूमिका होती है इसलिए कोई दल अपनी इस जिम्मेवारी को नकार नहीं सकता। आडवाणी ने भ्रष्टाचार के प्रति जनजागरण में सामाजिक संगठनों की भूमिका को भी सराहा। पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान आडवाणी ने कालेधन के मुद्दे पर बहुत बल दिया था, लेकिन इस सरकार ने उस पर चुप्पी साधे रखी। पर अब जबकि यह पता चल चुका है कि कौन रसूखदार लोग काले धन को विदेशी बैंकों में छुपाए हुए हैं तब भी सरकार उनके खिलाफ कार्रवाई करने से कतरा रही है। आडवाणी ने साफ कहा कि सरकार बताए कि अब तक उसने इस विषय पर क्या किया। वह इस पर श्वेत पत्र जारी करे।
उल्लेखनीय है कि स्विट्जरलैंड से मिली कालेधन के जमाखोरों की सूची में कुछ ऐसे नाम हैं जिनको सरकार उजागर करने से घबरा रही है, क्योंकि, बताते हैं, उनको उजागर किया तो इस सरकार की चूलें हिल जाएंगी।
इन पंक्तियों के लिखे जाते वक्त आडवाणी की जन चेतना यात्रा मध्य प्रदेश से गुजर रही है। बिहार की ही तरह उत्तर प्रदेश और अब मध्य प्रदेश में भी आडवाणी के स्वागत में भारी भीड़ जुटी। आम आदमी यात्रा को लेकर उत्साहित दिख रहा है। उत्साहित इसलिए कि उसे लगता है सोई सरकार को जगाने के लिए अब जाग चुके देशवासियों के साथ वह भी खड़ा है। लोकतंत्र में वह “लोक” के सम्मान के लिए जगा है, “तंत्र” में बदलाव के लिए उठ खड़ा हुआ है। द साथ में पटना से संजीव कुमार
यात्रा के प्रमुख पड़ाव
(11 अक्तूबर 2011- 20 नवम्बर 2011)
11 अक्तूबर- छपरा, पटना
12 अक्तूबर- भोजपुर, बक्सर, कैमूर, वाराणसी
13 अक्तूबर- मिर्जापुर, रीवा, सतना
14 अक्तूबर- उमरिया, जबलपुर
15 अक्तूबर- नरसिंहपुर, होशंगाबाद
16 अक्तूबर- भोपाल
17 अक्तूबर- छिंदवाड़ा, नागपुर
18 अक्तूबर- वर्धा, यवतमाल, आदिलाबाद, निजामाबाद
19 अक्तूबर- करीमनगर, मेढक, रंगारेड्डी, हैदराबाद
20 अक्तूबर- असम, अरुणाचल प्रदेश, कोलकाता
21 अक्तूबर- रांची, पोर्ट ब्लेयर
22 अक्तूबर- रायपुर
23 अक्तूबर- अरंग, महासमुंद, बाढ़गढ़, संबलपुर
24 अक्तूबर- रेधाखोल, अंगुल, ढेंकनाल, कटक, भुवनेश्वर
25 अक्तूबर- दिल्ली
26 अक्तूबर- दिल्ली
27 अक्तूबर- मदुरै
28 अक्तूबर- विरुदनगर, राजापालयम्, तिरुनेलवेल्ली, कोल्लम, तिरुअनंतपुरम
29 अक्तूबर- पत्तनमथिट्टा, कोट्टायम, अलपुझा
30 अक्तूबर- अर्णाकुलम
31 अक्तूबर- कोच्चि, बंगलूरू, मंगलौर, उडुपी, गोकर्ण
1 नवम्बर- अंकोला, कारवार, गोवा
2 नवम्बर- सिंधुदुर्ग, कोल्हापुर
3 नवम्बर- सांगली, सतारा, पुणे
4 नवम्बर- रायगढ़, वृहन् मुम्बई
5 नवम्बर- ठाणे, दादरा-नगर हवेली, दमन-दियू
6 नवम्बर- वलसाड, नवसारी, सूरत
7 नवम्बर- भरूच, वडोदरा, आणंद, अमदाबाद
8 नवम्बर- दिल्ली
9 नवम्बर- जोधपुर, पाली, अजमेर
10 नवम्बर- जयपुर
11 नवम्बर- सीकर, चुरू
12 नवम्बर- झुंझनू, भिवानी, हिसार, फतेहाबाद, सिरसा
13 नवम्बर- डबवाली, भठिंडा, लुधियाना
14 नवम्बर- फगवाड़ा, जालंधर, अमृतसर
15 नवम्बर- गुरदासपुर, पठानकोट
16 नवम्बर- मंडी, गग्गल, जम्मू, चंडीगढ़
17 नवम्बर- अंबाला, नारायणगढ़, सिरमौर, देहरादून
18 नवम्बर- हरिद्वार, बिजनौर, काशीपुर, बाजपुर, हल्द्वानी
19 नवम्बर- रुद्रपुर, रामपुर, मुरादाबाद, गाजियाबाद
20 नवम्बर- दिल्ली
भारत-नेपाल सीमा पर मजहबी उन्मादियों का उत्पात
आई.एस.आई.-माओवादी गठजोड़ की शह
भारत-नेपाल सीमा से राकेश श्रीवास्तव
भारत नेपाल सीमा पर आईएसआई और माओवादियों के गठजोड़ से भारत की सुरक्षा को गंभीर खतरा उत्पन्न हो गया है। नेपाल सीमा से सटे भारत के बहराइच जिले में विगत डेढ़ माह से कट्टरवादी मुस्लिमों की गतिविधियां अचानक बढ़ जाने से इस मुस्लिम बहुल जिले में हिन्दुओं में भय व दहशत का माहौल व्याप्त हो गया है। पिछली 24 अगस्त को बहराइच में हुए साम्प्रदायिक दंगे में जहां एक हिन्दू युवक के प्राण जा चुके हैं, वहीं बढ़ती गोवध की घटनाओं से हिन्दुओं के मन को आहत करने का षड्यंत्र जारी है। बहराइच में पिछले कुछ समय में जिस तरीके से अवैध मजारों के निर्माण, हिन्दुओं की जमीनें हड़पने, मस्जिद के पास खाली पड़ी नजूल भूमि पर कब्जा करने और गोहत्या के घिनौने कार्य किए गए हैं उनसे उ.प्र. की मायावती सरकार की तुष्टीकरण नीति ही उजागर हुई है। पुलिस अधीक्षक ने शांतिपूर्ण गणेश प्रतिमा विसर्जन के जुलूस पर खुलेआम लाठीचार्ज कर जहां हिन्दुओं की भावनाओं को आहत किया है, वहीं गोवध की घटना में उल्टे विश्व हिन्दू परिषद के सात नेताओं सहित ग्यारह ग्रामीणों की गिरफ्तारी ने हिन्दू जनमानस को झकझोर कर रख दिया है।
इन दिनों उत्सव का माहौल है। ऐसे में प्रशासन की हठधर्मी और भारत-नेपाल सीमा पर आईएसआई की बढ़ती गतिविधियों के चलते उ.प्र. के सीमांत जिलों-बहराइच, बलरामपुर, गोंडा, श्रावस्ती, लखीमपुर, सिद्धार्थनगर, गोरखपुर, महराजगंज- में भारी गड़बड़ी होने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है।
भारत-नेपाल सीमा के सीमांत जिले बहराइच में हाल ही में बढ़ी घटनाओं पर गौर करें तो इससे राष्ट्रविरोधी तत्वों की साजिश का पता आसानी से लगाया जा सकता है। 12 अगस्त 2011 को सिविल लाइंस स्थित पं.अम्बिका प्रसाद शुक्ल द्वारा बनवाई गई दीवार को सरेआम दोपहर में तोड़कर वहां दो मजारें बना दी गईं और प्रशासन तमाशबीन बना देखता रहा। 24 अगस्त 2011 को बहराइच शहर के मोहल्ला बशीरगंज में पुलिस चौकी स्थित एक मस्जिद के इमाम द्वारा नजूल भूमि पर कब्जा करने के प्रयास के बाद शहर में मुसलमानों द्वारा जमकर पथराव किया गया और एक दूसरी मस्जिद गुलाचीन से तनाव भड़कने की अफवाह उड़ाकर साम्प्रदायिक उन्माद को हवा दी गई। उत्तेजित मुस्लिम युवकों ने सैकड़ों की संख्या में लाठी, तलवार और कुल्हाड़ी से लैस होकर हिन्दुओं पर हमला बोल दिया, घटना में आधा दर्जन हिन्दू घायल हो गए। इतना ही नहीं, कट्टर मुस्लिमों ने गोलियां चलाईं जिससे एक हिन्दू युवक साबितराम यादव की मौत हो गई। प्रदेश के तत्कालीन विशेष पुलिस महानिदेशक बृजलाल ने हेलीकाप्टर से बहराइच का दौरा किया और शांति बनाए रखने की अपील की। हैरानी की बात है कि इस घटना में कुल तीन मुस्लिम युवकों को ही गिरफ्तार किया गया जबकि साथ ही, आधा दर्जन हिन्दू युवकों को बेवजह गिरफ्तार कर लिया गया, जो इन पंक्तियों के लिखे जाने तक जेल में बंद हैं।
मुसलमान युवकों द्वारा हिन्दुओं के घरों में लूटपाट भी की गई। बहराइच में अघोषित कफ्र्यू की स्थिति बनी रही। 28 अगस्त 2011 को भारत-नेपाल सीमा पर रुपईडीहा कस्बे में शिव मंदिर को क्षतिग्रस्त किया गया। 5 सितम्बर 2011 को खैरीघाट के वैवाही गोवट मंदिर को मुसलमानों द्वारा ढहा दिया गया और पुलिस मूक दर्शक बनी रही। 11 सितम्बर 2011 को बहराइच में गणेश प्रतिमा विसर्जन के दौरान घंटाघर चौराहे पर धार्मिक गीत बजने पर पुलिस प्रशासन अनावश्यक उत्तेजित हो गया। पुलिस ने गीत का कैसेट छीन लिया जबकि पुलिस अधीक्षक रविशंकर छवि द्वारा खुद ही हिन्दुओं पर बर्बरतापूर्वक लाठियां भांजी गईं, जिसमें छह हिन्दू युवक घायल हुए। मुसलमानों द्वारा हथगोला भी दागा गया। इतना ही नहीं, पुलिस अधीक्षक, बहराइच द्वारा दुर्गापूजा महोत्सव में धार्मिक गीत न बजाए जाने का फरमान भी जारी किया गया जिसकी विहिप और भाजपा नेताओं ने कड़ी निंदा करते हुए शांति समिति की बैठक का बहिष्कार किया।
15 सितम्बर 2011 को थाना बौण्डी के कलहसनपुरवा में गोवध की घटना की गई और अपने बचाव में उपद्रवियों ने स्वयं ही अपने घरों में आग लगा दी। घटना का दौरा करने जा रहे विश्व हिन्दू परिषद के नेताओं रामनाथ सर्राफ, राजकुमार सोनी, कैलाश नाथ पाठक, राधारमण परासैनी, देवेन्द्र मिश्रा, महेश सैनी और दिनेश खरे को पुलिस ने गिरफ्तार कर जेल भेज दिया, जो अभी तक जेल में बंद हैं। इन नेताओं पर साम्प्रदायिक उन्माद भड़काने की विभिन्न धाराएं लगायी गई हैं। उनके अलावा 11 ग्रामीणों को भी पुलिस ने गिरफ्तार किया है।
इस प्रकार भारत-नेपाल सीमा पर बढ़ रहीं कट्टरवादी मुसलमानों की गतिविधियां किसी बड़े खतरे की ओर इशारा कर रही हैं। बताया जाता है कि इन घटनाओं के पीछे सीमा पार आईएसआई और माओवादियों की दुरभिसंधि की शह है। 24 सितम्बर 2011 को स्थानीय रामलीला मैदान में विभिन्न हिन्दू संगठनों और धर्माचार्यों ने हिन्दू सम्मेलन आयोजित कर बहराइच में बढ़ रहीं आईएसआई गतिविधियों और आईएसआई द्वारा मुसलमानों को खुला संरक्षण देने की बात कही गई। उन्होंने पुलिस अधीक्षक रविशंकर की बर्बरता की भत्र्सना की। लेकिन इससे भी प्रशासन के सेकुलर बर्ताव में कोई बदल आता न देख मुस्लिम उन्मादियों के हौसले बढ़ते गए। 7 अक्तूबर को जब स्थानीय दुर्गा पूजा के बाद प्रतिमाओं को शोभायात्रा के रूप में विसर्जन के लिए ले जाया जा रहा था तब मिहिरपुरवा इलाके में मजहबी उन्मादियों ने शोभायात्रा पर पत्थर बरसाने शुरू कर दिए। देवी की प्रतिमाओं को निशाना बनाकर की गई इस पत्थरबाजी में कुछ प्रतिमाएं खंडित हो गईं। इस बेवजह के उकसावे से तनाव फिर बढ़ गया। दुकानें जलाई गईं, बाजार में पत्थरबाजी हुई। एक बार फिर अघोषित कफ्र्यू लग गया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के जिला प्रचारक श्री अखिलेश ने भारत-नेपाल सीमा पर बढ़ रहीं ऐसी राष्ट्र विरोधी गतिविधियों को मजहबी उन्मादियों की सोची-समझी रणनीति का हिस्सा बताया है।द
तेलंगाना पर फिर एक बार उजागर हुई
कांग्रेस की
धोखे की राजनीति
-हैदराबाद से नागराज राव-
कांग्रेस पार्टी की धोखे की राजनीति पर अमल करते हुए आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री किरण कुमार ने तेलंगाना के लोगों को, लगता है, फिर से धोखा दिया है। इतिहास बताता है कि जब रोम जल रहा था तब नीरो बंसी बजा रहा था। आंध्र प्रदेश में तेलंगाना की तेज होती मांग से आज हालात बेहद गंभीर हैं पर कांग्रेस नीरो की उसी भूमिका को अपनाने पर तुली है।
आंध्र प्रदेश में पृथक तेलंगाना राज्य की मांग को लेकर आम हड़ताल को 30 से ज्यादा दिन बीत चुके हैं और यह इन पंक्तियों के लिखे जाने तक जारी है। हड़ताल की वजह से प्रतिदिन करोड़ों रु. का नुकसान हो रहा है। तेलंगाना राज्य की मांग करते हुए केंद्र सरकार पर दबाव बनाने के लिए प्रदेश के सरकारी कर्मचारी, शिक्षक, कोयला खदानों के मजदूर और राज्य सड़क परिवहन निगम के कर्मचारी हड़ताल में शामिल हैं। इतना ही नहीं, रेलगाड़ियों को रोकने से लेकर विरोध के तमाम कार्यक्रम कितने ही दिनों से चल रहे हैं। तेलंगाना क्षेत्र के विभिन्न जिलों में कर्मचारियों की ओर से रैलियां निकाली जा रही हैं और बंद के आयोजन किए जा रहे हैं। अब तक यह आन्दोलन कमोबेश शांतिपूर्वक चला है।
कोयला खदानों के 70,000 कर्मचारियों में से अधिकांश इस हड़ताल को अपना समर्थन दे रहे हैं। करीब 50 खदानों में कोयले के उत्पादन का काम बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। तेलंगाना क्षेत्र के जिलों में 12 घंटे और अन्य शहरों में 6 से 8 घंटे बिजली कटौती हो रही है, क्योंकि बिजली उत्पादन पर असर पड़ रहा है। पड़ोसी कर्नाटक और महाराष्ट्र से बिजली खरीदी जा रही है। उस पर हालत यह है कि इस मुद्दे को सुलझाने का कोई रास्ता केंद्र सरकार के पास दिखाई नहीं देता। सिर्फ बयान दिए जा रहे हैं कि इस मसले को सुलझाने के लिए और समय की जरूरत है। अलग तेलंगाना राज्य को लेकर जारी हड़ताल के बीच प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात के बाद केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने कहा कि सरकार को इस मामले में समय चाहिए, उसे अपने सहयोगी दलों की राय भी लेनी है।
नई नहीं है मांग
आंध्र प्रदेश को बांटकर पृथक तेलंगाना प्रदेश बनाने की मांग नई नहीं, करीब 50 साल पुरानी है। सबसे पहले यह मांग 1960 में उठी थी। उसके बाद से रह-रहकर बातचीत और आंदोलन के दौर जारी हैं, लेकिन आज तक इसका कोई हल नहीं निकला है। आंध्र प्रदेश में 23 जिले हैं और इसमें से 10 जिले मिलाकर तेलंगाना बनाने की मांग की जा रही है। तेलंगाना क्षेत्र मूलत: हैदराबाद के निजाम-राज का हिस्सा था। लेकिन 1948 में निजाम का शासन खत्म होने के बाद अलग हैदराबाद प्रदेश का गठन हुआ। तेलंगाना का इलाका भी हैदराबाद में शामिल किया गया। तब पोट्टि श्रीरामुलु ने आंध्र प्रदेश को अलग राज्य बनाने की मांग उठाई और प्रदेश में आंदोलन छेड़ दिया था। इसके बाद 1956 में आंध्र प्रदेश राज्य बना और “हैदराबाद प्रदेश” का तेलंगाना का हिस्सा नए बने प्रदेश में मिला दिया गया। आंध्र प्रदेश मद्रास प्रेसिडेंसी से काटकर बनाया गया था। तब भरोसा दिया गया था कि विकास के असंतुलन को क्षेत्रीय विकास बोर्ड के जरिए सुलझाया जायेगा।
हालांकि तेलंगाना के लोग तभी से आंध्र प्रदेश में विलय किए जाने के विरोधी थे। तेलंगाना निवासियों का मानना था कि आंध्र प्रदेश में विलय से उनका विकास रुक जाएगा। कुछ सालों तक शांत रहने के बाद तेलंगाना के निवासियों ने फिर से अलग प्रदेश की मांग उठाई। 1969 में एम. चेन्ना रेड्डी के नेतृत्व में अलग प्रदेश की मांग को लेकर काफी बड़ा आंदोलन हुआ। आंदोलन के दौरान हिंसा होने पर पुलिस ने गोलियां चलाईं, जिसमें 350 से ज्यादा लोग मारे गए थे। हालांकि आंदोलन को आम जनता का काफी समर्थन मिल रहा था, लेकिन चेन्ना रेड्डी ने अपनी पार्टी तेलंगाना प्रजा समिति का कांग्रेस में विलय कर दिया। 2001 में इस आंदोलन ने फिर जोर पकड़ा। तेलुगू देशम के नेता के. चंद्रशेखर राव ने अलग होकर तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) का गठन किया। अलग तेलंगाना राज्य की एक सूत्री मांग करने वाली पार्टी तेलंगाना प्रजा समिति (टीपीएस) को तब पूरे क्षेत्र में लोकप्रियता हासिल हो गई थी और उसने 1971 में संपन्न लोकसभा चुनाव में अपने लिए चुनावी समर्थन पक्का कर लिया था। अंतत: 14 में से 11 सीटें उसने अपनी झोली में कर लीं। तेलंगाना क्षेत्र के छात्रों और युवकों ने भारी कीमत चुकाकर टीपीएस की जीत को सुनिश्चित किया था। लेकिन चेन्ना रेड्डी तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के दबाव में आ गए। तात्कालिक फायदे के लिए टीपीएस के सभी सांसद इंदिरा गांधी के शरणागत हो गए और पृथक राज्य का आंदोलन ठहर गया।
इस्तीफे का दबाव
2004 में टीआरएस और कांग्रेस के बीच चुनावी तालमेल हुआ। दोनों पार्टियों ने लोकसभा और विधानसभा चुनाव मिल कर लड़े। टीआरएस प्रमुख चंद्रशेखर राव केंद्रीय मंत्रिमंडल में भी शामिल हुए, लेकिन जब कांग्रेस ने अलग तेलंगाना राज्य की मांग पर कोई निर्णय नहीं लिया, तो उन्होंने मनमोहन सिंह मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया। आंध्र प्रदेश में भी उन्होंने कांग्रेस सरकार से समर्थन वापस ले लिया। तभी से राव पृथक राज्य की मांग को लेकर तीव्र आंदोलन छेड़े हुए हैं। टीआरएस नेता पृथक राज्य की मांग के समर्थन में दबाव बनाने के लिए लोकसभा और विधानसभा से इस्तीफे देकर फिर चुनाव लड़े और जीते हैं। पृथक तेलंगाना राज्य के गठन में देरी के चलते अब तक 630 लोगों ने आत्महत्या की है जिसमें बड़ी संख्या में छात्र हैं।
केन्द्रीय गृहमंत्री चिदंबरम ने गत 9 दिसंबर को अलग तेलंगाना राज्य के गठन की मांग पर सरकार की स्वीकृति की घोषणा की थी। लेकिन इस घोषणा ने राजनीतिक भूचाल खड़ा कर दिया। राज्य को बांटने के मुद्दे पर विभिन्न राजनीतिक दलों से जुड़े विधायकों ने विरोध में सामूहिक त्यागपत्र दे दिए। इस विरोध का परिणाम यह हुआ कि सरकार इस मुद्दे पर फिर पीछे हट गई। 23 दिसंबर को सरकार ने यह घोषणा कर दी कि तेलंगाना का मसला अनिश्चित समय तक के लिए टाल दिया गया है। सरकार की ओर से यह दलील दी गई कि इस मसले पर नए सिरे से विचार-विमर्श की जरूरत है। गृहमंत्री का बयान था कि आंध्र प्रदेश में आज स्थिति बदल चुकी है, इस मुद्दे पर राजनीतिक दलों के बीच व्यापक मतभेद हैं, इसलिए राज्य के विभिन्न राजनीतिक दलों और संगठनों से व्यापक विचार-विमर्श की जरूरत है।
संप्रग नेतृत्व और केंद्र सरकार ने आखिर किस बात से प्रेरित होकर तेलंगाना को अलग राज्य बनाने की प्रक्रिया शुरू करने की घोषणा की, यह समझ से परे है। इस पूरे प्रकरण में कांग्रेस पार्टी और केंद्र सरकार ने जो भूमिका निभाई उससे उनके स्वार्थ उजागर हो गए हैं, वे बचाव की मुद्रा में आ गए हैं। आज राज्य में कांग्रेस एक विभाजित घर जैसी हो गई है।
दिल्ली में नाटकीय परिणाम
आंध्र प्रदेश में पिछले कई दिनों से जारी आम हड़ताल के बीच राज्य के शीर्ष कांग्रेसी नेता आलाकमान से बातचीत करने के लिए दिल्ली पहुंचे थे। उधर मनमोहन सिंह ने भी तेलंगाना राष्ट्र समिति के प्रमुख चंद्रशेखर राव और क्षेत्र के अन्य नेताओं से बात की है। बातचीत के बाद प्रधानमंत्री ने भी यही कहा था कि इस मसले पर अभी और चर्चा करनी है। दिल्ली से लौटने के बाद तेलंगाना आंदोलन की अगुआई कर रही तेलंगाना संयुक्त कार्रवाई समिति (जेएसी) ने घोषणा की कि एपीएसआरटीसी और सरकारी कर्मचारियों की हड़ताल जारी रहेगी। समिति का कहना है कि जब तक केंद्र सरकार पृथक राज्य के गठन पर अपना रुख स्पष्ट नहीं करती तब तक हड़ताल वापस लेने का कोई सवाल ही नहीं है।
भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी और लोकसभा में विपक्ष की नेता श्रीमती सुषमा स्वराज ने तेलंगाना राष्ट्र समिति के अध्यक्ष चन्द्रशेखर राव से भेंट की थी और पृथक तेलंगाना राज्य की मांग का समर्थन किया था। उन्होंने आंदोलनरत लोगों को आश्वासन दिया है कि यदि उनकी पार्टी सत्ता में लौटी तो क्षेत्र की जनता की काफी अर्से से लम्बित अभिलाषाएं पूरी की जाएंगी। भाजपा हमेशा छोटे राज्यों के पक्ष में रही है और यह पहली राष्ट्रीय पार्टी है जिसने कहा है कि सत्ता में लौटने पर पृथक तेलंगाना राज्य का गठन किया जाएगा। उधर कांग्रेस इस मुद्दे की छानबीन के लिए गठित न्यायमूर्ति श्रीकृष्ण समिति की सिफारिशों को दबाकर बैठी हुई है और मामले को लटकाए हुए है।
कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी गुलाम नबी आजाद के ताजा बयान ने तेलंगाना के कांग्रेसियों को और भड़का दिया है कि तेलंगाना की समस्या पर सलाह-मशविरे की प्रक्रिया फिर से शुरू करनी पड़ेगी, क्योंकि श्रीकृष्ण समिति ने अपनी रपट में इसका कोई समाधान नहीं दिया है।
कांग्रेस के विरोधाभासी सुर
कांग्रेस के प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा था कि कांग्रेस आलाकमान जल्दी ही तेलंगाना पर एक घोषणा करने वाली है। वह इस समस्या के समाधान के लिए तीन विकल्पों पर विचार कर रही है। ये हैं, निर्धारित समय के अन्दर तेलंगाना राज्य की स्थापना, हैदराबाद रहित तेलंगाना राज्य की स्थापना और राज्यों के पुनर्गठन पर आयोग बनाना। तेलंगाना के कांग्रेसी नेता केशव राव ने कहा कि राज्यों का पुनर्गठन संबंधी आयोग उन्हें स्वीकार्य नहीं है।
ऐतिहासिक संदर्भ में देखें तो भारतीय संविधान के प्रावधान के तहत पिछले 50 वर्षों में अनेक राज्यों का गठन किया जा चुका है। संसद को किसी भी राज्य की भौगोलिक सीमा में परिवर्तन का अधिकार है, अगर उसे लगता है कि इसकी मांग लोकतांत्रिक तरीके से की जा रही है और बड़े पैमाने पर की जा रही है। अलग तेलंगाना राज्य की मुहिम चलाने वाली टीआरएस ने इस आंदोलन में भारी जनादेश सुनिश्चित कर लिया है। तेलंगाना के छात्रों और युवकों ने पूरे आंदोलन में भारी कीमत चुकाई है।
भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली पूर्ववर्ती राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार कई दलों का गठबंधन थी। लेकिन आज सत्तारूढ़ गठबंधन में प्रांतीय पूर्वाग्रह और राजनीतिक महत्वाकांक्षा हावी दिखती है। आज के बदले सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक परिदृश्य में नए राज्यों के गठन को केवल भाषाई आधार पर नहीं देखा जाना चाहिए। इसकी संपूर्ण प्रक्रिया प्रशासनिक नजरिए से देखी जानी चाहिए और इसकी व्याख्या भी इस आधार पर ही की जानी चाहिए कि इससे क्षेत्रीय विकास एवं लोगों की खुशहाली के रास्ते खुलेंगे। द
इन्ट्रो
नए राज्यों के गठन को केवल भाषाई आधार पर नहीं देखा जाना चाहिए। इसकी संपूर्ण प्रक्रिया प्रशासनिक नजरिए से देखी जानी चाहिए और इसकी व्याख्या भी इस आधार पर ही की जानी चाहिए कि इससे क्षेत्रीय विकास एवं लोगों की खुशहाली के रास्ते खुलेंगे।
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