बड़े काम की चीज
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तरुण सिसोदिया
“अण्णा हजारे जी को आतंकवादियों को जल्द से जल्द मौत की सजा देने के लिए भी एक आंदोलन करना चाहिए।”, “यह निकम्मी सरकार वोट बैंक की राजनीति के लिए निर्दोष लोगों के खून की होली खेल रही है।” यह पंक्तियां किसी नेता के भाषण का हिस्सा नहीं हैं, बल्कि देश के जागरूक युवाओं की प्रतिक्रियाएं हैं जो उन्होंने पिछले दिनों दिल्ली उच्च न्यायालय परिसर में हुए बम धमाके के बाद सोशल नेटवर्किंग साइटों पर व्यक्त कीं। 7 सितम्बर की सुबह करीब 10:15 बजे विस्फोट हुआ, इसके तुरन्त बाद से ही इन साइटों पर विस्फोट से संबंधित प्रतिक्रियाएं आनी शुरू हो गई थीं।
संचार के इस नए माध्यम का उपयोग आज बहुत तेज गति से हो रहा है। बच्चे, बुजुर्ग और युवा सभी इसका इस्तेमाल विभिन्न उद्देश्यों की पूर्ति के लिए कर रहे हैं। इस समय साइबर स्पेस में करीब 200 से अधिक सोशल नेटवर्किंग साइटें हैं, जिनमें से फेसबुक, ऑरकुट, माइस्पेस, ट्विटर जैसी साइटें प्रसिद्ध हैं। हाल ही में गूगल द्वारा शुरू की गई गूगल प्लस भी प्रसिद्ध साइटों में शुमार हो गई है। इन साइटों का इस्तेमाल वैसे तो हर वर्ग के लोग करते हैं, किन्तु इन सबमें युवाओं की तादाद सर्वाधिक है। हाल ही में सामने आई शोध संस्था सिस्को की वार्षिक प्रौद्योगिकी रपट में कहा गया है कि भारत के 95 प्रतिशत कॉलेज छात्र एवं युवा पेशेवरों के लिए इंटरनेट हवा, पानी और खाने जितना ही महत्वपूर्ण बन गया है। सिस्को ने इस सर्वेक्षण में दुनिया के 14 देशों के छात्र और युवा पेशेवरों को शामिल किया है। रपट के अनुसार 91 प्रतिशत कालेज छात्र तथा 88 प्रतिशत युवा पेशेवरों का फेसबुक पर अकाउंट है।
विभिन्न उद्देश्य
सोशल नेटवर्किंग साइटों का इस्तेमाल लोग विभिन्न उद्देश्यों के लिए करते हैं। मसलन- पुराने दोस्त ढूंढने, नए दोस्त बनाने, विचार अभिव्यक्ति, दोस्तों से ऑनलाइन बातचीत, वीडियो गेम खेलने, किसी कार्यक्रम के फोटो-वीडियो आपस में बांटने आदि। आजकल तो अनेक कम्पनियां अपने उत्पाद के प्रचार, किसी मुद्दे पर लोगों का मत जानने तथा नौकरियों के विज्ञापन के लिए भी इनका इस्तेमाल कर रही हैं। अनेक समाचार पत्र तथा टी.वी. चैनल ऐसे हैं जो अपने सोशल नेटवर्किंग पेज के जरिए लोगों से प्रतिक्रिया प्राप्त करते हैं तथा उन्हें अपने संबंधित कार्यक्रमों तथा समाचार में प्रसारित-प्रकाशित करते हैं। समाचार चैनल आई.बी.एन.-7 पर हर रोज शाम के कार्यक्रम में फेसबुक पर दी गई लोगों की राय तथा टाइम्स नाउ पर ट्विटर की प्रतिक्रियाएं प्रसारित की जाती हैं। इसी तरह हिन्दी तथा अंग्रेजी के समाचार पत्रों में किसी समाचार विशेष के साथ इन साइटों पर दी गईं लोगों की प्रतिक्रियाएं प्रकाशित की जाती हैं। साइटों पर होने वाली प्रतिक्रियाओं का इतना महत्व है कि कोई तो रातोंरात प्रसिद्ध हो जाए और कोई बदनाम। हाल ही में कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने नेटवर्किंग साइटों पर उनके विरुद्ध हो रही विपरीत प्रतिक्रियाओं के चलते 22 लोगों और 8 वेबसाइटों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया है। दिग्विजय सिंह का कहना है कि विपरीत प्रतिक्रियाओं के चलते उनकी तथा कांग्रेस पार्टी की छवि धूमिल हुई है। इसलिए नेटवर्किंग साइटों पर विचार व्यक्त करने तथा किसी मुद्दे पर प्रतिक्रिया देने से पहले इस बात का ध्यान अवश्य रखें कि आपकी कही गई बात किसी को आघात तो नहीं पहुंचा रही, वरना आप बेवजह कानूनी पचड़े में भी फंस सकते हैं।
इन साइटों का इस्तेमाल करने के दौरान लोगों को अलग-अलग तरह के अनुभव आते हैं। लेकिन लोग सबसे अच्छा तब महसूस करते हैं जब वे अपने किसी पुराने दोस्त को ढूंढने में सफल हो जाते हैं। आई.सी.डब्ल्यू.ए. के छात्र रोहित थपलियाल का कहना है कि उसे इतनी खुशी कभी नहीं हुई जितनी खुशी अपने पुराने दोस्त प्रतीक को ढूंढ लेने के दौरान हुई थी। रोहित ने कहा कि मैं और प्रतीक साथ-साथ पढ़ते थे। पांचवीं कक्षा के बाद हमारे स्कूल अलग-अलग हो गए, उसके बाद हम कभी नहीं मिल पाए। अभी पिछले ही साल मैंने उसे फेसबुक पर ढूंढने की कोशिश की तो वह मुझे मिल गया। भला हो फेसबुक का, जिसने मुझे मेरे बचपन के दोस्त को फिर से मिलवा दिया। वहीं कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से हिन्दी में पीएच.डी. कर रहे कृष्ण अग्रवाल का कहना है कि फेसबुक के जरिए जब हम अपने विचारों को अभिव्यक्त करते हैं तो दोस्तों से तुरन्त प्रतिक्रिया मिलती है। हमारे विचार से सहमति रखने वालों से प्रसन्नता और प्रोत्साहन मिलता है, लेकिन कई बार हमारे विचार के विपरीत मिलने वाली प्रतिक्रियाएं हमारे पूर्वाग्रहों को तोड़ती हैं और हमारी जानकारी में वृद्धि और बुद्धि का विकास करती हैं।
सोशल नेटवर्किंग साइटों के जरिए समाजहित में जो एक महत्वपूर्ण कार्य हो रहा है, वह है लोगों को जागरूक करने का। पिछले दिनों जन लोकपाल विधेयक की मांग को लेकर दिल्ली के रामलीला मैदान में समाजसेवी अण्णा हजारे के अनशन और देशभर में चले आंदोलन ने सरकार के पसीने छुड़ा दिए। लोग अण्णा हजारे के समर्थन में सड़कों पर आ गए हैं। देश के हर राज्य, जिले, कस्बे और शहर में जबर्दस्त विरोध प्रदर्शन हुए। बड़ी संख्या में लोग सड़कों पर ऐसे उतरे जिन्हें विरोध प्रदर्शन या मशाल जुलूस की जानकारी सोशल नेटवर्किंग साइटों के जरिए मिली थी। इसी तरह बाबा रामदेव के आंदोलन में भी अनेक लोग इन्हीं साइटों से सूचना प्राप्त कर पहुंचे थे। करीब डेढ़ साल पहले दिल्ली विश्वविद्यालय की छात्रा राधिका तंवर की हत्या हो गई थी। राधिका के हत्यारों को पकड़ने की मांग को लेकर दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रों ने एक विरोध प्रदर्शन किया, इसमें बड़ी संख्या में छात्र ऐसे थे जो फेसबुक पर दी गई सूचना के आधार पर विरोध प्रदर्शन में पहुंचे थे।
बुराइयां भी तो हैं
अनेक प्रकार की खूबियां होने के बावजूद कुछ लोग ऐसे भी हैं जो इन साइटों के इस्तेमाल को समय की बर्बादी तथा सामाजिक और व्यक्तिगत जीवन प्रभावित होने के लिए जिम्मेदार मानकर इनसे दूर हो रहे हैं। हाल ही में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा ब्रिटेन में किए गए एक सर्वेक्षण में यह बात सामने आई है कि यहां तीन में से एक व्यक्ति फेसबुक और ट्विटर के इस्तेमाल को बंद कर रहा है। सर्वेक्षण में भाग लेने वालों में से 60 प्रतिशत का मानना है कि अब वे तकनीक से मुक्त होकर समय बिताना अधिक पसंद करते हैं। दिल्ली के युवा पत्रकार रमेन्द्र मिश्रा का कहना है कि सोशल नेटवर्किंग साइटों के फायदे तो अनेक हैं, नए दोस्त मिलते हैं, ढूंढने से पुराने दोस्त भी मिल जाते हैं, कभी-कभी कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां भी मिल जाती हैं। लेकिन इन पर समय बिताते-बिताते कब हमारा कीमती समय बर्बाद हो जाता है, पता ही नहीं चलता। भारत सहित अन्य कई देशों में तो अनेक सरकारी तथा निजी कार्यालयों में इन्हें कार्य को प्रभावित करने तथा अन्य कारणों से इनके उपयोग पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया है। हाल ही में लाहौर उच्च न्यायालय ने प्रशासन को फेसबुक तथा ऐसी सभी वेबसाइट पर रोक लगाने का आदेश दिया है, जिनसे धार्मिक भावनाएं आहत हो रही हैं।
इन साइटों का उपयोग करने वालों की ओर से अकाउंट हैक होने, फर्जी अकाउंट बनाने, वॉल पर अश्लील फोटो डालने आदि की शिकायतों की तादाद भी बढ़ गई है। हाल ही में फिल्म अभिनेत्री अमृताराव के नाम से फेसबुक पर फर्जी अकाउंट बना लेने का समाचार आया था। इससे पहले प्रियंका चोपड़ा और मल्लिका सेहरावत के फर्जी अकाउंट भी बनाए जा चुके हैं। राजनेताओं के नाम से फर्जी अकाउंट बनाने के तो अनेक मामले हैं। पिछले दिनों मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नाम से फर्जी अकाउंट बना लेने से संबंधित मामला प्रकाश में आया था। इंदौर के एक छात्र ने मुख्यमंत्री का फर्जी अकाउंट बनाकर उस पर कुछ राजनेताओं की आपत्तिजनक तस्वीरें डाल दी थीं। हालांकि पुलिस ने फेसबुक से मुख्यमंत्री के फर्जी अकाउंट को बंद कराकर छात्र को गिरफ्तार कर लिया था। इसी तरह बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार के प्रशंसकों द्वारा बनाए गए फेसबुक अकाउंट को कुछ शरारती तत्वों ने हैक कर उस पर आपत्तिजनक बातें लिखनी शुरू कर दी थीं।
बरतें सावधानी
सोशल नेटवर्किंग अकाउंट को कैसे सुरक्षित रखा जा सकता है, इस संबंध में बताते हुए सूचना प्रौद्योगिकी विशेषज्ञ श्री बालेंदु शर्मा “दाधीच” का कहना है कि सोशल नेटवर्किंग साइट्स, ईमेल, ब्लॉग आदि का इस्तेमाल करते हुए हमें सतर्क रहने की जरूरत हैं, क्योंकि यह ऐसे माध्यम हैं जो सबके सामने खुले हैं। हम इन पर जो भी सूचनाएं डालते हैं वह अनेक लोगों तक पहुंच जाती हैं। हमें यह तय करना चाहिए कि इन पर कौन सी चीजें डालनी हैं और कौन सी नहीं। लोग उत्साह में आकर अपनी फोटो, मोबाइल नंबर, उपलब्धियां आदि डाल देते हैं। इसके फायदे भी हैं और नुकसान भी। इसलिए सैटिंग्स में जाकर यह सुनिश्चित अवश्य करें कि कौन सी जानकारी दोस्त देख सकते हैं और कौन सी हर कोई। मित्रों की संख्या बढ़ाने के शौक से भी बचना चाहिए। दोस्ती के हर किसी निमंत्रण को स्वीकार न करें और जिसको मित्र बनाने के लिए सोच रहे हैं उसके बारे में ठीक से पड़ताल करें, उसके बाद ही दोस्तों की सूची में जोड़ें। अंजान व्यक्ति पर तब तक शक करें जब तक कि आप आश्वस्त न हो जाएं। ऐसा नहीं करेंगे तो कोई भी आपको नुकसान पहुंचा सकता है। आपके अकाउंट की वॉल पर हर कोई न लिख सके और न ही फोटो डाले इसके लिए वॉल की सैटिंग करें। इससे आप इस बात की आशंका से बच जाएंगे कि आपकी वॉल पर कोई अश्लील बातें या गंदी फोटो न डाल दे। यदि फिर भी कोई ऐसा कर रहा है, तो जिसने अश्लील बातें या फोटो डाली हैं उसे दोस्तों की सूची से हटा दें। वह अन्य लोगों को ऐसा करके परेशान न करे इसके लिए नेटवर्किंग साइट को भी शिकायत करें। लिंक्स और एप्लीकेशन को तो कभी न खोलें उनमें वायरस हो सकता है, जो आपको नुकसान पहुंचा सकता है। एंटीवायरस कम्प्यूटर में अवश्य रखें, वह गलत लिंक्स को पहचान लेते हैं और आपको सूचित करते हैं कि आप गलत लिंक पर जा रहे हैं। पासवार्ड के संबंध में उन्होंने कहा कि अपने र्इमेल, ब्लॉग और सोशल नेटवर्किंग के पासवर्ड अलग-अलग रखें।
नेटवर्किंग साइटों का आदी हो जाना तथा इन पर घंटों बिताने से लोग विभिन्न प्रकार की बीमारियों के शिकार हो रहे हैं। अनेक तो इनसे भावनात्मक रूप से इतने जुड़ जाते हैं कि वे इनकी हर प्रतिक्रिया को महत्वपूर्ण समझते हैं। हाल ही में बंगलूरु की छात्रा मालिनी मुर्मू द्वारा की गई आत्महत्या, उसके फेसबुक के प्रति भावनात्मक जुड़ाव को ही प्रकट करती है। फेसबुक पर मालिनी के दोस्त ने कुछ ऐसा लिख दिया था, जिसे उसने अपनी बेइज्जती समझकर आत्महत्या जैसा कदम उठा लिया। इस संबंध में विशेषज्ञों का मानना है कि सोशल नेटवर्किंग एक बनावटी दुनिया है, इसे हमें अपनी असल जिंदगी पर हावी नहीं होने देना चाहिए। इसके अलावा किसी चीज का आदी हो जाना तो बुरा ही है और इसके शरीर और मस्तिष्क दोनों पर बुरे प्रभाव पड़ते हैं। इसके लिए जरूरी है कि समय सीमा निर्धारित करें, जितनी जरूरत हो उतना ही उपयोग करें। द
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