पाठकीय
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पाठकीय
अंक-सन्दर्भ थ्18 सितम्बर,2011
सम्पादकीय “जिहादी हमलों को कैसे रोकेगा शुतुरमुर्गी रवैया” अच्छा लगा। दिल्ली उच्च न्यायालय के बाहर हुए बम विस्फोट से प्रश्न उठता है कि जब राजधानी ही सुरक्षित नहीं है, तो देश के अन्य भागों का भला क्या होगा? आतंकवाद के खिलाफ कोई ठोस नीति ही नहीं है। इस कारण बेचारे निर्दोष लोग मारे जा रहे हैं।
-बीरेन्द्र सिंह जरयाल
28-ए, शिवपुरी विस्तार, कृष्ण नगर
दिल्ली-110051
* सत्ता और वोट की राजनीति के कारण आतंकवाद बढ़ रहा है। कुछ सत्तारूढ़ नेता आतंकवाद के नाम पर तथाकथित “हिन्दू आतंकवाद” की गंध सूंघते हैं। उन्हें वे जिहादी नहीं दिखते हैं, जो वर्षों से भारत को तोड़ने के लिए “जिहाद” कर रहे हैं। असली आतंकवादियों को बचाने के लिए बेहद ही घटिया राजनीति की जा रही है।
-मनोहर “मंजुल”
पिपल्या-बुजुर्ग, पश्चिम निमाड़-451225 (म.प्र.)
* भारत-विरोधी ताकतें देश के अन्दर ही मजबूत होती जा रही हैं। यही ताकतें जगह-जगह बम विस्फोट करवा रही हैं और बंगलादेशी मुस्लिमों को भारत के कोने-कोने में बसा रही हैं। भारत-विरोधी ताकतों को इस्लामी देशों का पूरा समर्थन प्राप्त है। ये देश चाहते हैं कि भारत भी एक दिन इस्लामी राज्य बन जाए। इसलिए इन ताकतों की उपेक्षा करना भारत के अस्तित्व के लिए खतरा है।
-नरेश शर्मा
91, निजातपुरा, उज्जैन (म.प्र.)
* यदि संप्रग सरकार आतंकवादी घटनाओं को गंभीरता से लेती तो आए दिन बम विस्फोट नहीं होते। यह सरकार आतंकवादियों के प्रति नरम है तो बाबा रामदेव और अण्णा हजारे के प्रति गरम। यही गन्दी राजनीति आतंकवादियों का मनोबल बढ़ाती है। जनता इस सरकार से बहुत नाराज हो रही है। देश भगवान भरोसे ही चल रहा है।
-डा. आनन्द भारतीय
ग्राम-बसंतपुर, पो. कुंडवा-चैनपुर
जिला-पूर्वी चम्पारण (बिहार)
* श्री देवेन्द्र स्वरूप ने अपने लेख “तुम लाशें गिनो, आंसू बहाओ ये वोट बैंक रिझाएं” और श्री जितेन्द्र तिवारी ने अपनी रपट “निरंकुश आतंकवाद, संवेदनहीन सरकार” में यही खुलासा किया है कि सोनिया पार्टी देशहित से ज्यादा सत्ता और वोट राजनीति को महत्व दे रही है। आतंकवादियों का दुस्साहस इसलिए बढ़ रहा है कि उन्हें यहां संरक्षण देने वाले लोग खड़े हो रहे हैं।
-आर.सी.गुप्ता
द्वितीय ए-201, नेहरू नगर
गाजियाबाद-201001 (उ.प्र.)
* आतंकवादी घटनाएं तब तक नहीं रुकेंगी, जब तक कि सरकार उनसे लड़ने की रणनीति नहीं बदलेगी। जो भी आतंकवादी पकड़े जाएं उन्हें जल्दी से जल्दी कड़ी सजा दिलाने का प्रयास हो। अफजलों और कसाबों को बिरयानी खिलाएंगे और चाहेंगे कि बम विस्फोट न हों, ऐसा नहीं हो सकता।
-किशोर गुगनानी
मेन रोड, आमला-460551 (म.प्र)
* हर आतंकवादी घटना के बाद प्रधानमंत्री कहते हैं, “यह कायरों का काम है। हम आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई जारी रखेंगे…।” सरकार द्वारा देश को सुरक्षित रखने का ढोंग किया जा रहा है। आतंकवादियों से कैसे लड़ेंगे? इनसे लड़ने के लिए एक कड़ा और प्रभावी कानून तक इस सरकार ने नहीं बनाया है। “पोटा” एक कड़ा कानून था, किन्तु वोट बैंक के चक्कर में उस कानून को इन लोगों ने खत्म कर दिया।
-आनन्द मेहता
13/740, सर्राफा बाजार, सहारनपुर (उ.प्र.)
* पिछले दिनों आतंकवादी घटनाओं के सन्दर्भ में गृहमंत्री चिदम्बरम ने कहा कि हर जगह पुलिस नहीं लगाई जा सकती है। यह भी कहा कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई जारी रखने के लिए सहयोग जरूरी है। क्या वे बताएंगे कि उनका सहयोग कौन नहीं कर रहा है? खुद गृहमंत्री आतंकवाद के प्रति गंभीर नहीं हैं। दूसरों के सहयोग की अपेक्षा करके वे अपनी कमजोरी ही उजागर कर रहे हैं।
-सत्यपाल बंसल
ए-47, गुरुनानक कालोनी
संगरूर-148001 (पंजाब)
* आतंकवादी घटनाओं से आम जनता बहुत चिन्तित है। किन्तु सरकार चलाने वाले वही नीति अपना रहे हैं, जिससे कि उनका वोट बैंक बना रहे। आखिर ये लोग देश को किस दिशा में ले जाना चाहते हैं? किसी विस्फोट के बाद सत्ताधारी नेता कहते हैं कि देश का साम्प्रदायिक सौहार्द बिगड़ने नहीं देंगे। यह कितनी अजीब बात है। लोग ऐसी घटनाओं के बाद भी कभी परस्पर विद्वेष नहीं भड़कने देते हैं। किन्तु नेता गलतबयानी कर माहौल को खराब करते हैं।
-प्रबीर कुमार मुखर्जी
साकेत (नई दिल्ली)
* इसमें कोई दो मत नहीं हैं कि हमारी गुप्तचर एजेन्सियां आतंकवादी घटनाओं का पता लगाने में विफल हो रही हैं। यह भी सत्य है कि कभी किसी घटना की पूर्व जानकारी मिलती भी है, तो उसे रोकने की जिम्मेदारी जिस पर होती है वह समय रहते कुछ निर्णय नहीं ले पाता या उस पर कुछ न करने का दबाव रहता है। आतंकवाद के खिलाफ चल रही लड़ाई में कोई हस्तक्षेप न कर पाए, यह सुनिश्चित करना होगा।
-जितेन्द्र ज्योति
माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, नोएडा (उ.प्र.)
* आतंकवादी भारत की आर्थिक स्थिति को बिगाड़ना चाहते हैं। जनता में बहुत रोष है। यदि आतंकवादियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई नहीं की गई तो लोग भड़क सकते हैं। पुलिस को सशक्त बनाया जाए और उसके काम में दखल बन्द हो। अभी होता यह है कि यदि पुलिस किसी आतंकवादी को पकड़ती है, तो उस पर सख्ती न करने के लिए दबाव डाला जाता है। पुलिस पर कौन लोग दबाव डालते हैं, यह बताने की जरूरत नहीं है।
-स्वामी अरुण अतरी
560, सीता नगर
लुधियाना-141001 (पंजाब)
* विश्व हिन्दू परिषद् के अन्तरराष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अशोक सिंहल एवं अन्य राष्ट्रवादी नेता वर्षों से मांग कर रहे हैं कि अफजल को फांसी पर चढ़ाओ। ऐसा करने से आतंकवादियों को यह सन्देश जाएगा कि बुरे कर्म का अंजाम बुरा ही होता है। किन्तु सेकुलर सरकार अफजल को वोट बैंक का प्रतीक मान रही है। इसलिए उसे फांसी पर नहीं लटका रही है।
-देशबन्धु
आर.जेड-127, प्रथम तल, सन्तोष पार्क उत्तम नगर, नई दिल्ली-110059
प्रेरणादायक घटना
बालमन स्तम्भ में “वाह वैभव” शीर्षक से एक बहुत ही प्रेरणादायक घटना प्रकाशित हुई है। 9 वर्षीय वैभव दुग्गल की ईमानदारी से बच्चे जरूर प्रेरणा लेंगे। बाल कहानी “विचित्र मुकुट” भी प्रेरक है। इसमें यह बताया गया है कि अत्याचारी और लालची राजा का क्या हश्र होता है। बालोपयोगी सामग्री प्रकाशित करने के लिए बधाई!
-प्रियंका पुन्यानि
संजीवनी पब्लिक स्कूल
उत्तम नगर, नई दिल्ली-110059
महापवित्र मंत्र
इतिहास दृष्टि में डा. सतीश चन्द्र मित्तल का लेख “फिर गूंजा वन्देमातरम्” अच्छा लगा। वन्देमातरम् राष्ट्रगीत ही नहीं, अपितु महापवित्र मंत्र है। इसकी गूंज से ही लोगों में नव-ऊर्जा का संचार हो जाता है। इसका निरादर करना राष्ट्र का अपमान है। वन्देमातरम् किसी मजहब या पंथ का विरोधी नहीं हो सकता है। जो इस धरती को अपनी मां मानता है, वह कभी वन्देमातरम् का विरोध नहीं करेगा।
-ठाकुर सूर्यप्रताप सिंह सोनगरा
कांडरवासा, रतलाम-457222 (म.प्र.)
क्यों न गाएं वन्देमातरम्?
कुछ कट्टरवादी बराबर वन्देमातरम् के विरुद्ध आवाज उठाते रहते हैं। कुछ तो खुलकर कहते हैं कि वन्देमातरम् गाना उनके मजहब के खिलाफ है। मैं देश के शासकों एवं अन्य महत्वपूर्ण लोगों से पूछता हूं कि जिस गीत को गाते और उद्घोष करते हुए अनेक क्रांतिकारी अपने प्राणों को न्योछावर करके आजादी के संघर्ष में फांसी चढ़ गए उसको क्यों न गाया जाए? यह गीत 1882 में श्री बंकिमचन्द चट्टोपाध्याय ने क्रांतिकारी उपन्यास “आनन्द मठ” में लिखा था। कांग्रेस के एक अधिवेशन में मुस्लिम लीग द्वारा सैय्यद मोहम्मद अली के नेतृत्व में इसके सम्पूर्ण गायन का विरोध होते हुए भी पं. विष्णु दिगम्बर पलुस्कर ने यह गीत पूरा गाया था और कहा था कि यह मस्जिद नहीं है, राष्ट्रीय मंच है। पर उस समय के सबसे बड़े नेता महात्मा गांधी और उनके सहयोगी पं. जवाहर लाल नेहरू तथा अन्य लोगों ने 28 अक्तूबर, 1937 को कोलकाता में कार्यकारिणी द्वारा खंडित वन्देमातरम् गीत गाने का प्रस्ताव पारित किया। उनका ख्याल था कि इससे पाकिस्तान नहीं बनेगा। लेकिन फिर भी पाकिस्तान बना। सन् 1964 में मुस्लिम लीग पुन: स्थापित हो गई। पाकिस्तान बनने से कोई फर्क नहीं पड़ा। उस समय जनरल करिअप्पा ने कहा था, “मैं एक सैनिक के नाते इस बात को समझने में असमर्थ हूं कि एक संस्था, जो हमारे देश के विभाजन के लिए जिम्मेदार थी, उसको देश में फिर से कानूनी मान्यता क्यों मिल गई?” इस पर पं. नेहरू ने कहा कि यह वह पुरानी मुस्लिम लीग नहीं है, यह राष्ट्रीय मुस्लिम लीग है। इसके वे पुराने सिद्धान्त भी नहीं हैं। पर उनके दुर्भाग्य से तत्कालीन मुस्लिम लीग के अध्यक्ष सेठ सुलेमान ने दूसरे ही दिन यह वक्तव्य दिया कि यह वही पुरानी मुस्लिम लीग है और इसके वही पुराने सिद्धान्त हैं। फिर भी नेहरू की पार्टी कांग्रेस ने केरल विधान सभा चुनावों में मुस्लिम लीग से चुनावी गठबंधन किया। और आज वही लोग फिर वंदेमातरम् का विरोध करते हैं।
-जुगल किशोर उपाध्याय
17/283, फुलट्टी बाजार
डाकघर के सामने, आगरा-282003 (उ.प्र.)
चिदम्बरम के स्वागत को है तिहाड़ तैयार
गर्दन का फंदा बनी, चिट्ठी की तकरार
एक दूजे पर कस रही, भारत की सरकार
भारत की सरकार चिदम्बरम के स्वागत को
है तिहाड़ तैयार झाड़ कम्बल, बिस्तर को
कह “प्रशांत” अब वहीं रोज मुलाकातें होंगी
2 जी 3 जी के आगे की बातें होंगी।।
-प्रशांत
पञ्चांग
वि.सं.2068 तिथि वार ई. सन् 2011
कार्तिक कृष्ण 4 रवि 16 अक्तूबर, 2011
“” “” 5 सोम 17 “” “”
“” “” 6 मंगल 18 “” “”
“” “” 7 बुध 19 “” “”
“” “” 8 गुरु 20 “” “”
“” “” 9 शुक्र 21 “” “”
“” “” 10 शनि 22 “” “”
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