सम्पादकीय
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जिस गुण से मनुष्य की जीविका चलती हो और प्रशंसा होती हो, गुणी को चाहिए कि उस गुण की रक्षा करे और उसे बढ़ाये।
-नारायण पंडित (हितोपदेश, 2/65)
भारतीय जनता पार्टी ने अपनी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की दिल्ली बैठक में राजनीतिक प्रस्ताव पारित कर यह स्पष्ट कर दिया है कि प्रधानमंत्री द्वारा विपक्ष पर केन्द्र सरकार को अस्थिर करने व मध्यावधि चुनाव थोपने का आरोप 2 जी स्पेक्ट्रम में हुए घोटाले के आरोपों में फंसे चिदम्बरम से ध्यान हटाने की चाल है और भ्रष्टाचार में पूरी तरह डूबी संप्रग सरकार विभिन्न संस्थानों को कमजोर करने व उनकी ईमानदारी से समझौता करने में जुटी हुई है। वस्तुत: यही सच भी है, इस समय देश के समक्ष यह एक गंभीर राजनीतिक चुनौती है जो व्यापक राष्ट्रहित में जवाब मांग रही है। जनता द्वारा निर्वाचित सरकार यदि लोक कल्याणकारी राज की संकल्पना को धता बताकर पूरी तरह अपने सत्ता स्वार्थों में लिप्त रहेगी, यहां तक कि संसद में विश्वासमत प्राप्त करने हेतु “वोट के लिए नोट” का खेल खेलती नजर आएगी तो लोकतंत्र और संविधान का क्या होगा? इस सरकार के क्रियाकलापों से इस समय देश में एक राजनीतिक शून्य की सी स्थिति बन गई है। जिहादी आतंकवाद, माओवादी नक्सलवाद, निरंतर बढ़ती महंगाई, आर्थिक असमानता और देश की सीमाओं पर पाकिस्तान व चीन के षड्यंत्रों की अनदेखी कर यह सरकार केवल और केवल अपने दामन से भ्रष्टाचार का कलंक धोने के असफल प्रयास में जुटी हुई है। सरकार का अंतद्र्वंद्व व मंत्रियों के परस्पर विवाद इसकी अक्षमता के ही परिचायक हैं।
ऐसी गहन चुनौतियों से भरे राजनीतिक वातावरण में भाजपा का दायित्व बढ़ जाता है। एक सशक्त विपक्ष के नाते इस राजनीतिक शून्य को भरने की महत् जिम्मेदारी भाजपा पर है ताकि देश की जनता में यह आशा और विश्वास जग सके कि जिस कांग्रेस को उसने सत्ता सौंपी, वह सत्ता के लिए अपवित्र गठबंधन कर देशहित व लोक कल्याण को तिलांजलि देकर जनता के साथ विश्वासघात कर रही है, लेकिन ऐसी कठिन परिस्थितियों में भाजपा की राजनीतिक भूमिका उसे आश्वस्त करने वाली है। जनता में यह आश्वस्ति केवल सत्ता की राजनीति करने से नहीं आ सकती। किसी भी दल के लिए कांग्रेस का विकल्प बनने का मतलब सत्ता के लिए अनैतिक गठजोड़ कर येन केन प्रकारेण चुनाव जीतना और कांग्रेसनीत संप्रग को सत्ताच्युत कर स्वयं सिंहासनारूढ़ होना नहीं है। बल्कि देश के समक्ष गंभीर संकट का आधार बने मुद्दों पर कोई समझौता न करते हुए अपने संघर्ष से राष्ट्रहित व जनहित की रक्षा करना उस राजनीतिक दल की प्राथमिकता होनी चाहिए। उसकी इस विश्वसनीयता से ही जनता उसके साथ खड़ी होगी और सत्तालोलुप गठजोड़ को उखाड़ फेंकेगी।
केवल सत्ता की कामना से ऐसा राजनीतिक संघर्ष नहीं किया जा सकता, इसके लिए मूल्याधारित शुचितापूर्ण राजनीतिक सोच आवश्यक है। अवसरवादी व सुविधा की राजनीति इसमें सबसे बड़ी बाधा है, साथ ही दल को परस्पर विवादों व अंतद्र्वंद्व से ऊपर उठकर पार्टी संगठन को अहमियत देते हुए उसे मजबूत करना पड़ेगा। लेकिन समर्पित कार्यकर्ताओं की उपेक्षा कर नेताओं की गणेश परिक्रमा करने वाले लोगों को महत्व दिए जाने से किसी भी दल का संगठनात्मक ढांचा मजबूत नहीं हो सकता। नेताओं की खेमेबाजी किसी भी पार्टी संगठन को कमजोर करती है। उस दल में यदि सत्ता स्वार्थों के लिए अपने अहं व गुट को लेकर प्रमुख नेता एक दूसरे की टांग खिंचाई में ही ऊर्जा खपाएंगे तो उन उद्देश्यों की ओर नहीं बढ़ा जा सकता, जिसके लिए वह दल अस्तित्व में आया। आज देश में व्याप्त राजनीतिक शून्य को भरने की चुनौती का जवाब वही दल दे सकता है जो इन कसौटियों पर खरा उतरे और सत्ताभिमुख नहीं, समाजोन्मुख व राष्ट्राभिमुख राजनीति का अवलम्बन करे। भारतीय जनता पार्टी की पृष्ठभूमि और उसके राजनीतिक संस्कार को देखते हुए जनता उसकी ओर आशा और विश्वास के साथ देख रही है, और उसके नेतृत्व में वह क्षमता भी है कि वह इस चुनौती को स्वीकार करते हुए जनता की अपेक्षाओं को पूरा करे। बस आवश्यकता है पार्टी को उस भूमिका में खड़ा करने की।
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