दृष्टिपात
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देर से मिले एक तिलमिला देने वाले समाचार का सार इत्ता भर है कि चीनी सैनिक फिर लद्दाख में घुसपैठ करके आए और गोल-गोल पत्थरों को करीने से सजाकर भारतीय सैनिकों के बनाए 17 खाली बंकर तोड़ गए। फिर उन्हीं पत्थरों से सितारे की आकृति बनाकर छोड़ गए। हालांकि भारतीय सैनिक उन बंकरों को फिलहाल इस्तेमाल में नहीं ले रहे थे। यह घटना 25 अगस्त को लेह के पास चूमूर गांव में घटी थी। गांव के 27 घरों में 90 लोग बसे हैं। लेह के उपायुक्त त्सेरिंग आंग्चुक ने मामले की पूरी जांच कराकर रपट जम्मू-कश्मीर सरकार के सुपुर्द कर दी। रपट में लिखा है कि 25 अगस्त की सुबह दो चीनी हेलीकाप्टर भारत की सीमा में उड़ आए। उनमें से चीनी सेना के छह-सात लोग उतरे और भारतीय सैनिकों के अस्थायी बंकरों को उजाड़ डाला। उपायुक्त के कहने पर इस मामले की जांच इलाके के एसडीएम और एसएचओ ने की थी। रपट में आगे लिखा गया कि प्वाइंट पीटी-62 और जीआर क्र.368752 पर यह चीनी हरकत अंतरराष्ट्रीय सीमा का उल्लंघन थी। हैरानी की बात यह भी है कि जिला प्रशासन को इस हरकत की खबर 9 सितम्बर को ही लगी जिसके बाद उपायुक्त ने जांच करने को कहा था। पता चला है कि चीनी सैनिकों की इस हरकत को भारत तिब्बत सीमा पुलिस के जवानों ने दूरबीन से देखा था, पर उस वक्त उन्होंने स्थानीय अधिकारियों को इस बाबत कुछ नहीं बताया। बाद में इसकी रपट सीधी गृह मंत्रालय को भेज दी थी। बताते हैं कि सेना ने रक्षा मंत्रालय से इस बारे में विदेश मंत्रालय से बात करने को कहा है।
सीमा में घुसकर इस तरह की हेकड़ी दिखाना चीनियों का पुराना शगल रहा है। पर पत्थरों या चौकी के खंभों के साथ ही वे छेड़छाड़ नहीं करते बल्कि किसी इलाके पर अपना हक दिखाते हुए वहां किसी निर्माण वगैरह के काम में लगे लोगों को धमकाकर भगा भी देते हैं। अक्तूबर 2010 में जम्मू-कश्मीर सरकार ने “नरेगा” के तहत देमचोक इलाके में एक विकास परियोजना का काम रुकवा दिया था। चीनी सैनिकों ने एक दिन आकर मजदूरों को धमका जो दिया था। पहले 2009 में भी इसी इलाके में बनती सड़क अधबनी छोड़ दी गई थी, चीनी फौजी बंदूकें लहराकर भारतीय मजदूरों को बाज आने को जो कह गए थे। दिल्ली यह नहीं कह सकती कि उसे इस बाबत कुछ नहीं पता। खबरें तो पहुंचती होंगी, पर विदेश मंत्रालय गृह मंत्रालय की ओर ताकता होगा और गृह, रक्षा की तरफ। इस ताकाझांकी के बीच तड़ से “प्रेस रिलीज” जारी की जाती रही कि “दोनों देशों के बीच दूरियां पट रही हैं।”
सऊदी राजा की “दरियादिली”
महिलाएं डालेंगी वोट, लड़ेंगी चुनाव
सऊदी अरब के शाही हुक्मरानों ने बड़ी “दरियादिली” दिखाई है। राजा अब्दुल्ला ने गत 25 सितम्बर को सऊदी महिलाओं को वोट डालने और भविष्य में होने वाले निगम के चुनावों में चुनाव लड़ने का हक दे दिया है। महिलाओं और पुरुषों के हकों में गहरी खाई को अपने शासन का अहम पहलू बनाए रखने वाली सऊदी राजशाही के तहत पिछले एक दशक में महिलाओं के नजरिए से यह सबसे बड़ा बदलाव माना जा रहा है। उन्हें अब तक वोट डालने तक का हक नहीं दिया गया था, चुनाव लड़ने की बात तो जाने ही दीजिए। और सुनिए, सऊदी अरब के राजा ने अब तक महिलाओं के कार चलाने तक पर पाबंदी लगाई हुई है।
कानूनी तौर पर हर सार्वजनिक कामों के लिए अपने शौहरों के अधीन रहने वाली सऊदी महिलाओं ने इस शाही फरमान को, उन्हें किसी हद तक, पुरुषों की बराबरी दिलाने वाला बताते हुए उसकी तारीफ की है। वैसे इन दिनों सऊदी अरब की महिलाओं ने कुछ संगठन बनाकर महिला अधिकारों की मांग की बयार बहानी शुरू की है। सरकार में भी महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने की पैरवी करतीं आवाजें गाहे-बगाहे सुनी गई हैं। हातून-अल-फास्सी इतिहास की प्रोफेसर हैं और महिलाओं की आवाज बुलंद करने वालों की अगुआ हैं। राजा ने “दरियादिली” और आगे बढ़ाते हुए यह फरमान भी जारी किया है कि जनता से जुड़ी नीतियों के मामले में सरकार की सलाहकार संस्था मजलिस-अल-शूरा में भी महिलाओं को शामिल किया जाएगा। लेकिन सऊदी राजनीति के जानकर दबी जुबान में यह भी कहते पाए गए हैं कि राजा के इन फरमानों के अमल में आने को लेकर शुबहा बना हुआ है, क्योंकि राजा ने जिन अगले चुनावों की बाबत हक दिया है वह 2015 में ही होगा। साथ ही सऊदी खुश्क हवाओं पर इस्लाम की जिस वहाबी धारा का दबदबा है वह महिलाओं को इस तरह का हक देने को लेकर नरम पड़ेगी, इस पर ज्यादातर को शक है।
मेट्रो ने मोहा सबको
दिल्ली का दिल जीतने वाली मेट्रो ने विदेशियों को भी बाग-बाग कर दिया है। कहीं सड़क के ऊपर तो कहीं नीचे सुरंगों में सरपट दौड़ती चमचमाती मेट्रो रोजाना न केवल लाखों सवारियों को यहां-वहां ले जा रही है, बल्कि सड़कों पर गाड़ियों के जाम और जहरीले धुएं के बादलों से भी निजात दिला रही है। हां, कभी कभी इसका बढ़ता किराया आम आदमी को मसोसता है।
आधुनिक तकनीक और श्रीधरन की समर्पित सेवा और लगन को साकार करने वाली दिल्ली की मेट्रो ने अब पर्यावरण प्रदूषण के स्तर की देखभाल के लिए “क्योटो प्रोटोकाल” के तहत गठित संयुक्त राष्ट्र की विशेष समिति से न केवल वाहवाही पाई है, बल्कि यह 47 करोड़ रु. का “कार्बन क्रेडिट” भी हासिल करने वाली दुनिया की पहली मेट्रो बनी है। इसने राजधानी दिल्ली में हर साल प्रदूषण का स्तर 6.3 लाख टन कम करके हवा को सांस लेने लायक बनाए रखा है। रोजाना 20 लाख से ज्यादा लोग इस प्रदूषण रहित मेट्रो का फायदा उठा रहे हैं। अगर सवारियों की संख्या बढ़ती है तो “कार्बन क्रेडिट” के 47 करोड़ रु.भी बढ़ सकते हैं।
दरअसल “क्योटो प्रोटोकाल” के तहत “कार्बन ट्रेडिंग” की शुरुआत की गई थी। कंपनियां या देश उत्सर्जन घटाने की अपनी उन परियोजनाओं में संयुक्त राष्ट्र के इस खास “क्रेडिट” में से पैसा लगा सकते हैं, जो ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करें। संयुक्त राष्ट्र की विशेष समिति ने इस “क्रेडिट” को हासिल करने की इतनी कड़ी शर्तें तय की हैं कि दिल्ली मेट्रो के अलावा दुनिया की कोई और मेट्रो सेवा उन शर्तों पर खरी नहीं उतरी है। दूसरी तमाम मेट्रो सेवाओं और दिल्ली मेट्रो के बीच तो “गैप” है ही, तो मेट्रो के डिब्बों के अंदर होने वाली घोषणा “प्लीज माइंड द गैप” में भी!
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