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काल के प्रवाह में हजारों वर्षों से भी अधिक समय से थाइलैंड भगवान बुद्ध के जीवन-दर्शन को अपने में आत्मसात किये हुए शांति एवं सहिष्णुता के पथ पर चक्री राजवंश की आदर्श राजशाही के नेतृत्व में अग्रसर है। परपंरागत तौर पर पुण्यभूमि भारत की तरह थाईलैंड में भी जीवन को सुरुचिपूर्ण एवं मनोरम बनाने हेतु विभिन्न प्रकार के उत्सव मनाए जाते हैं। इस आधुनिक बाजार के युग में जब सारी दुनिया सिमटकर अनुभव में एक शहर जैसी दिखाई देती है और चारों ओर भोगवाद की हवा बह रही है, ऐसे समय में विश्व के सर्वाधिक पूजित देव, ऋद्धि-सिद्धि के प्रदाता विनायक श्री गणेश के स्वरूप एवं गुण को जानने की जिज्ञासा व अभिलाषा जन-जन में आम हो गयी है। यही कारण है कि स्याम की धरा थाईलैंड में धार्मिक आस्था एवं विश्वास में वृद्धि की झलक हर तरफ देखी जा सकती है। गणेशोत्सव के अवसर पर थाईलैंड के शिक्षा केन्द्रों, व्यावसायिक तथा सरकारी प्रतिष्ठानों के खूबसूरत परिसरों में बुद्धि एवं धन की वर्षा अपने भक्तों पर करने वाले देव के रूप में विख्यात श्री गजानन अपनी विभिन्न मनोहारी छवियों में अपनी इन्द्रधनुषी छटा चहुं ओर बिखेरते रहे। यहां के राजपरिवार के सदस्यों तथा बौद्ध धर्म के सर्वमान्य विख्यात फरा (संत) भगवान गणेश की मूर्ति स्थापना समारोह तथा पूजा अनुष्ठानों में भी श्रद्धापूर्वक सम्मिलित हुए। समूचे विश्व के सामने खड़े संकट का समाधान शायद किसी के पास नहीं है, लेकिन हमारे वैदिक शास्त्रों में कहा गया है- “जो बैठा रहता है, वह नष्ट हो जाता है। दैवी शक्तियां उसी की सहायता करती हैं, जो गतिशील है, इसलिए चलते रहो, चलते रहो। इसी परिप्रेक्ष्य में पिछले पांच वर्ष से विश्व हिन्दू परिषद् के संयुक्त महामंत्री व विश्व समन्यव प्रभारी स्वामी श्री विज्ञानानंद जी की प्रेरणा से प्रारंभ हुआ गणेश महोत्सव आज थाइलैंड की धरती पर वटवृक्ष का रूप धारण कर चुका है। इस वर्ष श्री गणेश महोत्सव चतुर्थी से चतुर्दशी (1-11 सितम्बर) तक थाई एवं हिन्दू समाज के परस्पर सहयोग से विश्व हिन्दू परिषद् के नेतृत्व में तथा हिन्दू स्वयंसेवक संघ थाईलैंड के प्रचारक श्री उमेश मिश्र के अथक प्रयत्नों से दो स्थानों पर धूमधाम से मनाया गया। पहला समारोह भव्य शिव मंदिर (राम इन्थरा), जो स्याम थोरानी में खू वोन रोड पर स्थित है, में आयोजित हुआ। जबकि दूसरा थाईलैंड की राजधानी बैंकाक से करीब 150 किमी.उत्तर स्थित नरवोन नापोक शहर के “युथमान फराफी गणेश” नामक थाई वाट (मंदिर) में हुआ। युथमान फराफी गणेश मंदिर की विशेषता यह है कि यह विश्व की सबसे बड़ी स्थापित गणेश प्रतिमा मानी जाती है, जो 15 मीटर ऊंची तथा 9 मी.चौड़ी है। इसका निर्माण थाई फरा साधु लुअंग फोनेन ने किया है। श्रद्धा से परिपूर्ण इस समारोह का शुभारंभ बोधिसत्व मंदिर की संस्थापिका मां सुश्री कुअंग सेंग ने तथा नरवोन नायोक वाट में मोंक (फरा) श्री फराराज कोसोन रंगसन ने दीप प्रज्ज्वलित करके किया। इसके पश्चात् विश्व हिन्दू परिषद् के अध्यक्ष श्री सुशील सर्राफ, उपाध्यक्ष श्री जमदग्नि, महासचिव श्री सुशील धानुका व कोषाध्यक्ष श्री प्रदीप सिंघल ने विघ्नहत्र्ता श्री गणेश जी का माल्यार्पण किया। तत्पश्चात् शास्त्रोक्त विधि से पं.विजयनारायण पाण्डेय के नेतृत्व में विद्वानों ने श्री गणेश जी का पूजन-अर्चन किया। आस्था एवं उपासना के माहौल में शिव मंदिर की अध्यक्षा मां श्री कुअंग सेन ने श्री गणेश जी का स्तुतिगान करते हुए कहा कि देवों में प्रथम पूज्य श्री गणेश अपने पिता भगवान शंकर, माता पार्वती की परिक्रमा करके सम्पूर्ण वसुधा को अपनी संस्कृति, सभ्यता एवं परपंराओं के प्रति सम्मान व आदर करने का सर्वप्रथम नूतन संदेश दिया था। तत्पश्चात् श्री मदन शुक्ल, श्री ओमप्रकाश सिंह, श्री लालजी पाण्डेय, श्री कमलेश यादव एवं श्री छोटक सिंह ने भगवान श्री गणेश के भजन एवं आरती के माध्यम से घंटों तक भक्तजनों को भक्तिसुधा रस का पान कराया। भक्ति एवं सुख की सरिता में डूबे भक्तों को समय का भान नहीं रहा और गणेश जी के विसर्जन का समय हो गया। विशाल शोभा यात्रा में सुखकर्ता गणेश की जय-जयकार के साथ आनंद एवं अमृत छलकते भक्तिपूर्ण माहौल में भगवान श्री गजानन की प्रतिमा का मंत्रोचार एवं जयघोष के साथ चवफइया नदी की विशाल जलराशि में श्रद्धापूर्वक विसर्जन किया गया। इस प्रेम, श्रद्धा एवं शांतिपूर्ण आयोजन का निरंतर व्याप बढ़ता जा रहा है। इस गणेश उत्सव की सफलता एवं उत्साहपूर्ण संचालन में विश्व हिन्दू परिषद् एवं हिन्दू स्वयंसेवक संघ के मुख्य कार्यकत्र्ता श्री तेजस्वी शुक्ला, श्री करन सिंह, श्री प्रमोद, श्री वाई एस.राव, श्री शैलेश उपाध्याय एवं श्रीमती पुष्पा सर्राफ, श्रीमती सरिता रस्तोगी, श्रीमती भावना केवल रमानी, श्रीमती कमला शुक्ला का महत्वपूर्ण योगदान रहा। हिन्दू धर्म सभा (विष्णु मंदिर) देव मंदिर के युवा कार्यकत्र्ता श्री त्रिनेत्र दुबे, श्री छांगुर तिवारी, श्री विजय शर्मा, श्री राजू सिंह एवं श्री ब्रह्मानंद दुबे तथा पं.रजनीकांत का योगदान सराहनीय रहा। आज थाईलैंड में बल,बुद्धि, विद्या के प्रदाता श्री गणेश जी का प्रभाव हिन्दू समाज से ज्यादा मूल थाई समाज में दिखाई दे रहा है। इस प्रकार श्री गणेश उत्सव के माध्यम से यह हिन्दू बौद्ध संस्कृति मिलन आम लोगों के बीच प्रबल प्रेम संबंध स्थापित करने तथा दो संस्कृतियों के बीच आकर्षण का केन्द्र बिन्दु बनता जा रहा है। इस श्रद्धाकुंभ ने हम सबके जीवन पथ को एक नए आयाम से जोड़ दिया है।
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