चर्चा सत्र
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गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने राज्य के हर नागरिक के उत्कर्ष के लिए जितने प्रयास किए हैं उनके चलते वे देश के सबसे लोकप्रिय मुख्यमंत्री साबित हुए हैं। लेकिन यह भी सच है कि मोदी को हौवा साबित करने के जितने सेकुलर प्रयास हुए हैं, उतने शायद ही किसी अन्य राजनीतिक व्यक्ति के लिए हुए। उनके खिलाफ चलाए गए अपप्रचार अभियान केवल भारत तक ही सीमित नहीं रहे, अपितु उन्हें विश्वव्यापी बनाने का प्रयास भी किया गया। सर्वोच्च न्यायालय तक यह कहकर मामला ले जाया गया कि गुजरात में न्याय नहीं मिल सकता। सर्वोच्च न्यायालय ने आरोप की जांच के लिए अपनी निगरानी में विशेष जांच दल गठित किया और उसका प्रतिवेदन देखने के बाद शिकायतकर्ताओं की आपत्ति की अनदेखी करते हुए सारे मामले गुजरात की अदालत में ही भेज दिए। यद्यपि किसी भी मामले में नरेन्द्र मोदी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज नहीं करायी गयी, तथापि गोधरा नरसंहार की प्रतिक्रियास्वरूप 2002 में जो कुछ भी हुआ उसके लिए नरेंद्र मोदी को भी जिम्मेदार ठहराने का अभियान, मामले आधारहीन साबित होते जाने के बावजूद, जारी है।
विकास से जवाब
ऐसे सभी दुर्भावना से उपजे अभियानों का नरेंद्र मोदी ने अद्भुत तरीके से मुकाबला किया। उन्होंने बेसिरपैर के आरोपों का उत्तर देने की माथापच्ची में उलझने के बजाय गुजरात के सर्वांगीण विकास को लक्ष्य बनाया और आज गुजरात भारत का सबसे सुरक्षित और विकसित राज्य बन गया है। जहां अन्य राज्य निवेशकों की मनुहार कर रहे हैं वहीं देशी और विदेशी, दोनों प्रकार के निवेशक मोदी के गुजरात में निवेश करने को आतुर हैं। भारत सरकार के प्रत्येक प्रतिवेदन में गुजरात की भूरि-भूरि प्रशंसा हो रही है। जिन मुसलमानों में उनके प्रति घृणा बोने का अभियान जारी है उनके “हितों” का चिंतन करने के लिए गठित सच्चर समिति ने अपने प्रतिवेदन में कहा है कि गुजरात के मुसलमान देश के किसी अन्य राज्य के मुसलमानों की अपेक्षा सबसे अधिक शिक्षित और विकसित हैं। और जैसा नरेन्द्र मोदी ने अपना “सद्भावना मिशन” शुरू करते हुए कहा था, जिस गुजरात का “90 का दशक दंगे और कफ्र्यू में बीता उसमें 2002 के बाद भूकंप जैसी विपत्ति तथा अक्षरधाम पर हमले के बावजूद हिंसा की कोई बड़ी घटना नहीं हुई। यह इसलिए संभव हुआ, क्योंकि उन्होंने गुजरात के गौरव और स्वाभिमान को जगाते हुए तुष्टीकरण की राजनीति को दरकिनार करके सबके लिए समान अवसर उपलब्ध कराए।
डरी हुई कांग्रेस
सेकुलरों द्वारा अपप्रचार अभियान के लिए झूठ का सहारा लेकर यहां तक कहा गया कि गोधरा स्टेशन पर ट्रेन में जलाये गये 59 रामभक्तों में से 58 की पार्थिव देहों को अमदाबाद लाकर लोगों को उत्तेजित किया गया। किसी ने यह बताने का प्रयास नहीं किया कि जिनके पार्थिव शरीर अमदाबाद लाये गए थे, उन सभी के परिजन अमदाबाद के निवासी थे। जिस प्रकार गोधरा कांड को नजरअंदाज करने का प्रयास किया गया, उसी प्रकार उसकी प्रतिक्रिया को कुत्सित ढंग से अलग आयाम देने का प्रयास किया गया। इन सबसे विचलित हुए बिना नरेन्द्र मोदी ने जिस धैर्य और साहस के साथ गुजरात के विकास को प्राथमिकता देकर पिछले दस वर्षों में काम किया है उसका ही परिणाम है कि कांग्रेस तक को गुजरात में अपना कोई भविष्य नहीं दिखाई पड़ रहा है।
कांग्रेस तो यह भी साहस नहीं दिखा पा रही है कि वह अपने लिए वंश-परंपरा से स्वीकृत व्यक्ति को प्रधानमंत्री का भावी उम्मीदवार घोषित कर सके। जो भी व्यक्ति राजनीति कर रहा है, वह जहां है वहां से एक कदम और आगे बढ़ने का प्रयास करता है। यदि मोदी की आकांक्षा आगे बढ़नेे की है तो इसमें हर्ज क्या है? क्या सद्भावना बढ़ाने के स्थान पर कांग्रेसियों को दुर्भावना बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए? जो कांग्रेस यह नहीं मानती कि उसके “युवराज” का भट्टा-पारसौल जाना या किसी वंचित परिवार में जाना एक राजनीतिक अभियान है, वही किसी अन्य के द्वारा सद्भावना के लिए कदम बढ़ाने को राजनीतिक आकांक्षा मानती है! राजनीति करने वालों में कोई अपने कृत्य से स्वीकृति बढ़ाता है और कोई अपने नृत्य के सम्मोहन से। नरेन्द्र मोदी अपने कृत्य से सद्भावना बढ़ाने की दिशा में बढ़ रहे हैं। इसलिए उन लोगों को बुरा लगना स्वाभाविक है जिनके नृत्य की चमक कृत्य को देखकर बुझती जा रही है। देश की जनता सम्मोहक नारों से ऊब गयी है, यह बात यदि इस प्रकार का आचरण करने वालों को बाबा रामदेव ओर अण्णा हजारे के लिए उमड़े जनसैलाब से भी समझ नहीं आ रही है तो ऐसे लोगों के बारे में जो गोस्वामी तुलसीदास ने कहा है उससे अधिक कुछ कहने की आवश्यकता नहीं होगी-
जाको प्रभु दारुण दु:ख देही
ताकि मति पहले हर लेही
सकारात्मक हो सोच
कांग्रेस अपनी निरंतर असफलताओं के बावजूद आत्मनिरीक्षण कर सीधी राह पर आने के बजाय पर-निंदा के सहारे सत्ता में बने रहने का जितना प्रयास कर रही है वह उसकी मतिहीनता का ही परिचायक है। अन्यथा अब तक की सबसे भ्रष्टतम सरकार के रूप में संप्रग सरकार की जो छाप गहराती जा रही है उससे उबरने का वह सार्थक प्रयास करती। वह सिद्धांतहीन व्यक्तिगत हितचंतन और परिवार पोषण की क्षुद्र राजनीति करने वाले उन कतिपय क्षत्रपों का अनुसरण न करती जो अपनी चमक खो चुके हैं। नरेन्द्र मोदी ने अपना अनशन शुरू करते हुए जो सबसे महत्वपूर्ण बात कही उसका देश को सही मायने में संज्ञान लेने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि “गुजरात का विकास बिना तुष्टीकरण के सभी को समान अवसर प्रदान करने के कारण हुआ है।” आज देशभर में राजनीति करने वाले ज्यादातर दल सांप्रदायिक, जातीय, वर्गीय या क्षेत्र तुष्टीकरण की राह पर चलकर वोट बैंक बनाने के अतिरिक्त कोई सार्वजनिक हित का काम नहीं कर रहे हैं। देश में इस समय जितना वर्ग भेद है उतना कभी नहीं रहा है। इसका कारण है वोट बैंक की राजनीति, जो भ्रष्टाचार से अर्जित धन से मतदाताओं को दिग्भ्रमित करने में लगी हुई है। हमारे समाज की सोच सकारात्मक रही है इसलिए दुर्भावना-ग्रसित लोगों को मोदी के कामों में परिलक्षित सकारात्मकता का संज्ञान लेना चाहिए। अन्यथा नए विवाद खड़े कर नरेन्द्र मोदी के इस प्रयास की खिल्ली उड़ाने वालों को पूर्व के समान ही मुंह की खानी पड़ सकती है।
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