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संवत् 2063 वि.
वार
ई. सन् 2006
ज्येष्ठ शुक्ल 15
रवि
11 जून
आषाढ़ कृष्ण 1
सोम
12 ,,
,, 2
मंगल
13 ,,
,, 3
बुध
14 ,,
,, 4
गुरु
15 ,,
,, 5
शुक्र
16 ,,
,, 6
शनि
17 ,,
सूक्ष्मिका
आरक्षण
आरक्षण की नाव में
छेद ही छेद हैं
क्योंकि
कारीगर नाविक की नीयत में ही
न जाने कितने भेद हैं।
-कुमुद कुमार
ए-5, आदर्श नगर
नजीबाबाद, बिजनौर (उ.प्र.
पाठकीय
अंक-सन्दर्भ, 14 मई, 2006
यह कैसा सेकुलरवाद?
मंथन के अन्तर्गत श्री देवेन्द्र स्वरूप का आलेख “डोडा में गीदड़, वडोदरा में शेर” सेकुलरों की पोल खोलता है। सेकुलर मीडिया एवं स्वार्थी नेता मुस्लिम बहुल जम्मू-कश्मीर में जिहादियों द्वारा मारे गए 35 हिन्दुओं के प्रति संवेदनहीन बने रहे लेकिन वडोदरा में एक दरगाह, जिसे मार्ग का अतिक्रमण कर बनाया गया था, के हटाने पर मुसलमानों के साथ हो लिए। यह दोहरा मापदण्ड क्यों? मुस्लिम वोट पाने की लालसा में तथाकथित सेकुलर नेता मर्यादाएं भूल चुके हैं। हिन्दू समाज पर हो रहे जिहादी आक्रमणों के सामने ये सेकुलर नेता व मीडिया नतमस्तक तो होते ही हैं, जिहादी तत्वों के प्रति उत्पन्न हुए गुस्से को भी शांत करने का कार्य करते हैं। जिस दिन हिन्दू समाज इस छद्म सेकुलरवाद की होली जलाने का संकल्प ले लेगा उसी दिन उस पर होने वाले जिहादी आक्रमण भी रुक जाएंगे।
-मोहित कुमार मंगलम्
ग्राम-कुशी, पोस्ट-कांटी, जिला-मुजफ्फरपुर (बिहार)
लगता है पूरे देश को सेकुलर बनाने का ठेका सिर्फ कांग्रेसियों और कम्युनिस्टों ने ही ले रखा है। हालांकि वे स्वयं कितने सेकुलर हैं यह भी एक चर्चा का विषय है। इनके लिए केवल मुस्लिमपरस्ती ही सेकुलरिज्म का प्रमाण पत्र है। कांग्रेस की मुस्लिमपरस्ती का सबसे ताजा उदाहरण गुजरात में देखने को मिला, जहां अतिक्रमण विरोधी अभियान में एक दरगाह को गिराने पर केन्द्रीय गृहराज्यमंत्री इस अंदाज में गुजरात की ओर दौड़े जैसे वहां का पूरा प्रशासनिक तंत्र मुस्लिमों के विरुद्ध खड़ा हो। जब केन्द्रीय गृहराज्यमंत्री मुस्लिम भावनाओं को कथित रूप से ठेस पहुंचाने पर मीडिया के समक्ष प्रलाप कर रहे थे उसी समय डोडा में 35 हिन्दुओं की हत्या पर केन्द्र सरकार ने अपनी रटी-रटायी संवेदनाएं प्रेस के सामने व्यक्त कीं और काम खत्म किया। “पंथनिरपेक्षता” के नाम पर हिन्दू और मुसलमानों को बांटकर सत्ता पर काबिज होने की कांग्रेस-कम्युनिस्ट रणनीति तभी असफल की जा सकती है जब हिन्दू इनसे अपना नाता बिल्कुल तोड़ दें।
-नितिन पुण्डीर
एस-139, पल्लवपुरम-2, मोदीपुरम, मेरठ (उ.प्र.)
किससे आस करें?
वडोदरा के विकास के लिए गुजरात उच्च न्यायालय के दिशा-निर्देशों पर गुजरात सरकार ने अतिक्रमण कर रहे धार्मिक स्थलों व अन्य भवनों को बिना किसी भेदभाव के हटाने का कार्य प्रारंभ किया था। उसमें लगभग 20 मन्दिरों को तोड़े जाने के बाद जब सड़क के बीचों बीच बनी एक अवैध दरगाह को हटाने की बारी आई तो मुस्लिम समुदाय की भीड़ ने योजनाबद्ध ढंग से पेट्रोल बमों व हथियारों से दंगा प्रारम्भ कर दिया। केन्द्र सरकार को दंगा रोकने में राज्य सरकार की मदद करनी चाहिए थी किन्तु उसने वोट बैंक की राजनीति का परिचय दिया। उधर सर्वोच्च न्यायालय ने भी अवैध दरगाह को तोड़े जाने पर रोक लगा दी। क्या केन्द्र सरकार और न्यायपालिका की यह जिम्मेदारी नहीं थी कि वह जानने की कोशिश करती कि दंगा किन लोगों ने प्रारंभ किया? दंगाइयों के पास हथियार और पेट्रोल बम कहां से आए? जबकि इसी उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली में वर्षों से सरकार को हर प्रकार का कर दे रहे व्यापारियों के प्रबल मानवीय विरोध को अनसुना कर तालाबंदी और तोड़-फोड़ रोकने से इनकार कर दिया था। न्यायपालिका के इस दोहरे आचरण के बाद किससे न्याय की आशा की जा सकती है?
-कमल कुमार जैन
9/2054, गली नं.-6, कैलाश नगर, दिल्ली-110031
गुजरात में एक मामूली-सी दरगाह को हटाये जाने की कोशिश पर उन्मादी मुस्लिम भीड़ द्वारा हिंसा का तांडव किया जाना गंभीर खतरे का संकेत है। इस “अतिक्रमण हटाओ अभियान” में लगभग 20 मंदिर भी गिराए गये। हिन्दू समाज ने विकास व शहर के सौंदर्यीकरण के नाम पर इसे सहर्ष स्वीकार कर लिया। मगर, इस्लाम की मूल मान्यताओं के खिलाफ बनी इस दरगाह के लिए गुंडागर्दी की हद पार कर जिहादी तत्वों ने सिद्ध कर दिया कि वे देश की विकास यात्रा में सहभागी नहीं बनना चाहते। सऊदी अरब, मलेशिया व पाकिस्तान जैसे कट्टर इस्लामी देशों में विकास के लिए सैकड़ों मस्जिदों को तोड़ दिया गया, तब तो वहां के मुस्लिमों की भावनाएं आहत नहीं हुईं। भारत में उनकी भावनाएं इसलिए आहत हुईं कि भारत हिन्दू बहुल राष्ट्र है और वे कदम-कदम पर झगड़ने का मौका तलाशते रहते हैं। पहले मऊ फिर अलीगढ़ और अब वडोदरा इसके उदाहरण हैं, जहां उन्होंने सुनियोजित ढंग से दंगे किए। मुस्लिम जिहादियों की इन गतिविधियों पर संप्रग सरकार का मौन रहना भयावह संकट को न्योता दे सकता है।
-अभिजीत “प्रिंस”
स्नातक तृतीय वर्ष (गणित)
लंगट सिंह महाविद्यालय, मुजफ्फरपुर (बिहार)
हिन्दू का शत्रु हिन्दू ही!
सम्पादकीय “सहिष्णुता और पृथ्वीराज चौहान की सदाशयता के सहारे कब तक जिएंगे?” एक ओर जहां देश के सेकुलर तालिबानों के मुंह पर करारा तमाचा है वहीं हिन्दुओं के सोए गौरव को जगाने के लिए एक सशक्त दस्तावेज भी है। मुहम्मद बिन कासिम ने हिन्दुओं और उनके मंदिरों का जो विनाश शुरू किया था वह आज भी जारी है। इसकी वजह है हिन्दुओं का हमेशा से विभाजित रहना और महत्वपूर्ण अवसरों पर अपनों के ही साथ धोखा करना। दुर्भाग्य से आज भी ऐश्वर्य, पद और राजनीतिक लाभ के लिए हिन्दू स्वयं ही अपना शत्रु बना हुआ है। सेकुलर तालिबान, जो हिन्दू ही हैं, सत्ता और पैसे के लिए हिन्दुओं का अहित करने में सबसे आगे हैं।
-रमेशचन्द्र गुप्ता
ए-201, नेहरू नगर, गाजियाबाद (उ.प्र.)
दो उदाहरण
हाल ही में घटी दो घटनाओं ने मेरे उद्वेलित मन के लिए मरहम का काम किया। जम्मू-कश्मीर के युवकों और युवतियों के लिए मेरे मन में पहले यह धारणा थी कि वे बेचारे हालातों के मारे हैं, इसीलिए जब कोई विदेशी संगठन उन्हें भड़का कर आतंकवाद के मार्ग पर ले जाता है तो वे चाहकर भी कोई प्रतिरोध नहीं कर पाते। किन्तु अभी कुछ दिनों पूर्व उन्होंने श्रीनगर में यौन शोषण से जुड़े एक गिरोह का जिस तरह से विरोध किया उससे यह बात स्पष्ट होती है कि कश्मीरी समाज भी गलत कार्यों का विरोध करने में पीछे नहीं रहता है। इसी जोश और उत्साह के साथ कश्मीर के युवकों और युवतियों को आतंकवाद का भी विरोध करना चाहिए। ऐसा करके वे पूरे देश के सामने एक मिसाल पेश कर सकते हैं।
दूसरी घटना है सऊदी अरब द्वारा गैर-मुस्लिम पर्यटकों के लिए अपने द्वार खोल देना। सऊदी अरब न केवल भारत के ही करोड़ों नागरिकों की दृष्टि में महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थल है बल्कि दुनिया के करोड़ों लोग भी वहां जीवन में कम से कम एक बार मजहबी यात्रा करना चाहते हैं। यदि सऊदी अरब ने गैर-मुसलमानों के लिए अपने द्वार खोलकर यह संदेश दिया है कि उसने सच्चे इस्लाम का अनुपालन करते हुए सम्पूर्ण मानवता को एक मान लिया है तो अब उसे प्रत्येक हाजी को यह दो टूक आदेश देना चाहिए कि वह आतंकवाद का प्रत्यक्ष या परोक्ष समर्थन करके इस्लाम को बदनाम न करे।
-डा. बलराम मिश्र
8बी/6428, आर्य समाज रोड, देव नगर,
करोल बाग (नई दिल्ली)
उनका यूं चले जाना
प्रमोद महाजन को कई बार सभाओं/दूरदर्शन पर सुनने-देखने का अवसर मिला था। वे वर्तमान पीढ़ी को प्रभावित करने वाले लोकप्रिय नेता थे। जिन लोगों की राजनीति में रुचि नहीं भी है, वे भी ऐसे विद्वान-वक्ता नेता को देख-सुनकर प्रभावित हुए बिना नहीं रहते थे। उनके निधन से निश्चय ही भावी भारत का एक सितारा बीच दोपहरी अस्त हो गया।
-भूपेन्द्र राठौर
31/4, नया पलासिया, इन्दौर (म.प्र.)
भाजपा नेता प्रमोद महाजन के निधन ने सभी को स्तब्ध कर दिया है। ऐसा लगा मानो हमारा अपना कोई खास इस दुनिया से चला गया। प्रमोद जी का प्रत्येक राजनीतिक दल के नेताओं व मीडियाकर्मियों से निकट रिश्ता था तभी तो सब दु:खी थे। आपने मुखपृष्ठ पर सही शीर्षक दिया है “भरी दोपहरी सूरज डूबा”। वास्तव में प्रमोद जी गतिशील व्यक्ति थे और उनकी वजह से भाजपा में भी गतिशीलता थी। ऐसे व्यक्ति के चले जाने से पार्टी व समाज की क्षति की भरपाई हो पाना कठिन है।
-वीरेन्द्र सिंह जरयाल
5809, सुभाष मोहल्ला, गांधी नगर (दिल्ली)
आतंकवादियों से अधिक दोषी हमारे सेकुलर शासक
लश्करे तोइबा में आतंकवादियों ने डोडा और उधमपुर जिलों से 35 हिन्दुओं को मौत के घाट उतारा। कहा गया कि आतंकवादियों ने प्रधानमंत्री और हुर्रियत के नेताओं के बीच हो रही बातचीत को विफल करने के लिए अथवा वहां के उपचुनाव में 70 प्रतिशत मतदान से खिन्न होकर यह कार्रवाई की है। मगर इसमें कोई संदेह नहीं है कि उनका उद्देश्य डोडा और उधमपुर में बच गये हिन्दुओं को भी आतंकित कर वहां से भगाना था। इस प्रकार पूरे कश्मीर में कोई हिन्दू बाकी न रहे और वहां पर “निजामे मुस्तफा” कायम हो जाए, यही जिहादियों की इच्छा है।
हमें दु:ख और आश्चर्य है कि न तो केन्द्र सरकार और न ही कश्मीर सरकार आतंकवादियों की गतिविधियों को रोकने में अब तक सफल हुई है। हिन्दुओं के मारे जाने पर किसी को दु:ख भी नहीं होता क्योंकि सरकार अपने को सेकुलर कहती है। केन्द्र तथा कश्मीर शासन को समझना चाहिए कि आतंकवादियों की असली नीयत क्या है। क्या सरकार आतंकवादियों के अड्डे, कश्मीर तथा भारत में जहां भी हैं, नष्ट नहीं कर सकती? पर केन्द्र सरकार और प्रदेश सरकार में ऐसी इच्छाशक्ति नहीं दिखती है, इस कारण हिन्दुओं का कत्लेआम जारी है, जिसका दोष जिहादियों पर नहीं केन्द्र सरकार और कश्मीर सरकार पर है।
-उत्तमचंद इसराणी
वरिष्ठ अधिवक्ता, भोपाल (म.प्र.)
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